जलने के बाद ~ रफ़ी अहमद “रफ़ी” ~ भाग २

Jalne Ke Bad- Rafi Ahmad Rafi Part 2, A wonderful Novel abour real life incidents in Hindi by Rafi Ahmad Rafi

इस उपन्यास के पहले भाग को नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ें:


-21-
          ’’तूं ही समझा रवि इस शेखर के बच्चे को !..... साला क्या समझता है अपने आप को - जब देखो - कानून की खिचड़ी पकाता है !......’’ किशोर भिन्नाते हुए बोला ।
          ’’और तूं हर वक्त अपने गधे जैसी राग अलापता रहता है !.....’’ शेखर फौरन बोला ।
          ’’मगर मैं तो बिल्कुल खामोश था !..... तूने ही खामख्वाह मुझको छेड़ा !...’’
          ’’खामोश कब था बे !......सब लोग हंस रहे थे और तूं मुंह फुलाये चल रहा था !....’’
          ’’ये लो !........ मेरा मुंह है !.........फलाऊं या किसी को काट खाऊं !....... इससे तुम्हे क्या ? ........’’ किशोर ने कहा ।
          ये दोनों झगड़ रहे थे - और अन्य मित्र महाशय बड़ी दिलचस्पी सें मजा ले रहे थे । इससें पहिले कि शेखर कुछ कहता रवि ने प्रसंग बदलने के उद्देष्य से विनोद से पूछा, ’’क्यों विनोद !..... तुम्हारा काम हो गया ?.....’’ रवि के यकायक प्रश्न करने से विनोद शर्मा गया । और किशोर तथा शेखर अपना झगड़ा भूल कर विनोद की तरफ देखने लगे । विनेद सभी मित्रों को अपनी तरफ देखता पाकर कुछ घबरा सा भी गया ।
          ’’अब्बे !.... विनोद के बच्चे हमने ये नहीं पूछा कि वो साली तुम्हारी प्रेमिका किस तरहा शर्माती है !....... अब ये शर्माना छोड़ और फटा फट बता छोकरी पटी या नहीं !........’’ रमेश विनोद को चुप पाकर कहे बगैर ना रह सका ।
          ’’न - ही !....’’ कहने के साथ विनोद ने थूक निगला ।
          ’’खबरदार !......... यारों की अदालत में झूठ मत बोलो विनोद वरना तूम्हे बड़ी सख्त सजा मिल सकती है !....’’
’’आई ओबजेक्ट योर ऑनर !..... मेरे मुवक्किल को धमकाया जा रहा है । जबकि उसने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि उसने प्रेम करने जैसा कोई अपराध नहीं किया है !........’’ शेखर के प्रत्युत्तर में राकेश प्रतिवादी वकील बनकर उठ खड़ा हुआ था ।
          ’’माफी चाहता हूं मी लौर्ड !..... मगर मेरे वकील दोस्त ये भूल रहे है - कि अभियुक्त की स्थिति स्वयं ही इस बात का प्रमाण है कि उसने प्रेम जैसा खतरनाक अपराध किया है !..... गौर से देखिये योर ऑनर अभियुक्त की ओर !...... इसकी नींद से बोझिल झुकी-झुकी सी आंखे - कम्प-कम्पाते हुए होंठ - सूरत पर किसी लुटे - हुए मुसाफिर के से भाव !...... क्या ये सब इस बात के प्रमाण नहीं कि अभियुक्त के दिल में किसी संगीन जुर्म की भावना घर कर गई है !....’’ शेखर सरकारी वकील की शैली में दहाड़-सा उठा ।
’’तुम अपने बचाव में कुछ कहना चाहो तो अदालत तुम्हें इस बात की मुहलत देती है !.....’’ रवि ने अपने स्वर में बुजुर्ग जज की सी गंभीरता लाते हुए कहा ।
          ’’मैं अपना जुर्म कबूल करता हूँ यॉर ऑनर !......’’ विनोद जैसे हथियार डालते हुए बोला ।

-22-
          कुछ क्षणों तक खामोशी छायी रही-तत्पष्चात् रवि का गंभीर स्वर गूंज उठा, ’’चूंकि मुजरिम ने अपने जुर्म को कबूल कर लिया है - इसलिए यह अदालत मुजरिम विनोद वल्द हरीश कुमार को भारतीय प्रेम संहिता की धारा 464 (डी) के तहत सभी मित्र महाशयों को जलपान देने की सख्त सजा सुनाती है !....’’
          ’’हिप-हिप-हुर्रे ! हिप-हिप-हुर्रे !....’’
          सभी मित्र महाशय खुशी से उछलने लगे ।
          ’’क्यों दोस्तों !..... कैसी लगी यह अदालत ?..........’’ शेखर ने पूछा ।
          ’’बिल्कुल थर्ड-क्लास !....’’ किशोर नें मुंह बिचकाते हुए कहा ।
          ’’अब्बे नालायक !.......तुम्हे हमारी अदालत पसन्द कैसे आयेगी ?...... तुम्हें तो हमारे साथ नहीं बल्कि गधों के झुण्ड में होना चाहिए ताकि वो रेंके तो तुम्हें अच्छा लगे और तुम रेंको तो वे तुम्हें अपनी बिरादरी का समझ कर गले से लगा लें !....’’
          हंसी का एक मिश्रित ठहाका गूंज उठा था । किशोर ने अपने आप को कुछ अपमानित सा महसूस किया । वह कुछ उदास हो गया ।
          ’’शेखर !......मजाक की भी कोई सीमा होती है चलो किशोर से माफी मांगो !.....’’ प्रकाश से किशोर की उदासी देखी नहीं गई ।
          ’’यारों में सब-कुछ चलता है प्रकाश !......’’
’’खाक चलता है !...... कभी-कभी एक छोटा सा मजाक दो दिलों के बीच ऐसी दरार पैदा कर देता है जिसको पाटना बहुत मुष्किल हो जाता है !....’’
’’अच्छा भई ! तुम कहते हो तो लो कान पकड़ता हूँ !.......’’शेखर के हाथ अपने कानों तक पहुँच गये थे ।
’’ऐसे नहीं किशोर के आगे पकड़ो !....’’
’’ओफ्फोह !............. किशोर तूँ कहे तो मै मुर्गा बन जाऊं और बाँग लगाने लगूं !.......’’
शेखर ने कुछ इस अन्दाज में का कि - किशोर सहित सभी हंस पड़े ।
            
मामी ने सारे घर को सर पर उठा रखा था । कभी इस कमरे में जा रही थी कभी उसमें । कभी रसोई घर में घुसकर बहु को हिदायत दे रही थी । राजेश को यह पसन्द है वो पसंद है - आज मामी के पैर जैसे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे ।
          रवि के प्रवेश करते समय मामी रसोई घर से निकल रही थी । उसने उसे देखा तो बड़बड़ा उठी, ’’लो आ गया साहबजादा ! ....’’ फिर पांव पटकते हुए कमरे में घुस गई ।

-23-
          रवि अपने कमरे की तरफ बढ़ा - वहां शांता बैठी हुई सुई-डोरे सें अपनी फटी साड़ी को पैबन्द लगा रही थी ।
          ’’आज क्या बात है मां ?........मामी इस तरहा ...........’’
          ’’राजेश शहर से आया है !....’’
          ’’ओह !.......’’ रवि सब समझ गया । राजेश अपने ननिहाल कानपुर से लौटा था । मामी ने उसे वहीं पढ़ने भेजा था - मामा से बहुत झगड़ने के बाद । तभी तो आज जैसे सारे घर में दीवाली आ गई है ।
          रवि के मामा के दो लडके और एक लडकी थी । बड़ा लड़का रंजीत जो अहमदाबाद में किसी मिल में नोकरी करता था । छोटा ये राजेश - और सबसें छोटी लड़की सुमन । राजेश आज दो साल बाद ननिहाल से घर आया था । सुमन नवीं क्लास में पढ़ रही थी । बड़े लड़के रंजीत की शादी कर दी गई थी । उसके एक बच्चा भी था ।
          यद्यपि मामा का परिवार कुछ खास बड़ा नहीं था । मगर फिर भी मामा की छोटी - सी दुकान उसका भार वहन करने में असमर्थ थी । अब मामा भी काफी बूढे हो चले थे । इसलिए रंजीत को जल्दी ही काम पर लगा दिया गया था । उन दोनों के आ जाने सें भी मामा के घर का दायित्व कुछ और बढ़ गया था ।
          रवि को अच्छी तरह याद है वो दिन जब राजेश को लेकर मामा - मामी में काफी विवाद हुआ था । मामी राजेश को अपने मायके भेजना चाहती थी । मगर मामा इसके लिए तैयार ना थे । ‘‘अरे तुम क्यों मेरी इज्जत उतारने पर तुली हो यहीं रवि के साथ पढ़ता रहेगा ! .......... ‘‘ मामा ने समझाना चाहा।
          ‘‘ यही तो मैं कहती हूॅ - उस मुए रवि कों एक धन्धे पर क्यों नहीं लगा देते !........ आज कल वैसे भी पढ़ाई में क्या रखा है ! बी.ए.,एम. ए. तेल बेचते है ! .....‘‘
          ‘‘सावित्री ! खबरदार ! ....... जो आइन्दा रवि के बारे में ऐसा कहा ! मैं तो राजेश और रवि में कोई फर्क नहीं समझता ! जैसा राजेश वैसा रवि ! ......‘‘
          ‘‘हॉ ! हॉ! ...... मैं फर्क समझती हूॅ - अरे यहां तो ऐसे ही घर चलाना भारी पड़ रहा है । फिर दो - दो लड़को व एक लड़की की साथ - साथ पढ़ाई ! ....... राम जाने क्या होगा इस घर का ! ........‘‘ सावित्री ने जैसे अपने आपको कोसते हुए कहा ।
          ‘‘ ठीक है ! ........ तुम कहती तो हो ही कि पढ़ाई में क्या रखा है - तो फिर क्यों न दोनों को साथ-साथ किसी काम पर लगा दूॅ - इससें घर की आमदनी में कुछ सुधार ही होगा ! .......‘‘
          ‘‘ नही - मै अपने राजेश को पढ़ाऊॅगी ! ......... रंजीत भी इन लोगों की वजह से ज्यादा नही पढ़ सका ! .........‘‘
          ‘‘ बड़ी स्वार्थी हो तुम ! .......सावित्री तुम्हारे तो दो बेटे है - मगर किसी मां के तो एक ही बेटा है ! ........‘‘ मामा का स्वर कुछ भारी हो गया था ।
         

