सभापर्व ~ महाभारत | Mahabharat Sabha Parv In Hindi,Lakshagrih mahabharat story, story of lakshagrih mahabharat,rajsuy yagna mahabharat story,jarasandh vadh story mahabharat,Krishna kills shishupal story of mahabharata,Gambling with shakuni and pandawa story, Pandav jua, Draupadi ka apman story of mahabharata,Pandawas asylum of 13 years story mahabharata in hindi.
सभापर्व की प्रमुख घटनाएँ
सभापर्व में मयासुर द्वारा युधिष्ठिर के लिए सभाभवन का निर्माण, लोकपालों की भिन्न-भिन्न सभाओं का वर्णन, युधिष्ठिर द्वारा राजसूय करने का संकल्प करना, जरासन्ध का वृत्तान्त तथा उसका वध, राजसूय के लिए अर्जुन आदि चार पाण्डवों की दिग्विजय यात्रा, राजसूय यज्ञ, शिशुपालवध, द्युतक्रीडा, युधिष्ठिर की द्यूत में हार और पाण्डवों का वनगमन वर्णित है।सभा-भवन का निर्माण
मय दानव सभा-भवन के निर्माण में लग गया। शुभ मुहूर्त में सभा-भवन की
नींव डाली गई तथा धीरे-धीरे सभा-भवन बनकर तैयार हो गया जो स्फटिक शिलाओं से बना
हुआ था। यह भवन शीशमहल-सा चमक रहा था। इसी भवन में महाराज युधिष्ठिर राजसिंहासन पर
आसीन हुए।
राजसूय यज्ञ
कुछ समय बाद महर्षि नारद सभा-भवन में पधारे। उन्होंने युधिष्ठिर को
राजसूय यज्ञ करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने कृष्ण को बुलवाया तथा राजसूय यज्ञ के
बारे में पूछा।
महाभारत की सम्पूर्ण कथा पढ़ें :
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जरासंध-वध
श्रीकृष्ण ने कहा कि राजसूय-यज्ञ में सबसे बड़ी बाधा मगध नरेश जरासंध
है, क्योंकि उसने अनेक राजाओं को बंदी बना रखा है तथा वह बड़ा ही निर्दयी
है। जरासंध को परास्त करने के उद्देश्य से कृष्ण, अर्जुन और भीम
को साथ लेकर, ब्राह्मण के वेश में सीधे जरासंध की सभा में पहुँच गए। जरासंध ने
उन्हें ब्राह्मण समझकर सत्कार किया, पर भीम ने उन्हें द्वंद्व-युद्ध के लिए
ललकारा। भीम और जरासंध तेरह दिन तक लड़ते रहे। चौदहवें दिन जरासंध कुछ थका दिखाई
दिया, तभी भीम ने उसे पकड़कर उसके शरीर को चीरकर फेंक दिया। श्रीकृष्ण ने
जरासंध के कारागार से सभी बंदी राजाओं को मुक्त कर दिया तथा युधिष्ठिर के राजसूय
यज्ञ में शामिल होने का निमंत्रण दिया और जरासंध के पुत्र सहदेव को मगध की
राजगदद्दी पर बिठाया।
भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव चारों दिशाओं में गए तथा सभी राजाओं को युधिष्ठिर की
अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। देश-देश के राजा यज्ञ में शामिल होने आए।
भीष्म और द्रोण को यज्ञ का कार्य-विधि का निरीक्षण करने तथा दुर्योधन को राजाओं के
उपहार स्वीकार करने का कार्य सौंपा गया। श्रीकृष्ण ने स्वयं ब्राह्मणों के चरण
धोने का कार्य स्वीकार किया।
शिशुपाल-वध
यज्ञ में सबसे पहले किसकी पूजा की जाए, किसका सत्कार
किया जाए, इस पर भीष्म ने श्रीकृष्ण का नाम सुझाया। सहदेव श्रीकृष्ण के पैर
धोने लगा। चेदिराज शिशुपाल से यह देखा न गया तथा वह भीष्म और कृष्ण को अपशब्द कहने
लगा। कृष्ण शांत भाव से उसकी गालियाँ सुनते रहे। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का
था। कृष्ण ने अपनी बुआ को वचन दिया था कि वे शिशुपाल के सौ अपराध क्षमा करेंगे। जब
शिशुपाल सौ गालियाँ दे चुका तो श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र चला दिया तथा शिशुपाल का
सिर कटकर ज़मीन पर गिर गया। शिशुपाल के पुत्र को चेदि राज्य की गद्दी सौंप दी गई।
