भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी ~ अलिफ लैला

भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी, किस्सा भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष का, Bhale admi aur irshyalu purush ki kahani, kissa bhale aadmi aur irshyalu kupush ka alif laila

किस्सा भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष का

किसी नगर में दो आदमियों का घर एक दूसरे से लगा हुआ था। उनमें से एक पड़ोसी दूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष रखता था। भले मानस ने सोचा कि मकान छोड़कर कहीं जा बसूँ क्योंकि मैं इस आदमी के प्रति उपकार करता हूँ और यह मुझ से वैर ही रखे जाता है। अतएव वह वहाँ से कुछ दूर पर बसे दूसरे नगर में एक अच्छा मकान खरीद कर जिसमें एक अंधा कुआँ भी था, रहने लगा। उसने फकीरों का बाना भी ओढ़ लिया और रात-दिन भगवान के भजन में समय बिताने लगा। उसने अपने मकान में कई कक्ष बनवाए जिनमें वह साधु-संतों को ठहराता और भोजन दिया करता था। इससे वह नगर में बहुत प्रसिद्ध हो गया और लोग उससे मिलने को आने लगे।

उसकी प्रसिद्धि शीघ्र ही बढ़ गई। दूर-दूर से लोग आते और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करने के लिए उससे निवेदन करते। उसके चमत्कारों की ख्याति उस नगर में भी पहुँची जहाँ वह पहले रहा करता था। उसके पुराने पड़ोसी को यह सुनकर और भी ईर्ष्या हुई। उसने निश्चय किया कि उसी के मकान में जाकर उसे मार डालूँ। वह जाकर उसके घर पर मिला। संत पुरुष ने अपने पुराने पड़ोसी की बड़ी अभ्यर्थना की। ईर्ष्यालु व्यक्ति ने यह झूठ कहा कि मुझ पर एक विपत्ति पड़ी है जिसके निवारण के लिए मैं तुम से प्रार्थना करने आया हूँ, किंतु मैं इस कठिनाई को गुप्त रखना चाहता हूँ और तुम अपने चेलों तथा अन्य साधुओं से कह देना कि जिस समय मैं और तुम बातें कर रहे हो कोई अन्य व्यक्ति पास में भी न आए। संत पुरुष ने ऐसा ही आदेश दे दिया।

अब उस दुष्ट आदमी ने एक झूठ-मूठ का लंबा किस्सा बनाया और संत पुरुष से कहने लगा। फिर उसने कहा कि हम लोग टहलते हुए ही इस किस्से का कहना-सुनना पूरा करें। संत ने वह भी मान लिया। बात करते-करते जब वे कुएँ के पास आए तो दुष्ट मनुष्य ने संत को अचानक धक्का देकर कुएँ में गिरा दिया और स्वयं चुपके से मकान से चलकर भाग खड़ा हुआ। वह अपने जी में बड़ा प्रसन्न था कि यह आदमी जिसकी प्रसिद्धि ने मुझे जला रखा है खत्म हो गया।

किंतु उस संत पुरुष का भाग्य अच्छा था। उस कुएँ में परियाँ रहती थीं जिन्होंने उसके गिरने पर उसे हाथों-हाथ उठा लिया और सुविधापूर्वक एक जगह बिठा दिया। उसे चोट नहीं आई लेकिन परियाँ उसकी दृष्टि से ओझल ही रहीं। वह संत पुरुष सोचने लगा कि इस दशा में मुझे लाने में भगवान की कुछ कृपा ही होगी। थोड़ी देर में उसे ऐसी आवाजें सुनाई देने लगीं जैसे दो आदमी आपस में बातें करते हो। एक ने कहा, 'तुम्हें मालूम है कि यह आदमी कौन है?' दूसरे ने कहा, 'मुझे नहीं मालूम।' पहले ने कहा, 'मैं तुम्हें इसका हाल बताता हूँ। यह अत्यंत सच्चरित्र और शीलवान व्यक्ति है। इसने अपना नगर छोड़कर यहाँ रहना इसलिए शुरू किया कि इसे वहाँ अपने पड़ोसी से जो इससे जलता था उलझना न पड़े। इस नगर में ईश्वर की दया से इसकी ख्याति बहुत बढ़ गई। इस ख्याति के कारण इसका पुराना पड़ोसी और भी जला और उसने इसे मार डालने का इरादा कर लिया। वह इसके घर आया और इसे बहाने से यहाँ लाकर कुएँ में गिरा दिया। यदि हम लोग इसकी सहायता न करते तो यह मर ही जाता।

अलिफ़ लैला की अन्य कहानियाँ भी पढ़ें:
Complete Alif Laila Stories In Hindi ~ अलिफ लैला की कहानियाँ

पहले ने कहा, 'अब इसका क्या होगा?' दूसरा बोला, 'सब अच्छा होगा। कल इस नगर का बादशाह इसके पास आकर इससे निवेदन करेगा कि यह उस बादशाह की पुत्री के स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना करे।' पहले ने कहा, 'राजकुमारी को क्या रोग है?' दूसरे ने कहा, 'राजकुमारी पर मैमून नामक जिन्न का पुत्र दिमदिम आसक्त है और वही उसके सिर पर चढ़ा रहता है जिससे राजकुमारी हमेशा बीमार और बदहवास रहती है। उसके हटाने का उपाय बड़ा सरल है। इस संत के घर में एक काली बिल्ली है जिसकी पूँछ की जड़ के पास एक श्वेत हिस्सा है। इस संत को चाहिए कि उस श्वेत भाग से सात बाल उखाड़ कर अपने पास रखे। जब शहजादी इसके पास लाई जाए तो इसे चाहिए कि वे बाल आग में जलाकर उनका धुआँ शहजादी की नाक में पहुँचा दे। इससे वह नीरोग हो जाएगी और आगे भी दिमदिम कभी उनके पास नहीं फटकेगा।'

संत पुरुष ने परियों और उनके साथियों को यह बातचीत सुन कर भली प्रकार याद रखी। रात भर वह कुएँ में रहा। सवेरे जब उजाला हुआ तो उसने देखा कि कुएँ की दीवार में ऊपर से नीचे तक मोखे बने हुए हैं। वह उनके सहारे थोड़ी ही देर में ऊपर आ गया। उसके शिष्य और भक्त जो रात भर उसे खोजते रहे थे उसे देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उसने उनसे कहा कि मैं संयोगवश कुएँ में गिर गया था लेकिन मुझे चोट नहीं आई।

