president speech in hindi,pranav mukharjee speech in hindi,great hindi speeches,speeches in hindi
64वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्र के नाम संदेश
मेरे प्यारे देशवासियों
64वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत में और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं. मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों को विशेष बधाई देता हूं.
64वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत में और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं. मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों को विशेष बधाई देता हूं.
भारत में पिछले छह दशकों के दौरान, पिछली छह सदियों से अधिक बदलाव आया
है. यह न तो अचानक हुआ है और न ही दैवयोग से, इतिहास की गति में बदलाव तब
आता है जब उसे स्वप्न का स्पर्श मिलता है. उपनिवेशवाद की राख से एक नए भारत
के सृजन का महान सपना 1947 में ऐतिहासिक उत्कर्ष पर पहुंचा, और इससे अधिक
महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि स्वतंत्रता से राष्ट्र-निर्माण की नाटकीय कथा
की शुरुआत हुई. इसकी आधारशिला, 26 जनवरी, 1950 को अंगीकृत हमारे संविधान के
द्वारा रखी गई थी, जिसे हम प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं.
इसका प्रेरक सिद्धांत था, राज्य और नागरिक के बीच एक सहमति अर्थात न्याय,
स्वतंत्रता तथा समानता के द्वारा पोषित सशक्त सार्वजनिक-निजी भागीदारी.
भारत ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता इसलिए नहीं ली थी कि वह भारतीयों को
आजादी से वंचित रखे. संविधान दूसरी आजादी का प्रतीक था और यह आजादी थी
लिंग, जाति, समुदाय की गैर-बराबरी की घुटन से और उन दूसरी प्रकार की
बेड़ियों से, जो हमें बहुत समय से जकड़े हुए थी.
इसने ऐसे क्रांतिकारी उद्विकास को प्रेरणा दी जिसने भारतीय समाज को
आधुनिकता के मार्ग पर आगे बढ़ाया. समाज में क्रमिक उद्विकास के द्वारा
बदलाव आया, क्योंकि हिंसक क्रांति भारतीय परिपाटी नहीं है. जटिल सामाजिक
ताने-बाने में बदलाव पर अभी कार्य जारी है, और इसको कानून में समय-समय पर
आने वाले सुधारों और जनमत की शक्ति से प्रेरणा मिलती रही है.
पिछले छह दशकों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं.
हमारी आर्थिक विकास दर तीन गुना से अधिक हो गई है. साक्षरता की दर में चार
गुना से अधिक वृद्धि हुई है. खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के
बाद अब हम खाद्यान्न के निर्यातक हैं. गरीबी की मात्रा में काफी कमी लाई गई
है. हमारी एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लैंगिक समानता की दिशा में हमारा
प्रयास है.
ऐसा किसी ने नहीं कहा कि यह कार्य आसान होगा. 1955 में अधिनियमित हिंदू
संहिता विधेयक, जैसी पहली बड़ी कोशिश में जो समस्याएं आई थी, उनकी अलग
कहानी है. यह महत्त्वपूर्ण कानून जवाहर लाल नेहरू तथा बाबा साहेब अंबेडकर
जैसे नेताओं की अविचल प्रतिबद्धता से ही पारित हो पाया था. जवाहरलाल नेहरू
ने बाद में इसे अपने जीवन की संभवत: सबसे बड़ी उपलब्धि बताया था. अब समय आ
गया है कि हर-एक भारतीय महिला के लिए लैंगिक समानता सुनिश्चित की जाए. हम न
तो इस राष्ट्रीय दायित्व से बच सकते हैं और न ही इसे छोड़ सकते हैं
क्योंकि इसे नजरअंदाज करने की बहुत भारी कीमत चुकानी होगी. निहित स्वार्थ
आसानी से हार नहीं मानते. इस राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए सिविल
समाज तथा सरकार को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे.
प्यारे देशवासियों
मैं आपको ऐसे समय पर संबोधित कर रहा हूं जब एक बहुत व्यापक त्रासदी ने हमारे प्रमाद को झकझोर डाला है. एक नव-युवती के नृशंस बलात्कार और हत्या ने, एक ऐसी महिला जो कि उदीयमान भारत की आकांक्षाओं का प्रतीक थी, हमारे हृदयों को रिक्तता से तथा हमारे मनों को क्षोभ से भर दिया है. हमने एक जान से कहीं अधिक कुछ खोया है; हमने एक सपना खो दिया है. यदि आज हमारे युवा क्षुब्ध हैं तो क्या हम अपने युवाओं को दोष दे सकते हैं?