युधिष्ठिर का यज्ञ संपूर्ण हुआ।
दुर्योधन शकुनि के साथ युधिष्ठिर के अद्भुत सभा-भवन को देख रहा था।
वह एक ऐसे स्थान पर पहुँचा जहाँ स्थल भी जलमय लगता था। दुर्योधन अपने कपड़े समेटने
लगा। द्रौपदी को यह देखकर हँसी आ गई। कुछ दूरी पर पारदर्शी शीशा लगा हुआ था।
दुर्योधन का सिर आईने से टकरा गया। वहाँ खड़े भीम को यह देखकर हँसी आ गई। कुछ दूर
आगे जल भरा था, पर दुर्योधन ने फर्श समझा और चलता गया। उसके कपड़े भीग गए। सभी लोग
हँस पड़े। दुर्योधन अपने अपमान पर जल-भुन गया तथा दुर्योधन से विदा माँगकर
हस्तिनापुर आ गया।
द्युतक्रीड़ा (जुआ खेलना)
दुर्योधन पांडवों से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। शकुनि ने
दुर्योधन को समझाया कि पांडवों से सीधे युद्ध में जीत पाना कठिन है, अतः
छल-बल से ही उन पर विजय पाई जा सकती है। शकुनि के कहने पर हस्तिनापुर में भी एक
सभा-भवन बनवाया गया तथा युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए बुलाया गया। दुर्योधन की ओर
से शकुनि ने ओर पासा फेंका। शकुनि जुआ खेलने में बहुत निपुण था। युधिष्ठिर पहले
रत्न, फिर सोना, चाँदी, घोड़े, रथ, नौकर-चाकर, सारी सेना, अपना राज्य तथा
फिर अपने चारों भाइयों को हार गया, अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ
नहीं है। शकुनि ने कहा अभी तुम्हारे पास तुम्हारी पत्नी द्रौपदी है। यदि तुम इस
बार जीत गए तो अब तक जो भी कुछ हारे हो, वह वापस हो जाएगा। युधिष्ठिर ने
द्रौपदी को भी दाँव पर लगा दिया और वह द्रौपदी को भी हार गया।
द्रौपदी का अपमान
कौरवों की खुशी का ठिकाना न रहा। दुर्योधन के कहने पर दुशासन द्रौपदी
के बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभा-भवन में ले आया। दुर्योधन ने कहा कि द्रौपदी अब
हमारी दासी है। भीम द्रौपदी का अपमान न सह सका। उसने प्रतिज्ञा की कि दुशासन ने
जिन हाथों से द्रौपदी के बाल खींचे हैं, मैं उन्हें उखाड़ फेंकूँगा। दुर्योधन
अपनी जाँघ पर थपकियाँ देकर द्रौपदी को उस पर बैठने का इशारा करने लगा। भीम ने
दुर्योधन की जाँघ तोड़ने की भी प्रतिज्ञा की। दुर्योधन के कहने पर दुशासन द्रौपदी
के वस्त्र उतारने लगा। द्रौपदी को संकट की घड़ी में कृष्ण की याद आई। उसने श्रीकृष्ण
से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की। सभा में एक चमत्कार हुआ। दुशासन जैसे-जैसे
द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र
खींचते-खींचते दुशासन थककर बैठ गया। भीम ने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुशासन की छाती
चीरकर उसके गरम ख़ून से अपनी प्यास नहीं बुझाऊँगा तब तक इस संसार को छोड़कर
पितृलोक को नहीं जाऊँगा। अंधे धृतराष्ट्र बैठे-बैठे सोच रहे थे कि जो कुछ हुआ,
वह
उनके कुल के संहार का कारण बनेगा। उन्होंने द्रौपदी को बुलाकर सांत्वना दी।
युधिष्ठिर से दुर्योधन की धृष्टता को भूल जाने को कहा तथा उनका सब कुछ वापस कर
दिया।
पुनः द्यूतक्रीड़ा तथा पांडवों को तेरह वर्ष का वनवास
दुर्योधन ने पांडवों को दोबारा जुआ खेलने के लिए बुलाया तथा इस बार
शर्त रखी कि जो जुए में हारेगा, वह अपने भाइयों के साथ तेरह वर्ष वन
में बिताएगा जिसमें अंतिम वर्ष अज्ञातवास होगा। इस बार भी दुर्योधन की ओर से शकुनि
ने पासा फेंका तथा युधिष्ठिर को हरा दिया। शर्त के अनुसार युधिष्ठिर तेरह वर्ष
वनवास जाने के लिए विवश हुए और राज्य भी उनके हाथ से जाता रहा।