फिर वह अपने घर में आकर बैठ गया। थोड़ी ही देर में काली बिल्ली घूमती-फिरती उसके पास से निकली। संत पुरुष को कुएँ में सुनी बातें याद थीं। इसलिए उसने बिल्ली को पकड़ कर उसकी खाल के श्वेत भाग से सात बाल उखाड़ लिए और अपने पास रखे। कुछ काल के पश्चात नगर का बादशाह वहाँ आया। उसने अपनी सैनिक टुकड़ी बाहर छोड़ी और कुछ सरदारों के साथ मकान के अंदर आ गया। संत पुरुष ने आदरपूर्वक उसका स्वागत किया।

बादशाह ने कहा, 'हे योगीराज, आप तो सबके दिलों का हाल जानते हैं। आप तो समझ ही गए होंगे कि मैं क्यों यहाँ आया हूँ।' संत पुरुष ने कहा, 'शायद आपकी बेटी अस्वस्थ है और उसके स्वास्थ्य लाभ की आशा ही से आपने मुझ अकिंचन की कुटिया को पवित्र किया है।' बादशाह ने कहा, 'आपने बिल्कुल ठीक कहा, मैं इसी कारण यहाँ आया हूँ। अगर आपके आशीर्वाद से मेरी बेटी स्वस्थ हो जाए तो मेरी सबसे बड़ी चिंता दूर हो जाए।'

संत पुरुष ने उत्तर दिया, 'आप अपनी बेटी को यहीं बुलवा लें। मैं भगवान से प्रार्थना करूँगा कि वह स्वस्थ हो जाए और आशा है कि मेरी प्रार्थना स्वीकार होगी।' बादशाह यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसके आदेश पर राजकुमारी को उसकी सेविकाओं के साथ वहाँ ले आया गया। शहजादी का चेहरा चादर से अच्छी तरह ढँका हुआ था ताकि उसे कोई देख न सकें। संत पुरुष ने नीचे से चादर का इतना भाग उठाया कि नीचे रखी हुई अँगीठी से उठने वाला धुआँ बाहर न जाए। फिर उसने सात बाल अँगीठी में डाले। धुएँ का राजकुमारी की नाक में पहुँचना था कि मैमून जिन्न का बेटा दिमदिम बड़े जोर से चिल्लाया और तुरंत भाग गया।

जिन्न के जाते ही शहजादी होश में आ गई। वहाँ सँभल कर बैठ गई और अपने को भली-भाँति छिपा कर पूछने लगी कि मैं कहाँ हूँ और यहाँ मुझे कौन लाया है। बादशाह खुशी से फूला न समाया। उसने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया और उसकी आँखें चूमने लगा। फिर उसने सम्मानस्वरूप संत पुरुष के हाथ चूमे और अपने सभासदों से राय ली कि इस संत पुरुष के उपकार का बदला किस प्रकार चुकाऊँ। सभासदों ने एकमत होकर कहा कि राजकुमारी का विवाह इसी संतपुरुष के साथ कर देना चाहिए। बादशाह को सभासदों की सलाह पसंद आई और उसने शहजादी का विवाह उसके उपकार कर्ता के साथ कर दिया।

कुछ दिनों बाद बादशाह का प्रमुख अंग मंत्री मर गया और बादशाह ने उसकी जगह अपने दामाद को नियुक्त कर दिया। इसके कुछ समय बाद बादशाह मर गया और चूँकि उस राजकुमारी के अतिरिक्त बादशाह के और कोई संतान नहीं थी अतएव सभी सभासदों और सामंतों की सहमति से उसका दामाद ही राज्य का अधिकारी और नया बादशाह बन गया।

एक दिन वह अपने सरदारों के साथ कहीं जा रहा था कि कुछ दूरी पर उसे अपना पुराना शत्रु दिखाई दिया। नए बादशाह ने अपने मंत्री से चुपके से कहा कि उस आदमी को सहजतापूर्वक मेरे पास ले आओ ताकि वह भयभीत न हो। बादशाह ने उससे कहा, 'मेरे मित्र, तुम्हें इतने दिनों बाद देखकर प्रसन्न हुआ हूँ, तुमने मुझे पहचाना?' वह दुष्ट उसे पहचान कर थर-थर काँपने लगा किंतु बादशाह तो संत पुरुष ही था, उसने उसे एक हजार अशर्फियाँ और कीमती कपड़ों की बीस गाँठें भेंट में देकर उसे सुरक्षापूर्वक उसके घर पहुँचा दिया।

मैंने अपनी कहानी पूरी करके जिन्न से कहा कि उस नेक बादशाह ने तो अपने जानी दुश्मन के साथ यह सलूक किया और तुम मुझ पर तनिक भी दया नहीं करते। किंतु मेरी अनुनय का उस पर कोई प्रभाव न हुआ। उसने कहा मैं तुझे जान से नहीं मार रहा हूँ लेकिन दंड दिए बगैर नहीं छोड़ूँगा, अब मेरा जादू का खेल देख। यह कहकर उसने मुझे पकड़ा और मुझे लेकर आकाश में इतना ऊँचा उड़ गया कि वहाँ से पृथ्वी एक बादल के टुकड़े जैसी लगती थी। फिर एक क्षण ही में मुझे एक ऊँचे पर्वत के शिखर पर ले गया। वहाँ उसने एक मुट्ठी मिट्टी उठाकर उस पर कोई मंत्र पढ़ा और 'बंदर हो जा' कह कर वह मिट्टी मेरे ऊपर छिड़क दी और गायब हो गया।

मैं अपने को बंदर के रूप में पाकर अत्यंत दुखित हुआ। मुझे यह भी मालूम न था कि मैं कहाँ हूँ और वहाँ से मेरा देश किस दिशा में और कितनी दूर है। खैर मैं धीरे-धीरे पहाड़ से उतर कर मैदान में आया और वहाँ भी मैंने सारा प्रदेश निर्जन देखा। अटकल से एक ओर को चलने लगा। एक मास के अंत में मैं समुद्र तट पर पहुँच गया। समुद्र बिल्कुल शांत था और तट से कुछ दूरी पर एक जहाज लंगर डाले खड़ा था।

मैंने जहाज पर जाना ही उचित समझा। किनारे के एक पेड़ से दो टहनियाँ तोड़ीं और उन्हीं के सहारे तैरता हुआ जहाज पर पहुँच गया। जहाज की रस्सी के सहारे मैं जहाज के अंदर पहुँच गया।

जहाज में सवार लोग मुझे देखकर बड़े आश्चर्य में पड़े कि जहाज में बंदर कैसे आ गया। वे लोग मेरे आगमन को अपशकुन समझे और मेरा वध करने की बात करने लगे। एक ने कहा, अभी लट्ठ ला कर इसका सर फोड़ देता हूँ। दूसरे ने कहा, नहीं, यह ऐसे नहीं मरेगा, मैं अभी तीर छोड़कर इनका अंत किए देता हूँ। तीसरे ने मुझे समुद्र में डुबो देने की सलाह दी। मैं उन्हें कैसे बताता कि मैं कौन हूँ, जान बचा कर इधर-उधर भागने लगा।