-24-
          ‘‘ तभी तो कहती हूॅ कि राजेश को वहा जाने दो इससें सिर्फ रवि और सुमन की पढाई का ही खर्च उठाना पड़ेगा ! .........‘‘ मामी ने मौका पाकर अपना दांव चला दिया । 
          और रवि के लिए मामा ने हथियार डाल दिए थे ।  रवि जो हमेशां की तरह उस दिन भी सब कुछ सुन रहा था ।  उसकी आंखें छलछला उठी थी ।  वो होठों ही होठों में बुदबुदा उठा था,’’कितने अच्छें हो तुम मामा !...... कितने महान् !!.....’’  रवि सोच  रहा था कि वह ऐसे व्यक्ति के अहसानों का बदला किस तरह चुकाएगा ।
’’रवि ! ...... इतना सोचा मत करे बेटा ! .....’’  मां ने उठते हुए कहा ।  वह अपनी साड़ी के पेबन्द लगा चुकी थी । 
          प्रत्युत्तर में रवि के होठों पर आ गई थी वो ही घायल सी मुस्कुराहट । 
          श्अच्छा देखो मैं रसोई घर में जाती हूँ- बहुरानी का हाथ बंटाने - तुम राजेश से नहीं मिलोगे क्या ? .......“
          ”मिल लूंगा मां ! .......“  रवि ने सिर्फ इतना ही कहा । 
          रवि जब कमरे में घुसा तो मामी, राजेश तथा सुमन किसी बात पर जोरों से हंस रहे थे ।  रवि को देखकर मामी की हंसी रूक गई ।  उसने कुछ इस तरहा मुंह बिचकाया मानो बहुत ही अप्रिय वस्तु के दर्षन हो गए हों ।
          ”अरे रवि ! ...... आओ !   आओ ! ......“ राजेश ने रवि को देखा तो  बोल उठा ।  रवि मुस्कुराने की कोशिश करता हुआ खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
          ”राजेश बेटा ! ........ तुम जल्दी ने नहा लो मैं खाना लगाती हूं !.....” मामी ने उठते हुए कहा ।
          ”और सुनाओ कैसे हो ? ......“
          ”अच्छा ही हूँ ! ......“
          ”पर्चे ठीक हो गए ? ........“
          ”आँ - हाँ ! ....... ठीक ही हो गए। .......“
          अभी इन दोनों के मध्य बातचीत शुरू भी नहीं हुई थी के मामी का तेज स्वर सुनाई दिया, ”राजेश बेटे ! ......“
          ”अच्छा मैं चलता हूं !......“ रवि कहता हुआ अपने कमरे की तरफ बढ़ गया ।  वे समझ गया था - कि मामी को उसका राजेश से ज्यादा बात करना पसन्द नहीं है।
          रवि फिर अपने कमरे में बैठा सोच में डूबा हुआ था - ये कम्बख्त सोचना तो उसके साथ लगा ही रहा था - तब से जब से वह कुछ - कुछ समझने लगा था ।
            
          खिलाखिलाहट फिर गूंज उठी ।
          ”तो आपके ये दोस्त ऐसा ही समझते हैं ! ......“ हंसते हुए नीलम ने कहा ।
          ”हां नीलम जी ! ....... आप खुद ही बताइए एक जवान लड़का और लड़की अकेले में चोरों की तरह मिलते हो तो फिर और क्या सोचा जा सकता है ? ........“
         

-25-
          प्रकाश की बजाय रवि बोल उठा ।
          “वैसे आपका  ऐसा सोचना ज्यादा गलत भी नहीं है ।.......”  यकायक नीलम गंभीर हो गई थी ।
          “तो इसका मतलब है - तुम भी यही सोचती हो । ......” प्रकाश बोल उठा ।  वो रवि के सामने पहली बार  आप से तुम पर उतर आया था । 
          “हाँ प्रकाश ! ........ तुम्हारे दोस्त ज्यादा गलत नहीं है ! ........”
          रवि विस्मित-सा नीलम की ओर देख रहा था - बड़ी रहस्यमयी-सी लग रही थी यह लड़की उसे ।
          “आप इसका कारण जानना चाहेंगे ? .......” रवि को अपने ध्यान में डूबे देखकर नीलम बोली ।
          “नीलम जी ! ...... आप कृपया मुझे ये बार-बार आप न कह कर यदि मेरा नाम लेकर ! ........” रवि को अपने लिए बार-बार आप का उच्चारण अटपटा सा लग रहा था - वो बोल उठा ।
          “मगर आप भी तो मुझे नीलम जी कह रहे हैं ! .......” रवि की बात काटते हुए नीलम बोली । 
          “वो तो आप - मुझसे बड़ी है नां ! ....... इसिलए !  मगर मैं तो आपसे छोटा हूँ इसलिए प्लीज ! ......”
          “तो - सुनो ! ....... तुम यही जानना चाहते हो ना - कि मैं प्रकाश को इस तरहा अकेले में क्यों बुलाती हूँ ! .......”
          “हाँ ! .......”
          “देखो रवि ! ...... ऐसा है मेरा यहां - इस उजाड़ जगह पर रहने का कारण तो तुम जान ही चुके हो ! ......”
          “हाँ ! ....... आप यहां लिखना चाहती है ! ......” रवि ने कहा ।  उसे याद था कि प्रकाश ने उसे बताया था कि नीलम लेखिका बनना चाहती है ।
          “दरअसल लिखने में मेरी एक कमजोरी है रवि ! ........”
          “वो क्या ? ........” रवि ने कुछ विस्मित मुद्रा में प्रश्न किया ।
          “वो ये कि मैं सीधे तौर पर अपने भाव कागज पर नहीं उतार सकती - सिर्फ बोल सकती  हूं ! ........”
          “और ऐसे मे एक साथी होना जरूरी है - जो आपके बोलने के साथ-साथ लिखता चला जाए ! ......” रवि ने कहा ।
          “जाहिर है ! ......” नीलम  मुस्कुराते हुए बोली ।
          “और वो साथी है - प्रकाश ! ........” रवि ने भी मुस्कुराकर  कहा ।
          “क्यों रवि अब तो  मान गए-मैं गलत नहीं हूँ !....” प्रकाश ने सफाई पेश की।
          “वाह भई !.... कमाल है !....प्रकाश, नीलम जी  की बात सच हो सकती है-मैं एक ऐसे साहित्यकार को जाती तौर पर जानता हूंँ-जो नीलम जी की तरहा बोल कर अपनी रचनाऐं लिखवाते हैं ! .......”

-26-
          “चलो तुम्हारे मन  से संदेह हट गया ! ........ अच्छा ही हुआ ! .......” नीलम हंसते हुए बोली ।
          “चलो नीलम जी ! फिर भी-दो जवाँ दिल तन्हाई में हो तो बहक सकते हैं!...”
          “बेशक बहक सकते हैं ! मगर जब मैंने पहले - पहल प्रकाश को यहां बुलाया था - तो एक शर्त रखी थी ! ........”
          “शर्त !!”
          “हाँ शर्त ! ....... मैंने प्रकाश से कहा था कि अगर हम बहक गए तो ........ मैं इससे शादी नहीं करूंगी - और कुछ करके मर जाऊँगी ! .......”
          “तब से कई ऐसे क्षण आते रहे हैं - जब ये बहकने लगी तो मैंने सम्भाल लिया और मैं बहकने लगा तो नीलम ने ! ....... ” इस बार प्रकाश बोल उठा ।
          “नीलम जी ! ...क्या आप जासूसी उपन्यास लिखना चाहती हैं !.....आई मीन डिटैक्टिव नॉवेल !....” रवि ने अचानक प्रश्न किया ।  रवि के इस प्रश्न पर दोनों चौंक उठे । 
          “मैं समझी नहीं रवि ! .......”
          “अरे भई ! ....... सीधी-सी बात है- मुझे तो आप दोनों किसी जासूसी उपन्यास के पात्र से लगते हैं ! .........”
          “वो कैसे  रवि ? .......” दोनों एक साथ बोल पड़े ।
          “वे तो आप भी समझ सकती हैं !.....खैर नीलम जी !......कुछ और सवाल करूं आप से !.........”
          “षौक से ! ........”
          “फर्ज कीजिए आप इस तरह वीराने में अकेली रहती हैं ! कभी प्रकाश की जगह कोई गुंडा बदमाश आ जाए तो ? .........”
          रवि का सवाल सुनकर नीलम तथा प्रकाश दोनों हंसने लगे ।  रवि  आष्चर्य से आंखें फाड़े उन्हें देख रहा था ।  जिस सवाल पर दोनों को गम्भीर होना चाहिए था  दोनों हंस रहे थे - मानो रवि ने कोई बेवकूफी  की हो ।
          “मुझसे कोई गलती हुई ?...... ” रवि को फिर बोलना पड़ा । 
          “नहीं ! ......रवि तुमने अभी कहा ना कि - प्रकाश की जगह कोई गुण्डा बदमाश आ जाए तो !....... तो !.......” कहने के साथ नीलम के खूबसूरत चेहेरे पर कठोरता आ गई और यकायक उसके हाथ में रिवाल्वर चमक उठा ।
          “अरे ! ......... आप तो काफी खतरनाक मालुम पड़ती हैं ! ...........” रवि ने कुछ ऐसे भोलेपन से कहा कि प्रकाश और नीलम फिर खिलखिलाकर हंस पड़े ।
अच्छा नीलम जी ! ........ अगला सवाल करूं ? ........”
यार रवि ! ........तूँ सवाल बहुत करता है - आज ऐसे ही वक्त गुजारने का इरादा है क्या ?....... प्रकाश ने कुछ खीझ भरे स्वर में कहा ।
माफी चाहता हूं दोस्त ! ........ मगर मैं अपने दिल में  कोई सन्देह रखना नहीं चाहता  ........”         

