Udyog Parv ~ Mahabharat Stories In Hindi,उद्योग पर्व ~ महाभारत,Kings unite for Pandwas against Duryodhana and Kauravas, Preparation of Mahabharata Battle story in hindi, Lord Krishna as a Shanti Doot, Kunti and Karna Meeting story Mahabharata, Determination of battle of Mahabharata in hindi
उद्योग पर्व में विराट की सभा में पाण्डव पक्ष से श्रीकृष्ण, बलराम, सात्यकि का एकत्र होना और युद्ध के लिए द्रुपद की सहायता से पाण्डवों का युद्धसज्जित होना, कौरवों की युद्ध की तैयारी, द्रुपद के पुरोहित ला कौरवों की सभा जाना और सन्देश-कथन, धृतराष्ट्र का पाण्डवों के यहाँ संजय को संदेश देकर भेजना, संजय का युधिष्ठिर से वार्तालाप, धृतराष्ट्र का विदुर से वार्तालाप, सनत्सुजात द्वारा धृतराष्ट्र को उपदेश, धृतराष्ट्र की सभा में लौटे हुए संजय तथा पाण्डवों का सन्देश-कथन, युधिष्ठिर के सेनाबल का वर्णन, संजय द्वारा धृतराष्ट्र को और धृतराष्ट्र द्वारा दुर्योधन को समझाना, पाण्डवों से परामर्श कर कृष्ण द्वारा शान्ति प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास जाना, दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने का षडयन्त्र करना, गरुड़गालवसंवाद, विदुलोपाख्यान, लौटे हुए श्रीकृष्ण द्वारा कौरवों को दण्ड देने का परामर्श, पाण्डवों और कौरवों द्वारा सैन्यशिविर की स्थापना और सेनापतियों का चयन, दुर्योधन के दूत उलूक द्वारा सन्देश लेकर पाण्डव-सभा में जाना, दोनों पक्षों की सेनाओं का वर्णन, अम्बोपाख्यान, भीष्म-परशुराम का युद्ध आदि विषयों का वर्णन है।
महाभारत की सम्पूर्ण कथा पढ़ें :
पांडवों का अज्ञातवास समाप्त हो गया। वे कौरवों से अपने अपमान का बदला लेने को तैयार थे।अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह पर अनेक राजा उपस्थित हुए। श्रीकृष्ण के कहने पर विराट के राज-दरबार में आमंत्रित सभी राजाओं की सभा बुलाई गई श्रीकृष्ण ने सभी को कौरवों के अन्याय की कथा सुनाई तथा पूछा कि पांडव अपने राज प्राप्ति के लिए प्रयत्न करें या कौरवों के अत्याचार सहते रहें। महाराज द्रुपद ने पांडवों का समर्थन किया जबकि बलराम ने उनका विरोध किया। सबकी सहमति से दुर्योधन के पास दूत भेजने का निश्चय किया गया।
युद्ध की तैयारी
पांडव युद्ध की तैयारियाँ करने लगे। वे पांचाल और विराट सेना के साथ कुरुक्षेत्र के पास शिविर लगाकर ठहरे। कौरवों को इसका पता चल गया तथा वे भी विभिन्न राजाओं को अपने पक्ष में करने के लिए निमंत्रण भेजने लगे। यादवों को अपने-अपने पक्ष में करने के लिए दुर्योधन और अर्जुन स्वयं गए। जब वे दोनों श्रीकृष्ण के शयन-कक्ष में पहुँचे तो वे सोए हुए थे। अर्जुन उनके पैरों की ओर तथा दुर्योधन सिर की ओर बैठ गए। आँख खुले पर कृष्ण ने पहले अर्जुन को देखा तथा बाद में दुर्योधन को। उन्होंने दुर्योधन को अपनी नारायणी सेना दी तथा स्वयं अर्जुन के साथ रहने का वायदा किया तथा युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा भी की। पांडवों के मामा शल्य पांडवों की सहायता के लिए चल पड़े। रास्ते में उनके स्वागत की व्यवस्था दुर्योधन ने की, जिसे देखकर शल्य बहुत प्रसन्न हुए तथा दुर्योधन ने उनको प्रसन्नता के बदले अपने पक्ष में कर लिया। कुरुक्षेत्र में उन्होंने पांडवों को बताया कि वे कौरवों के साथ रहने को वचनबद्ध हो गए हैं। युधिष्ठिर ने शल्य से प्रार्थना की कि यदि वे कर्ण के सारथी बनें तो उसे सदा हतोत्साहित करते रहेंगे। शल्य ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।