अंत में सब ओर से निराश होकर जहाज के कप्तान के पास गया और उसके पाँवों पर लौटने लगा। मैंने उसका दामन पकड़ लिया और आँखों में आँसू भर कर चिंचियाने लगा जैसे उससे प्राण रक्षा की भीख माँग रहा हूँ। उसे मुझ पर दया आई और उसने मेरे त्रासदाताओं को डाँट कर भगा दिया और कठोर चेतावनी दी कि इस बंदर को न तो कोई दुख दे और न कोई इसके साथ छेड़छाड़ करे। उसने मुझे ऐसी सुरक्षा प्रदान की कि मुझे जहाज पर कोई दुख न हुआ। मैं यद्यपि बोल नहीं पाता था तथापि समझता तो सब कुछ था और उसकी बातें समझ कर ऐसे संकेत करता था कि उसका बड़ा मनोरंजन होता था। धीरे-धीरे जहाज पर सवार सभी लोग मुझ पर कृपालु हो गए और मुझे प्यार करने लगे।

पचास दिन की यात्रा के बाद जहाज एक बड़े व्यापार केंद्र में पहुँचा। यह बहुत बड़ा नगर था। उसमें बड़े-बड़े मकान थे। जहाज ने मल्लाहों ने जहाज को बंदरगाह में ठहराया। कुछ समय में ही नगर के बड़े-बड़े व्यापारी जहाज को देखकर व्यापार की आशा में उस पर पहुँच गए। जहाज पर उनके कई मित्र व्यापारी थे। यह मित्र आपस की बातें करने लगे और यात्रा का हाल कहने-सुनने लगे क्योंकि जहाज बहुत से देशों से घूमता हुआ आया था।

नगर के व्यापारियों में कई ऐसे भी थे जो वहाँ के ऐश्वर्यवान बादशाह के दरबार में आते-जाते थे। उन्होंने कहा कि हमारा बादशाह तुम्हारे जहाज के यहाँ आने से बड़ा प्रसन्न हुआ है। इसका कारण यह है कि उसे आशा है कि तुम लोगों में कोई सुलेखक भी होगा। बात यह है कि हमारा मंत्री हाल ही में मर गया है। वह अत्यंत निपुण सुलेखकर्ता था। बादशाह गुणियों का बड़ा सम्मान करता है और चाहता है कि उस मंत्री जैसा सुलेखक उसे मिले, इसी चिंता में वह हमेशा रहता है। इसलिए उसने यह कागज भेजा है जिस पर सुलेखन के लिए रेखाएँ खिंची हैं। बादशाह चाहता है कि अगर कोई आदमी तुममें से काफी पढ़ा-लिखा हो तो वह इस पर कुछ इबारत लिखे। उसने कसम खाई है कि वह उसी व्यक्ति को दिवंगत मंत्री का पद देगा जो उसकी भाँति सुलेखन कर सकेगा। और अभी तक बहुत ढूँढ़ने पर भी उसे अपने देश में कोई ऐसा गुणी व्यक्ति नहीं मिल पाया है।

यह सुनकर मैंने बादशाह के सरदार के हाथ से झपटकर वह कागज ले लिया। इस पर जहाज के सभी लोग, विशेषतः पढ़े-लिखे व्यापारी चीख-पुकार करने लगे कि यह बंदर अभी इस कागज को चीर-फाड़ कर समुद्र में फेंक देगा। किंतु जब उन्होंने देखा कि मैंने कागज बड़े ढंग से पकड़ा है तो सब चुप होकर देखने लगे। मैंने संकेत से कहा कि मैं इस पर लेखन कर सकता हूँ। उन लोगों को मेरी बात पर क्या विश्वास होता और सब प्रयत्न करने लगे कि मुझे पकड़ कर मेरे हाथ से कागज ले लें।

किंतु जहाज के कप्तान ने उन्हें रोका और कहा, 'हमें इसकी परीक्षा लेनी चाहिए। अगर इसने कागज को खराब किया तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इसे कड़ा दंड दूँगा। अगर उसने लिख लिया तो मैं अपने पुत्र की भाँति इसे रखूँगा। मुझे मालूम है कि यह कागज को खराब नहीं करेगा। मैंने बराबर देखा कि यह दूसरे बंदरों जैसा नहीं है अपितु अत्यंत बुद्धिमान है।' कप्तान की इस बात पर सब लोग रुक गए और मैंने कलम लेकर चार कविता पंक्तियाँ इतने सुंदर ढंग से लिखीं जैसे कोई व्यापारी या अन्य नागरिक न लिख पाता।

सरदार मेरा लिखा कागज बादशाह के पास ले गया। बादशाह ने मेरे सुलेख को भी पसंद किया और मेरी कविता को भी। उसने सरदारों से कहा कि एक भारी खिलअत (सम्मान परिधान) ले जाओ और उस आदमी को पहनाओ जिसने यह लिखा है और एक बढ़िया घोड़ा भी घुड़साल से ले जाओ और उसे सम्मानपूर्वक सवार कराकर यहाँ ले आओ। सरदार यह आज्ञा सुन कर हँस पड़ा। बादशाह को बड़ा क्रोध आया। उसने कड़क कर कहा, 'यह क्या बदतमीजी है, तुम्हें दंड का भय नहीं है?' सरदार हाथ जोड़कर बोला, 'महाराज, क्षमा करें। यह लेख किसी मनुष्य ने नहीं लिखा। एक बंदर ने इसे लिखा है।'

बादशाह ने कहा, 'क्या बक रहे हो? बंदर भी कहीं लिखता है?' सरदार ने अपने साथियों की ओर देखा। उन्होंने भी हाथ जोड़ कर कहा, 'जहाँपनाह, हम सबने अपनी आँखों से देखा है कि इस कागज पर एक बंदर ही ने लिखा है।' बादशाह का आश्चर्य और बढ़ा और उसने आज्ञा दी, 'मैंने ऐसा बंदर देखा क्या, सुना भी नहीं था। तुम लोग फौरन जाओ और उस बंदर को सम्मानपूर्वक सवार कराकर ले आओ।' चुनांचे सरदार और राज सेवक फिर जहाज पर गए और कप्तान को उन्होंने राजा की आज्ञा सुनाई। कप्तान मुझे भेजने को सहर्ष तैयार हो गया। उसने मुझे जरी के वस्त्र पहनाए और किनारे पर ले आया। वहाँ से घोड़े पर बैठकर राज महल को चल दिया। महल में न केवल बादशाह ही मेरी प्रतीक्षा कर रहा था अपितु नागरिकों की बड़ी भीड़ भी सुलेखन करने वाले बंदर को देखने आई हुई थी।