-27-
          ’’हां तुम पूछो रवि !...मै तुम्हारे सभी सवालों का जवाब देने को तैयार हूँ !...’’ प्रकाश के कुछ कहने से पहले नीलम बोल उठी ।
          ’’अच्छा तो नीलम जी !...... आप के घर वाले एतराज नहीं करते ?.......’’ नीलम तथा प्रकाश को फिर हंसी आ गई - मगर दोनों ने अपने को जल्द ही संयत किया । यों हर सवाल पर हंसने से रवि को बुरा लग सकता था ।
          ’’एतराज कौन करे ?...डैडी को अपने बिजनेश से ही फुर्सत नहीं मिलती !.....’’
’’और आपकी मां ?.....’’
’’अरे - वो ........मम्मी - अरे वो तो इतनी भोली है कि चाहे जैसे पटा लो !....... म-मेरा मतलब है चाहे जिस चीज के लिए मनवा लो !.... फिर ले-दे कर एक ही तो बेटी हूँ - इसलिए !.....’’
’’कमाल है !....... नीलम जी आप काफी दिलचस्प !........ म-मेरा मतलब है - काफी रहस्यमयी हैं !........ फिर भी आप बुरा न माने तो एक बात कहूं ?........’’
’’कहो ? ........’’
’’देखिये मुझे तो शत-प्रतिशत यकीन हो  गया है कि आप दोनों में सिर्फ मुहब्बत है !........ मगर ये समाज - ये जमाना इस बात को नहीं मान सकता । आज अगर एक भाई के पीछे मोटर साईकिल पर उसकी बहन भी बैठी होती है - तो लोग उन्हें प्रेमी - प्रेमिका समझने लगते हैं......... और फिर आप तो वीराने में अकेले मिलते हैं वो भी रात को !.....’’ प्रकाश तो ताली ही बजाने वाला था - मगर नीलम ने उसे इशारे से रोक दिया ।
’’तुम्हारी बात सही है रवि !...... मगर समाज व जमाने से डरकर तो कोई कुछ भी नहीं कर पायेगा !........ खैर ! तुम इसका कारण जान गये हो यही काफी है !......’’ नीलम ने कहा ।
’’कारण ?...... अरे ! हां नीलम जी !........ यह तो मै भूल ही गया - जैसा कि आपने बताया कि आपके यहां रहने का एकमात्र कारण लिखना है !.......’’ रवि बोलते - बोलते रूक गया ।
’’हाँ-हाँ !...... कहो ना !.......’’
’’दरअसल अपने शहर में इतना शोर है कहां - जो आपके लिखने में बाधा डाल सके - ऐसे में यहां रहना सिर्फ एक बेवकूफी - सी लगती है !......’’
रवि की बात सुनकर नीलम फिर मुस्कुरा उठी । रवि उसे मुस्कुराता देख कर फिर चक्कर में पड़ गया । वाकई - बड़ी रहस्यमयी है ये नीलम !
’’अच्छा रवि अब मै एक बात पूछूं ?......’’
’’पूछिये !.....’’ रवि आष्चर्य में भरा बोला ।
’’तुमने ये तो - पूछ लिया कि मै रात को क्या करती हूँ - मगर दिन में क्या करती हूँ इस बारे में नहीं पूछा !....’’
’’अरे हां !........धत्त-तेरी की !........ इसका तो ख्याल ही नहीं आया !......’’ रवि कुछ शर्माता हुआ सा बोला ।

-28-
’’मै ही बताती हूँ रवि !....... जैसा कि तुम जान ही चुके हो कि यह मकान सिर्फ जंगल में नहीं बल्कि गांव के किनारे है !.......’’
’’बिल्कुल जान चुका हूँ भई !.......’’
’’तो मै दिन में मेक-अप बनाकर गांव में घूमती हूँ-वहां की जिन्दगी को बिल्कुल करीब से देखने के लिए !.......’’
’’शायद आप ग्रामीण अंचल के जन-जीवन पर कुछ लिखना चाहती हैं !.......’’ रवि नीलम की बात पूरी तरह समझ गया था ।
’’अब आये-ना रास्ते पर !........’’ प्रकाश मुस्कुराता हुआ बोला ।
’’भई वाह !.......आपकी हिम्मत की दाद देनी पड़ती है नीलम जी !........ वाकई आप काफी मेहनत कर रही है !.........मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ है !......’’
’’छोड़ो भी रवि !......मेरे ख्याल से अब तो तुम्हे-तुम्हारे सब प्रष्नों के उत्तर मिल चुके होंगे ?......’’
’’हां !..........’’
’’तो अब आने दो कोई फड़कती हुई शायरी !..........’’ प्रकाश मुस्कुराता हुआ बोला ।
और रवि अपने खास अन्दाज में शायरी सुनाने लगा ।
            
वो चार थे - और वो तीन थी - वैसे रवि का होना न होना बराबर था । क्योंकि वह ऐसे कामों से हमेशा ही दूर भागता रहा था । वह तो सिर्फ देख रहा था - कुछ हैरत से आज के युवक - युवतियों के पतन को ।
दरअसल इस समय ये मित्र-मण्डली विनोद के घर की छत पर जमी हुई थी । जो शहर के बाजार के बिल्कुल करीब थी । विनोद की छत के पूर्व की और की छत पर तीन लड़कियां थी - जिनमें दो ने साड़ियां पहन रखी थी और एक छोटी थी जिसने शायद स्कूली यूनिफार्म पहन रखी थी । बल्कि ये कहा जाये तो ज्यादा सही होगा - दो युवतियां शादी-शुदा थी और एक कुंआरी लड़की ।
विनोद, राकेश, किशोर तीनों खड़े होकर - अपनी - अपनी अदायें दिखा रहे थे - उधर वे तीनों जवाब में मुस्कुराकर अपनी-अपनी शैली में अपना-अपना रंग दिखा रही थी ।
रवि प्रस्तर-प्रतिमा बना सब कुछ देख रहा था । तभी अचानक उसने जो देखा तो उसका मुंह मारे शर्म के लाल हो उठा । उनमें से एक साड़ी वाली युवती ने उस छोटी लड़की को अपनी बांहों में भींच लिया तथा उत्तेजक अन्दाज सें उसकी पप्पीयां खाने लगी । वो छोटी लड़की भी कम नहीं थी - प्रत्युत्तर में वो उस साड़ी वाली की पप्पियां खा रही थी ।
तभी दो और युवतियां छत पर आयी - ये भी शादी - शुदा होगी

-29-
शायद रवि ने सोचा क्योंकि दोनों ने साड़ियां पहन रखी थी ।
रवि ने सोचा चलो किस्सा खतम हुआ - अब शायद - अब ये पहले वाली युवतियां व लड़की इनके सामने ऐसा कुछ नहीं करेगी । मगर हुआ इससें उल्टा - वो दोनों भी इनके साथ शरीक हो गयी और अपनी-अपनी अदायें दिखाने लगी ।
उनमें से एक युवति ने रवि की तरफ मुस्कुराकर लाईन मारने की कौशिश की मगर रवि ने अपना सर झुका लिया । ये रवि भी कैसा अजीब लड़का था - कुकर्म कोई और कर रहे थे - मगर अपराधी सा बना वो बैठा था ।
’’राकेश !.......’’ रवि ने इशारे बाजी करते - राकेश को पुकारा ।
’’ओह !........ साला कबाब में हड्डी !..........’’बड़ाबड़ा उठा राकेश । वह एक उचाट-सी दृश्टि रवि पर डाल फिर अपने कार्य में लग गया । उसकी बात सुन कर विनोद व किशोर खिखिलाकर हंस पड़े ।
’’विनोद !......’’ इस बार विनोद को पुकारा रवि ने । ये तीनों आदायें दिखाते हुए छत के पूर्व कॉनर्र तक पहुंच  गये थे और रवि कुछ दूर पष्चिम के कॉर्नर पर पड़ी कुर्सी पर बैठा था ।
राकेश ने तो टाल दिया था - मगर विनोद वहीं खड़ा कुछ जोर से बोला, ’’क्या बात है रवि ?........’’
जाने क्या सोच कर रवि स्वयं ही उठ खड़ा हुआ तथा मुस्कुराता हुआ इन मित्र महाशयों के पास जा पहुंचा ।
’’तो दोस्तों !........आप लोग मुझे कबाब में हड्डी समझ रहे हैं ना !.......’’ रवि ने मुस्कुराते हुए कहा । तीनों ने रवि की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया ।
’’यार रवि !........तुम कैसे मर्द हो ?.......’’ किशोर ने हंसते हुए पूछा । उसका इशारा रवि के इस तरहा तटस्थ रहने से था । उसकी इस बात पर विनोद तथा राकेश भी उसकी तरफ देखने लगे ।
’’वाह रे !........मेरे देश के जवाँ मर्दो !........ अगर अभी जो तुम लोग कर रहे हो - उसे ही - मर्दानगी समझते हो-तो मुझे साठ बरस का बुड्ढ़ा समझ लो !.....’’
रवि की इस बात पर सभी मित्र महाशय फिर हंसने लगे । तभी उस छत की सभी नारीयाँ नीचे चली गई ।
’’धत्त-तेरी की !........यार रवि !........ तुमने सब गुड़-गोबर कर दिया !.......’’ विनोद ने कुछ मायूसी से कहा ।
’’मगर मैने क्या किया है यार ?.....’’
’’छोड़ो ना विनोद !.......हाँ रवि तुम हमेशां हम लोगों को ही दोश देते हो - कि हम लोग हर औरत पर फिदा क्यों होतें हैं ?........अब तमने खुद देख लिया !.....’’ राकेश ने दलील पेश की ।
’’रहने दे-रहने दे !.......अपनी ये सफाई !......मै मानता हूँ कि आज औरत बहुत हद तक गिर गई है-मगर आज के मर्द भी तो इस मामले में कम नहीं !.......’’ रवि ने मुस्कुराकर कहा ।
’’तूं कहे तो कुछ और दिखाऊं ?........... एसा तमाशा !........’’

