Inspirational life story of Jean Francois Gravelet popularly known as charles Blondin who had crossed Niagra falls many times on a rope.
फ्राँस के सेंट आमेर प्राँत में सन् 1826 ई॰ में जन्मा जीन फ्राँकाईस ग्रेवलेट दुनिया का एक अद्भुत एवं साहसी कलाकार माना जाता हैं। सामान्य आर्थिक स्थिति के कारण उसे किसी अच्छे विश्वास में पढ़ने का अवसर न मिल सका। साधारण सी शिक्षा ग्रहण करने के बाद उसने जिमनास्टिक विद्यालय में भर्ती पालिया। संकल्प के धनी बालक जीन ने घर पर भी अपना अभ्यास जारी रखा। परिणाम स्वरूप मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में ही 10 फुट की ऊँचाई पर रस्सा बाँध कर उस पर चलने का सफल सार्वजनिक प्रदर्शन कर दिखाया। अभी वह किशोर ही था कि पिता का साया सिर पर से उठ गया और पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी बालक-फ्राँकाईस पर आ पड़ी। इस महान जिम्मेदारी को उसने अपनी कला का सार्वजनिक प्रदर्शन करके पूरा किया। आगे चलकर उसने अपना नाम जीन फ्राँकाईस से बदलकर चार्ल्स ब्लॉन्डिन रख लिया और उसी नाम से विख्यात हुआ।
एक बार जब वह अमेरिका के प्रवास पर था तो वहाँ उसने न्यागरा का जल प्रपात देखा। यह प्रपात अमेरिका
और कनाडा के बीच मध्य रेखा का काम करता है। यह 360 मीटर चौड़ा है। उसे देखकर जीन ब्लॉन्डिन ने घोषणा की कि ‘वह न्यागरा जल प्रपात के दानों शिरों पर रस्सा बाँधकर उसे पार करेगा’ जब लोगों ने उसकी इस घोषणा को पढ़ा तो किसी को विश्वास नहीं हुआ और उसे मात्र अपने नाम का प्रचार करने वाला बताया।पर जब जीन ने निश्चित तिथि पर अमेरिका वाले भाग से कनाडा वाले भाग तक रस्से पर चढ़ कर इस प्रकार पार कर दिखाया जैसे कोई दीवार पर चल रहा हो। कनाडा वाले सिरे पर पहुंच कर उसने पुनः उसी रास्ते अमेरिका जाने की घोषणा कर दी। इस बार उसने अपने साथ कैमरा ले लिया था। जिससे कि न्यागरा के सुंदर प्राकृतिक दृश्य का चित्र बीच से लिया जा सके। अभी वह मध्य तक की दूरी ही तय कर पाया था कि संतुलन डगमगा गया और उसके हाथ का बाँस प्रपात में जा गिरा और गोते लगाता हुआ अदृश्य हो गया। दुर्घटना की आशंका से हजारों दर्शकों की आहें निकल गयी। कितनों ने भय से आंखें, बन्द कर लीं, किन्तु जब ब्लॉन्डिन ने रस्से से झूल कर अपना संतुलन बन लिया और प्राप्त के मध्य रस्से पर खड़े होकर प्राकृतिक दृश्य के फोटो लेने लगा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अनेकों चित्र लेने के बाद साहसी ब्लॉन्डिन संतुलन सम्हालते हुए, अनेक करतबों को दिखाते हुए न्यागरा को पार कर दिखाया।
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Blondin carrying his manager on a tightrope |
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तीसरी बार उसने अपने लड़के को कंधे पर बिठाकर न्यागरा जल-प्राप्त के रस्से पर चढ़कर पार किया। अंतिम बार ब्लॉन्डिन ने एक अन्य व्यक्ति को कंधे पर बैठाकर न्यागरा को पार किया। पहले तो कोई भी व्यक्ति इस जोखिम भरे कार्य के लिए तैयार न हुआ और जो साहसी व्यक्ति तैयार भी हुआ था, उसे जब जीन ने कंधे पर उतारा तो वह बेहोश पाया गया। चिकित्सकों ने जाँच करने के उपरान्त बताया कि यह व्यक्ति भय के कारण बेहोश हो गया है। एक घंटे बाद उसे होश आया था। ब्लॉन्डिन का पुत्र, जिसने इसे पूर्व अपने पिता के कंधे पर चढ़कर प्रपात को पार किया था उससे जब लोगों ने पूछा कि तुम्हें भय क्यों नहीं लगा, तो उसने बताया कि
“मुझे अपने पिता की कुशलता, साहसिकता एवं सफलता पर पूर्ण विश्वास है।”
जीन ब्लॉन्डिन इसके बाद जब इंग्लैंड पहुँचा तो वहाँ के लोगों ने एक विश्वविजेता सूरमा की तरह उसका स्वागत किया। अपने 26 दिनों के प्रवास काल में उसने इंग्लैंड में अनेकों आश्चर्यचकित कर देने वाले करतब दिखाये और लाखों पौंड कमाये। इसी प्रकार फ्राँस वापस लौटने पर वहाँ की जनता ने उसका हार्दिक स्वागत किया और उपहारों से उसे लाद दिया।
एक सुनिश्चित ध्येय और उसके प्रति समर्पित जीवन साधना मानव को महामानव के गौरवपूर्ण पद पर पहुँचा देती है। जीन प्लनडिन की कला-साधना और उसके प्रति समर्पण प्रगति के इच्छुक हर किसी के लिए एक सर्वोत्तम उदाहरण है।
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