vidur niti in hindi, vidur neeti in hindi, Vidur Neeti, Vidur Niti Hindi, विदुर नीति - अध्याय -१ - बुद्धिमान या पंडित कौन है !!(Vidur Neeti - Chapter 1- Who Is Wise?). Hindi Vidur Niti-chapter-1- who is wise?
Vidur Neeti In Hindi
‘महाभारत’ की कथा के महत्त्वपूर्ण पात्र विदुर कौरव-वंश की गाथा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। और विदुर नीति जीवन-युद्ध की नीति ही नहीं, जीवन-प्रेम, जीवन-व्यवहार की नीति के रूप में अपना विशेष स्थान रखती है। राज्य-व्यवस्था, व्यवहार और दिशा निर्देशक सिद्धांत वाक्यों को विस्तार से प्रस्तावना करने वाली नीतियों में जहां चाणक्य नीति का विशेष स्थान है वहीँ सत्य-असत्य तथा सही-गलत का स्पष्ट निर्देश और विवेचन की दृष्टि से विदुर-नीति का विशेष महत्त्व है।
एक तरफ जहाँ आचार्य चाणक्य निर्णायक स्थिति में व्याख्याता थे, वहीँ महात्मा विदुर अपनी वैयक्तिक-स्थितिगत सीमाओं से परिचित, परिचालित विनम्र निवेदन के रूप में प्रस्तावना करते हैं। आचार्य चाणक्य के चाणक्य नीति में जहाँ निर्देश एवं आदेश का भाव है, वहीँ महात्मा विदुर के विदुर नीति में उनके विचार सच्चे परामर्श के रूप में प्रस्तुत किये गए हैं।
चाणक्य नीति और भर्तृहरी नीति शतक की अद्भुत सराहना से प्रेरित होकर हम सम्पूर्ण विदुर नीति को भी प्रकाशित करने जा रहे हैं। इस प्रयास के तहत हम हर अध्याय में उल्लेखित अद्भुत ज्ञानवर्धक श्लोकों का सरल हिंदी में भावार्थ प्रकाशित करेंगे। उम्मीद करते हैं कि चाणक्य नीति और भर्तृहरी नीति शतक की तरह ही विदुर नीति से भी आप बहुत कुछ सीख पाएंगे और जीवन में हर बुलंदियों को छूने की ओर अग्रसर होंगे!!
विदुर नीति - अध्याय -१ - बुद्धिमान या पंडित कौन है !!(Vidur Neeti - Chapter 1- Who Is Wise?)
अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग, दुःख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता - ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ करने से नहीं रोक पाते वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है।
अच्छे कर्मो को अपनाना और बुरे कर्मों से दूर रहना साथ ही परमात्मा में विश्वास रखना और श्रद्धालु भी होना - ऐसे सद्गुण बुद्धिमान और पंडित होने का लक्षण है।
क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता, तथा स्वयं को पूज्य समझना - ये भाव जिस व्यक्ति को पुरुषार्थ के मार्ग /सत्मार्ग से नहीं भटकाते वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है !!
जिस व्यक्ति के कर्त्तव्य, सलाह और पहले से लिए गए निर्णय को केवल काम संपन्न होने पर ही दुसरे लोग जान पाते हैं, वही पंडित कहलाता है ।
जिस व्यक्ति का निर्णय और बुद्धि धर्मं का अनुशरण करती है और जो भोग विलास ओ त्याग कर पुरुषार्थ को चुनता है वही पण्डित कहलाता है ।
ज्ञानी और बुद्धिमान पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने के इच्छा रखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं तथा किसी वस्तु को तुक्ष्य समझ कर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं ।
जो व्यक्ति किसी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, उस विषय के बारे में धैर्य पूर्वक सुनते हैं, और अपने कार्यों को कामना से नहीं बल्कि बुद्धिमानी से संपन्न करते हैं, तथा किसी के बारे में बिना पूछे व्यर्थ की बात नहीं करते हैं वही पण्डित कहलाते हैं।
बुद्धिमान तथा ज्ञानी लोग दुर्लभ वस्तुओं की कामना नहीं रखते, न ही खोयी हुए वस्तु के विषय में शोक करना चाहते हैं तथा विपत्ति की घडी में भी घबराते नहीं हैं ।
जो व्यक्ति पहले निश्चय करके रूप रेखा बनाकर काम को शुरू करता है तथा काम के बीच में कभी नहीं रुकता और समय को नहीं गँवाता और अपने मन को वश में किये रखता है वही पण्डित कहलाता है ।
हे भारत कुल भूषण (ध्रितराष्ट्र), ज्ञानी पुरुष हमेशा श्रेष्ठ कर्मों में रूचि रखते हैं, और उन्न्नती के लिए कार्य करते व् प्रयासरत रहते हैं तथा भलाई करनेवालों में अवगुण नहीं निकालते हैं ।
जो अपना आदर-सम्मान होने पर भी फूला नहीं समाता, और अपमान होने पर भी दुखी व् विचलित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसके मन को कोई दुख नहीं होता वह पण्डित कहलाता है ।
जो व्यक्ति प्रकृति के सभी पदार्थों का वास्तविक ज्ञान रखता है, सब कार्यों के करने का उचित ढंग जाननेवाला है तथा मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ उपायों का जानकार है वही मनुष्य पण्डित कहलाता है।
जो निर्भीक होकर बात करता है , कई विषयों पर अच्छे से बात कर सकता है, तर्क-वितर्क में कुशल है, प्रतिभाशाली है और शाश्त्रों में लिखे गए बातों को शीघ्रता से समझ सकता है वही पण्डित कहलाता है।
जिस व्यक्ति की विद्या या ज्ञान उसके बुद्धि का अनुशरण करती है और बुद्धि उसके ज्ञान का तथा जो भद्र पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता वही पण्डित की पदवी पा सकता है ।
यह प्रयास कैसा लगा हमें अपनी टिप्पणियों के माध्यम से जरूर बताएं।
P.S. अगर आप भी अपनी रचनाएँ(In Hindi), कहानियाँ (Hindi Stories), प्रेरक लेख(Self -Development articles in Hindi ) या कवितायेँ लाखों लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं तो हमसे nisheeth[dot]exe@gmail[dot ]com पर संपर्क करें !!