-30-
’’रहने दे यार !.......ऐसे ही-काफी अफसोस हो रहा है मुझे अपने आप पर !..... ’’ रवि ने कुछ गम्भीर स्वर में कहा ।
सभी मित्र महाशय अब तक कुर्सियों पर आ डटे थे और सभी रवि का मजाक बना रहे थे कि वे आज के युग में कैसी बेवकूफी भरी पवित्र-प्रेम करने की दलीलें देता है ।
’’यार रवि !.........तूं खाता क्या है ?.........’’
’’क्यों ?..........ये बात पूछने का मतलब ?.........’’
’’मतलब साफ है - इन नारियों की एसी क्रिड़ाऐं देखकर साध-संत तक बहक सकते हैं - मगर तूं है कि !.........’’
’’अरे !.........बगुला भगत बन रहा होगा !......’’किशोर ने तीर छोड़ा ।
’’बगुला भगत ?.......हा-हा-हा !.......’’ रवि हंसने लगा ।
’’हाँ बगुला भगत !...... रवि हम ये मान ही नहीं सकते कि कोई आदमी इतना कुछ देखने के बाद - अपने आप पर काबू रख सकता है !........’’
’’और सोच ही क्या सकते हैं तुम जैसे गिरे हुए लोग !........’’ रवि का स्वर कुछ तेज हो उठा था ।
’’जोर से बोल कर तुम सच को झुठला नहीं सकते !.....’’ विनोद ने भी कुछ तेज स्वर में कहा ।
’’सच ?....... तुम जैसे लोगों के मुंह से ये शब्द अच्छा नहीं लगता !.... तुम लोग यही समझते हो ना कि मै सिर्फ तुम्हारे सामने इन जलील (पतित) औरतों में दिलचस्पी नहीं लेता !.......... और अकेले में न जाने क्या गुल खिलाता हूँ !.........’’
’’बिल्कुल !........’’ सभी का मिश्रित जवाब था ।
’’तो गौर से सुनो दोस्तो !........ बेशक आज की नारी इस हद तक गिर गई है कि वह बड़ी बेशर्मी से अपने जिस्म का कोई भी अंग दिखा सकती है !........ और मैने खुद अपनी आंखों से देखा है नारी के इस पतन को - मै नहीं जानता ये फिल्मी असर है या कुछ और !......’’ रवि कहते-कहते रूक गया ।
’’अभी देखा वैसा उत्तेजक दृष्य देखा है क्या ?......’’ विनोद रवि को चुप पाकर कहे बगैर ना रह सका ।
’’ये तो कुछ नहीं है मेरे दोस्तों !......ऐसे उत्तेजनापूर्ण दृष्य अनेकों देखें हैं - इतने उत्तेजनापूर्ण कि ठीक वैसा ही वर्णन करके अगर उन पर उपन्यास लिखूं-तो यह समाज के ठेकेदार लोग मुझे अष्लील लेखक का खिताब प्रदान कर दें !...’’
’’तब तो वाकई कमाल है भई !...’’राकेश कुछ प्रभावित सा होता हुआ बोला ।
’’कोई कमाल नहीं है - राकेश - कम से कम मैं तो इसमें कोई कमाल नहीं समझता !...’’ रवि ने कहा ।

-31-
’’वो कैसे रवि ?......’’
’’सीधी-सी बात है - मेरी अपनी जिन्दगी कुछ ऐसी ही रही है अब तक ...... तुम तो सिर्फ इतना ही जान लो कि जिस आदमी का पेट खाली होता है - जिसने अपनी जिन्दगी में सिर्फ और सिर्फ भूख का ताँडव-नृत्य देखा हो !..... जो अपने आप को इस जमीन पर सिर्फ बोझ समझता हो - वो क्या खाक इष्क फरमायेगा !.....’’ रवि का स्वर दर्द में डूब गया ।
’’फिर भी इतना सब होने के बावजूद भी यह किसी भी महानता से कम नहीं !.....’’ अबकी बार किशोर बोला ।
’’रहने दे-रहने दे!..... क्यों ख्वामखवाह ’’महानता’’ जैसे लफ्ज की तौहीन कर रहा है !.....’’ रवि मुस्कुराकर बोला ।
’’अच्छा रवि !....... चलो माना कि तुम हर औरत पर फिदा नहीं होते-मगर तुम्हारे ही अनुसार ’’पवित्र-प्रेम’’ की हकदार तो कोई राजकुमारी होगी - मेरा मतलब है तुमने किसी से तो मुहब्बत की होगी ?....’’ विनोद ने प्रसंग कुछ-कुछ बदलने की कोशिश की ।
’’मुहब्बत ?........ हा ! हा ! हा ! ......’’ रवि खिलखिलाकर  हंस पड़ा । यूं हंसने को तो वो हंस रहा था - मगर आंखों में नाच उठी थी -शर्म की गठरी बनी संगीता की तस्वीर ।
’’लो !.......... इसमें हंसने की क्या बात है ?......’’
’’मुहब्बत !.... पाक मुहब्बत (पवित्र-प्रेम) किस्मत वालों को मिलती है राकेश !.......और ये कम्बख्त रवि तो जन्मजात अभागा है !....’’ रवि की आवाज फिर दर्द में भर उठी ।
’’इसका मतलब है - अब तक तुमने मुहब्बत नहीं की ?. ......’’ विनोद ने रवि को फिर कुरेदना चाहा ।
’’जाने दो विनोद !.....अरे हां !.......आज वकील साहब नहीं आये अब तक ?.....’’राकेश ने कहा ।
’’कौन वो घोचूं शेखर !......अरे ! किस कम्बख्त को याद किया है !......’’ किशोर ने बुरा-सा मुंह बनाया ।
’’क्यों ?....नानी याद आ गई क्या !....एक बात है-किशोर !....ये साला शेखर तुम्हारी तो हर वक्त खाट खड़ी करने पर तुला रहता है !.....’’राकेश ने किशोर को छेड़ा ।
’’वो मेरी क्या खाट-खड़ी करेगा !....अरे मेरे नाम धारी किशोर कुमार ने उसकी तथा जिस ’’कानून’’ की वो शेखी बघारता है-कब की खाट खड़ी कर दी है!.
’’ये अन्धा कानून है !...... ये अन्धा कानून है !.....’’ कहकर किशोर आदतानुसार गाना गाने लगा ।
उसके इस तरहा दलील देने के बाद गाने पर सभी मित्र महाशय खिल-खिला कर हंस पड़े ।
            

-32-
’’अब की दफा बड़ी जल्दी याद फरमाया आपने !.....’’
’’दरअसल ! मुझे कल कलकत्ता जाना होगा - डैडी की तबीयत अचानक खराब हो गयी है !......’’ नीलम के गोरे मुख पर दुःख के भाव झलक उठे ।
’’ओह !.......भगवान उन्हे दीर्धायु रखे ! ......’’ रवि भी गम्भीर हो उठा ।
’’रवि !....मुझसे तुम्हारी ये कौनसी मुलाकात है ?.....’’
’’शायद तीसरी !......’’
’’मगर अब तक तुमने मेरे पास आने का कारण नहीं बताया ?.......’’
रवि कुछ भी ना बोल सका ।
’’और ये प्रकाश भी तुम से कम नहीं - इसने भी पिछली दफा बताया था !.....’’ नीलम ने कुछ नाराजगी भरे स्वर में कहा ।
’’नीलू बात कुछ ऐसी थी - वो.....वो !........’’ प्रकाश की जुबान लड़खडा उठी।
’’बात क्या थी ?.....तुम दोनो शर्माने में लड़कियों को मात करते हो !.......और तो सब बातें करते रहें-मगर वास्तविक बात ....’’
’’दरअसल नीलू ! मै रवि को तुम्हारे पास ले ही आया था-मगर फिर पैसा मांगने की एकाएक हिम्मत ना हुई !....’’प्रकाश ने अपनी सफाई पेश की ।
’’खाक हिम्मत ना हुई !.....हां प्रकाश मै-तुम्हें कल जाने से पहले पैसे दे दूंगी-तुम रवि को दे देना !......’’ मिठी झिड़की के साथ नसीहत दी नीलम नें ।
’’आपके लेखन का क्या हुआ ?....... कोई प्रोग्रेस !.......’’रवि ने पूछा ।
’’हमारे लेखन की छोड़ो रवि ! अपनी फिक्र करो-वैसे मुझे लगता है कि तुममे एक अच्छे लेखक के सभी गुण मौजूद है !.......’’ नीलम ने कुछ मुस्कुराकर कहा ।
’’होसला-अफजाई के लिये शुक्रिया !.......’’रवि सिर्फ इतना ही कह सका ।
’’हां रवि !.........उस दिन तुमने मेरे बारे में सभी कुछ-पूछ लिया था-आज अपने बारे में बताओ-मैने-कई-कवियों की जीवनियां पढ़ी है-एक साहित्यकार की जिन्दगी भी किसी उपन्यास से कम दिलचस्प नहीं होती ।
’’मगर मै तो अभी छोटा हूँ !....मुझे तो अभी न जाने क्या-क्या देखना है !....’’
’’फिर भी अब तक की जिन्दगी के बारे में सुनाओं !.....फिर जाने कब मुलाकात हो !.....’’

