Happy Friendship Day-An Inpirational and Self Help article about Friendship. Life Lessons to learn on this friendship day. दोस्ती एक दिल को छु लेने वाला अहसास है, इसके तार सीधे दिल से जुड़े रहते हैं और इसके कई मायने हैं और कई आयाम हैं। यही एक ऐसा रिश्ता है, जिसे हम समझते कम और महसूस ज़्यादा करते है। अगस्त के पहले रविवार को सारी दुनिया दोस्ती का जश्न मनाती, ऐसे में आईये गौर करें और सीखें उन रिश्तों से जिनकी हम मिसालें देते हैं और जो हमेशा से हमें प्रेरित करते हैं।
दोस्ती एक दिल को छु लेने वाला अहसास है, इसके तार सीधे दिल से जुड़े रहते हैं और इसके कई मायने हैं और कई आयाम हैं। यही एक ऐसा रिश्ता है, जिसे हम समझते कम और महसूस ज़्यादा करते है। अगस्त के पहले रविवार को सारी दुनिया दोस्ती का जश्न मनाती, ऐसे में आईये गौर करें और सीखें उन रिश्तों से जिनकी हम मिसालें देते हैं और जो हमेशा से हमें प्रेरित करते हैं।
कृष्ण और सुदामा की मित्रता
दोस्ती कोई भेद-भाव नहीं देखती न ही कोई दीवार नहीं जानती है। कृष्ण-सुदामा की मित्रता भी इसी की मिसाल है। बचपन में गुरुकुल में कई साल साथ गुजरने के बाद वे अलग हो जाते हैं और फिर कई सालों पर जब वे मिलते हैं, तो कृष्ण द्वारका के राजा बन चुके होते हैं और सुदामा अत्यंत निर्धन। लेकिन इसके बावजूद कृष्ण, सुदामा से ऐसे मिलते हैं, जैसे उनकी मित्रता के बिना भगवान स्वयं कुछ भी नहीं हैं, उनके पैर पखारते हैं और उन्हें उचित सम्मान देते हैं।
भक्त हनुमान और भगवान राम की मित्रता
भक्त और भगवान के बीच प्रेम कह लीजिए या मित्रता, रामचरितमानस में भगवान राम और उनके भक्त हनुमान के बीच एक ऐसे रिश्ते का वर्णन हैं, जो अभूतपूर्व है। श्रीराम की सेवा हो, लक्ष्मण को बचाने की जुगत या माता सीता से मिलने को समंदर लांघना, हनुमान ने श्रीराम के लिए सब कुछ किया. और अंत में सीना चीरकर यह भी दिखाया कि उनके हृदय में भी भगवान ही बसे हैं।
दुर्योधन और कर्ण की मित्रता
महाभारत का ज़िक्र बिना दुर्योधन और कर्ण की मित्रता के बिना सम्पूर्ण नहीं होता है। जब जब महाभारत की कथाओं का जिक्र होता है तो हमारा ध्यान कौरव-पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में लड़े गए युद्ध पर जाता है, लेकिन इन सब के बीच भी कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती हमारा ध्यान खींच लेती है। कहते हैं कि अपने ९९ भाइयों की मृत्यु पर भी एक भी आंसू ना गिराने वाला दुर्योंधन, अपने मित्र कर्ण की मृत्यु के पश्चात टूट गया था और फूट-फूटकर रोया था, और कर्ण ने भी ये जानते हुए भी कि दुर्योधन हमेशा गलत राह पर ही चलता है, मित्रता निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
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पिता और पुत्र के बीच का रिश्ता
यूं तो हम में से ज़्यादातर लोग बचपन में पिता की तुलना में मां के ज्यादा करीब होते हैं और पिता से कुछ डरते और झिझकते भी हैं; लेकिन उम्र और समझ बढ़ने पर अहसास होता है कि पिता से बढ़िया और परिपक्व कोई दोस्त नहीं होता। उनसे बड़ा हमारा कोई हितैषी नहीं हो सकता और हम उनसे अपने मन की हर बात कह सकते हैं क्यूंकि केवल वही हमें ऐसी राय देंगे जो हमेशा हमारी भलाई के लिए होगा। हम जीवन में सही राह से न भटके इसके लिए वे हमें डाटते और फटकारते भी हैं, सच्चे मित्र का यही तो कर्त्तव्य है।
माँ और बेटी के बीच का रिश्ता
पिता और पुत्र की भांति ही एक अद्भुत तालमेल मां और बेटी के बीच भी देखने को मिलता है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि मां और बेटे के बीच प्रेम कम होता है, लेकिन मां-बेटी के बीच परस्पर सहयोग और तालमेल का जो स्तर देखने को मिलता है, वो अतुलनीय है। अक्सर देखने को मिलता है कि कई बार बेटे माता-पिता का इतना ख़्याल नहीं रख पाते, जितना की बेटियां रखी पाती हैं!
मित्रता के इस अद्भुत बंधन के बारे में आप क्या सोचते हैं हमसे जरूर बांटे आखिरकार एक ब्लॉग और उसे रीडर्स के बीच में भी एक अद्भुत बंधन होता है, एक सच्चे दोस्त की तरह ही हम भी आपको सच्चे राह पर चलने और सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं।
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P.S. अगर आप भी अपनी रचनाएँ(In Hindi), कहानियाँ (Hindi Stories), प्रेरक लेख(Self -Development articles in Hindi ) या कवितायेँ लाखों लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमसे nisheeth[dot]exe@gmail[dot ]com पर संपर्क करें !!
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v good
जवाब देंहटाएंextremely good
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