रास्ते में भी बड़ी भीड़ जमा थी और लोग कोठों और छतों से झाँक-झाँक कर भी मेरी सवारी देख रहे थे। सब लोग आश्चर्य कर रहे थे कि बादशाह ने एक बंदर को मंत्रिपद सँभालने को बुलाया है। कुछ लोग इस बात पर हँस रहे थे और बादशाह का मजाक भी उड़ा रहे थे।

मैं दरबार में पहुँचा तो देखा कि बादशाह सिंहासन पर बैठा है और सभासद और सरदार अपनी-अपनी जगह खड़े हैं। मैंने दरबार के शिष्टाचार के अनुसार तीन बार कोरनिश (भूमि तक हाथ ले जाकर प्रणाम करना) की और एक ओर अदब से खड़ा हो गया। सभी उपस्थित जन मेरे इस व्यवहार को देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि बंदर ऐसा शिष्टाचार कैसे कर रहा है। खुद बादशाह को भी मेरी चाल-ढाल देखकर बड़ा आश्चर्य हो रहा था।
[post_ads]
कुछ देर में दरबार बर्खास्त हुआ। बादशाह के पास केवल मैं और उसका एक वृद्ध अधिकारी रह गए। हम दोनों बादशाह के आदेश पर उसके साथ महल के अंदर गए। बादशाह ने शाही भोजन मँगवाया और मुझे खाने का इशारा किया। मैं बड़ी तमीज के साथ खाना खाने लगा। जब भोजन समाप्त हुआ और बर्तन उठा लिए गए तो मैंने कलमदान की ओर संकेत किया। कलमदान मेरे पास लाया गया तो मैंने कुछ काव्य पंक्तियाँ बादशाह को धन्यवाद देते हुए रचीं और उन्हें सुंदर ढंग से कागज पर लिख दिया। बादशाह को यह देखकर आश्चर्य और प्रसन्नता और अधिक हुई। उसने मुझे एक पात्र मदिरा से भरकर दिलवाया। उसे पीकर मैंने एक और कविता अपने दुर्भाग्य के बाद मिलने वाले सौभाग्य के संबंध में लिख दी।

अब बादशाह ने शतरंज मँगाई और इशारे से पूछा कि क्या इसे खेल सकते हो। मैंने स्वीकारात्मक रूप से अपने सिर पर हाथ रखा। पहली बाजी बादशाह ने जीती और दूसरी और तीसरी मैंने जीत ली। बादशाह को इस पर झुँझलाहट होने लगी कि वह एक बंदर से हार गया। मैंने फिर एक काव्य रचकर कागज पर लिख दिया जिसका आशय था कि दो योद्धा दिन भर आपस में युद्ध करके शाम को मित्र बन जाते हैं और रात को युद्ध भूमि में सोते रहते हैं।

इस बात से बादशाह का आश्चर्य अत्यधिक बढ़ गया। उसने सोचा कि ऐसा बंदर जो मनुष्य से बढ़कर बुद्धिमत्ता और हाजिरजवाबी प्रदर्शित करे कभी देखा-सुना नहीं गया। उसने यह बात अपने सभासदों से कही तो उन्होंने उसका समर्थन किया। अब बादशाह ने चाहा कि मुझे अपनी रानी और अपनी पुत्री को भी दिखा दे। उसने खोजों के सरदार को आज्ञा दी कि आदमियों को हटाकर बेगम साहबा और शहजादी को यहाँ ले आओ। बेगम तो साधारण रूप से आई लेकिन शहजादी ने जो मुँह खोले आई थी, मुझे देखकर नकाब डाल लिया और बाप से बिगड़ कर बोली कि आपको क्या हो गया है कि अपरिचित पुरुष के सामने मुझे मुँह खोले हुए बुला लिया।

बादशाह ने कहा, 'तुम्हारे होश-हवास तो ठिकाने हैं? यहाँ कौन मर्द है सिवाय मेरे? और मैं तुम्हारा बाप हूँ, मेरे सामने तो तुम्हें मुँह खोल कर आना चाहिए। और तुम हो कि खुद गलती पर हो और मुझे दोष देती हो।' शहजादी ने हाथ जोड़ कर कहा, 'अब्बा हुजूर, मेरी कोई गलती नहीं है। यह एक बड़े बादशाह का पुत्र है और जादू के कारण इस दशा को पहुँचा है। इबलीस के धेवते ने, जो एक शक्तिशाली जिन्न है, पहले आबनूस के द्वीप के बादशाह अबू तैमुरस की बेटी की हत्या कर दी फिर इस शहजादे को अपने जादू से बंदर बना दिया।'

बादशाह को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने मुझ से पूछा कि क्या यह बात ठीक है। मैंने सर पर हाथ रख कर इशारे से कहा कि शहजादी ने जो कुछ कहा है बिल्कुल ठीक कहा है। अब बादशाह ने शहजादी से पूछा कि तुम्हें यह सब किस्सा कैसे मालूम हुआ। उसने कहा, 'आपको याद होगा कि जब मेरा दूध छुड़ाया गया था तो मेरी देख-रेख और पालन-पोषण के लिए एक बुढ़िया रखी गई थी। वह जादू-टोनों में पारंगत थी। उसने मुझे इस विद्या के सत्तर अंग सिखा दिए। अब मुझ में इतनी शक्ति है कि चाहूँ तो आपका सारा देश उठाकर समुद्र में फेंक दूँ। जो व्यक्ति जादू के जोर से मनुष्य के बजाय किसी अन्य जीव को देह धारण कर लेते हैं मैं उन्हें तुरंत पहचान लेती हूँ और मुझे यह भी मालूम हो जाता है कि किसके जादू से यह हुआ है। इसीलिए मैंने इसे पहली ही नजर में पहचान लिया कि यह बंदर नहीं है बल्कि राजकुमार है।'

बादशाह ने कहा, 'बेटी, तुम इतनी गुणी हो, यह मुझे मालूम ही नहीं था। लेकिन क्या तुम में इतनी शक्ति भी है कि इसे अपनी पहली देह में दोबारा पहुँचा दो?' राजकुमारी ने, जिसका नाम मलिका हसन था, कहा, 'निःसंदेह मुझ में ऐसी शक्ति है।' बादशाह ने कहा, 'अगर तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हारा बड़ा आभार मानूँगा और इस राजकुमार को अपना मंत्री बनाकर तुम्हारे साथ इसका विवाह कर दूँगा।'

