शिक्षा के नाम पर व्यापार - क्या उचित है, Business on the name of Education essay in hindi, Burning issue of Education by Private institution
आज का समय बड़ा ही विचित्र है कोई भी व्यक्ति मानों अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी हद तक जाने से बाज नहीं आता, बस कैसे भी उसे आर्थिक लाभ होना चाहिए चाहे व नैतिक तरीके से हो या फिर अनैतिक तरीका। यह स्थिति किसी भी क्षेत्र में ले लीजिए चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर स्वास्थ्य क्षेत्र क्योंकि यदि दोनों क्षेत्र में हमारे देश अथवा राज्य की सुविधाएं दुरुस्त नहीं होगी तो हमारा देश अथवा राज्य भविष्य में विकास की ओर उन्मुख नहीं होगा।
हमें अपने भविष्य के विषय में तनिक भी चिंता नहीं क्योंकि देश का भविष्य जनता के स्वास्थ्य व आगामी पीढ़ी की शिक्षा से पूर्ण रूप से संबंध रखता है। यदि जनता अशिक्षित या फिर रोगी है तो देश के भविष्य का सर्वांगिण विकास विफल निश्चित होगा। पिछले कई दशकों से हमारी सरकारें प्राथमिक शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए काफी प्रयास रत है। लेकिन परिणाम नगण्य ही रहें।
ये अदना सा लेखक अपने अंर्तहृदय में उठने वाले विचारों को लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहता है ताकि हमारे देश की विकास रूपी धारा उज्ज्वल भविष्य की ओर प्रवाहित हो सके। क्योंकि हमारे देश का संपूर्ण भविष्य फुलवारी रूपी छात्र छात्राएं व देश की नई युवा पीढ़ी है। यदि अतिशीघ्र शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा, सुधार क्षेत्र में हमने कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठायें तो आने वाला कल, हम कभी संवार नहीं सकते, क्योंकि सच कड़वा होता है लेकिन बाद में उसका फल भी सुखमय प्रतीत होता है। इसके विपरीत यदि अतिशीघ्र उक्त दोनों क्षेत्रों को हमारी केंद्र व राज्यों सरकार द्वारा अतिशीघ्र दुरुस्त कर लिया जाता है तो हमारा हिंदुस्तान शीघ्र ही विकसित देशों की दौड़ में सबसे आगे होगा। परंतु विडम्बना यह है कि हमारे देश में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण ने स्कूलों तथा अस्पतालों को उच्च किस्म का व्यापार बना दिया है।
यदि बात करें स्वास्थ्य क्षेत्र की, स्वास्थ्य सेवाओं के निजी करण होने के कारण एक मध्यम आदमी को भी निजी अस्पताल में इलाज मंहगा होने के कारण स्वास्थ्य सेवाएं ले पाना संभव नहीं रह गया है क्योंकि यदि शहर में एक्का दुक्का सरकारी हॉस्पिटल है तो वहां के कहने ही क्या या तो अस्पताल परिसर खचा-खच भीड़ से भरा होगा, यदि बीमार व्यक्ति की जैसे-तैसे नंबर आ भी गया तो कोई भी आवश्यक वस्तु अस्पताल में या तो उपलब्ध नहीं होती जैसे कि ऑक्सिजन, दवाइयां, अन्य मैडिकल उपकरण ऐसा ही हाल प्राईवेट स्कूलों की शिक्षा का है जहां शिक्षा घरों को शिक्षा के मंदिर के नाम जाना जाता था और डॉक्टरों को भगवान का दर्जा, किंतु देखने में कुछ ओर ही मिलता है कि रूपये पैसे के समक्ष व्यक्ति अपना ईमान बड़ी आसानी से बेचने को तैयार हो जाता है यदि हम बात करें प्राईमरी स्कूलों की दशा की तो वह इतनी दयनीय स्थिति में है।