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WHEN KRISHNA WAS HUMILIATED BY DURYODHNA/THE SANE ELEMENTS OF DHRITRARASHTRA COURT ADVISWD THE KING TO DISOWN DURYODHN AND PUE HIM BEFIND BARS FOR NOT REALISING THE GREATNSS OF SHRI KRISHNA AND THREATENG YO ARREST HIM.THE KING DID NOT AGREE TO THIS.-ASHOK
जवाब देंहटाएं• 5 AADI SHNKRACHARU-AANND ;LEHRI
जवाब देंहटाएं5/20 DESTROYER OF ALL DISEASES, (LTA-BEL-UMA) GETTING ILLUMINATING -GRACED-ASHOK, GRANTER OF ETERNAL BLISS,SHE IS BORN OF HIMALYA,BEAUTIFUL HANDS ARE WHOSE LEAVES,MUKTA GARLAND IS WHOSE BEAUTIFUL FLOWER..BLACK HAIRS ARE CLADDING HER AND SURROUNDING HER.LORD SHIVA IS HER PLACE OF DWELLING.SHE IS BENT DUE TO THE WEIGHT OF HER BODY PARTS.HER BEAUTIFUL VOICE IS FULL OF SWEETNESS.-PRESENTATION
हनुमान और अर्जुन
जवाब देंहटाएंअर्जुन द्वापर युग का एक बहुत बडा धनुर्धारी था. वह एक बार भगवान शिव की पूजा के लिए हिमालय जा रहा था.उसको रास्ते में एक वानर मिला. उसने वानर से उसका परिचय पूछा और अपने बारे में बताया कि वह पांडू पुत्र अर्जुन है.हनुमान ने बताया कि वह राम भक्त हनुमान हैं.
अर्जुन—अच्छा वह राम जो वानरों के साथ थे.जिन्हें समुद्र पर पुल बनाने में वानरों की मदद लेनी पड़ी थी. मुझे तो संदेह है कि वह एक अच्छे धनुर्धारी भी थे.क्या वह अपने बाणों से समुद्र पर अकेले पुल नहीं बना सकते थे.मैं तो उनसे अच्छा पुल इस तालाब पर बना के दिखाता हूँ,अभी.
हनुमान--उनके जैसा शस्त्रधारी न तो हुआ है ,न न होगा. वे तो विष्णु के अवतार थे. वे उस समय एक इंसान के रूप में थे.उन्हें वैसा ही व्यवहार करना पड़ा था. अकेले पुल बनाना उन के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था.उन की खमता पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए.उनके जैसा धनुर्धारी न कोई हुआ है न होगा. तुम जो पुल बनाओगे,वह क्या सिर्फ मेरा भार shपायेगा ? बाकी वानरों की तो बात तो दूर रही.
अर्जुन—यदि ऐसी बात हुई तो मैं आत्मदाह क्र प्राण त्याग दूंगा.अच्छा वह राम जो वानरों के साथ थे.जिन्हें समुद्र पर पुल बनाने में वानरों की मदद लेनी पड़ी थी. मुझे तो संदेह है कि वह एक अच्छे धनुर्धारी भी थे.क्या वह अपने बाणों से समुद्र पर अकेले पुल नहीं बना सकते थे.मैं तो उनसे अच्छा पुल इस तालाब पर बना के दिखाता हूँ,अभी.
हनुमान—(अपने आप)—मुझे तो इसका घमण्ड तोड़ कर इसे सबक सिखाना पड़ेगा.
अर्जुन ने बाणों से एक पुल बनाया.हनुमान जी ने उस पर एक पैर ही रखा था कि पुल टूट गया.
अर्जुन आत्मदाह के लिए तैयार हो गया.
तभी एक मुनि वहां आये.उनहोंने सब बात पूछ कर उनसे सब कुछ दुबारा करने को कहा अपने सामने .
अर्जुन ने बाणों से एक पुल दोबारा बनाया.हनुमान जी उस पर चले और कूदे भी पर इस बार पुल टूटा नहीं.
हनुमानजी ने पुल के नीचे देखा तो एक बड़े कछुए ने उसे अपनी पीठ पर उठाया हुआ था.हनुमानजी को मुनि राम के रूप में दिखे. उन्होंने हनुमानजी को कौरवों पांडवों के युद्ध में अर्जुन के झंडे पर बैठ्ने और उसकी मदद करने का आदेश दिया.जिसे हनुमानजी ने सहर्ष मान लिया.
अब मुनि ने कृष्ण के रूप में बदल कर उसे घमंड न कर हनुमानजी से क्षमा मांगने को कहा.अर्जुन का घमंड चूर चूर हो गया था.उसने वैसा ही किया.
अशोक
अर्जुन-हनुमान की यह कथा सुंदर और सराहनीय है । एक आध वर्तनी की त्रुटि दूर करने की कृपा करें यथा-- खमता केस्थान पर 'क्षमता' तथा उनहोंने के स्थान पर उन्होंने लिखें
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