शहजादी ने पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर अपने सामान में से एक छड़ी मँगवाई जिस पर हिब्रू और मिस्री भाषा में कुछ अक्षर खुदे थे। फिर उसने अपने पिता से कहा कि आप लोग कुछ दूरी पर सुरक्षापूर्वक बैठें। हम लोगों ने ऐसा किया तो शहजादी ने कक्ष की भूमि पर छड़ी से एक बड़ा गोला खींचा और हिब्रू और मिस्री भाषाओं के कुछ मंत्र पढ़ने लगी। इसके पश्चात वह घेरे के अंदर चली गई और कुरान शरीफ की कुछ आयतों का पाठ आरंभ कर दिया।

कुछ ही देर में घटाटोप अँधेरा छा गया। हमें मालूम हो रहा था जैसे प्रलय काल ही आ गया है। हम लोग क्षण-प्रतिक्षण भयभीत होते जा रहे थे। इतने में हमने देखा कि इब्लीस का धेवता जिन्न एक शेर के रूप में गरजता हुआ आ गया। शहजादी ने कहा, 'दुष्ट, तुझे चाहिए था कि मेरे बुलाने पर मेरे पास विनयपूर्वक आता। तेरी यह हिम्मत कि मुझे डराने को यह रूप रख कर आया है।' शेर बोला, 'मनुष्यों और जिन्नों में समझौता हुआ था कि एक दूसरे के मामलों में दखल न देंगे, तूने उस समझौते को तोड़ा है।' शहजादी बोली, 'तूने पहले वह समझौता तोड़ा है।' शेर ने गरज के कहा कि तेरी इस गुस्ताखी का मजा चखाता हूँ जो तूने मुझे यहाँ आने की तकलीफ देकर की है।

यह कहकर वह मुँह फाड़ कर शहजादी की ओर झपटा। वह होशियार थी, उछल कर पीछे हट गई और अपने सिर से एक बाल उखाड़ा और उसे मंत्र करके फेंक दिया। वह बाल तलवार बन गया और उसने शेर के धड़ के दो टुकड़े कर दिए। लेकिन यह टुकड़े गायब हो गए और सिर्फ सिर रह गया जो बिच्छू बन गया। अब शहजादी ने साँप का रूप धारण किया और उस पर टूट पड़ी।

बिच्छू थोड़ी ही देर में घबरा कर पक्षी बन गया और आसमान में उड़ गया। शहजादी भी उकाब बन कर उसके पीछे पड़ गई। उड़ते-उड़ते दोनों हमारी दृष्टि से छुप गए।

कुछ ही देर में हमारे सामने की भूमि फट गई और उसमें से दो बिल्लियाँ लड़ती हुई निकलीं, एक काली थी दूसरी सफेद। कुछ देर तक वे दुम खड़ी करके चीखती रहीं फिर काली बिल्ली भेड़िया बन कर सफेद बिल्ली पर झपटी। सफेद बिल्ली कोई उपाय न देखकर कीड़ा बन गई। और तुरंत एक पेड़ पर चढ़कर उसमें लटके अनार के अंदर घुस गई। वह अनार बढ़ने लगा और बढ़ते-बढ़ते एक घड़े का आकार का हो गया। फिर वह पेड़ से अलग हो गया और हवा में इधर-उधर लहराने लगा।

कुछ देर में वह अनार जमीन पर गिरकर फट गया और उसके टुकड़े इधर-उधर बिखर गए। उसमें से सैकड़ों दाने पृथ्वी पर गिर कर फैल गए। अब वह भेड़िया तुरंत एक मुर्गा बन गया और उसने अनार के बिखरे हुए दानों को जल्दी-जल्दी चुनना शुरू कर दिया। जब वह सारे दाने खा चुका तो हम लोगों के पास आया और जोर से बाँग देने लगा जैसे पूछता हो कि कोई दाना रह तो नहीं गया। वह स्वयं भी इधर-उधर दौड़कर देखने लगा। एक दाना नहर के किनारे पड़ा था। मुर्गा दौड़ा कि उसे भी खा ले लेकिन वह दाना लुढ़कता हुआ नहर में गिर गया।

नहर में गिर कर वह दाना मछली बन गया। मुर्गा भी उसके पीछे नहर में कूद गया। कुछ देर तक दोनों आँखों से ओझल रहे फिर बड़े जोर की चीख-पुकार हुई जिससे हम लोग बहुत डर गए। फिर देखा कि जिन्न और शहजादी दोनों अग्निपुंज हो गए हैं और एक दूसरे की ओर लपटें फेंक रहे हैं जैसे कि आपस में लड़ाई कर रहे हों। ऐसा मालूम होता था कि हर तरफ आग ही आग फैली है। हम इस डर से काँपने लगे कि यह आग हमें तो क्या सारे देश को भूनकर रख देगी। इससे भी भयानक एक समय आया जब जिन्न शहजादी से लड़ना छोड़कर हमारी ओर झपटा और हमारी ओर लपटें फेंकने लगा। लेकिन शहजादी भी झपट कर आई। उसने जिन्न को दूर हटा दिया और हमें और सुरक्षित स्थान पर कर दिया। फिर भी इतनी देर में खोजा जल कर भस्म हो गया, बादशाह का मुँह झुलस गया और मेरी दाईं आँख में एक चिनगारी पड़ गई जिससे मेरी वह आँख फूट गई।

इतने में हम लोगों ने बड़ी जोर का जयघोष सुना। शहजारी मलिका हसन अपने साधारण शरीर में आ गई और जिन्न राख का ढेर होकर दिखाई देने लगा। फिर शहजादी ने एक गुलाम से पानी मँगवाया और उसे अभिमंत्रित कर मुझ पर छिड़का और बोली, 'अगर तू जादू के जोर से बंदर बना है तो फिर से अपनी पहली काया में आ जा ओर पहले की तरह मनुष्य बन जा।' उसके इतना कहते ही मैं पहले जैसा बन गया। सिवाय दाईं आँख फूटने के मुझे और कोई हानि नहीं हुई। मैंने चाहा कि शहजादी को इस उपकार पर धन्यवाद दूँ किंतु शहजादी ने इसका अवसर नहीं दिया। वह बादशाह की तरफ मुँह करके बोली, 'यद्यपि मैंने जिन्न को भस्म कर दिया है लेकिन मैं भी बच नहीं सकूँगी।'

हमारी समझ में कुछ नहीं आया तो उसने बताया, यह अग्नि युद्ध बड़ा भयानक होता है। इसकी आग कुछ क्षणों में मुझे भस्म कर देगी। जब मैं मुर्गा बनी थी उस समय अगर अनार का आखिरी दाना, जिसमें जिन्न ने स्वयं को छुपा रखा था, मेरे अंदर पहुँच जाता तो जिन्न उसी समय खत्म हो जाता और मुझे कोई हानि न पहुँचती। किंतु वह बचकर फिर मुझसे युद्ध करने के योग्य हो गया। अब विवश होकर मुझे अग्नि युद्ध पर उतरना पड़ा। जिन्न ने यह तो समझ लिया कि मैं जादू में निपुण हूँ और उस पर भारी पड़ती हूँ, फिर भी वह अंत समय तक प्राणपण से युद्ध करता रहा। मैंने उसे जलाकर भस्म तो कर दिया लेकिन इस आग से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाऊँगी।'

