स्वामी दयानंन्द सरस्वती के प्रेरणात्मक कथन व् अनमोल विचार।thoughts in hindi,motivational quotes in hindi,thought of the day in hindi Swami Dayananda Quotes and slogans in Hindi, Quotes and slogans By Swami Dayananda Saraswati In Hindi
1. "ये 'शरीर' 'नश्वर' है, हमे इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, 'मनुष्यता' और 'आत्मविवेक' क्या है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
2. "वेदों मे वर्णीत सार का पान करनेवाले ही
ये जान सकते हैं कि 'जिन्दगी' का मूल
बिन्दु क्या है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
3. "क्रोध का भोजन 'विवेक' है, अतः इससे बचके रहना
चाहिए। क्योकी 'विवेक' नष्ट हो जाने पर,
सब कुछ नष्ट हो जाता है।" ~ स्वामी दयानन्द
सरस्वती
4." 'अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर
वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और
'आत्मज्ञान' को खो देता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
5."'मानव' जीवन मे 'तृष्णा' और 'लालसा' है, और ये दुखः के मूल कारण है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
6. "'क्षमा' करना सबके बस की बात
नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बङा बना देता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
7. "'काम' मनुष्य के 'विवेक' को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।" ~
स्वामी दयानन्द सरस्वती
8. "लोभ वो अवगुण है,
जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना
कर दे।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
9. "मोह एक अत्यंन्त विस्मित जाल
है, जो बाहर से अति सुन्दर और अन्दर से अत्यंन्त कष्टकारी है;
जो इसमे फँसा वो पुरी तरह उलझ ही गया।" ~ स्वामी दयानन्द
सरस्वती
10. "ईष्या से मनुष्य को हमेशा
दूर रहना चाहिए। क्योकि ये 'मनुष्य' को
अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथ भ्रष्ट कर देती है।"~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
11. "मद 'मनुष्य की वो स्थिति या
दिशा' है, जिसमे वह अपने 'मूल कर्तव्य' से भटक कर 'विनाश'
की ओर चला जाता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
12. "संस्कार ही 'मानव'
के 'आचरण' का नीव होता
है, जितने गहरे 'संस्कार' होते हैं, उतना ही 'अडिग' मनुष्य अपने 'कर्तव्य' पर,
अपने 'धर्म' पर,
'सत्य' पर और 'न्याय'
पर होता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
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13. "अगर 'मनुष्य' का मन 'शाँन्त' है, 'चित्त' प्रसन्न है, ह्रदय 'हर्षित' है, तो निश्चय ही ये
अच्छे कर्मो का 'फल' है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
14. "जिस 'मनुष्य' मे 'संतुष्टि' के 'अंकुर' फुट गये हों, वो 'संसार' के 'सुखी' मनुष्यों मे गिना जाता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
15. "यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ'
है, जो मनुष्य को 'संसार'
के माया जाल से निकलने मे सबसे बङे 'अवरोधक'
होते है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
16. "जब 'मनुष्य' अपने 'क्रोध' पर विजय पा ले, 'काम' को काबू मे कर ले, 'यश' की इच्छा को त्याग दे, 'माया'
जाल से विरक्त हो जाये, तब उसमे जो
"दिव्य विभुतियाँ "आती है। उसे ही "कुण्डिलनी शक्ति" कहते है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
17. " आत्मा, 'परमात्मा'
का एक अंश है, जिसे हम अपने 'कर्मों' से 'गति' प्रदान करते है। फिर 'आत्मा' हमारी
'दशा' तय करती है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
18. "मानव को अपने पल-पल को 'आत्मचिन्तन' मे लगाना चाहिए, क्योकी
हर क्षण हम 'परमेश्वर' द्वार दिया गया 'समय' खो रहे है।" ~ स्वामी
दयानन्द सरस्वती
19. "मनुष्य की 'विद्या उसका अस्त्र', 'धर्म उसका रथ', 'सत्य उसका सारथी' और 'भक्ति रथ
के घोङे होते है'।" ~ स्वामी दयानन्द
सरस्वती
20. "इस 'नश्वर शरीर' से 'प्रेम' करने के बजाय हमे 'परमेश्वर' से प्रेम करना चाहिए, 'सत्य और धर्म, ' से प्रेम करना चाहिए; क्योकी ये 'नश्वर' नही हैं।"~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
22. "जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी,
सुख दुःख आदि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने
वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खेंच
सके वह पण्डित कहाता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
23. "उस सर्वव्यापक ईश्वर को योग द्वारा जान लेने
पर हृदय की अविद्यारुपी गांठ कट जाती है, सभी प्रकार के संशय दूर हो जाते है और भविष्य में
किये जा सकने वाले पाप कर्म नष्ट हो जाते है अर्थात ईश्वर को जान लेने पर व्यक्ति
भविष्य में पाप नहीं करता |" ~ स्वामी
दयानन्द सरस्वती
24. "जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है |" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
25. "काम करने से पहले सोचना बुद्धिमानी, काम करते हुए सोचना सतर्कता, और काम करने के बाद सोचना मूर्खता है।" ~ स्वामी दयानन्द सरस्वती
प्रेरक अनमोल विचारों तथा कथनों का विशाल संग्रह पढ़ें :
अतिउत्तम प्रयास
जवाब देंहटाएंswami dayanand sabse achche samaaj sudharak hai,jinhone hamre samaaj me vyaapt bahut si kuritiyo se hame chhutkara dilaya aur aaj bhi unke anmol vichaar hamko prerit kar rahe hai.
जवाब देंहटाएंaise hi mahan aatmaao ke suvichaar padhne ke liye visit kare
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