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यह
कैसा पौरुष
?
काव्य:
“ घटाटोप अन्धकार , पर अनश्वर तेरा समर्थ अर्ध तेरे ही साथ है।
नारी क्षमा करना मुझे, आज मेरी इन्द्रियां खुद पे यह विश्वास करने से रोकती है.
स्वमत त्यागी विकृत पुरुषो की इस भूमि में, मेरा मर्द होना कचोट रहा आज,
अशांत हृदय को कल समझा लेंगे हम, पर मेरी असमर्थता इस दूषित पौरुष का सर्वनाश करने से रोकती है!!
पराकाष्ठा - कितने गिर गए हम पुरुष आज, नीच ने शिशु तक का महत्व तो समझ लिया होता।
समझना तो तेरी योनि में ही नहीं था, कमबख्त अपनी बहन अपनी बेटी का तो स्मरण किया होता !
उस दिन माँ वो नारी तुझे जन्म न देती, शायद बालक जान ही शिशु हत्या कर देना था।
तेरे शुक्र तेरी अग्रिम दुम नष्ट कर देती , या तेरा बधिया करा देना था ?
कलंकित कर दी है तूने संपूर्ण मानवता, आत्मा मेरी पुरुषो के इंसान होने पे आस करने से रोकती है !
शांति कितनी भी हो वातावरण में , बाह्य शांति अर्थ रहे क्यों ?
अंदर है जो आग लगी, उसकी ज्वाला व्यर्थ रहे क्यों?
लेकर दम्भ जाली पौरुष का, उच्चता का बकवास करने से रोकती हैं ।
असंख्य कारण अंकित कर लो मगर, तुच्छ मानसिकता का निर्वास करने से रोकती हैं ।
हाँ , नारी क्षमा करना मुझे, आज मेरी इन्द्रियां खुद पे यह विश्वास करने से रोकती है !!
उपसंहार:
नव वर्ष
के अवसर पर बंगलुरु में जो हुआ उससे सभी अवगत हैं । भारतवर्ष के तहज़ीब में स्त्रियों का आज कितना महत्व बचा रह गया है, ऐसी घटनाएं इस पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है । दरअसल "ऐसी घटनाएं क्यों हो रहीं हैं?" यह प्रश्न ही गलत है ; पहले यह प्रश्न पूछें की ऐसे कार्य करते कौन हैं? क्या वो लोग हम में ही से कुछ नहीं हैं? ऐसे लोग दूसरे ग्रहों से
नहीं आये हैं । वो हमारे ही बीच रहते हैं और बिलकुल सामान्य लोगो की तरह । उनकी मानसिकता बिलकुल वही है जो पुरुषों में सामान्यतः पायी जाती है, भले ही वो कितनी भी ऊँची शिक्षा या ओहदे से हों । और जो कुछ लोग अपनी मानसिकता अपने कुकर्मों में
प्रदर्शित कर देते हैं, तो इसका अभद्र रूप सामने आता है। दोष
अकेला पुरुषों का नहीं है, पूरी सभ्यता ने ही कुछ ऐसा रुख लिया है ।
क्या हम इन
सब के बीच एक सामान्यवता भरे शांत वातावरण की कल्पना कर सकते हैं ?
वातावरण को कितना
ही शांत
कर लो , मन की कचोट शांत नहीं की जा सकती ।
यह स्वतंत्र
युवा जो नए वर्ष का जश्न मानाने के लिए अपने दोस्तों के साथ घूम रहा होता है, वो शायद गलत नहीं भी हो, लेकिन
कुछ दुसरो की मानसिकता ऐसी है कि उनकी आँखों इन बातों को एक अलग अर्थ है। उनके लिए, सभी महिलाएं जो अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहीं हैं, उनका ढीला चरित्र है और सभी शायद
अपने पुरुष
सहयोगियों के साथ आज रात ऐसे
अस्वीकर्णीय काम करेंगीं जो
भारतीय परवरिश के खिलाफ है । स्वयं जब आप महिलाओ को उनकी इच्छा के विपरीत छेड़ रहे हो तो पाप की अवधारणा को आसानी से क्यों भूल जाते हो ? क्या यह भारतीय परवरिशानुसार है? और क्या यह धारणा सिर्फ उन आधुनिक अर्वाचीन युवतियों के लिए ही है?
दुर्भाग्यवश , नहीं । ऐसी मानसिकता सिर्फ उन युवतियों के लिए नहीं हैं । अप्रैल २०१३ में दिल्ली में एक ५ साल की बच्ची का बलात्कार हुआ ? क्या वहां भी नौजवान नवीन युवतियों की अभद्रता की बात थी? सच्चाई तो यह है की यह कुछ पुरुषों की मानसिकता का मसला है, और कुछ नहीं । ऐसी कुछ ही घटनाएं प्रकाश में आतीं हैं, बाकी कहीं अँधेरे में ग़ुम हो कर रह जातीं हैं,
जैसे कि ऐसी
घटनाएं झेलने वालीं बच्चियों की ज़िन्दगी।
क्या ऐसे में खुद का पुरुष
होना दुर्भाग्यशाली नहीं महसूस होता ? ये कैसा पौरुष है ? क्या जिस नारी ने हमे जन्म दिया उसका ऋण ,इतनी सी ग्लानि उत्पन्न करने को भी प्रयाप्त नहीं है?
- गौतम कुमार मंडल
कवि परिचय(About the Author):
Mr. Gautam Mandal is currently pursuing his PGP in management from IIM Ahmedabad, India. He completed his B.Tech. in Mechanical engineering from NIT, Trichy in 2013 after which he worked as Manager Operations at Tata Steel Ltd, Jamshedpur for 3 years.
First ever to score 3 consecutive 10 GPAs in his department, Gautam has published papers in International journals & conferences. As Manager Operations, he achieved the best ever production in his shop. He is a district level athlete & an avid poet.
His interest in Hindi Literature comes from the fact that he spent his early childhood in a rural backdrop spending a lot of his time sitting with priests and reading Hindi scriptures. His love for Hindi was further bolstered when he started reading Psychology Honours books out of interest during his teenage, all in Hindi. Since then, he started writing poems and articles on various current affairs, nature and environment sustainability, feminism and meaning of life.
गौतम कुमार मंडल जी, सुंदर, बढ़िया, लाजवाब आर्टिकल,
जवाब देंहटाएंThanks a lot, M'am !
हटाएंVery nice article .... Thanks for sharing this!! :) :)
जवाब देंहटाएंGautam mandal ji, aapka article sabhi ko soch ne par majbur karne vala hain ki aaj apne desh me jo bhi kuch mahilao ke sath ho raha hain usme galti kiski hain?
जवाब देंहटाएंगौतम मंडल जी बहोत खुब लिखा है आपने , मैं saurav raj mandal, मैं भी management का छात्र हु , chandigarh university में अध्ययन कर रहा हु ,और हिंदी लेखन में , कविताएं लिखने में रूचि रखता हु .
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