Prerak Prasang From The Life Of Mahatma Gandhi
महात्मा गाँधी से जुड़े प्रेरक(Inspirational Stories From The Life Of Mahatma Gandhi In Hindi) प्रसंगों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए ४ अन्य बेहतरीन प्रेरक प्रसंगों को प्रकाशित किया जा रहा है :
किसी ने तो अपना गुस्सा थूका
बात भारत-पाकिस्तान बटवारे के दौरान की है, जब देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। तब बापू दंगे शांत कराने को बंगाल गए थे वहां पर आक्रोशित मुसलमान भाइयों को जब गांधी जी समझाने का प्रयास कर रहे थे तो एक मुसलमान ने गांधी जी के मुंह पर थूक दिया।
ऐसा देख कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्ताओं ने उसे पकड़ा तो गांधी जी ने कहा कि इन लोगों में गुस्सा है और मुझे ख़ुशी है कि किसी एक ने तो अपना गुस्सा थूका भले ही मेरे मुंह पर ही क्यों न थूका हो।
इतना सुनकर वह मुस्लिम युवक उनके पैरों पर गिर पड़ा और वहां हो रहे दंगे कम हुए।
निश्चय दिवस
स्वतंत्रता आन्दोलन के दिनों में हिन्दुस्तान की सामाजिक बुराइयों में में छुआछूत एक प्रमुख बुराई थी जिसके के विरुद्ध महात्मा गांधी और उनके अनुयायी संघर्षरत रहते थे। उस समय देश के प्रमुख मंदिरों में हरिजनों का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित था। केरल राज्य का जनपद त्रिशुर दक्षिण भारत की एक प्रमुख धार्मिक नगरी है। यहीं एक प्रतिष्ठित मंदिर है श्री गुरूवायूर मंदिर, जिसमें कृष्ण भगवान के बालरूप के दर्शन कराती भगवान गुरूवायुरप्पन की मूर्ति स्थापित है।
आजादी से पूर्व अन्य मंदिरों की भांति इस मंदिर में भी हरिजनों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध था। मंदिर के पुजारी किसी भी गैर ब्राहमण व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश नहीं कराने के पक्ष में रहते थे। हरिजनों के साथ इस भेदभावपूर्ण रवैये के कारण स्थानीय हरिजनों में आक्रोश था परन्तु उनका नेतृत्व संभालने वाला कोई नहीं था। केरल के गांधी समर्थक श्री केलप्पन ने महात्मा की आज्ञा से इस प्रथा के विरुद्ध आवाज उठायी और अंततः इसके लिये सन् 1933 ई0 में सविनय अवज्ञा प्रारंभ की गयी। मंदिर के ट्रस्टियों को इस बात की ताकीद की गयी कि नये वर्ष का प्रथम दिवस अर्थात 1 जनवरी 1934 को अंतिम निश्चय दिवस के रूप में मनाया जायेगा और इस तिथि पर उनके स्तर से कोई निश्चय न होने की स्थिति मे महात्मा गांधी तथा श्री केलप्पन द्वारा आन्दोलनकारियों के पक्ष में आमरण अनशन किया जा सकता है। महात्मा गांधी का यह प्रयोग अत्यंत संन्तोषजनक तथा शिक्षाप्रद रहा। उनके द्वारा दी गयी अनशन की धमकी का उत्साहजनक असर हुआ और श्री गुरुवायुर मंदिर के ट्रस्टियो की ओर से बैठक बुलाकर मंदिर के उपासको की राय भी प्राप्त की गयी। बैठक मे 77 प्रतिशत उपासको के द्वारा दिये गये बहुमत के आधार पर मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को स्वीकृति दे दी गयी और इस प्रकार 1 जनवरी 1934 से केरल के श्री गुरूवायूर मंदिर में किये गये निश्चय दिवस की सफलता के रूप में हरिजनों के प्रवेश को सैद्वांतिक स्वीकृति मिल गयी।
गुरूवायूर मंदिर जिसमें आज भी गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है तथापि कई घर्मो को मानने वाले भगवान भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं। इस प्रकार महात्मा गांधी की प्रेरणा से जनवरी माह के प्रथम दिवस को निश्चय दिवस के रूप में मनाया गया और किये गये निश्चय को प्राप्त किया गया। हम सब भी नये वर्ष के प्रथम दिवस को कुछ न कुछ निश्चय अवश्य करते है।
संयम की सीख
1926 की बात है। गांधी जी दक्षिण भारत की यात्रा पर थे। उनके साथ अन्य सहयोगियों के अलावा काकासाहेब कालेलकर भी थे। वे सुदूर दक्षिण में नागर-कोइल पहुंचे। वहां से कन्याकुमारी काफ़ी पास है। इस दौरे के पहले के किसी दौरे में गांधी जी कन्याकुमारी हो आए थे। वहां के मनोरम दृष्य ने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया था। गांधी जहां ठहरे थे, उस घर के गृह-स्वामी को बुलाकर उन्होंने कहा, “काका को मैं कन्याकुमारी भेजना चाहता हूं। उनके लिए मोटर का प्रबंध कर दीजिए।”
कुछ देर के बाद उन्होंने देखा कि काकासाहेब अभी तक घर में ही बैठे हैं, तो उन्होंने गृहस्वामी को बुलाया और पूछा, “काका के जाने का प्रबंध हुआ या नहीं?”
