Motivitional story of Indian archer Deepika Kumari, International Women’s Day In Hindi, दीपिका कुमारी - फर्श से अर्श तक का सफर | अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष,Indian archer Deepika Kumari, दीपिका कुमारी, भारतीय तीरंदाज, Rio Olympics, Olympics 2016 news
Deepika Kumari With The President Of India Pranab Mukherjee |
सफलता
उम्र की सीमा नही देखता, ये तो बस लक्ष्य के प्रति जुनून देखता है।
इस
बात का उदाहरण फिर से दिया है, तीरन्दाज़ दीपिका कुमारी ने। 13 साल कि उम्र से ही अपने देश के लिये तीरंदाजी
करने का सपना देखने वाली दीपिका ने कठिन समय मे भी हार न मानते हुए, अपने सपने को साकार किया।
रिओ(ब्राजील)
ओलंपिक में पदक की प्रबल दावेदार मानी जा रही तीरंदाज दीपिका कुमारी ने चैंपियन
बनने की राह पर आगे बढ़ने की शुरुआत अपने रिक्शाचालक पिता से दस रुपये लेकर की थी।
दीपिका
किसी जिला स्तरीय टूर्नामेंट में भाग लेना चाहती थी लेकिन उनके पिता ने साफ मना कर
दिया। दीपिका ने हार नहीं मानी और पिता को उनकी बात माननी पड़ी। दीपिका के पिता शिवनारायण के अनुसार, ‘मैंने कहा ठीक है, मैंने उसे दस रुपये
दिये और वह लोहारडंगा में खेलों में भाग लेने चली गयी जहां उसने जीत दर्ज की।’
देश
की नंबर एक महिला तीरंदाज का यह पहला टूर्नामेंट था जहां से उनके स्टार बनने की
शुरुआत हुई। इसके बाद भी हालांकि उन्हें अपने पिता को मनाने के लिये काफी मिन्नतें
करनी पड़ी थी। आज उनके पिता भी मानते हैं कि उनकी बेटी सही थी।
दिल्ली
राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली दीपिका के पिता शिवनरायण महतो एक
ऑटो रिक्शा चालक और माता गीता महतो एक नर्स है। इनका जन्म 13 जून सन् 1994 मे झारखण्ड राँची मे हुआ था।
दीपिका
को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला जब उन्होने पहली बार अर्जुन आर्चरी
अकादमी ज्वाइन किया। यह अकादमी झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा
मुंडा ने खरसावां में शुरू की थी।
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तीरंदाजी में उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत
2006 में हुई जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी ज्वाइन किया। उन्होने यहां
तीरंदाजी के दांव-पेच सीखे। इस युवा तीरंदाज ने 2006 में मैरीदा मेक्सिको में
आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में कम्पाउंट एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल
किया। ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थीं। यहां से शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व
की नम्बर वन तीरंदाज का तमगा हासिल कराया। सबसे पहले वर्ष 2009 में महज 15 वर्ष की
दीपिका ने अमेरिका में हुई 11वीं यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप जीत कर अपनी उपस्थिति
जाहिर की थी। फिर 2010 में एशियन गेम्स में कांस्य हासिल किया। इसके बाद इसी वर्ष
कॉमनवेल्थ खेलों में महिला एकल और टीम के साथ दो स्वर्ण हासिल किये। राष्ट्रमण्डल
खेल 2010 में उन्होने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला
रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया।
भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में वर्ष 2010 की
जब-जब चर्चा होगी, इसे
देश की रिकर्व तीरंदाज दीपिका के स्वर्णिम प्रदर्शनों के लिए याद किया जाएगा। फिर
इस्तांबुल में 2011 में और टोक्यो में 2012 में एकल खेलों में रजत पदक जीता। इस
तरह एक-एक करके वे जीत पर जीत हासिल करती गईं। इसके लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार
दिया गया। हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी दीपिका को सम्मानित किया।
2006 में घर से टाटा अकेडमी गई दीपिका तीन साल बाद यूथ चैम्पियनशिप जीत कर ही घर
लौटीं।
सन्
2012 मे
प्रथम बार एन्टाल्या, टर्की मे स्वर्ण पदक
जीत कर इन्होने सब को चौका दिया। सन् 2014 मे फोर्ब्स पत्रिका ने इन्हे अपने प्रथम तीस
खिलाङीयो के सूची मे स्थान दिया, और इस समय ये विश्व तीरांदाजी रैँकिगं मे 5वेँ स्थान पर है।
खुद
पर भरोसा, और
लक्ष्य के प्रति लगन से इन्होने जो इतिहास रचा है, वो हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का
स्त्रोत है, और इनकी कामयाबी गवाह है कि, सफलता की राह, आसान नही, ये
हलख सुखा देने वाला होता है, पर फिर भी परिश्रम करने वाला, कठिनाँइयो को झुका देता है।
इनकी
सफलता ये बताती है कि, अपने
प्रतिभा को पहचानकर, कठिन परिश्रम से आगे बढ़नेपर सफलता
मिलनी निश्चित है, क्योकी सफलता मेहनत और लगन देखती है, उम्र नही।
अपने
कठिन परिश्रम से देश का सिर गर्व से उचाँ उठाने वाली दीपिका कुमारी को अंतरास्ट्रीय
महिला दिवस के इस अवसर पर हिंदी साहित्य मार्गदर्शन उनके हुनर और जज्बे को सलाम
करता है और आने वाले रिओ,ब्राजील ओलम्पिक के लिए ढेरों शुभकामनायें देता है!
आप सभी को अंतरास्ट्रीय महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ !!
सभी को अंतरास्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंऔर टोक्यो में 2012 में एकल खेलों में रजत पदक जीता। इस तरह एक-एक करके वे जीत पर जीत हासिल करती गईं। इसके लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार दिया गया
जवाब देंहटाएंhttp://www.write-an-essay.org/
Happy WOmens Day
जवाब देंहटाएंGood job sir.
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