मैं आपको ऐसे समय पर संबोधित कर रहा हूं जब एक बहुत व्यापक त्रासदी ने हमारे प्रमाद को झकझोर डाला है. एक नव-युवती के नृशंस बलात्कार और हत्या ने, एक ऐसी महिला जो कि उदीयमान भारत की आकांक्षाओं का प्रतीक थी, हमारे हृदयों को रिक्तता से तथा हमारे मनों को क्षोभ से भर दिया है. हमने एक जान से कहीं अधिक कुछ खोया है; हमने एक सपना खो दिया है. यदि आज हमारे युवा क्षुब्ध हैं तो क्या हम अपने युवाओं को दोष दे सकते हैं?
देश का एक कानून है. परंतु उससे ऊंचा भी एक कानून है. महिला की पवित्रता
भारतीय सभ्यता नामक समग्र दर्शन का नीति निर्देशक सिद्धांत है. वेद कहते
हैं कि माता एक से अधिक हो सकती हैं; जन्मदात्री, गुरुपत्नी, राजा की
पत्नी, पुजारी की पत्नी, हमें दूध पिलाने वाली और हमारी मातृभूमि. मां हमें
बुराई और दमन से बचाती है, हमारे लिए जीवन और समृद्धि का प्रतीक है. जब हम
किसी महिला के साथ पाशविकता करते हैं तो अपनी सभ्यता की आत्मा को लहुलुहान
कर डालते हैं.
देश को अपनी नैतिक दिशा को फिर से निर्धारित करने का समय आ गया है.
निराशावादिता को बढ़ावा देने के लिए कोई अवसर नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि
निराशावाद नैतिकता को अनदेखा करता है. हमें अपनी अंतरात्मा में गहराई से
झांकना होगा और यह पता लगाना होगा कि हमसे कहां चूक हुई है. समस्याओं का
समाधान विचार-विमर्श तथा नजरियों में तालमेल से ढूंढ़ना होगा. लोगों को यह
विश्वास होना चाहिए कि शासन भलाई का एक माध्यम है और इसके लिए हमें सुशासन
सुनिश्चित करना होगा.
प्यारे देशवासियों
हम दूसरे पीढ़ीगत बदलाव के मुहाने पर हैं, गांवों और कस्बों में फैले
हुए युवा इस बदलाव के अग्रेता हैं. आने वाला समय उनका है. वे आज अस्तित्व
संबंधी बहुत सी शंकाओं से ग्रस्त हैं. क्या तंत्र योग्यता को समुचित सम्मान
देता है. क्या समर्थवान लालच में पड़कर अपना धर्म भूल चुके हैं. क्या
सार्वजनिक जीवन में नैतिकता पर भ्रष्टाचार हावी हो गया है. क्या हमारी
विधायिका उदीयमान भारत का प्रतिनिधित्व करती है या फिर इसमें आमूल-चूल
सुधारों की जरूरत है. इन शंकाओं को दूर करना होगा. चुने हुए प्रतिनिधियों
को जनता का विश्वास फिर से जीतना होगा. युवाओं की आशंका और उनकी बेचैनी को,
तेजी से, गरिमापूर्ण तथा व्यवस्थित ढंग से बदलाव के कार्य पर लगाना होगा.
युवा खाली पेट सपना नहीं देख सकते. उनके पास अपनी और राष्ट्र की
महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए रोजगार होना चाहिए. यह सच है कि हमने
1947 के बाद एक लम्बा रास्ता तय किया है, जब हमारे प्रथम बजट का राजस्व
मात्र 171 करोड़ रुपये था. आज केन्द्र सरकार के संसाधन उस बूंद की तुलना
में एक महासागर के समान हैं. परंतु हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कहीं
आर्थिक विकास से प्राप्त लाभ पर, पिरामिड के शिखर पर बैठे भाग्यशाली लोगों
का ही एकाधिकार न हो जाए. धन के सृजन का बुनियादी उद्देश्य हमारी बढ़ती
जनसंख्या से भुखमरी, निर्धनता और अल्प आजीविका की बुराई को जड़ से खत्म
करना होना चाहिए.
प्यारे देशवासियों
पिछला वर्ष हम सभी के लिए परीक्षा का वर्ष रहा है. आर्थिक सुधारों के पथ
पर अग्रसर होते हुए, हमें बाजार-आधारित अर्थव्यवस्थाओं की वर्तमान
समस्याओं के प्रति जागरूक रहना होगा. बहुत से धनी राष्ट्र अब सामाजिक
दायित्व रहित अधिकार की संस्कृति के जाल में फंस गए हैं, हमें इस जाल से
बचना होगा. हमारी नीतियों के परिणाम हमारे गांवों, खेतों, फैक्ट्रियों तथा
स्कूलों और अस्पतालों में दिखाई देने चाहिए.