किसी को काम सौंपने के बाद उसके बारे में दर्याफ़्त करते रहना बापू की आदत में शुमार नहीं था। फिर भी उन्होंने ऐसा किया। यह स्पष्ट कर रहा था कि कन्याकुमारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे। स्वामी विवेकानन्द भी वहां जाकर भावावेश में आ गए थे और समुद्र में कूद कर कुछ दूर के एक बड़े पत्थर तक तैरते गए थे।
काकासाहेब ने बापू से पूछा, “आप भी आएंगे न?”
बापू ने कहा, “बार-बार जाना मेरे नसीब में नहीं है। एक दफ़ा हो आया इतना ही काफ़ी है।”
इस जवाब से काकासाहेब को दुख हुआ। वे चाहते थे कि बापू भी साथ जाएं। बापू ने काकासाहेब को नाराज देख कर गंभीरता से कहा, “देखो, इतना बड़ा आंदोलन लिए बैठा हूं। हज़ारों स्वयंसेवक देश के कार्य में लगे हुए हैं। अगर मैं रमणीय दृश्य देखने का लोभ संवरण न कर सकूं, तो सबके सब स्वयंसेवक मेरा ही अनुकरण करने लगेंगे। अब हिसाब लगाओ कि इस तरह कितने लोगों की सेवा से देश वंचित होगा? मेरे लिए संयम रखना ही अच्छा है।”
"क्या हुआ बेटा?", उसने हँसते हुए पूछा।
"मुझे डर लग रहा है दाई", मोहन ने उत्तर दिया।
”डर, बेटा किस चीज का डर ?”
”देखिये कितना अँधेरा है ! मुझे भूतों से डर लग रहा है!” मोहन सहमते हुए बोला।
रम्भा ने प्यार से मोहन का सर सहलाते हुए कहा, ”जो कोई भी अँधेरे से डरता है वो मेरी बात सुने, राम जी के बारे में सोचो और कोई भूत तुम्हारे निकट आने की हिम्मत नहीं करेगा। कोई तुम्हारे सर का बाल तक नहीं छू पायेगा। राम जी तुम्हारी रक्षा करेंगे।”
भूतों से डर
रात बहुत काली थी और मोहन डरा हुआ था। हमेशा से ही उसे भूतों से डर लगता था। वह जब भी अँधेरे में अकेला होता उसे लगता की कोई भूत आस-पास है और कभी भी उसपे झपट पड़ेगा। और आज तो इतना अँधेरा था कि कुछ भी स्पष्ट नहीं दिख रहा था, ऐसे में मोहन को एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना था।
वह हिम्मत कर के कमरे से निकला, पर उसका दिल जोर-जोर से धडकने लगा और चेहरे पर डर के भाव आ गए। घर में काम करने वाली रम्भा वहीं दरवाज़े पर खड़ी यह सब देख रही थी।
"क्या हुआ बेटा?", उसने हँसते हुए पूछा।
"मुझे डर लग रहा है दाई", मोहन ने उत्तर दिया।
”डर, बेटा किस चीज का डर ?”
”देखिये कितना अँधेरा है ! मुझे भूतों से डर लग रहा है!” मोहन सहमते हुए बोला।
रम्भा ने प्यार से मोहन का सर सहलाते हुए कहा, ”जो कोई भी अँधेरे से डरता है वो मेरी बात सुने, राम जी के बारे में सोचो और कोई भूत तुम्हारे निकट आने की हिम्मत नहीं करेगा। कोई तुम्हारे सर का बाल तक नहीं छू पायेगा। राम जी तुम्हारी रक्षा करेंगे।”
रम्भा के शब्दों ने मोहन को हिम्मत दी। राम नाम लेते हुए वो कमरे से निकला, और उस दिन से मोहन ने कभी खुद को अकेला नहीं समझा और भयभीत नहीं हुआ। उसका विश्वास था कि जब तक राम उसके साथ हैं उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं।
इस विश्वास ने गाँधी जी को जीवन भर शक्ति दी, और मरते वक़्त भी उनके मुख से राम नाम ही निकला।
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