यदि मैं डॉक्टरी भाषा में कहूँ सच मानिये जनाब प्राईमरी स्कूलों को तो किसी ओटी में ले जाकर एक संर्कीण ऑपरेशन की अतिशीघ्र आवश्यक्ता है। अन्यथा एक आम व्यक्ति का अपने बच्चों को प्राइमरी शिक्षा देना दुर्भर हो जायेगा। सरकार ने पिछले कई दशकों से शिक्षा के उत्थान के लिए न जाने कितने पापड़ बेले, परंतु सभी प्रयास असफल ही सिद्ध हुये दूसरी तरफ प्राईवेट स्कूलों का व्यापार इतना फलता-फूलता जा रहा कि प्रत्येक व्यक्ति पाश्चात्य सभ्यता का गुलाम होने के कारण प्राइमरी स्कूल की जरर्र स्थिति, सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के ढील मूल रवैया (या फिर किसी सरकारी योजना या फिर जनगणना या फिर जानवरों की जनगणना या फिर इलेक्शन ड्यूटि के चलते) देखते हुये कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाना उचित नहीं समझता। क्योंकि सरकारी परिसर का वातावरण इस प्रकार का हो गया कि आधुनिक शिक्षा पाना संभव नहीं रह गया। हो भी क्यों ना सरकारी अध्यापक तो केवल सरकारी सेवक बन कर रह गया है। सरकारी अध्यापकों की ड्यूटि तो पोषाहार के रजिस्ट्रर पूर्ण करने में ही समाप्त हो जाती है या फिर सरकारी अध्यापकों के अंदर बच्चों को पढ़ाने का उत्साह कम है, प्राय: कहीं ना कहीं देखने को मिलता है कि अध्यापकों को खुद ज्ञान नहीं होता तो बच्चों का क्या ज्ञान देंगे? ये ही तो भ्रष्टाचार का परिणाम जिसके परिणाम भविष्य में हमारे लिये भयामय हो सकते हैं।
ये अदना सा लेखक अपने अंर्तहृदय में उठने वाले विचारों को लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहता है ताकि हमारे देश की विकास रूपी धारा उज्ज्वल भविष्य की ओर प्रवाहित हो सके। क्योंकि हमारे देश का संपूर्ण भविष्य फुलवारी रूपी छात्र छात्राएं व देश की नई युवा पीढ़ी है। यदि अतिशीघ्र शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा, सुधार क्षेत्र में हमने कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठायें तो आने वाला कल, हम कभी संवार नहीं सकते, क्योंकि सच कड़वा होता है लेकिन बाद में उसका फल भी सुखमय प्रतीत होता है। इसके विपरीत यदि अतिशीघ्र उक्त दोनों क्षेत्रों को हमारी केंद्र व राज्यों सरकार द्वारा अतिशीघ्र दुरुस्त कर लिया जाता है तो हमारा हिंदुस्तान शीघ्र ही विकसित देशों की दौड़ में सबसे आगे होगा। परंतु विडम्बना यह है कि हमारे देश में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण ने स्कूलों तथा अस्पतालों को उच्च किस्म का व्यापार बना दिया है।
यदि बात करें स्वास्थ्य क्षेत्र की, स्वास्थ्य सेवाओं के निजी करण होने के कारण एक मध्यम आदमी को भी निजी अस्पताल में इलाज मंहगा होने के कारण स्वास्थ्य सेवाएं ले पाना संभव नहीं रह गया है क्योंकि यदि शहर में एक्का दुक्का सरकारी हॉस्पिटल है तो वहां के कहने ही क्या या तो अस्पताल परिसर खचा-खच भीड़ से भरा होगा, यदि बीमार व्यक्ति की जैसे-तैसे नंबर आ भी गया तो कोई भी आवश्यक वस्तु अस्पताल में या तो उपलब्ध नहीं होती जैसे कि ऑक्सिजन, दवाइयां, अन्य मैडिकल उपकरण ऐसा ही हाल प्राईवेट स्कूलों की शिक्षा का है जहां शिक्षा घरों को शिक्षा के मंदिर के नाम जाना जाता था और डॉक्टरों को भगवान का दर्जा, किंतु देखने में कुछ ओर ही मिलता है कि रूपये पैसे के समक्ष व्यक्ति अपना ईमान बड़ी आसानी से बेचने को तैयार हो जाता है यदि हम बात करें प्राईमरी स्कूलों की दशा की तो वह इतनी दयनीय स्थिति में है।