-33-
’’बड़ी बोरियत कहानी है !...जाने दीजिये !.......’’       
’’शायर की जिन्दगी !....और बोरियत भरी ? ये कैसे हो सकता है ?......’’
’’ऐसा ही है नीलम जी !....आप बोर हो जायेगी इसलिए प्लीज !....’’
’’ऐसा बहाना बनाकर तुम बच नहीं सकते रवि !.....तुम्हे सुनानी ही होगी !.....’’
’’क्या जिद करता है रवि !.....सुना दो ना यार !....’’प्रकाश भी बोल उठा !
’’समझ में नहीं आता कहां से शुरू करूँ !......’’ रवि की आवाज दर्द में डूब गई थी ।
नीलम तथा प्रकाश बस गौर से रवि के चेहरे पर निगाहें टिकाये देख रहे थे-उसके चेहरे पर फैले दर्द के विभिन्न रंगों को ।
’’बस इतना ही समझ लीजिये नीलम जी !.....सुना है शायर जन्म जात होता है-मै इस बात का तो दावा नहीं करता-मगर इतना अवष्य कह सकता हूँ-कि जन्म जात बदनसीब जरूर हूँ मै !......’’ रवि कहने के साथ कुछ खामोश हो गया उसके चेहरे पर आने वाले भावों से ऐसा लग रहा था-मानों वो कड़वे जख्म जो उसने खाये थे-अब स्मरण करने पर जैसे ताजा हो गये थे ।
रवि दोनों के चेहरों की तरफ देखता हुआ फिर बोल उठा , ’’अभी इस दुनियां में-आया भी ना था कि पिता घर छोड़ कर भाग गये-ऐसे भागे कि फिर लौटकर ना आ सके ! फिर जब कुछ-कुछ समझने लायक हुआ-तो देखा सिर्फ-आंसुओं का वातावरण ! मैने अपनी मां को कभी हंसते हुए नहीं देखा !......देखा तो सिर्फ सिसकते हुए-घुट-घुट कर जीते हुए-मेरे अपने घर में जिसमें मै पैदा हुआ जब कोई बाकी ना बचा - तो मुझे और-मां को मामा अपने साथ ले आये-और-यहां निरन्तर झिड़कियां और ताने खाते हुए मै बड़ा हुआ !.....’’ रवि को लगा वह बहुत बोल गया है - वह कुछ हांफ सा उठा ।
नीलम व प्रकाश के चेहरे पर भी दुःख के भाव तेरने लगे थे । रवि ने अपने आप को संयत किया फिर मुस्कुराने की कोशिश करता हुआ बोला, ’’क्यों नीलम जी !........आखिर कर ही दिया ना बोर ?......’’

-34-
’’बोर !....नहीं रवि तुम सुनाओ-वाकई-तुम्हारी कहानी काफी दिलचस्प है !....’’
’’खाक दिलचस्प है!.....खैर तो सुनिये-इसी माहोल में जब कुछ समझदार हुआ -तो मुझे लगा-कि मामा के कमजोर कंधों पर काफी बोझ है-मुझे पढ़ने के साथ-साथ कोई काम करना चाहिए !....यही सोच कर मैने कई धंधों में पड़ने की कोशिश की और नाकाम रहा !......और मेरी इस नाकामी का कारण भी बड़ा अजीब है !..’’
’’अजीब ? वो कैसे रवि !......’’ दोनों एक साथ बोल उठे ।
’’अजीब ही तो है नीलम जी !......वैसे मै किसी को दोश देना अच्छा नहीं मानता हां इतना जरूर है कि लोग किसी की बर्बादी या कामयाबी के बहाने जरूर बन जाते है । आदमी वही पाता है जो उसकी तकदीर में लिखा हेता है,
’’क्या है बैगानों से शिकायत क्या अपनों से गिला है,
हमें जो कुछ भी मिला है अपनी तकदीर से मिला है ।’’
’’वाह ! वाह !......’’ नीलम व प्रकाश ने रवि के शे’र पर दाद दी ।
’’ये शे’र - वेर सुनाकर बात को गोल करने की कोशिश मत कर रवि !........ हां-तूं अपनी नाकामयाबीयों के बारे में बता रहा था !.......’’ प्रकाश को डर था कि रवि कहीं बात गोल ना कर जाये-वो बोल उठा ।
’’खैर !...सुनो !.....मेरी नाकामयाबी में मेरे सच पर होने का तथा मेरा शायर होने का बहुत बड़ा हाथ है !........’’
’’वो कैसे रवि ?.......’’नीलम बोल उठी ।
’’वो ऐसे नीलम जी !.......शायद आपको मालुम नहीं कि लोग आजकल शायरी को क्या समझते है !.......या तो मजाक या फिर मनोरंजन का साधन !......हकीकत में लोग शायरी को तुकबन्दी समझते है !......’’
’’तुकबन्दी ?.....’’
’’हां !..........आज कल फिल्मों में देखकर के दिलों में अच्छी-खासी तुकबन्दीयां जग गयी है फिर ये तुकबन्दी करना कोई खास कठिन काम नहीं-थोड़ी सी कोशिश करके कोई भी आदमी तुकबन्दी कर सकता है-तभी तो एक तुक मिलाने वाले को देखकर दूसरा पैदा हो जाता है और दूसरे को देखकर तीसरा, इस प्रकार इन महारथियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है !........’’
’’मगर इन तुक बन्दीयों से तुम्हारी नाकामियों या असफलताओं से क्या सम्बन्ध है?.....’’ नीलम बोल उठी ।


-35-
’’वो ही तो बता रहा हूँ - हकीकत में ये तुक मिलाने वाले लोग अपने आप को आनन्द बक्षी से कम नहीं समझते !....... मैने जिन-धन्धों वालों को उस्ताद या गुरू बनाया - वो एक-आध को छोड़कर सभी तुक मिलाने वाले मिले !....शुरू में तो उन्होने-मेरी शायरी की बड़ी तारीफ की मगर बाद में शायरी के उस्ताद बनने की चेश्टा की !...’’
’’अम्मां-यार रवि !....ये साली तुकबन्दी है या कोई छूत की बीमारी !....तुम्हे शायरी करते देख-अपने सभी साथी तुक बन्दियां करने ही लगे है और अब तुम बता रहे हो ये धन्धेवाले !....साले सभी-शैक्सपीयर बनने चले है !..’’प्रकाश से रहा ना गया तो उसने अपने दिल की भड़ास निकाल ही दी ।
प्रकाश की बात सुनकर रवि कुछ मुस्कुरा उठा फिर बोला, ’’तुम चाहे इन्हे कुछ भी कहो यार !....मगर ये लोग इतने ठीठ और बेशर्म है कि इन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं -वो ही कुत्ते की दुम वाली बात है !...खैर ! मेरा कसूर इतना रहा कि मै इन घटिया किस्म के लोगों की घटिया तुकबन्दियों को - शायरी ना बता सका और बात हर जगहा बिगड़ती चली गयी !......’’
’’कमाल है इतने सारे लोग शायरी-करने के दावेदार बने फिरते है?....’’नीलम ने कुछ हैरत से कहा ।
’’अरे !....नीलम जी !....इतने सारे क्या आज तो हर कोई अपने आप को महान शायर या उपन्यास-कार से कम नहीं समझता चाहे उसे किसी एक भी शब्द का उच्चारण या अर्थ ना आता हो ! ......’’
’’तो क्या शायरी या उपन्यास लिखना इतना आसान समझने वाले ये लोग बेशर्मी को शायरी की जननी समझते है ?...’’
’’ये तो वो ही बेहतर जान सकते है !......... तभी तो नीलम जी !.....शायरी करने को दिल नहीं करता-शायर जिस शायरी को अपने खून के आंसुओं से सींचता है-उसका मुकाबला ये लोग अपनी घटिया तुकबन्दियों से करते है!...... तो दिल रो उठता है !.....
’’तभी तो मै तुम्हे बेवकूफ कहता हूँ रवि !....नीलू देखो-मैं इसे वर्शो से जानता हूँ कि ये लिखता है और अच्छा-खासा लिखता है फिर इसको किसी धन्धे वाले के पास जाने की क्या जरूरत थी ?....’’प्रकाश ने कहा ।
’’हां प्रकाश !....हकीकत में - मै बेवकूफ हूँ और बहुत बड़ा बेवकूफ वो इसलिए कि-जिस शायरी या उपन्यास लेखन को मजाक समझते हैं लोग ! 

