हर ५ सितम्बर को
हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। डॉ. सर्वपल्ली
राधाकृष्ण देश के पहले उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति थे और बच्चों के बीच
काफी लोकप्रिय भी थे साथ ही साथ वे प्रख्यात शिक्षाविद भी थे।
हमारे देश में सदियों से गुरु शिष्य की प्ररम्परा रही है, जिसका उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। इन्ही ग्रंथों में कुछ ऐसे महान गुरु व् उनके शिष्यों का वर्णन मिलाता है जिन्होंने गुरु–शिष्य की परंपरा को नई ऊंचाइयां प्रदान की है, और हमें सदियों से सीखाती आयी हैं।
आईये शिक्षक
दिवस के अवसर पर हम ऐसे ही कुछ महान गुरुओं को याद करें:
भगवान शिव
देवों में देव महादेव, भगवान शिव आदि व अनंत हैं अर्थात न तो कोई
उनकी उत्पत्ति के बारे में जानता है और न कोई अंत के बारे में। भगवान शिव ने भी
गुरु बनकर अपने शिष्यों को ज्ञान दिया है। भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को
अस्त्र शिक्षा शिव ने ही दी थी। शिव के द्वारा दिए गए परशु (फरसे) से ही परशुराम
ने अनेक बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। दैत्य गुरु शुक्राचार्य को भी भगवान् शिव ने ही मृत
संजीवनी विद्या दी थी।
महर्षि वेदव्यास
परशुराम
परशुराम महान योद्धा व गुरु थे। ये जन्म से ब्राह्मण थे, लेकिन इनका स्वभाव क्षत्रियों जैसा था। इन्हे भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। इन्होंने भगवान शिव से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। इनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था। अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए इन्होंने अनेक बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। भीष्म, द्रोणाचार्य व कर्ण इनके शिष्य थे।
देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं। महाभारत के
आदि पर्व के अनुसार,
बृहस्पति महर्षि
अंगिरा के पुत्र हैं। ये अपने ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग प्राप्त कराते
हैं। ग्रंथों के अनुसार,
जब असुर देवताओं
को हराने का प्रयास करते थे, तब देवगुरु बृहस्पति रक्षा मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षा
करते थे।
शुक्राचार्य
शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु तथा भगवान शिव के
शिष्य थे। ये भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र थे। इन्हें
भगवान शिव ने मृत संजीवन विद्या का ज्ञान दिया था, जिसके बल पर यह मृत दैत्यों को पुन: जीवित कर देते थे।
वशिष्ठ ऋषि
वशिष्ठ ऋषि सूर्यवंश के कुलगुरु थे। इन्हीं के परामर्श पर राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिसके फलस्वरूप श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ। भगवान राम ने सारी वेद-वेदांगों की शिक्षा वशिष्ठ ऋषि से ही प्राप्त की थी। श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद ऋषि वशिष्ठ ने ही उनका राज्याभिषेक किया और राम अयोध्या के राजा बने। इन्होंने वशिष्ठ पुराण, वशिष्ठ श्राद्धकल्प, वशिष्ठ शिक्षा आदि ग्रंथों की रचना भी की।
गुरु सांदीपनि
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र
धर्म ग्रंथों के अनुसार, विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय थे, लेकिन इनकी घोर तपस्या से प्रसन्न भगवान
ब्रह्मा ने इन्हें ब्रह्मर्षि का पद प्रदान किया था। अपने यज्ञ को पूर्ण करने के
लिए ऋषि विश्वामित्र श्रीराम व लक्ष्मण को अपने साथ वन में ले गए थे, जहां उन्होंने श्रीराम को अनेक दिव्यास्त्र
प्रदान किए थे। रामचरितमानस के अनुसार भगवान श्रीराम को सीता स्वयंवर में ऋषि
विश्वामित्र ही लेकर गए थे।
आचार्य द्रोणाचार्य
महान धनुर्धर थे। उन्होंने ही कौरव व पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी।
महाभारत के अनुसार द्रोणाचार्य देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। इनके पिता का नाम
महर्षि भरद्वाज था। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान की पुत्री कृपी से हुआ था। इनके
पुत्र का नाम अश्वत्थामा था। महान धनुर्धर अर्जुन इनका प्रिय शिष्य था।
आप सभी को हिंदी साहित्य मार्गदर्शन की और से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ !!
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