यदि मैं डॉक्टरी भाषा में कहूँ सच मानिये जनाब प्राईमरी स्कूलों को तो किसी ओटी में ले जाकर एक संर्कीण ऑपरेशन की अतिशीघ्र आवश्यक्ता है। अन्यथा एक आम व्यक्ति का अपने बच्चों को प्राइमरी शिक्षा देना दुर्भर हो जायेगा। सरकार ने पिछले कई दशकों से शिक्षा के उत्थान के लिए न जाने कितने पापड़ बेले, परंतु सभी प्रयास असफल ही सिद्ध हुये दूसरी तरफ प्राईवेट स्कूलों का व्यापार इतना फलता-फूलता जा रहा कि प्रत्येक व्यक्ति पाश्चात्य सभ्यता का गुलाम होने के कारण प्राइमरी स्कूल की जरर्र स्थिति, सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के ढील मूल रवैया (या फिर किसी सरकारी योजना या फिर जनगणना या फिर जानवरों की जनगणना या फिर इलेक्शन ड्यूटि के चलते) देखते हुये कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिलाना उचित नहीं समझता। क्योंकि सरकारी परिसर का वातावरण इस प्रकार का हो गया कि आधुनिक शिक्षा पाना संभव नहीं रह गया। हो भी क्यों ना सरकारी अध्यापक तो केवल सरकारी सेवक बन कर रह गया है। सरकारी अध्यापकों की ड्यूटि तो पोषाहार के रजिस्ट्रर पूर्ण करने में ही समाप्त हो जाती है या फिर सरकारी अध्यापकों के अंदर बच्चों को पढ़ाने का उत्साह कम है, प्राय: कहीं ना कहीं देखने को मिलता है कि अध्यापकों को खुद ज्ञान नहीं होता तो बच्चों का क्या ज्ञान देंगे? ये ही तो भ्रष्टाचार का परिणाम जिसके परिणाम भविष्य में हमारे लिये भयामय हो सकते हैं।
सरकारी स्कूलों की उक्त कमजोरी का फायदा प्राईवेट स्कूल उठा कर, अभिभावकों से मन मानी फीस वसूलते हैं। प्रत्येक राज्य के भिन्न-भिन्न प्राईवेट स्कूलों के सिद्धांत, पाठ्यक्रम, नियम कानून सभी एक दूसरे से भिन्न हंै।
यदि बात करें सुरक्षा व्यवस्था की तो प्राईवेट स्कूलों में इस सेवा का तो क्या कहना, आए दिन कहीं न कहीं एक नन्हीं सी जान को अपने जीवन से हाथ धोना ही पड़ता है। सरकार को चाहिए कि उक्त विडम्बना से छुटकारा पाने के लिए प्राईवेट स्कूलों में कार्यरत समस्त स्टाफ का पुलिस सत्यापन होना अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि भविष्य में होने वाली घटनाओं को कुछ हद तक कम किया जा सके।
कहीं न कहीं प्राईवेट स्कूलों को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है क्योंकि हर गली कूचे में प्राईवेट स्कूल आप को देखने को मिल जायेंगे, व्यक्तियों को प्रसाद के रूप में स्कूल चलाने का लाइसेंस दे दिया जाता है न तो कमरों की जांच की जाती ओर न ही खेल मैदान या फिर समुचित व्यवस्था देखी जाती, वर्तमान समय में लोगों की मानसिकता इतनी संकीर्ण हो गई है कि लोग अपने अतीत के संस्कारों भूलते जा रहे हंै और पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही भेजना ज्यादा पसंद करते है।
लेखक समस्त अभिभावकों से कहना चाहता है कि यदि आप एकाग्रता से अपने इर्द-गिर्द देखेंगे कि जितने में बढ़े अफसर लोग है वो सभी लगभग प्राथमिक स्कूल से ही शिक्षा प्राप्त कर उस उच्च कुर्सी पर विराज मान है। जो कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर की अनोखी मिशाल है। शिक्षा की बढ़ती दुर्दशा को देखते हुए गत वर्षों में एक जनहित याचिका दायर कि गई। याचिका पर फैसला सुनाते हुए माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद ने कहा कि सरकारी खजाने से मानदेय पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हर हालत में अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढ़ाना अनिवार्य होगा अन्यथा दंडात्मक कार्रवाई भी हो सकती है। परंतु देखने में तो कुछ ओर ही मिलता है। यदि गहनता से जांच की जाएं तो शायद अभी तक माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर फूल नहीं चढ़ायें गये होंगे। यदि ऐसा है तो ये माननीय हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना है। जो हमारे लोकतंत्र पर एक प्रश्न चिन्ह अंकित करता है।