-36-

मैं उसे साधना समझता हूं ....... इसलिए मैं वर्शों से लिखते हुए भी गुमनामी में रहकर - पहले अध्ययन करना चाहता था !........”
          “मगर अध्ययन और प्रकाशन तो साथ-साथ हो सकते हैं रवि ! .......” नीलम ने कहा ।
          “बेशक हो सकते हैं नीलम जी ! ........ मगर एक तो मेरे पास इतना पैसा नहीं था, फिर मैं खुद इतनी जल्दी प्रकाशन में आना नहीं चाहता था !......”
          “मगर क्यों ? ......”
          “इसलिए कि मुझे हमेशा ही ऐसा लगा कि एक लेखक में बहुत गुण होने चाहिए और मुझे हमेशा अपने आप में कहीं कमी नजर आई ! .......”
          “क्यों नीलम - हैं ना बेवकूफ ! ......अरे रवि सर्वगुण सम्पन्न तो कोई नहीं होता - खैर छोड़ तूँ मानेगा नहीं ....... अब भी तूँ तैयार हो गया यही काफी है!........” प्रकाश बोला ।
          “मैं तो अब भी तैयार नहीं होता - मगर हालात ने मजबूर कर दिया है! ........” रवि ने कुछ बोझिल स्वर में कहा ।
          “चल छोड़ ना यार ! ....... आओ तुम्हें कुछ दूर छोड़ आऊँ ! .......”
          “चलो ! ......“ रवि नीलम का शुक्रिया अदा करना चाहता था - जिसने उसके लिए पैसों का इन्तजाम किया था - मगर अपने संकोचशील स्वभाव के कारण न कर सका ।  बस कृतज्ञता से नीलम की ओर देखता हुआ उठ खड़ा हुआ ।
            
अरे रवि भैया ! ....... डूब जाओगे ! ........ ” नीता ने शरारत से मुस्कुराकर कहा ।  रवि तथा संगीता पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया - दोनों का मुंह शर्म से झुक गया । 
रवि, नीता व संगीता लाइब्रेरी में बैठे थे - नीता जो किताब पढ़ने का बहाना बना कर शरारत का मौका ढूंढ रही थी ।  उसने जब देखा कि रवि व संगीता की निगाहें किताबों से हट कर मिल चुकी है - और न जाने कब तक एक दूसरे की आंखों में डूब कर कुछ तलाश करने का यह क्रम जारी रहता - मगर नीता ने टोक कर यह क्रम तोड़ दिया । 
रवि भैया !.... तुम्हें क्या हो गया है ? ......”
मुझे ?...... क्या होगा भई !......” रवि ने अपने आप को सम्भाल लिया ।
          “बड़े भोले बनते हो ! ........ आज तक तुमने मेरी किसी सहेली में कोई दिलचस्पी नहीं ली !...... मगर इस संगीता में ऐसा क्या देखा जो ! ......”

-37-
क-कुछ नहीं ! .......दरअसल ऐसी कोई बात नहीं मैं तो यों ही ! .......” रवि अपने पकड़े जाने पर गड़बड़ा सा गया ।
          संगीता को रवि की इस हालत पर बड़ा मजा आ रहा था !  उसके दिल में अजीब-सी मीठी-सी गुदगुदी हो रही थी - वो उसकी चोरों की सी झुकी-झुकी नजरों व कम्पकम्पाते होठों पर मीठी सी मुस्कान से स्पश्ट जाहिर हो रही थी । 
          “यों ही ! ....कमाल है रवि भैया ! .......अभी तो तुम्हारे चेहरे से यूं लग रहा था - मानों इसकी आंखों में बस डूब ही जाना चाहते हो और अब बड़ी सफाई ! ........”
          नीता की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि संगीता अचानक अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और बिना उनकी तरफ देखे बाहर निकल गई ।  नीता ने पीछे से पुकारा - मगर वो अनसुनी करके जा चुकी थी ।
          “यह क्या किया नीता ! ....... अब क्या होगा ? ........” रवि का स्वर कांप-सा गया ।
कुछ नहीं होगा ! ........ मैं देख लूंगी इस संगीता की बच्ची को ! ........मगर तुम इतने क्यों घबरा रहे हो ? .......”
          “घ-घबरा कहाँ रहा हूँ ! ........ है हां वो अगर बुरा मान गई तो? ........” रवि ने किसी तरहा बात पूरी की ।
मेरी बात का तो वो बुरा मानने से रही - हाँ, तुम्हारी बात का मैं कह नहीं सकती ! .......” नीता रवि की गड़बड़ाहट का पूरा मजा ले रही थी ।
म-मगर-मैं तो यूँ ही देख रहा था !...... अगर वो मेरे देखने से ही चली गई है ........तो मेरी ओर से माफी माँग लेना !........” रवि ने किसी तरहा बात पूरी की और अपना सर झुका लिया ।
सोचेंगे ! ........” नीता ने शरारत से अपना सिर हिलाते हुए कहा -फिर वो भी उठ खड़ी हुई ।  रवि भी समझ गया और वे लोग लाइब्रेरी से निकल कर अपने अपने घर की ओर बढ़ गए ।
रास्ते में चलते हुए रवि के दिल में एक तुफान सा उठा था- विचारों का तुफान - वो खुद सोच रहा था - ये क्या होता जा रहा है उसे क्यों वह इस लड़की में इतनी दिलचस्पी ले रहा है नीता के वे शब्द अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे, “अरे रवि भैया ! ....... डूब जाओगे !........”
          सचमुच नीता ने जैसे उसके दिल की बात कही थी ।  वह भी उस समय यही सोच रहा था - काश ! ........ वह इन गहरी-गहरी आंखों में डूब ही जाए !  जाने क्यों यह लड़की उसके दिल की गहराईयों में उतरती ही चली जा रही थी ।


-38-
मगर क्या आज वो मेरे देखने से खफा होकर चली गयी है ?...... नहीं-उसे तो ऐसा नहीं लगा था-उसने जब संगीता की आंखों में झांका था तो उसे उनमें भी अपने जैसी ही तड़फ का एहसास हुआ था-तो क्या ये नीता की शरारत है?.....हां ! उसके दिल ने कहा -सचमुच बड़ी नटखट है ये नीता ! साथ ही बड़ी भोली और प्यारी भी - रवि तो अपनी मां का इकलोता बेटा था-उसे अपने दोस्त प्रकाश की बहन नीता में अपनी सगी बहन नजर आती थी-और वो भी तो उसे प्रकाश से ज्यादा चाहती थी ।
रवि अब फिर अपने-आप को टटोल रहा था-ये बात नहीं थी - कि उसने अब तक किसी लड़की की तरफ देखा नहीं था - उसकी निगाहों में चलचित्र की तरहा थिरक उठे वो दृष्य जिनमें उसने नारी का वो रूप देखा था-अष्लील-रूप !....उसके सम्मुख कोंध उठे वो विभिन्न अर्द्धनग्न पूर्णतया नग्न बदन जिनको देखकर पहले पहल रवि को भी लगा कि वो बहक जायेगा ।
मगर बाद में उसने जितनी ज्यादा नारियो को एसे अष्लील भावो मे देखा- तो उसे एक अजीब से नफरत सी होने लगी - वो सोचता ये सब क्या है क्या यही है नारी का वो श्ऱद्धेय रूप जिसको प्रतिश्ठित करने में अनेको लेखको ने अपना न जाने कितना दिमाग खर्च किया है ।
मगर आज की नारी में वो बात कहाँ है ? नारी का सबसे बड़ा - आभूशण है लज्जा । मगर आज लज्जा का स्थान बेशर्मी को दे दिया गया है - आधुनिकता का नाम देकर । तभी तो वो किसी भी लड़की में ज्यादा दिलचस्पी नही ले पा रहा था । उसे लगता उसने अभी थोड़ी सी दिलचस्पी दिखलाई तो मौका पाकर ये अपने बदन का प्रदर्षन कर उठेगी । मगर जब पहली बार संगीता को देखा तो लगा ये ही तो है उसके ख्वाबों की मल्लिका।......संगीता की सादगी और शर्मीलेपन ने मार डाला था उस रवि को जिसके खुले बदन भी कत्ल नही कर पाये थे ।
            
रवि ने मां की तरफ देखा - जो घर के कार्य में लगी थी । कितनी बूढी होती जा रही है माँ । और दिन रात की कमर तोड़ मेहनत करने से मात्र हड्डियों का ढांचा ही तो रह गई है । मगर ये हड्डियो का ढांचा ही तो उसके लिए सब कुछ है।