आंकड़ों का उन लोगों के लिए कोई अर्थ नहीं होता जिन्हें उनसे लाभ नहीं
पहुंचता. हमें तत्काल काम में लगना होगा अन्यथा, वर्तमान में जिन अशांत
इलाकों का प्राय: ‘नक्सलवादी’ हिंसा के रूप में उल्लेख किया जाता है उनमें
और अधिक खतरनाक ढंग से विस्तार हो सकता है.
प्यारे देशवासियों
अभी पिछले दिनों, नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर गंभीर नृशंसता के
मामले सामने आए हैं. पड़ोसियों में मतभेद हो सकते हैं, सीमाओं पर तनाव एक
सामान्य स्थिति हो सकती है. परंतु राज्य से इतर तत्त्वों के माध्यम से
प्रायोजित आतंकवाद समूचे राष्ट्र के लिए भारी चिंता का विषय है. सीमा पर
शांति में हमारा विश्वास है और हम सदैव दोस्ती की उम्मीद में हाथ बढ़ाने के
लिए तैयार हैं परंतु इस हाथ को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
प्यारे देशवासियों
भारत की सबसे अजेय सम्पत्ति है उसका खुद में विश्वास. हमारे लिए
प्रत्येक चुनौती, अभूतपूर्व आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता हासिल करने के
हमारे सकंल्प को मजबूत बनाने का अवसर बन जाती है. इस संकल्प को, खासकर
बेहतर और व्यापक शिक्षा पर भारी निवेश के द्वारा, मजबूत बनाना होगा. शिक्षा
ऐसी सीढ़ी है, जो सबसे निचले पायदान पर मौजूद व्यक्तियों को व्यावसायिक और
सामाजिक प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुंचा सकती है. शिक्षा ऐसा मंत्र है जो
हमारे आर्थिक भाग्य को बदल सकता है और ऐसी दरारों को पाट सकता है जो समाज
में असमानता पैदा करती हैं. अभी तक शिक्षा की यह सीढ़ी, अपेक्षित स्तर तक,
उन लोगों तक नहीं पहुंची है जिनको इसकी सबसे अधिक जरूरत है. भारत द्वारा
वर्तमान वंचितों को, आर्थिक विकास के बहुत से उपादानों में बदल कर अपनी
विकास दर को दोगुना किया जा सकता है.
हमारे 64वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर यद्यपि चिंता का कोई कारण हो सकता
है परंतु हताशा का कोई नहीं. यदि भारत में छह दशकों में पिछली छह सदियों के
मुकाबले अधिक बदलाव आया है तो मैं आपसे वायदा करता हूं कि इसमें अगले दस
वर्षों में, पिछले 60 वर्षों से ज्यादा बदलाव आएगा. भारत की शाश्वत
जिजीविषा जागृत है.
अंग्रेजों को भी यह लगा था कि वे एक ऐसा देश छोड़कर जा रहे हैं जो उससे
बहुत अलग है जिस पर उन्होंने आधिपत्य किया था. राष्ट्रपति भवन स्थित जयपुर
स्तंभ की आधारशिला पर एक शिलालेख है:
‘विचारों में आस्था...
शब्दों में प्रज्ञा...
कर्म में पराक्रम...
जीवन में सेवा...
अत: भारत महान बने’
शब्दों में प्रज्ञा...
कर्म में पराक्रम...
जीवन में सेवा...
अत: भारत महान बने’
भारत की भावना प्रस्तर में उत्कीर्ण है.
जय हिंद!
P.S. अगर आप भी अपनी रचनाएँ(In Hindi), प्रेरक कहानियाँ (Inspirational Hindi Stories), प्रेरक लेख(Self -Development articles in Hindi ) या कवितायेँ लाखों लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमसे nisheeth@hindisahityadarpan[ dot]in पर संपर्क करें !!
P.S. अगर आप भी अपनी रचनाएँ(In Hindi), प्रेरक कहानियाँ (Inspirational Hindi Stories), प्रेरक लेख(Self -Development articles in Hindi ) या कवितायेँ लाखों लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमसे nisheeth@hindisahityadarpan[
india is grate jai hind
जवाब देंहटाएंby
Law Helpline
mera bharat mahan. jai hind.
जवाब देंहटाएंdilip bhorga