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आपका धन्यवाद ,विदुरजी की निति मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं ।अपने गुरूजी के मुख से भी कई बार सुनने को मिली हैं ।अब आपके द्वारा पढने को मिलेगा ।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। जल्दी ही हम विदुर नीति के सभी अध्यायों को प्रकाशित करेंगे ताकि आप सम्पूर्ण विदुर नीति आसानी से पढ़ सकें।
हटाएंaapka bahut bahut dhanyabad . aap issi tarah ki nek vichar bhejte rahe,,,,taki hum logo ki gyan ki vridhi ho . aapko phir ek var dhanyabad.....
जवाब देंहटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। जल्दी ही हम विदुर नीति के सभी अध्यायों को प्रकाशित करेंगे ताकि आप सम्पूर्ण विदुर नीति आसानी से पढ़ सकें।
हटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंपरब्रह्म परमेश्वर ने सर्वप्रथम सबके प्राणरूप सर्वात्मा हिरण्यगर्भ को बनाया। उसके बाद शुभकर्म में प्रवृत्त कराने वाली श्रद्धा अर्थात आस्तिक बुद्धि को प्रकट करके क्रमशः शरीर के उपादनभूत आकाश, वायु, तेज़, जल और पृथ्वी - इन पाँच महाभूतों की सृष्टि की । इन पाँच महाभूतों का कार्य ही यह दृश्यमान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है।पाँच महाभूतों के बाद परमेश्वर ने मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार-- इन चारो के समुदायरूप अंतःकरण को रचा। फिर विषयों के ज्ञान एवं कर्म के लिए पाँच ज्ञानेन्द्रियों तथा पाँच कर्मेन्द्रियों को उत्पन्न किया, फिर प्राणियों के शरीर की स्थिति के लिए अन्न की और अन्न के परिपाक द्वारा बल की सृष्टि की । उसके बाद अन्तःकरण और इन्द्रियों के संयमरूप तप का प्रादुर्भाव किया। उपासना के लिए भिन्न भिन्न मन्त्रो की कल्पना की। अंतःकरण के संयोग से इन्द्रियों द्वारा किये जाने वाले कर्मो का निर्माण किया। उनके भिन्न भिन्न फलरूप लोको को बनाया और उन सब के नाम-रूपो की रचना की।इस प्रकार सोलह कलाओ से युक्त इस ब्रह्माण्ड की रचना करके जीवात्मा सहित परमेश्वर स्वयं इसमें प्रविष्ट हो गये, इसीलिए वे सोलह कलाओ वाले पुरुष कहलाते है। हमारा यह मनुष्य शरीर भी ब्रह्माण्ड का ही एक छोटा सा नमूना है, अतः परमेश्वर जिस प्रकार इस सारे ब्रह्माण्ड में है, उसी प्रकार हमारे इस शरीर में भी है और इस शरीर में भी वे सोलह कलाएं वर्तमान है। उन हृदयस्थ परमदेव परुषोत्तम को जान लेना ही उस सोलह कला वाले पुरुष को जान लेना है
जवाब देंहटाएंउपर लिखे थोडे शब्दो मे सुधार जरुरी है और वह यह की हमारा सामर्थ्य तभी खिलता है जब हम कहते जानते और महसुस करते है के हममें परमात्मां नहि हम परमात्मामें है। ब्रह्म के अवतार भगवान श्री कृष्णके विराट स्वरुप धारण किया तबभी भगवनने यहि बताया ईश्वर अंश अविनाशी अर्जुन नामक शरीर धारी जीवको यां फिर समझाया के सारा कुछ मै हि हुं। हे पार्थ यह तुं जानले यहा तक कह दिया पांडवो में अर्जुन भी मै हि हुं, पर क्या करे अपनी आपकी लोगोकी और सारी सृष्टिकी मझबूरी यही है के भगवन तो विराट स्वरुप धारण कर साराकुछ जीवन जीवका मै ही हुं बता सकते है पर छोटा शरीरधारी जीव कैसे बताये हे भगवान मै मुझको मै भी बता पाता हुं उसके कारण ब्रह्म भी आप हो भगवन! शरणा गति, नष्टा मोह समृति लब्धवा ऐसे बताने के लिएभी तो विराट स्वरुप युक्त ब्रह्मके अवतार भगवान समक्ष हाजर होने जरुरीभी है न!
हम पहलेसे ही परमात्मामे हि है। सिर्फ ध्यान चाहिए परमात्मामें जो सांसोमें ध्यानकर सुरता कर चिंतन मनन स्मरण मष्तिषकमे जीवको रख कर किया जाता है।भगवानका प्रसाद सरपे चडाके खाना होता है उसके साथ साथ "हमे भगवानकोभी ध्यानसे सरपे चडाना है" अभी इसी वक्त इस घडी वर्तमानमें because present is possible whatever we want.
es time very importent is evry person life thanks sir......................................
जवाब देंहटाएंgood job it should be continued.
जवाब देंहटाएंbest collection of vidur niti in hindi. hats off to you sir, keep it up
जवाब देंहटाएंVery very nyc mujhe bahut achha laga Vidurji ki n iti ko padhkar duniya me kuchh vi nhi hai sirf Karm Karna hai
जवाब देंहटाएंVeri nice 🌸
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