बादशाह ने रोकर कहा, 'बेटी, तुम कैसी बातें करती हो। तुम्हारे बगैर हम लोग क्या करेंगे। देखती नहीं कि खोजा मर गया है, मेरा मुँह झुलस गया है और यह शहजादा जिसका तुमने इतना उपकार किया है दाईं आँख से काना हो गया है?' बादशाह इस तरह सिर धुन रहा था और मैं भी रो-पीट रहा था कि शहजादी ने चिल्लाना शुरू किया, 'हाय जली, हाय मरी।' और देखते ही देखते वह भी जल कर जिन्न की तरह राख का ढेर हो गई।

दूसरे फकीर ने आँसू बहाते हुए जुबैदा से कहा कि हे सुंदरी, उस समय मुझे जितना दुख हुआ वह वर्णन के बाहर है। मैं सोच रहा था कि अगर मैं बंदर तो क्या कुत्ता भी हो जाता और आजीवन वैसा ही रहता तो भी इस बात से अच्छी बात होती कि ऐसी गुणवती राजकुमारी, जिसने मुझ पर इतना एहसान किया, इस तरह जान से हाथ धोए। बादशाह भी अपनी बेटी के दुख में इतना रोया-पीटा कि बेहोश हो गया। मुझे भय लगने लगा कि ऐसा न हो कि इस दारुण दुख से उसकी जान चली जाए। चारों और हाहाकार होने लगा और राजमहल में प्रलय का-सा दृश्य उपस्थित हो गया।

राजमहल के सारे सेवक और बादशाह के सरदार दौड़े आए और भाँति-भाँति के यत्न करके उसे होश में लाए। मैंने सभी लोगों के आगे पूरा वृत्तांत रखा। फिर राज सेवक बादशाह को उठाकर उसके शयन कक्ष में ले गए। सारे नगर में यह समाचार फैल गया और हर जगह रोना-पीटना मच गया और हाहाकार के सिवाय कुछ नहीं सुनाई दिया। उन लोगों ने सात दिन तक शहजादी के लिए शोक किया और उनके देश में मातम की जो जो रस्में होती थीं सभी पूरी कीं। अंत में जिन्न की राख के ढेर को हवा में उड़ा दिया गया। शहजादी की भस्म को एक बहुमूल्य रेशमी थैले में भर कर दफन कर दिया गया और उस पर समाधि बना दी गई।

बादशाह शहजादी के दुख में बीमार पड़ गया। एक महीने में वह स्वस्थ हुआ। फिर उसने मुझे बुलाया और कहा, 'शहजादे, तेरे कारण मुझ पर असहनीय दुख पड़े हैं। मेरी प्यारी बेटी तेरे ही कारण भस्म हो गई, मेरा विश्वासी खोजों का सरदार जल कर मर गया और मैं भी मरते-मरते बचा। तेरा स्वयं इसमें कोई दोष नहीं है इसलिए मैं तुझे दंड नहीं देता। किंतु तेरा आगमन दुर्भाग्यपूर्ण रहा है और तू जहाँ रहेगा मुसीबत आएगी। इसलिए मैं तुझे यहाँ रहने की अनुमति नहीं दे सकता। तू तुरंत यहाँ से मुँह काला कर। अगर तू यहाँ थोड़ी देर तक भी दिखाई दिया तो मैं स्वयं को न सँभाल सकूँगा और तुझे कठोर दंड दूँगा।' इसी प्रकार वह बहुत देर तक बकता-झकता रहा।

मैं सिर झुका कर सब कुछ सुनता रहा। मैं कह भी क्या सकता था? बादशाह के चुप होते ही मैं उसके सामने से हट आया और महल से बाहर निकल गया। नगर में भी मुझे चैन न मिला। नगर निवासी शहजादी के शोक में विह्वल थे और मुझे ही उसकी मृत्यु का कारण समझ कर जहाँ मुझे पहचानते मुझे मारने के लिए झपटते थे। मैंने विवश होकर अपनी जान बचाने के लिए दाढ़ी, मूँछें और भवें मुँड़वा डालीं और फकीरों के- से वस्त्र पहन लिए और वहाँ से चल दिया। नगर से बाहर आकर भी मैं पश्चात्ताप की आग में बराबर जलता रहा और अपने जीवन को धिक्कारता रहा जिसके कारण दो-दो रूपसी राजकुमारियाँ काल कवलित हुईं। इसी दशा में मैं बहुत समय तक देश-देश फिरता रहा लेकिन मेरा ठिकाना कहीं न लगा।

अंत में मैंने सोचा कि बगदाद नगर में जाऊँ और अति दयाशील खलीफा हारूँ रशीद से अपनी व्यथा गाथा का वर्णन करूँ, संभव है वे मुझ पर दया करके मेरे लिए कोई उचित प्रबंध कर दें। मैं आज शाम ही को इस नगर में पहुँचा। सबसे पहले इस फकीर से, जिसने अभी-अभी अपना हाल कहा है, मेरी भेंट हुई। आपके यहाँ हम कैसे आए यह बताना मुझे जरूरी नहीं है क्योंकि वह पहला फकीर बता ही चुका है।

जब दूसरे फकीर ने अपना वृत्तांत पूरा कर लिया तो जुबैदा ने उससे कहा कि हमने तुझे भी क्षमा किया, तू जहाँ चाहे वहाँ जाने के लिए स्वतंत्र है। अब दूसरे फकीर ने भी इच्छा प्रकट की कि अपने तीसरे साथी को जीवन गाथा भी सुनना चाहता हूँ। इस पर जुबैदा ने कहा, अच्छा, तुम भी मजदूर और पहले फकीर के पास जाकर चुपचाप बैठ जाओ। उसने ऐसा ही किया। जुबैदा ने अब तीसरे फकीर से अपनी कहानी सुनाने को कहा और उसने जुबैदा के सामने बैठ कर कहना आरंभ किया।

Other Famous Complete Series In Hindi:

COMMENTS

BLOGGER: 1
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें बेझिझक दें !!