-39-
          रवि सोच रहा था -  कि शायद अब कुछ विधाता को उन लोगो की हालत पर कुछ रहम आया है । तभी तो नीलम के माध्यम से उसने पैसो का बंदोबष्त करा दिया है - अब शायद उनके ये दिन नही रहेगें  - और वह अपनी मॉं को उतनी खुशियॉं देगा -जितनी वो दे पायेगा ।
          लेकिन क्या उसका उपन्यास चल पायेगा ? आज के इस जमाने में - जहां पर उपन्यास लेखन को सबसे सरल धन्धा समझा जाता है! ............हाँ। दिल के किसी कोने से आवाज आयी- रवि! .........आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो कला की कद्र करना जानते हैं! ............मगर अब तक क्या कद्र हुई है उसकी? .........मगर उसे अभी उतने लोग जानते ही कहां है? रवि इन्हीं ख्यालों में डूबा- उस- सन्दुक की ओर बढ़ा- जिसमें वह अपनी शायरी व उपन्यास रखा करता था।
          रवि ने जैसे ही सन्दूक खोला वह स्तब्ध रह गया! ..........सन्दुक खाली पड़ा था। यह एक और बड़ा जबरदस्त धक्का था- रवि के लिये! आखिर ले देकर यही तो थी उसकी पूँजी- जिसे  उसने बरसों से अपने खून के आसूँओं से सींचा था- मगर कोई उसे लूट गया था।
          रवि काफी देर तक पागलों की तरहा खाली- संदूक को घूरता रहा फिर उसे धड़ाम से बन्द करता हुआ जोर से चींखा ‘‘मां! ...............‘‘ रवि इतनी जोर से कभी नहीं बोला था-मां- दौड़ी-दौड़ी आयी, ‘‘क्या बात है रवि? .............‘‘
          ‘‘इस कमरे में कोई आया था क्या माँ! ................‘‘
          ‘‘नहीं तो! ...मगर तूँ कैसे पूछ रहा है?..‘‘मां ने आष्चर्य से रवि की तरफ देखा जिसके मूँह पर दुःख के तथा क्रोध के मिश्रित से भाव थे। मां ने रवि को पहली बार इस दशा में देखा था- वो यह भी भूल गई कि उसके हाथ आटे से सने हैं!
          ‘‘किसी ने मेरे उपन्यास चुरा लिये है माँ! ..............‘‘
          ‘‘क- क्या? मां- का मूँह खुला- रह गया- उसने खुद देखा था रवि को रातों को दिवानों की तरह लिखते हुए- और उन क्षणों में उसने कितनी खामोश दुआएँ मांगी थी- क्या उसकी दुआएँ- प्रार्थनाएँ सब निर्थक थी?...........नहीं-नही भगवान इतना निर्दयी नहीं हो सकता!
          ‘‘अरे हुआ क्या?................ ‘‘मामी अब तक चली आयी थी।
          ‘‘देखो भाभी! ............ किसी ने मेरे रवि के उपन्यास चुरा लिये हैं!..........‘‘ माँ का स्वर करूणा से भर उठा।
          ‘‘ये लो!............ मैं समझी ना जाने कौनसा पहाड़ टूट पड़ा! ..........

-40-
’’अरे ननदजी! क्या हुआ अगर कोई वो रद्दी कोपियां ले गया, ऐसी कोपियां तो आजकल बहुत से लड़के भरते हैं! ........तुम रसोई में जाओ-रोटी जल रही है! .......‘‘ मामी ने हाथ नचाते हुए कहा।
          मां ने रवि की तरफ देखा- फिर एक ठण्डी सांस भरकर रसोई घर की तरफ बढ़ गयी!
          ‘‘वो ऐसी- वैसी कोपियां नहीं थी- मामी- मेरे उपन्यास थे! ...........‘‘ रवि कुछ चीखता सा बोला।
          ‘‘हाए-आए आया ना बड़ा रविन्द्र ठाकुर! ........... तुझसा उपन्यास तो आजकल दूध मुहां बच्चा लिख सकता है!. काम का न काज का चला है उपन्यासकार बनने!...‘‘
          रवि ने अपना सर झुका लिया- अब कहने को क्या बचा था?........... वाह रे दुनियां के रखवाले! ....... जिसकी वर्शों की पूँजी लूट ली गई थी वो ही अपराधी सा बना खड़ा था- क्या इन्साफ है तेरा!
          मामी और ना जाने कितने तानों- के तीर चलाकर- पांव पटकती हुई चली गयी- उसे नहीं मालूम!. बड़ा जबरदस्त धक्का था ये रवि के लिए उसका मस्तिश्क सांय-सांय कर रहा था- उसका  जी चाह रहा था- कि वो दहाड़े- मार कर रोये- अपनी इस बर्बादी पर मगर ना रो सका।
          बहुत टूट चुका था रवि- वह निढ़ाल सा आकर चारपाई पर लेट गया- उसकी निगाहें सामने दिवार पर लगी- माँ- सरस्वती की तस्वीर पर पड़ी तो वह भरती चली गयी, ‘‘ये सब क्या है माँ! क्या इस अभागे की साधना में कोई कमी रह गयी थी जो आज ये वर्शों मेहनत करने के बावजूद तेरा बेटा कहलाने के काबिल नहीं है!..ये तेरे कैसे लोग है- तेरा कैसा संसार है- जो तेरी कला को इतनी सस्ती और घटिया साबित करने पर तुला है! ..... बोल मां मेरे प्यार में ऐसा कौनसा खोट है- जो आज तुने मुझसे मुँह फेर लिया है! तेरी ये कैसी देन है माँ जो हर कोई मेरा प्रतिद्वन्दी- मेरा दुष्मन बनकर सामने आ खड़ा होता है वो भी तेरी कला को मजाक बताने वाला!... सुना है तेरी वीणा की झंकार में वो दम है जो टूटे से टूटे दिल के तारों को झन-झना सकती है- फिर से जीवन संग्राम में जूझने के लिए! .... छेड़ दो माँ! .... जरा अपने वीणा के तारों को! ...और लगा जैसे तस्वीर में मां सरस्वती की बेजान अंगुलियां सजीव होकर वीणा के तारों को झंकृत कर उठी थी- अपने इस बदनसीब बेटे की पुकार पर!

          एक बदनसीब बेटा न जाने कब तक उस माँ के आगे खून के आंसू रोता रहा- जिस माँ की मुहब्बत का वो इतना दिवाना था कि उसकी तौहीन (अपमान) उससे कभी बरदास्त ना हुई थी। और इसके बदले में इर्श्यालुओं ने- उसे झूठा बदनाम किया था- उसके धक्के लगाये थे!

अगली कड़ी जल्द ही प्रकाशित की जाएगी!

COMMENTS

BLOGGER: 1
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें बेझिझक दें !!