दुर्योधन ने शांति प्रस्ताव लेकर आए दूत को कहला भेजा कि वे युद्ध के बिना सुई की नोंक के बराबर भी ज़मीन देने को तैयार नहीं हैं। युधिष्ठिर की सलाह पर श्रीकृष्ण पुनः दुर्योधन के पास शांति प्रस्ताव लेकर गए कि पांडव केवल पाँच गाँवों से ही संतुष्ट हो जाएँगे।
शांति-दूत श्रीकृष्ण
हस्तिनापुर में श्रीकृष्ण के स्वागत की तैयारियाँ होने लगीं। दुर्योधन ने कृष्ण को बाँधकर कैद करने की योजना बनाई। श्रीकृष्ण ने सभा में संधि की बात की। धृतराष्ट्र संधि के पक्ष में थे, पर दुर्योधन नहीं माना। वह श्रीकृष्ण को बाँधने के लिए आदेश देने लगा, पर भीष्म अत्यंत क्रुद्ध हो उठे। दुर्योधन ने कहा कि कृष्ण दूत का काम नहीं कर रहे हैं अपितु पांडवों का पक्ष ले रहे हैं। राज्य के वास्तविक अधिकारी मेरे पिता धृतराष्ट्र थे, पर अंधे होने के कारण पांडु को राज्य सौंपा। पर धृतराष्ट्र का पुत्र मैं तो अंधा नहीं हूँ, अतः मैं ही राज्य का उत्तराधिकारी हूँ। पांडव लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं, हम तो केवल अपनी रक्षा में लगे हैं। कर्ण, दुशासन और शकुनि आदि ने दुर्योधन की बात का समर्थन किया। कृष्ण ने कहा कि वह पांडवों को केवल पाँच गाँव ही दे दें, तो भी युद्ध टल सकता है। पर दुर्योधन इसके लिए भी राजी नहीं हुआ। श्रीकृष्ण दुर्योधन को धिक्कारते हुए सभा-भवन से बाहर निकल गए।
कुंती-कर्ण संवाद
श्रीकृष्ण के कहने से माँ कुंती कर्ण से मिलने गई तथा उसके जन्म की सारी कहानी सुनाई। कुंती ने कर्ण से अपने भाइयों से युद्ध न करने की प्रार्थना की, पर कर्ण राजी न हुए। उन्होंने कुंती से कहा कि मैं केवल अर्जुन से ही पूरी शक्ति से युद्ध करूँगा। हम दोनों में से किसी के मरने पर भी तुम्हारे पाँच पुत्र ही बने रहेंगे। दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ शुरू होने लगीं।
युद्ध का निश्चय
रात्रि के समय दुर्योधन ने अपने मित्रों से बातचीत करके भीष्म को कौरव सेना का सेनापति बनाया। इस पर कर्ण ने प्रतिज्ञा की कि भीष्म के युद्ध-क्षेत्र में रहते मैं शस्त्र ग्रहण नहीं करूँगा। भीष्म ने सेनापति का पद स्वीकार कर लिया, पर स्पष्ट किया कि मैं पांडवों का वध नहीं करूँगा, पर पांडव सेना का संहार करता रहूँगा। इसी समय भगवान वेदव्यास धृतराष्ट्र से मिलने आए। धृतराष्ट्र ने वीरों की वीरता सुनने की इच्छा प्रकट की। व्यास ने संजय को दिव्य-दृष्टि प्रदान की तथा धृतराष्ट्र से कहा कि यहाँ बैठे-बैठे वे युद्ध का सारा समाचार जान सकेंगे।
उद्योग पर्व के अन्तर्गत 10 (उप) पर्व हैं और इसमें कुल 196 अध्याय हैं। इन 10 (उप) पर्वों के नाम हैं-
- सेनोद्योग पर्व,
- संजययान पर्व,
- प्रजागर पर्व,
- सनत्सुजात पर्व,
- यानसन्धि पर्व,
- भगवद्-यान पर्व,
- सैन्यनिर्याण पर्व,
- उलूकदूतागमन पर्व,
- रथातिरथसंख्या पर्व,
- अम्बोपाख्यान पर्व।
Other Famous Complete Series:
- पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ ~ Complete Panchatantra Stories In Hindi
- सम्पूर्ण बैताल पचीसी हिंदी में | Complete Baital Pachchisi Stories In Hindi
- सम्पूर्ण मानसरोवर ~ मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ | Complete Mansarovar Stories By Premchand
- सम्पूर्ण सिंहासन बत्तीसी | Complete Singhasan Battisi In Hindi
- सम्पूर्ण महाभारत ~ संक्षिप्त कथा ! Complete Mahabharata In Brief
Highlights of this post: Kings unite for Pandwas against Duryodhana and Kauravas, Preparation of Mahabharata Battle story in hindi, Lord Krishna as a Shanti Doot, Kunti and Karna Meeting story Mahabharata, Determination of battle of Mahabharata in hindi
महोदय प्रणाम
जवाब देंहटाएंमुझे सम्पूर्ण काव्य संग्रह कौनसे वेबसाइट पर उपलब्ध होगा