नाम

​,3,अंकेश धीमान,3,अकबर-बीरबल,15,अजीत कुमार सिंह,1,अजीत झा,1,अटल बिहारी वाजपेयी,5,अनमोल वचन,44,अनमोल विचार,2,अबुल फजल,1,अब्राहम लिँकन,1,अभियांत्रिकी,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक चतुर्वेदी,1,अभिषेक चौधरी,1,अभिषेक पंडियार,1,अमर सिंह,2,अमित शर्मा,13,अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,2,अरस्तु,1,अर्नेस्ट हैमिग्व,1,अर्पित गुप्ता,1,अलबर्ट आईन्सटाईन,1,अलिफ लैला,64,अल्बर्ट आइंस्टाईन,1,अशफाकुल्ला खान,1,अश्वपति,1,आचार्य चाणक्य,22,आचार्य विनोबा भावे,1,इंजीनियरिंग,1,इंदिरा गांधी,1,उद्धरण,42,उद्योगपति,2,उपन्यास,2,ओशो,10,ओशो कथा-सागर,11,कबीर के दोहे,2,कवीश कुमार,1,कहावतें तथा लोकोक्तियाँ,11,कुमार मुकुल,1,कृष्ण मलिक,1,केशव किशोर जैन,1,क्रोध,1,ख़लील जिब्रान,1,खेल,1,गणतंत्र दिवस,1,गणित,1,गोपाल प्रसाद व्यास,1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गौतम कुमार,1,गौतम कुमार मंडल,2,गौतम बुद्ध,1,चाणक्य नीति,25,चाणक्य सूत्र,24,चार्ल्स ब्लॉन्डिन,1,चीफ सियाटल,1,चैतन्य महाप्रभु,1,जातक कथाएँ,42,जार्ज वाशिंगटन,1,जावेद अख्तर,1,जीन फ्राँकाईस ग्रेवलेट,1,जैक मा,1,टी.वी.श्रीनिवास,1,टेक्नोलोजी,1,डाॅ बी.के.शर्मा,1,डॉ मुकेश बागडी़ 'सहज',1,डॉ मुकेश बागड़ी "सहज",1,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,1,डॉ. बी.आर. अम्बेडकर,1,तकनिकी,2,तानसेन,1,तीन बातें,1,त्रिशनित अरोङा,1,दशहरा,1,दसवंत,1,दार्शनिक गुर्जिएफ़,1,दिनेश गुप्ता 'दिन',1,दीनबन्धु एंड्रयूज,1,दीपा करमाकर,1,दुष्यंत कुमार,3,देशभक्ति,1,द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,8,नारी,1,निदा फ़ाज़ली,5,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,1,पं. विष्णु शर्मा,66,पंचतंत्र,66,पंडित मदन मोहन मालवीय,1,परमवीर चक्र,4,पीयूष गोयल,1,पुस्तक समीक्षा,1,पुस्तक-समीक्षा,1,पौराणिक कथाएं,1,प्रिंस कपूर,1,प्रेमचंद,12,प्रेरक प्रसंग,52,प्रेरणादायक कहानी,18,बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय,1,बराक ओबामा,1,बाल गंगाधर तिलक,1,बिल गेट्स,1,बिस्मिल्ला खान,1,बीन्द्रनाथ टैगोर,1,बीरबल,1,बेंजामिन फ्रैंकलिन,1,बेताल पच्चीसी,7,बैताल पचीसी,21,ब्रूस ली,1,भगत सिंह,2,भर्तृहरि,34,भर्तृहरि नीति-शतक,44,भारत,3,भीम,1,महर्षि वेदव्यास,1,महर्षि व्यास,1,महाभारत,52,महाभारत की कथाएं,47,महाभारत की कथाएँ,60,महावीर,1,माखनलाल चतुर्वेदी,2,मानसरोवर,6,माया एंजिलो,1,मार्टिन लूथर किंग जूनियर,1,मित्र सम्प्राप्ति,3,मुंशी प्रेमचंद,1,मुंशी प्रेमचंद्र,32,मुनव्वर राना,9,मुनीर नियाज़ी,1,मुल्ला नसरुद्दीन,1,मुहम्मद आसिफ अली,2,मुहावरे,1,मैथिलीशरण गुप्त,6,मोहम्मद अलामा इक़बाल,4,युधिष्ठिर,1,योग,1,रतन टाटा,1,रफ़ी अहमद “रफ़ी”,2,रबीन्द्रनाथ टैगोर,22,रश्मिरथी,7,राज भंडारी,1,राजकुमार झांझरी,1,राजा भोज,8,राजेंद्र प्रसाद,2,राम प्यारे सिंह,1,राम प्रसाद बिस्मिल,4,रामधारी सिंह दिनकर,17,राशि पन्त,3,रिया प्रहेलिका,1,लाओत्से,1,लाल बहादुर शास्त्री,1,लिओनार्दो दा विंची,1,लियो टोल्स्टोय,13,विंस्टन चर्चिल,1,विक्रमादित्य,29,विजय कुमार सप्पत्ति,4,विजय नाहर,1,विजय हरित,1,विनोद कुमार दवे,1,वैज्ञानिक,1,वॉरेन बफे,1,व्यंग,14,व्रजबासी दास,1,शिवमंगल सिंह सुमन,2,शेख़ सादी,1,शेरो-शायरी,1,श्री श्री रवि शंकर,1,श्रीमद्‍भगवद्‍गीता,19,सचिन अ. पाण्डेय,1,सचिन कमलवंशी,2,सद्गुरु जग्गी वासुदेव,1,सरदार वल्लभ भाई पटेल,3,सिंहासन बत्तीसी,33,सुनिता विलम्यस,1,सुप्रीत गुप्ता,1,सुभद्रा कुमारी चौहान,2,सुमित्रानंदन पंत,2,सुमित्रानंदन पन्त,2,सूरदास,1,सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला,1,हरिवंशराय बच्चन,9,हिंदी व्याकरण,1,A.P.J. Abdul Kalam,1,Abraham Lincoln,3,Acharya Vinoba Bhave,1,Administration,1,Advertisements,1,Akbar-Beerbal,24,Albert Einstein,2,Alibaba,1,Alif Laila,64,Amit Sharma,11,Anger,1,Ankesh Dhiman,42,Anmol Vachan,5,Anmol Vichar,4,Arts,1,Ashfakullah Khan,1,Atal Bihari Vajpayee,4,AtharvVeda,1,AutoBiography,4,Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh,1,Baital Pachchisi,27,Bal Gangadhar Tilak,2,Barack Obama,1,Benjamin Franklin,1,Best Wishes,17,BestArticles,14,Bhagat Singh,4,Bhagwat Geeta,13,Bharat Ratna,3,Bhartrihari Neeti Shatak,48,Bheeshma Pitamah,1,Bill Gates,2,Biography,20,Bismillah Khan,1,Book Review,2,Bruce Lee,1,Business,1,Business Tycoons,2,Chanakya Neeti,70,Chanakya Neeti Kavyanuwad,10,Chanakya Quotes,55,Chanakya Sutra,3,Chhatrapati Shivaji,1,Children Stories,6,Company,1,Concentration,2,Confucius,3,Constitution Of India,1,Courage,1,Crime,1,Curiosity,1,Daily Quotes,13,Deenabandhu C.F. Andrews,1,Deepa Karmakar,1,Deepika Kumari,1,Democracy,1,Desiderata,1,Desire,2,Dinesh Karamchandani,2,Downloads,19,Dr. B. R. Ambedkar,1,Dr. Sarvepalli Radhakrishnan,1,Dr. Suraj Pratap,1,Dr.Harivansh Rai Bachchan,10,Drama,1,Dushyant