Prerak Prasang of Mahatma Gandhi in Hindi, Life Incidents of Mohandas Karamchand Gandhi, Inspiring Stories for Kids, Kahani, Inspirational Short Story for Children, Information About Gandhiji, History, Biography, Tales, Katha, Kahaniyan, Kathayen, महात्मा गाँधी जी के जीवन से जुडी घटनाएँ एवं प्रेरक प्रसंग, कहानियां, कथाएं
प्रेरंक प्रसंग १ ~ सत्य स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं होता
जब गाँधी जी छोटे थे तब एक बार उन्होंने अपने भाई का कोई खिलौना चुरा लिया था। लेकिन उनके इस कार्य का उनके बाल मन पर इतना बोझ पड़ा कि वे विचलित हो गए. उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने सारी सच्चाई स्वीकार कर ली। पिताजी ने जब पत्र पढ़ा तो वे बहुत नाराज हुए पर गाँधी जी के सत्य को स्वीकार करने के साहस के कारण पिता ने उन्हें माफ़ कर दिया। गांधीजी का कहना था कि अगर आपसे कोई अपराध या गलती हो भी गयी है तो उसे स्वीकार कर लें। सत्य स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि यह उसका बड़प्पन होता है।
प्रेरक प्रसंग 2 ~ हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलना
गांधीजी का नाम मोहनदास था और उनकी माँ पुतलीबाई उन्हें प्यार से मोनिया कहकर बुलाती थी। मोहन अपनी माँ से बहुत प्यार करता था और उनकी हर बात ध्यान से सुनता था। उनके घर में एक कुंआ था। कुएं के चारों ओर पेड़-पौधे लगे थे। बच्चों को कुएं की वजह से पेड़ों पर चढ़ने की मनाही थी। लेकिन मोहन फिर भी पेड़ पर चढ़ जाता था। एक दिन मोहन के बड़े भाई ने मोहन को कुएं के पास वाले पेड़ पर चढ़ा हुआ देख लिया। उन्होंने मोहन को पेड़ से उतरने को कहा पर मोहन नहीं उतरा। भाई ने गुस्से में मोहन को चांटा मार दिया।
रोता हुआ मोहन माँ के पास गया और बोला, ‘ माँ बड़े भैया ने मुझे चांटा मारा. आप भैया को डांट लगाओ।’
माँ काम में व्यस्त थी। मोहन माँ से बार- बार भैया के मारने की बात कहता रहा। माँ ने परेशान होकर कहा, ‘ उसने तुझे मारा है न ? जा तू भी उसे मार दे. मुझे अभी तंग मत कर मोनिया।‘
आंसू पोंछते हुए मोहन ने कहा, ‘ माँ यह तुम क्या कह रही हो. तुम तो हमेशा कहती हो कि बड़ों का आदर करना चाहिए। तो मैं भैया पर हाथ कैसे उठा सकता हूँ ? हां तुम भैया से बड़ी हो इसलिए तुम भैया को समझा सकती हो कि वे मुझे ना मारे।’
मोहन की बात सुनकर माँ को अपनी भूल का अहसास हो गया। काम छोड़कर उन्होंने अपने बेटे मोहन को गले से लगा लिया। उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे। वे बोली, ‘ तू मेरा राजा बेटा है, मोनिया। आज तूने मुझे मेरी भूल बता दी। हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलना मेरे लाल।’
प्रेरक प्रसंग 3 ~ व्यर्थ का खर्च
गांधीजी भोजन के साथ शहद का भी नियम पूर्वक सेवन करते थे| एक बार उन्हें लंदन के दौरे पर जाना पड़ा | मीरा बहन भी साथ जाया करती थीं, इत्तफाक से लंदन दौरे के समय वह शहद की शीशी ले जाना भूल गई |
मीरा बहन ने शहद की नई शीशी वहीँ से खरीद ली | जब गांधीजी भोजन करने बैठे तो नई शीशी देख कर मीरा बहन पर बिगड़ गए और बोले, ‘तुमने यह नई शीशी क्यों मंगवाई ?
मीरा बहन ने डरते हुए कहा, ‘बापू में शहद की वह शीशी लाना भूल गई थी |’ बापू बोले’ यदि एक दिन में भोजन न करता तो क्या मर जाता ? तुम्हें पता होना चाहिए की हम लोग जनता के पैसे से जीवन चलाते हैं और जनता का एक-एक पैसा बहुमूल्य होता हैं | वह पैसा फिजूल खर्च नहीं करना चाहिए |’
प्रेरक प्रसंग 4 ~ नियम का पालन
महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में प्रत्येक कार्य का समय नियत था और नियम कायदों का सख्ती से पालन होता था। आश्रम के प्रत्येक कर्मचारी और वहां रहने वाले सभी लोगों को नियमानुसार ही कार्य करने की हिदायत दी जाती थी। साबरमती आश्रम का एक नियम यह था कि वहां भोजनकाल में दो बार घंटी बजायी जाती थी उस घंटी की आवाज़ सुनकर आश्रम में रहने वाले सभी लोगों को भोजन करने आ जाना होता था। जो लोग दूसरी बार घंटी बजने पर भी भोजन के लिये नहीं पहुंचते उन्हें दूसरी पंक्ति लगने तक प्रतीक्षा करनी पडती थी। एक दिन की बात है कि भोजन की घंटी दो बार बज गयी और गांधी जी समय से उपस्थित नहीं हो सके।
वास्तव में वे कुछ आवश्यक लेखन कार्य कर रहे थे जिसे बीच में छोडना संभव नहीं था इसलिये वे लेखन समाप्त करने के बाद जब भोजनालय आये तब तक भोेजन बंद हो गया था। कार्यकर्तागण महात्मा जी का भोजन निकालकर उनकी कुटिया में ले जाने की तैयारी कर रहे थे।
महात्मा गांधी जी अत्यंत सहजता से भोजनालय के बाहर लगी लाइन में खडे हो गये। तभी किसी ने उनसे कहा-
बापू आप लाइन में क्यों लगे हैै। आपके लिये कोई नियम नहीं है। आप अपनी कुटिया में चलें, वहीं भोजन आ जायेगा आप उसे ग्रहण कीजिये।
तब गांधीजी बोले नहीं नियम सभी के लिये एक जैसा होना चाहिये। जो नियम का पालन न करे, उसे दंड भी भोगना चाहिये।
.....और महात्मा जी ने भोेजनालय में अगली पंक्ति लगने तक प्रतीक्षा की और भोजनशाला में ही भोजन ग्रहण किया।
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