परिदृश्य के भीतर ~ मुकुल कुमार | Download Free Ebook,परिदृश्य के भीतर एक कविता संकलन है, जिसे मुकुल कुमार ने लिखा है, इस बेहतरीन पुस्तक में संकलित कविताओं में आपको जीवन के विभिन्न आयामों का वर्णन मिलेगा, प्रकृति के विभिन्न रूपों से लेकर सामाजिक जीवन के उथल-पुथल को बखूबी बयान करती ये पुस्तक आपको अवश्य ही पसंद आएगी, कविता प्रेमियों के दिल में यह पुस्तक अवश्य घर कर पायेगी.
परिदृश्य के भीतर एक कविता संकलन है, जिसे कुमार मुकुल ने लिखा है, इस बेहतरीन पुस्तक में संकलित कविताओं में आपको जीवन के विभिन्न आयामों का वर्णन मिलेगा, प्रकृति के विभिन्न रूपों से लेकर सामाजिक जीवन के उथल-पुथल को बखूबी बयान करती ये पुस्तक आपको अवश्य पसंद आएगी, कविता प्रेमियों के दिल में यह पुस्तक अवश्य घर कर पायेगी।
इस पुस्तक के बारे में अन्य लोगों का क्या कहना है :
प्रकृति पर इनकी सबसे अधिक कविताएं हैं। मानो वह उनकी मुट्ठी में हो ... कवि के जीवन में अवसाद पल दो पल की चीज है। उदासी डरावनी नहीं है, बल्कि एक धारदार हीरा है - राजू रंजन प्रसाद,न्यूजब्रेक, दिसंबर 2000
कुमार मुकुल के यहां प्रतिरोध के लिए नारा नहीं अपितु उसकी प्रक्रिया है - अच्युतानंद मिश्र,कृति ओर,2008
कुमार मुकुल जहां प्रकृति को जनआस्था की सहायता से एक गतिशील बिम्ब में बदल देते हैं और पाठकों के करीब पहुंचते हैं,वहां वे अधिक प्रभावी और महत्व्पूर्ण लगते हैं – बसंत त्रिपाठी, लोकमत समाचार,2000
हमारे समय के जिन युवा कवियों के पास युगीन चेतना और समर्थ भाषा है,कुमार मुकुल निस्संदेह उनमें से एक हैं। आश्वस्ति की बात यह है कि युगीन प्रश्नों सेटकराने की बेचैनी के बावजूद उनके पास वह अफरातफरी नहीं है,जिससे समकालीन कविता में एक भेडियाधसान दिखाई पडता है –कल्लोल चक्रवर्ती, अमर उजाला,2000
Journalism is often known as 'literature in hurry'.A Patna based scribe-turned-poet comes out with a collection which might be very well set new milestones in Hindi poetry - Sudhir Kumar Mishra [THE OBSERVER ,new delhi- 2000]
सोमालिया पर उनकी कविता ... कुछ ही पंक्तियों में बिना किसी अतिरिक्त पांडित्यपूर्णता के बहुत सरल ढंग से अपने को अभिव्यक्त करने की कला में सिद्धहस्तता का उदाहरण है। अगर वह छोटी कविताओं में आकर्षित करते हैं ...तो लंबी कविताएं एक पूरे जीवन-दर्शन को अभिव्यक्त करती हैं-पंकज बिष्ट,2000, परिदृश्य के भीतर के फ्लैप से।
2000 में ‘परिदृश्य के भीतर’ के लिए पटना पुस्तक मेले का ‘विद्यापति सम्मान।
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कवि परिचय:
जन्म - 2-5-1966
1989 में अमान वीमेंस कालेज फुलवारी शरीफ, पटना में अध्यापन।1994 से 2005 के बीच हिन्दी की आधा दर्जन पत्र-पत्रिकाओं अमर उजाला, पाटलिपुत्र टाइम्स, प्रभात खबर आदि में संवाददाता, उपसंपादक,संपादकीय प्रभारी और फीचर संपादक के रूप में कार्य। 1998-2000 दैनिक 'अमर उजाला' के लिए पटना से संवाददाता के तौर पर कार्य। इस दौरान अखबार में एक साप्ताहिक कॉलम 'बिहार : तंत्र जारी है' का लगातार लेखन। 2003 हैदराबाद'स्टार फीचर्स' में संपादक के रूप में काम। 2003 में बेटे की कैंसर की बीमारी के चलते नियमित कार्य में बाधाएं। इस बीच दिल्ली में साहित्यिक पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' में संपादकीय सहयोगी के रूप में काम। 2005 से 2007 के बीच द्वैमासिक साहित्यिक लघु पत्रिका 'सम्प्रति पथ' का दो वर्षों तक संपादन। 2007 से 2011 त्रैमासिक 'मनोवेद' में कार्यकारी संपादक के रूप में कार्य। 2013 से 2014 कल्पतरु एक्सप्रेस, दैनिक, आगरा में स्थानीय संपादक। अप्रैल 2015 से दिल्ली के दैनिक देशबन्धु में स्थानीय संपादक के रूप में कार्य। वर्तमान में राजस्थान पत्रिका जयपुर के संपादकीय विभाग से संबद्ध।
कृतियां: 2000 में रश्मिप्रिया प्रकाशन से ‘परिदृश्य के भीतर’ और 2006 में मेधा बुक्स से ‘ग्यारह सितंबर और अन्य कविताएं’ शीर्षक दो कविता संग्रह प्रकाशित। 2000 में ‘परिदृश्य के भीतर’ के लिए पटना पुस्तक मेले का ‘विद्यापति सम्मान। 2012 में प्रभात प्रकाशन से 'डा लोहिया और उनका जीवन-दर्शन' नामक किताब प्रकाशित। 2013 में नई किताब प्रकाशन से 'अंधेरे में कविता के रंग' नामक काव्यालोचना की पुस्तक प्रकाशित। 2014 'आज की कविता-प्रतिनिधि स्वर' नामक पांच कवियों के संकलन मेे संकलित। कैसर पर एक किताब शीघ्र प्रकाश्य।
अन्य: वसुधा, हंस, इंडिया टुडे, सहारा समय, समकालीन तीसरी दुनिया, जनपथ, जनमत, समकालीन सृजन, देशज समकालीन, शुक्रवार, आउटलुक, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, जनसत्ता, दैनिक जागरण, कादम्बिनी, आजकल,समकालीन भारतीय साहित्य, प्रथम प्रवक्ता आदि पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक - सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन।
मेल - kumarmukul07@gmail.com
ब्लॉग - http://hindiacom.blogspot.com/ [ कारवॉं KARVAAN ]
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