यदि बात करें सुरक्षा व्यवस्था की तो प्राईवेट स्कूलों में इस सेवा का तो क्या कहना, आए दिन कहीं न कहीं एक नन्हीं सी जान को अपने जीवन से हाथ धोना ही पड़ता है। सरकार को चाहिए कि उक्त विडम्बना से छुटकारा पाने के लिए प्राईवेट स्कूलों में कार्यरत समस्त स्टाफ का पुलिस सत्यापन होना अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि भविष्य में होने वाली घटनाओं को कुछ हद तक कम किया जा सके।
कहीं न कहीं प्राईवेट स्कूलों को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है क्योंकि हर गली कूचे में प्राईवेट स्कूल आप को देखने को मिल जायेंगे, व्यक्तियों को प्रसाद के रूप में स्कूल चलाने का लाइसेंस दे दिया जाता है न तो कमरों की जांच की जाती ओर न ही खेल मैदान या फिर समुचित व्यवस्था देखी जाती, वर्तमान समय में लोगों की मानसिकता इतनी संकीर्ण हो गई है कि लोग अपने अतीत के संस्कारों भूलते जा रहे हंै और पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही भेजना ज्यादा पसंद करते है।
लेखक समस्त अभिभावकों से कहना चाहता है कि यदि आप एकाग्रता से अपने इर्द-गिर्द देखेंगे कि जितने में बढ़े अफसर लोग है वो सभी लगभग प्राथमिक स्कूल से ही शिक्षा प्राप्त कर उस उच्च कुर्सी पर विराज मान है। जो कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर की अनोखी मिशाल है। शिक्षा की बढ़ती दुर्दशा को देखते हुए गत वर्षों में एक जनहित याचिका दायर कि गई। याचिका पर फैसला सुनाते हुए माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद ने कहा कि सरकारी खजाने से मानदेय पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हर हालत में अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढ़ाना अनिवार्य होगा अन्यथा दंडात्मक कार्रवाई भी हो सकती है। परंतु देखने में तो कुछ ओर ही मिलता है। यदि गहनता से जांच की जाएं तो शायद अभी तक माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर फूल नहीं चढ़ायें गये होंगे। यदि ऐसा है तो ये माननीय हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना है। जो हमारे लोकतंत्र पर एक प्रश्न चिन्ह अंकित करता है।
अत: अंंत में ये अदना सा लेखक अपने विचारों को पूर्ण विराम देना चाहता है और उक्त लेख के आधार पर देश या राज्य के उच्च सिंहासन पर आसीन हुक्मरानों से गुजारिश करना चाहता है कि उक्त विषय को यदि गंभीरता से नहीं लिया जाता (जैसे -निजी स्कूलों व सरकारी स्कूलों का एक समान पाठ्यक्रम, सरकार द्वारा निर्धारित छात्रों का शुल्क, एक समान बोर्ड का गठन, प्रा. स्कूलो में उत्तम परिसर की व्यवस्था, प्रा. स्कूलों में खेल के मैदान की व्यवस्था, निजी अस्पतालों में सामान्य दरों पर रोगी को उत्तम इलाज मुहैया कराना) तो देश का भविष्य उज्ज्वल होना निरर्थक सिद्ध हो सकता है।
लेखक परिचय:
अंकेश धीमान (धीमान इंश्योरेंस) बुढ़ाना बड़ौत रोड
जिला मु.नगर, उत्तर प्रदेश
(जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, वहान बीमा, जीएसटी, बैलंस शीट, टीडीएस डिजिटल सिंगनेचर, समस्त अकाउंट कार्य, हिंदी अग्रेजी भाषा की टाईपिंग, डिजाईनिंग, फलैक्स बोर्ड, पासपोर्ट, पैन कार्ड, मूल आय जाति राशन कार्ड इत्यादि)
Email Id :-licankdhiman@rediffmail.com; licankdhiman@yahoo.com
अंकेश धीमान की अन्य रचनाएँ भी पढ़ें :
बहुत ही उपयुक्त लेख है।
जवाब देंहटाएं