Kumar,3,Dwarika Prasad Maheshwari,8,E-Book,1,Education,1,Education Quotes,4,Elephants and Hares Panchatantra Story In Hindi ~ गजराज और चतुर खरगोश की कथा,1,Enthusiasm,2,Entrepreneur,1,Essay,3,Experience,1,Father,1,Fathers Day,1,Fearlessness,1,Fidel Castro,1,Gautam Buddha,10,Gautam Buddha Stories,1,Gautam Kumar Mandal,1,Gazals,16,Gift,2,Government,1,Great Facts,2,Great Lives,50,Great Poems,107,Great Quotations,183,Great Speeches,11,Great Stories,613,Guest Posts,114,Happiness,3,Hard Work,1,Health,3,Helen Keller,1,Hindi Essay,3,Hindi Novels,3,Hindi Poems,143,Hindi Quotes,136,Hindi Shayari,18,Holi,1,Honesty,1,Honour & Dishonour,1,Hope,2,Idioms And Phrases,11,Ignorance,1,Ikbal,3,Independence Day,2,India,3,Indian Army,1,Indira Gandhi,1,Iqbal,3,Ishwar Chandra Vidyasagar,3,Jack Ma,1,Jaiprakash,1,Jan Koum,2,Jatak Tales,42,Javed Akhtar,1,Julius Caesar,1,Kabeer Ke Dohe,13,Kashmir,1,Katha,6,Kavish Kumar,1,Keshav Kishor Jain,1,Khalil Zibran,1,Kindness,2,Lal Bahadur Shastri,1,Language,1,Lao-Tzu,1,Law & Order,1,Leo Tolstoy,13,Leonardo da Vinci,1,Literature,1,Luxury,2,Maa,1,Maansarovar,9,Madhushala,1,Mahabharata,53,Mahabharata Stories,67,Maharana Pratap,1,Mahatma Gandhi,5,Maithilisharan Gupt,6,Makhanlal Chaturvedi,2,Manjusha Pandey,1,Mansariwar,1,Mansarovar,11,Mansarowar,8,Martin Luther King Jr,1,Maths,1,Maya Angelou,1,Mitra Samprapti,3,Mitrabhed,6,Money & Property,1,Mother,1,Mulla Nasaruddin,1,Munawwar Rana,9,Munshi Premchand,44,Mythological Stories,2,Napoleon Bonaparte,2,Navjot Singh Sidhu,1,Nida Fazli,5,Non-Violence,2,Novels,1,Organization,1,OSHO,16,Osho Stories,16,Others,2,Panchatantra,66,Pandit Vishnu Sharma,66,Paramveer Chakra,4,Patriotic Poems,6,Paulo Coelho,1,Personality Development,5,Picture Quotes,16,Politics,1,Power,1,Prahlad,1,Praveen Tomar,1,Premchand,37,Priya Gupta,1,Priyam Jain,1,Procrastination,1,Pt.Madan Mohan Malveeya,1,Rabindranath Tagore,25,Rafi Ahmad Rafi,1,Raghuram Rajan,1,Raheem,3,Rahim Ke Done,3,Raja Bhoj,31,Ram Prasad Bismil,4,Ramcharit Manas,1,Ramdhari Singh Dinkar,17,RashmiRathi,7,Ratan Tata,1,Religion,1,Reviews,1,RigVeda,1,Rishabh Gupta,1,Robin Sharma,7,Sachin A. Pandey,1,Sachin Tendulkar,1,SamVeda,1,Sanskrit Shlok,91,Sant Kabeer,14,Saraswati Vandana,1,Sardar Vallabh Bhai Patel,1,Sardar Vallabhbhai Patel,3,Sayings and Proverbs,3,Scientist,1,Self Development,43,Self Forgiveness,2,Self-Confidence,11,Self-Help Hindi Articles,72,Shashikant Sharma,1,Shiv Khera,1,Shivmangal Singh Suman,2,Shrimad Bhagwat Geeta,19,Singhasan Battisi,33,Smartphone Etiquette,1,Social Articles,34,Social Networking,2,Socrates,6,Soordas,1,Spiritual Wisdom,1,Sports,1,Sri Ramcharitmanas,1,Sri Sri Ravi Shankar,1,Steve Jobs,1,Strength,2,Subhadra Kumari Chauhan,2,Subhash Chandra Bose,4,Subhashit,36,Subhashitani,37,Success Quotes,1,Success Tips,1,SumitraNandan Pant,4,Sunita Williams,1,Surya Kant Tripathy Nirala,1,Suvichar,3,Swachha Bharat Abhiyan,1,Swami Dayananda,1,Swami Dayananda Saraswati,1,Swami Ram Tirtha,1,Swami Ramdev,10,Swami Vivekananda,23,T. Harv Eker,1,Technology,1,Telephone Do's,1,Telephone Manners,1,The Alchemist,1,The Monk Who Sold His Ferrari,1,Time,2,Top 10,3,Torture,1,Trishneet Aroda,1,Truthfulness,1,Tulsidas,1,Twitter,1,Unknown,1,V.S. Atbay,1,Vastu,1,Vedas,1,Victory,1,Vidur Neeti,7,Vijay Kumar Sappatti,2,Vikram-Baital,27,Vikramaditya,29,Vinod Kumar Dave,1,Vishnugupta,3,Vrajbasi Das,1,War,1,Warren Buffett,1,WhatsApp,2,William Shakespeare,1,Wilma Rudolf,1,Winston Churchill,1,Wisdom,1,Wise,1,YajurVeda,1,Yashu Jaan,2,Yoga,1,
ltr
item
हिंदी साहित्य मार्गदर्शन: भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी ~ अलिफ लैला
भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी ~ अलिफ लैला
भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी, किस्सा भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष का, Bhale admi aur irshyalu purush ki kahani, kissa bhale aadmi aur irshyalu kupush ka alif laila
हिंदी साहित्य मार्गदर्शन
https://www.hindisahityadarpan.in/2017/07/bhale-admi-irshyalu-purush-ki-kahani-alif-laila.html
https://www.hindisahityadarpan.in/
https://www.hindisahityadarpan.in/
https://www.hindisahityadarpan.in/2017/07/bhale-admi-irshyalu-purush-ki-kahani-alif-laila.html
true
418547357700122489
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content