Essay on Beti Ankesh Dhiman, Beti essay by Ankesh Dhiman, Essay on Bahu Beti
हमारा देश आज भी पुरूष प्रधान है महिलाओं की बात करे तो आज भी कुछ जगहों पर उन्हें पुरुषों के पैर की जूती की मानिंद समझा जाता है। बहु-बेटियों के साथ भी पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया जाता है उदाहरण के तौर पर जैसे बेटी के विवाह के दौरान लडक़े के बारे में बेटी की इच्छा न जानना, घर में कोई भी शुभ कार्य के दौरान या कोई महत्वपूर्ण कार्य के दौरान बहुओं-बेटियों से विचार-विमर्श न करना। कई घरों में तो बहुओं को दूसरे की बेटी समझ कर दहेज के नाम पर शोषण किया जाता है, जिसके चलते बहुओं के साथ पारिवारिक विवाद चरम सीमा पर पहुंचा जाता है कि या तो घर की बहू को आत्महत्या करनी पड़ती या फिर उसे तलाक जैसे अस्त्र का प्रयोग कर सदा के लिए उक्त घर को अलविदा कहना पड़ता है या फिर ससुराल पक्ष द्वारा मौत के घाट उतार दिया जाता है। ससुराल पक्ष के लोग यहां तक भूल जाते है आखिर उनकी बहन बेटी भी किसी के घर में बहू बनकर गई होगी।
जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का आदर सम्मान होता है वहां देवता अर्थात दिव्य गुण और सुख समृद्धि निवास करते है और जहां इनका अनादर होता है वहां अनादर करने वाले व्यक्तियों के सभी कार्य निष्फल हो जाते है भले ही वे कितने ही श्रेष्ट कर्म कर ले और उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है। ~ मनु स्मृति
दूसरी तरफ यदि हम चर्चा करे बहू बेटी वह भी ससुराल में कुछ गलतियां कर बैठती है जो कि ससुराल पक्ष के लोगों को रास नहीं आती जिसकी वजह से दोनों पक्षों को काफी समस्याओं को सामना करना पड़ता है, बहू बेटियों को चाहिए कि ससुराल पक्ष की बातों को सुसराल में रहने दे और अपने पियहर की बाते अपने पियहर में रहने दे। क्योंकि हर परिवार के अपने कुछ नियम व सिद्धांत होते है। तब कुछ हद तक बहू-बेटियों का जीवन खुशहाल हो सकता है। हालांकि स्त्री पुरुष के बिना समाज की संरचना स्वाभाविक नहीं है अगर बात करें कन्या की, कन्या के ही तीन रूप है जैसे कि बेटी बहू और मां, मां से ही आज हमारा इस मृत्यु लोक में अस्तित्व है, वह भी सब कन्या की देन है। सब कुछ जानते हुये आज के कुछ व्यक्ति
इतने मूर्ख व ढ़ीठ है कि उनका बहू बेटियों को देखने का नजरिया बड़ा ही विचित्र है। यदि किसी व्यक्ति की बहन -बेटी किसी रास्ते गुजर रही हो तो मनचले व्यक्तियों द्वारा उक्त बेटी पर तरह-तरह के टोंट कसे जाते है या फिर अभद्र टिप्पणी की जाती है यहां तक मनचले व्यक्तियों को यदि मौका मिले तो वह बहू-बेटियों के साथ दुराचार करने से भी नहीं चूकते जिसका अंदाजा हम गत वर्षों में दिल्ली में हुये दामिनी कांड, मुजफ्फरनगर में हुआ कबाल कांड जिसने बाद में संप्रदायिक दंगे का रूप ले लिए था , सोनीपत के मुर्थल कांड व बुलंदशहर कांड से लगा सकते है उक्त व्यक्ति ये भूल जाते है आखिर उनके यहां भी तो किसी बेटी-बहन ने जन्म लिया होगा। हालांकि उ.प्र की मौजूदा सरकार ने इस विषय का ध्यान में रखते हुए एंटी रोमियों दल का गठन कर बहुत ही सराहनीय कदम उठाया है, यदि ऐसा ही कदम हर राज्य में उठाये जाये तो हो सकता है आने वाले समय में हमारी बहु बेटियां अपने आप को कुछ हद तक महफूज महसूस करें।
अजीब सी विड़म्बना है कि पति द्वारा तीन बार तलाक कह देने पर एक बहन-बेटी अपना घर-वर, बच्चे सब कुछ गवा देती है। आखिर ऐसा क्यों? हमारे संविधान में तो लिखा है कि भारतीय कानून भारत के प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए बराबर है परंतु एक विशेष धर्म की बेटी के साथ ऐसा क्यों? आखिर वह भी तो एक बेटी है और भारत की नागरिक है। जबकि उक्त मामला माननीय सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है देश एक बड़े नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इस बारे में कहा है कि देश फतवो या फिर शरियत से नहीं चलता संविधान सभी के लिए एक समान है चाहे वह किसी भी धर्म विशेष से क्यों न संबंध रखता हो।
