धूमिल तिमिर की एक छाया (A shadow in the night): Part-I,Drama Cum Poem IN hindi,Drama In Hindi about Shadow,Hindi Drama About Shadow in the night.
A shadow in the night.
A highly ambitious man is all set to explore the secrets of life and this
world. Of sun, moon and the universe! He sets out on his journey as the
“Tejaswi Ek Yatri”, But had he understood
his own secrets first?
On his way in the woods, he meets “Nishachar Ek Gyata”, a scholar monk who had seen this universe and the nuances
of the human life for years; who tells him it’s not a worry to NOT have a
shadow of yourself in the darkness of the night, and have a shadow only during
the bright sunlight. Tejaswi learns that his dominance could be stamped stronger
than a shadow, as a reason of his existence, only by his actions for
introspecting and knowing himself better. The law of nature that he understood
was - “Once we are learned and capable enough to change ourselves for the good,
the world does so!”
Here is how it goes:
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धूमिल तिमिर की एक
छाया
एक अतिशयी महत्तवाकांक्षी नौज़वान जीवन के सार तथा संसार के रहस्यों को उद्वाचित करने को आतुर है I पूर्णतः उद्यत है वह सूर्य, चन्द्रमा और समस्त ब्रम्हांड के राज़ की तलाश में जाने को I "तेजस्वी -एक यात्री" ने अपनी यात्रा प्रारंभ तो कर दी थी, परन्तु क्या पहले उसने स्वयं के अंदर गुप्त रहस्यों को सुलझाने की कोशिश की थी?
यात्रा के दौरान वन में उसकी भेंट एक विद्वान सन्यासी "निशाचर- एक ज्ञाता" से हुई, जिसने वर्षों से ब्रह्मांड तथा मानव जीवन की बारीकियों का अध्ययन किया था I निशाचर ने बताया की सूर्यप्रकाश में साथ रहने वाला हमारा साया, रात्रि के तम में हमारा साथ भले ही त्याग दे, परन्तु यह किसी भी प्रकार की आकुलता का विषय नहीं है I हमारे अस्तित्व की समरसता एवं पहचान को हमारा साया सुनिश्चित नहीं करता- अस्तित्व सुनिश्चित करतीं हैं हमारी आत्मनिरीक्षण क्षमता, हमारी परिपक्वता और हमारे कर्म I प्रकृति का एक अध्याय उसके कर्णो में सदैव गूंजता रहेगा - "एकदा स्वयं को अच्छाई की प्रति सौंप दिया जाए तो स्वयं में किए हर परिवर्तन से ही समस्त संसार भी परिवर्तित हो जाता है "
बात कुछ ऐसे बनी थी :
धूमिल तिमिर
की एक
छाया (A shadow in the night):
Part-I
तेजस्वी एक
राही :
“ललक पड़ी हालात बदल दूं...हर दूजे के जज़्बात बदल दूं !
सुर्ख बना दूं नील से अंबर,
संतापों के महफिलात बदल दूं !!”
निशाचर एक
ज्ञाता:
व्याकुल तू आकाश के लिए,
लाल ना उसको होना...!
अभिज्ञान बराबर खुद की कर,
क्यूँ ना झाँके कोना कोना…?
रहा रहनुमा नील निरंतर,
किअंबर सुर्ख नहीं होता है !
हाँ वो अंबर
सुर्ख नही हो सकता,
वो तो नील की पहचान है !!
तेरी क्या पहचान है बंदे?
तेरे भी कुछ प्रमाण हैं?
तेजस्वी एक
राही :
मेधावी मैं अतिचतुर नामवर !
रहूँगा सारा जगत जानकर I
चेतनाहीन जो ना होता सुरज !
नमता प्रतिद्वंदी मुझे मानकर I
निशाचर एक
ज्ञाता:
श्रद्धेय किरण पूर्ण उषा में अधिवेश कर,
सर्वप्रथम स्वंय को पहचान तू !
सूर्यातनमन की कल्पना त्याग दे,
कर आत्मनिरीक्षण में ध्यान तू...!!
पलक झपकते ग्रहण में खोते जहाँ,
वहाँ जिस्मानी संपत्ति का गुमान ना कर !!
भौतिक अवन से उपर उठ जा,
सच्चे विवेक का अपमान ना कर !!
चेतन अस्तित्व का रहस्य बीजलेखन,
ब्रम्हांड में नहीं स्वाभ्यन्तर है...!!
व्यंग्य है एक, संसार तलाशना,
राज़ तो तेरे अंदर है...!!
धूमिल तिमिर की छाया है तू ,
पर धूमिल तिमिर में न दिखती छाया...!!
स्वर्ण रजत हीरक कुछ नहीं प्रज्वलित,
ना तेरा कौशल ना तेरी काया !
मूक वायू भी कुछ कहती तुझसे,
पर सुनना तेरे कर्ण पे है I
तो कर्ण को फिर तराश ले तू
,
सूरज पे अधिकार की आस ना कर I
तेजश्वि तू राही सच्चा !
ग़लत मार्ग बर्दाश्त ना कर...!!
आग जला दे खुद के अंदर,
आसमाँ जलाने का कैसा मंसूबा ?
जब हो प्रकाश तुझ से उदित…
वही तेरा कौशल, तेरी सच्ची
काया !!
तेजस्वी एक
राही :
अहंकार की क्षमा याचना,
पर जिस जग
में हूँ उसको ना जानूँ...?
निशा स्वर्ण भी धुन्ध कर देती है,
फिर रात की क्या योग्यता मानूं ?
दिवस ही आलोक का हितैषी है !
दिवस पर नियंत्रण की ना ठानू ?
निशाचर एक
ज्ञाता:
नियंत्रण स्वयं पर होवे बस,
संसार में असीमित लोभ, अनंत आशाएं हैं I
कितनों को हम डोर से बाँधे? करें कितनो पे काबू?
क्या ये मेधा और सामर्थ्य की परिभाषाएं है ?
खुद को जिसने जान लिया,
जग जानने का औचित्य बचा क्या?
धूमिल तिमिर में ना चमकता सोना,
बाह्य स्वर्ण का महत्व बचा क्या?
खुद से परिभाषित कर दे जग को,
जग तेरी क्यूँ परिभाषा दे ?
परिणत होगी दुनिया सारी,
आपबोध के प्रति बस आशा दे !!
पहला पग जब खुद को बदलना हो,
दुनियाँ बदलती ही
जाएगी !
धूमिल तिमिर मे भी तेरी छाया,
एक पहचान अंकित कर जाएगी !!!
-गौतम कुमार मंडल /Gautam Kumar Mandal (06-07-2016)
कवि परिचय(About the Author):
Mr.
Gautam Mandal is currently pursuing his PGP in management from IIM Ahmedabad,
India. He completed his B.Tech. in Mechanical engineering from NIT, Trichy in
2013 after which he worked as Manager Operations at Tata Steel Ltd, Jamshedpur
for 3 years.
First
ever to score 3 consecutive 10 GPAs in his department, Gautam has published
papers in International journals & conferences. As Manager Operations, he
achieved the best ever production in his shop. He is a district level athlete
& an avid poet.
His
interest in Hindi Literature comes from the fact that he spent his early
childhood in a rural backdrop spending a lot of his time sitting with priests
and reading Hindi scriptures. His love for Hindi was further bolstered when he
started reading Psychology Honours books out of interest during his teenage,
all in Hindi. Since then, he started writing poems and articles on various
current affairs, nature and environment sustainability, feminism and meaning of
life.
Part-II coming soon.
Very Encouraging..............
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