नाम

​,3,अंकेश धीमान,3,अकबर-बीरबल,15,अजीत कुमार सिंह,1,अजीत झा,1,अटल बिहारी वाजपेयी,5,अनमोल वचन,44,अनमोल विचार,2,अबुल फजल,1,अब्राहम लिँकन,1,अभियांत्रिकी,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक चतुर्वेदी,1,अभिषेक चौधरी,1,अभिषेक पंडियार,1,अमर सिंह,2,अमित शर्मा,13,अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,2,अरस्तु,1,अर्नेस्ट हैमिग्व,1,अर्पित गुप्ता,1,अलबर्ट आईन्सटाईन,1,अलिफ लैला,64,अल्बर्ट आइंस्टाईन,1,अशफाकुल्ला खान,1,अश्वपति,1,आचार्य चाणक्य,22,आचार्य विनोबा भावे,1,इंजीनियरिंग,1,इंदिरा गांधी,1,उद्धरण,42,उद्योगपति,2,उपन्यास,2,ओशो,10,ओशो कथा-सागर,11,कबीर के दोहे,2,कवीश कुमार,1,कहावतें तथा लोकोक्तियाँ,11,कुमार मुकुल,1,कृष्ण मलिक,1,केशव किशोर जैन,1,क्रोध,1,ख़लील जिब्रान,1,खेल,1,गणतंत्र दिवस,1,गणित,1,गोपाल प्रसाद व्यास,1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गौतम कुमार,1,गौतम कुमार मंडल,2,गौतम बुद्ध,1,चाणक्य नीति,25,चाणक्य सूत्र,24,चार्ल्स ब्लॉन्डिन,1,चीफ सियाटल,1,चैतन्य महाप्रभु,1,जातक कथाएँ,42,जार्ज वाशिंगटन,1,जावेद अख्तर,1,जीन फ्राँकाईस ग्रेवलेट,1,जैक मा,1,टी.वी.श्रीनिवास,1,टेक्नोलोजी,1,डाॅ बी.के.शर्मा,1,डॉ मुकेश बागडी़ 'सहज',1,डॉ मुकेश बागड़ी "सहज",1,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,1,डॉ. बी.आर. अम्बेडकर,1,तकनिकी,2,तानसेन,1,तीन बातें,1,त्रिशनित अरोङा,1,दशहरा,1,दसवंत,1,दार्शनिक गुर्जिएफ़,1,दिनेश गुप्ता 'दिन',1,दीनबन्धु एंड्रयूज,1,दीपा करमाकर,1,दुष्यंत कुमार,3,देशभक्ति,1,द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,8,नारी,1,निदा फ़ाज़ली,5,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,1,पं. विष्णु शर्मा,66,पंचतंत्र,66,पंडित मदन मोहन मालवीय,1,परमवीर चक्र,4,पीयूष गोयल,1,पुस्तक समीक्षा,1,पुस्तक-समीक्षा,1,पौराणिक कथाएं,1,प्रिंस कपूर,1,प्रेमचंद,12,प्रेरक प्रसंग,52,प्रेरणादायक कहानी,18,बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय,1,बराक ओबामा,1,बाल गंगाधर तिलक,1,बिल गेट्स,1,बिस्मिल्ला खान,1,बीन्द्रनाथ टैगोर,1,बीरबल,1,बेंजामिन फ्रैंकलिन,1,बेताल पच्चीसी,7,बैताल पचीसी,21,ब्रूस ली,1,भगत सिंह,2,भर्तृहरि,34,भर्तृहरि नीति-शतक,44,भारत,3,भीम,1,महर्षि वेदव्यास,1,महर्षि व्यास,1,महाभारत,52,महाभारत की कथाएं,47,महाभारत की कथाएँ,60,महावीर,1,माखनलाल चतुर्वेदी,2,मानसरोवर,6,माया एंजिलो,1,मार्टिन लूथर किंग जूनियर,1,मित्र सम्प्राप्ति,3,मुंशी प्रेमचंद,1,मुंशी प्रेमचंद्र,32,मुनव्वर राना,9,मुनीर नियाज़ी,1,मुल्ला नसरुद्दीन,1,मुहम्मद आसिफ अली,2,मुहावरे,1,मैथिलीशरण गुप्त,6,मोहम्मद अलामा इक़बाल,4,युधिष्ठिर,1,योग,1,रतन टाटा,1,रफ़ी अहमद “रफ़ी”,2,रबीन्द्रनाथ टैगोर,22,रश्मिरथी,7,राज भंडारी,1,राजकुमार झांझरी,1,राजा भोज,8,राजेंद्र प्रसाद,2,राम प्यारे सिंह,1,राम प्रसाद बिस्मिल,4,रामधारी सिंह दिनकर,17,राशि पन्त,3,रिया प्रहेलिका,1,लाओत्से,1,लाल बहादुर शास्त्री,1,लिओनार्दो दा विंची,1,लियो टोल्स्टोय,13,विंस्टन चर्चिल,1,विक्रमादित्य,29,विजय कुमार सप्पत्ति,4,विजय नाहर,1,विजय हरित,1,विनोद कुमार दवे,1,वैज्ञानिक,1,वॉरेन बफे,1,व्यंग,14,व्रजबासी दास,1,शिवमंगल सिंह सुमन,2,शेख़ सादी,1,शेरो-शायरी,1,श्री श्री रवि शंकर,1,श्रीमद्‍भगवद्‍गीता,19,सचिन अ. पाण्डेय,1,सचिन कमलवंशी,2,सद्गुरु जग्गी वासुदेव,1,सरदार वल्लभ भाई पटेल,3,सिंहासन बत्तीसी,33,सुनिता विलम्यस,1,सुप्रीत गुप्ता,1,सुभद्रा कुमारी चौहान,2,सुमित्रानंदन पंत,2,सुमित्रानंदन पन्त,2,सूरदास,1,सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला,1,हरिवंशराय बच्चन,9,हिंदी व्याकरण,1,A.P.J. Abdul Kalam,1,Abraham Lincoln,3,Acharya Vinoba Bhave,1,Administration,1,Advertisements,1,Akbar-Beerbal,24,Albert Einstein,2,Alibaba,1,Alif Laila,64,Amit Sharma,11,Anger,1,Ankesh Dhiman,42,Anmol Vachan,5,Anmol Vichar,4,Arts,1,Ashfakullah Khan,1,Atal Bihari Vajpayee,4,AtharvVeda,1,AutoBiography,4,Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh,1,Baital Pachchisi,27,Bal Gangadhar Tilak,2,Barack Obama,1,Benjamin Franklin,1,Best Wishes,17,BestArticles,14,Bhagat Singh,4,Bhagwat Geeta,13,Bharat Ratna,3,Bhartrihari Neeti Shatak,48,Bheeshma Pitamah,1,Bill Gates,2,Biography,20,Bismillah Khan,1,Book Review,2,Bruce Lee,1,Business,1,Business Tycoons,2,Chanakya Neeti,70,Chanakya Neeti Kavyanuwad,10,Chanakya Quotes,55,Chanakya Sutra,3,Chhatrapati Shivaji,1,Children Stories,6,Company,1,Concentration,2,Confucius,3,Constitution Of India,1,Courage,1,Crime,1,Curiosity,1,Daily Quotes,13,Deenabandhu C.F. Andrews,1,Deepa Karmakar,1,Deepika Kumari,1,Democracy,1,Desiderata,1,Desire,2,Dinesh Karamchandani,2,Downloads,19,Dr. B. R. Ambedkar,1,Dr. Sarvepalli Radhakrishnan,1,Dr. Suraj Pratap,1,Dr.Harivansh Rai Bachchan,10,Drama,1,Dushyant Kumar,3,Dwarika Prasad Maheshwari,8,E-Book,1,Education,1,Education Quotes,4,Elephants and Hares Panchatantra Story In Hindi ~ गजराज और चतुर खरगोश की कथा,1,Enthusiasm,2,Entrepreneur,1,Essay,3,Experience,1,Father,1,Fathers Day,1,Fearlessness,1,Fidel Castro,1,Gautam Buddha,10,Gautam Buddha Stories,1,Gautam Kumar Mandal,1,Gazals,16,Gift,2,Government,1,Great Facts,2,Great Lives,50,Great Poems,107,Great Quotations,183,Great Speeches,11,Great Stories,613,Guest Posts,114,Happiness,3,Hard Work,1,Health,3,Helen Keller,1,Hindi Essay,3,Hindi Novels,3,Hindi Poems,143,Hindi Quotes,136,Hindi Shayari,18,Holi,1,Honesty,1,Honour & Dishonour,1,Hope,2,Idioms And Phrases,11,Ignorance,1,Ikbal,3,Independence Day,2,India,3,Indian Army,1,Indira Gandhi,1,Iqbal,3,Ishwar Chandra Vidyasagar,3,Jack Ma,1,Jaiprakash,1,Jan Koum,2,Jatak Tales,42,Javed Akhtar,1,Julius Caesar,1,Kabeer Ke Dohe,13,Kashmir,1,Katha,6,Kavish Kumar,1,Keshav Kishor Jain,1,Khalil Zibran,1,Kindness,2,Lal Bahadur Shastri,1,Language,1,Lao-Tzu,1,Law & Order,1,Leo Tolstoy,13,Leonardo da Vinci,1,Literature,1,Luxury,2,Maa,1,Maansarovar,9,Madhushala,1,Mahabharata,53,Mahabharata Stories,67,Maharana Pratap,1,Mahatma Gandhi,5,Maithilisharan Gupt,6,Makhanlal Chaturvedi,2,Manjusha Pandey,1,Mansariwar,1,Mansarovar,11,Mansarowar,8,Martin Luther King Jr,1,Maths,1,Maya Angelou,1,Mitra Samprapti,3,Mitrabhed,6,Money & Property,1,Mother,1,Mulla Nasaruddin,1,Munawwar Rana,9,Munshi Premchand,44,Mythological Stories,2,Napoleon Bonaparte,2,Navjot Singh Sidhu,1,Nida Fazli,5,Non-Violence,2,Novels,1,Organization,1,OSHO,16,Osho Stories,16,Others,2,Panchatantra,66,Pandit Vishnu Sharma,66,Paramveer Chakra,4,Patriotic Poems,6,Paulo Coelho,1,Personality Development,5,Picture Quotes,16,Politics,1,Power,1,Prahlad,1,Praveen Tomar,1,Premchand,37,Priya Gupta,1,Priyam Jain,1,Procrastination,1,Pt.Madan Mohan Malveeya,1,Rabindranath Tagore,25,Rafi Ahmad Rafi,1,Raghuram Rajan,1,Raheem,3,Rahim Ke Done,3,Raja Bhoj,31,Ram Prasad Bismil,4,Ramcharit Manas,1,Ramdhari Singh Dinkar,17,RashmiRathi,7,Ratan Tata,1,Religion,1,Reviews,1,RigVeda,1,Rishabh Gupta,1,Robin Sharma,7,Sachin A. Pandey,1,Sachin Tendulkar,1,SamVeda,1,Sanskrit Shlok,91,Sant Kabeer,14,Saraswati Vandana,1,Sardar Vallabh Bhai Patel,1,Sardar Vallabhbhai Patel,3,Sayings and Proverbs,3,Scientist,1,Self Development,43,Self Forgiveness,2,Self-Confidence,11,Self-Help Hindi Articles,72,Shashikant Sharma,1,Shiv Khera,1,Shivmangal Singh Suman,2,Shrimad Bhagwat Geeta,19,Singhasan Battisi,33,Smartphone Etiquette,1,Social Articles,34,Social Networking,2,Socrates,6,Soordas,1,Spiritual Wisdom,1,Sports,1,Sri Ramcharitmanas,1,Sri Sri Ravi Shankar,1,Steve Jobs,1,Strength,2,Subhadra Kumari Chauhan,2,Subhash Chandra Bose,4,Subhashit,36,Subhashitani,37,Success Quotes,1,Success Tips,1,SumitraNandan Pant,4,Sunita Williams,1,Surya Kant Tripathy Nirala,1,Suvichar,3,Swachha Bharat Abhiyan,1,Swami Dayananda,1,Swami Dayananda Saraswati,1,Swami Ram Tirtha,1,Swami Ramdev,10,Swami Vivekananda,23,T. Harv Eker,1,Technology,1,Telephone Do's,1,Telephone Manners,1,The Alchemist,1,The Monk Who Sold His Ferrari,1,Time,2,Top 10,3,Torture,1,Trishneet Aroda,1,Truthfulness,1,Tulsidas,1,Twitter,1,Unknown,1,V.S. Atbay,1,Vastu,1,Vedas,1,Victory,1,Vidur Neeti,7,Vijay Kumar Sappatti,2,Vikram-Baital,27,Vikramaditya,29,Vinod Kumar Dave,1,Vishnugupta,3,Vrajbasi Das,1,War,1,Warren Buffett,1,WhatsApp,2,William Shakespeare,1,Wilma Rudolf,1,Winston Churchill,1,Wisdom,1,Wise,1,YajurVeda,1,Yashu Jaan,2,Yoga,1,
ltr
item
हिंदी साहित्य मार्गदर्शन: जलने के बाद ~ रफ़ी अहमद “रफ़ी” ~ भाग २
जलने के बाद ~ रफ़ी अहमद “रफ़ी” ~ भाग २
Jalne Ke Bad- Rafi Ahmad Rafi Part 2, A wonderful Novel abour real life incidents in Hindi by Rafi Ahmad Rafi
हिंदी साहित्य मार्गदर्शन
https://www.hindisahityadarpan.in/2017/04/jalne-ke-bad-rafi-ahmad-rafi-part2.html
https://www.hindisahityadarpan.in/
https://www.hindisahityadarpan.in/
https://www.hindisahityadarpan.in/2017/04/jalne-ke-bad-rafi-ahmad-rafi-part2.html
true
418547357700122489
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content