यदि घर में लडक़ा जन्म ले ले तो बड़े ही धूम-धाम से सामाजिक परम्पराओं को निर्वाह करते हुए परिवार वालों द्वारा आज पड़ोस में मिठाइयां वितरित करने साथ -साथ संबंधित परिवारों में अपनी तरीके से खुशियां दिल खोल कर मनाई जाती है इसके विपरीत यदि लडक़ी का जन्म हो जाये तो कुछ व्यक्ति की मानसिकता तो इतनी तुच्छ है कि उसकी शारीरिक व मानसिक स्थिति तो ऐसी होती है मानो अनेक समस्याओं का पहाड़ उक्त व्यक्ति के सिर पर टूट पड़ा हो ऐसी मानसिकता रखने वाले व्यक्ति ही कन्या भू्रण हत्या या फिर बेटियों से पक्षपात पूर्ण व्यवहार करना या फिर बेटियों को घिनौनी दृष्टि से देखना ही उनका लक्ष्य होता है। और ऐसे व्यक्ति ही अपनी घिनौनी मानसिकता के चलते कन्या भू्रण हत्या को बढ़ावा देते है। जिसके चलते देश के कुछ राज्य में पुरुष व स्त्री के लिंगानुपात में अंतर है। यदि जल्द ही लिंगानुपात के लिए कदम नहीं उठाये गये तो गंभीर परिणाम हमें उठाने पड़ सकते है बेटियों को प्रति उक्त मानसिकता रखने वाले नीच प्राणी तनिक क्षण के लिए यह विचार नहीं करते की बेटियां भी तो बेटों से कम नहीं है यदि बेटियों को भी लडक़ों समान शिक्षा-दीक्षा व संस्कार मिले तो वो भी अपने माता पिता व देश का नाम रोशन करने में कम नहीं है।
जिसके ज्वलंत उदाहरण है जैसे- इन्द्रा गांधी, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, सुमित्रा, सुषमा स्वराज, लता मंगेशकर, आशा भौंसले, सुनिता विलीयम्स, कल्पना चावला, गीता फोगट, मैरी कॉम, सानिया नैहवाल, सानिया मिर्जा, दीपा मलिक, पी.वी सिंधू, ये बेटियां ही तो है जिन्होंने देश-विदेश में भी अपने शौर्य का परिचय देते हुये अपने माता पिता व देश का नाम रोशन किया, धन्य है वो स्त्री-पुरुष जिन्हें एक भी बेटी का माता-पिता कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ क्योंकि वो पुत्री अपनी माता पिता के लिए राजकुमारी से भी बढ़ कर होती है। चाहे व्यक्ति कितना भी दरिद्र हो। वर्तमान समय में कुछ सामाजिक संस्थाओं के अथक प्रयासों व सरकार द्वारा क्रियान्वित योजनाओं (बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या योजना) द्वारा इस सामाजिक विषमता में कुछ परिवर्तन अवश्य आया है जिसके चलते कुछ घरों में कन्या के जन्म होते ही खुशियां मनाई जाती है सभी सामाजिक परंपराओं का भी निर्वाह ऐसे ही किया जैसे लडक़े होने पर किया जाता है।
अन्त: में लेखक परमपिता परमेश्वर से स्तुति करता है कि ऐसा पुरुष वर्ग अपनी बच्चियों के प्रति अपनी नकारत्मक सोच को बदल कर सकारात्मक सोच के साथ अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारी व सुदृढ़ बनाने के लिए व राष्ट्र को उन्नति की ओर अग्रसर करने के लिए बेटियों को बिना पक्षपात के शिक्षित व स्वावलम्बी बनाने में सहयोग प्रदान करे ताकि भारत का भविष्य महीला सशक्तिकरण के माध्यम से विश्व पटल पर स्वर्णिम हो। किसी महापुरुष ने बेटी के बारे में ठीक ही लिखा है।
घर की सब चहल-पहल है बेटी,
जीवन में खिला कमल है बेटी।
कभी धूप गुनगुनी सुहानी,
कभी चंदा शीतल है बेटी।।
शिक्षा गुण संस्कार रोप दो,
फिर बेटों सी सबल है बेटी।।
सहारा दो अगर विश्वास का,
तो पावन गंगा जल है बेटी।।
प्रकृति के सद्गुण सींचो,
तो प्रकृति सी निश्चल है बेटी।।
क्यों डरते हो पैदा करने से,
अरे आना वाला कल है बेटी।।
आज ये अदना सा लेखक भी बड़े गर्व से कह सकता है उस को भी एक पुत्री है जो कि लेखक के लिए एक राजकुमारी से कम नहीं है ।
अंकेश धीमान (विवेक धीमान)
बुढ़ाना/ जिला मु.नगर (उत्तर प्रदेश)
Email Id :-licankdhiman@rediffmail.com
licankdhiman@yahoo.com
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