अलीबाबा और चालीस लुटेरों की कहानी ~ अलिफ लैला

अलीबाबा और चालीस लुटेरों की कहानी, Alibaba aur chalis choron ki kahani, Ali baba chali chor story in hindi.Kahani ali baba aur chalis chor ki, Alif laila story of ali baba and chalis chor.अगली रात को मलिका शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि फारस देश में कासिम और अलीबाबा नाम के दो भाई रहते थे। उन्हें पैतृक संपत्ति थोड़ी ही मिली थी। किंतु कासिम का विवाह एक धनी-मानी व्यक्ति की पुत्री से हुआ था। उसे अपने ससुर के मरने पर उसकी बड़ी दुकान उत्तराधिकार में मिली और जमीन में गड़ा धन भी। इसलिए वह बड़ा समृद्ध व्यापारी बन गया।

अगली रात को मलिका शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि फारस देश में कासिम और अलीबाबा नाम के दो भाई रहते थे। उन्हें पैतृक संपत्ति थोड़ी ही मिली थी। किंतु कासिम का विवाह एक धनी-मानी व्यक्ति की पुत्री से हुआ था। उसे अपने ससुर के मरने पर उसकी बड़ी दुकान उत्तराधिकार में मिली और जमीन में गड़ा धन भी। इसलिए वह बड़ा समृद्ध व्यापारी बन गया। अलीबाबा की पत्नी निर्धन व्यक्ति की पुत्री थी इसलिए वह बेचारा गरीब ही रहा। वह अपने तीन गधे ले कर रोजाना जंगल में जाता और वहाँ लकड़ियाँ काट कर गधों पर लाद कर शहर लाता और उन्हें बेच कर पेट पालता।

एक दिन अलीबाबा ने जंगल में जा कर लकड़ियाँ काटीं और उन्हें गधों पर लादा। वह उन्हें हाँक कर नगर की आरे आने ही वाला था कि एक ओर उड़ती हुई धूल को देख कर ठिठक गया। कुछ देर में उसे उस धूल के अंदर से सवार आते हुए दिखाई दिए। वह उनको देख कर घबरा गया।

वह समझ गया था कि यह लुटेरे हैं, मेरे पास कुछ नहीं है तो वे मुझे मार कर मेरे गधों ही को ले जाएँगे। वह सोचने लगा कि जल्दी से जंगल से निकल जाए किंतु यह संभव न था क्योंकि सवार बड़ी तेजी से आ रहे थे। उसने अपने गधों को इधर-उधर हाँक दिया और खुद एक घने पेड़ पर चढ़ गया जहाँ से वह तो सब कुछ देख सकता था लेकिन उसे कोई नहीं देख सकता था।
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उस वृक्ष के पास एक बहुत ऊँचा पहाड़ था। सवार आ कर उसी पहाड़ के पास उतर पड़े। अलीबाबा को निश्चय हो गया कि यह डाकू हैं। उनके पास बड़े-बड़े बोरे थे। जिनमें परदेशी यात्रियों से लूटी हुई संपत्ति थी। अलीबाबा ने गिन कर देखा तो वे संख्या में चालीस थे। घोड़ों से उतर कर उन्होंने उनकी लगामें उतार दीं और सोने-चाँदी से भरी बोरियाँ उतार लीं। फिर उनके सरदार ने पहाड़ की खड़ी चट्टान के पास जा कर कहा, खुल जा समसम। समसम अरबी में तिल को कहते हैं।

सरदार के यह कहते ही खड़ी चट्टान में एक द्वार खुल गया। सरदार और उसके उनतालीस साथी उस दरवाजे से हो कर अंदर चले गए। उनके अंदर जाने पर वह द्वार बंद हो गया और चट्टान जैसी की तैसी लगने लगी। अलीबाबा ने एक बार सोचा कि पेड़ से उतरे और सारी लगामें एक घोड़े पर लाद कर उस पर चढ़ कर भाग जाए ताकि वे उसका पीछा न कर सकें। किंतु डर था कि इस अवधि में वे निकल आए तो उसे मार ही डालेंगे। उसका सोचना ठीक था। क्योंकि थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और सारे लुटेरे बाहर आ गए। सबके बाद सरदार निकला और निकल कर बोला, बंद हो समसम। उसके यह कहते ही दरवाजा बंद हो गया और चट्टान पूर्ववत हो गई। इसके बाद इन लुटेरों ने अपने-अपने घोड़ों पर जीनें कसीं और लगामें लगाईं और खाली बोरियाँ ले कर जिधर की ओर से आए थे उधर ही की ओर चले गए। स्पष्ट था कि वे दूसरी बार डाका मारने जा रहे थे। कुछ ही देर में वे नजरों से गायब हो गए और उनके घोड़ों के सुमों से उड़ी हुई धूल भी बैठ गई।

उन लोगों के प्रस्थान के कुछ देर बार अलीबाबा पेड़ से उतरा। उस समय तक उसे विश्वास हो गया था कि लुटेरे जल्द वापस न आएँगे। वह चट्टान के पास गया और उसने चाहा कि इस बात की परीक्षा करें कि वह भी दरवाजे को खोल सकता है या नहीं। चुनांचे उसने जोर से कहा, खुल जा समसम। उसके यह कहते ही चट्टान में दरवाजा खुल गया। वह अंदर गया तो उसने देखा कि गुफा बहुत लंबी-चौड़ी और साफ-सुथरी है। उसे यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ कि पहाड़ खोद कर कैसे इतनी लंबी-चौड़ी जगह निकाली गई। गुफा का विस्तार तो बहुत था किंतु उसकी छत आदमी की ऊँचाई से कुछ ही अधिक थी। किंतु इधर-उधर पहाड़ के ढलान पर बने हुए सुराखों से उसमें ऐसी रोशनी आ रही थी कि सब कुछ दिखाई दे रहा था।

अलीबाबा ने देखा कि वह पूरी गुफा मूल्यवान वस्तुओं से भरी पड़ी है। हर प्रकार के माल की गठरियाँ वहाँ रखी दिखाई दीं। कई जगह फर्श से ले कर छत तक बहुमूल्य वस्त्रों यथा कमख्वाब, चिकन, अतलस आदि के थान कायदे से रखे हुए थे। इसके अतिरिक्त बहुमूल्य मसालों और कपूर आदि की पेटियाँ थीं। गुफा के एक सिरे पर कई संदूक और कई घड़े अशर्फियों, रुपयों आदि से भरे हुए रखे हुए थे। अलीबाबा के सामने स्पष्ट हो गया कि यह सारी संपत्ति इन चालीस लुटेरों ही की जमा की हुई नहीं है बल्कि सैकड़ों वर्षों से इन लुटेरों के पूर्वज इसे उस गुफा में जमा करते आए हैं क्योंकि जहाँ तक दृष्टि जाती थी वहाँ तक गुफा में मूल्यवान वस्तु रखी दिखाई देती थी।

अलीबाबा के अंदर जाते ही गुफा का द्वार बंद हो गया। यह द्वार इसी प्रकार बना था कि लोगों के अंदर जाते ही अपने आप बंद हो जाता था। अलीबाबा जितनी अशर्फियों की थैलियाँ उठा सकता था उतनी उठा लाया और मंत्र द्वारा दरवाजा खुलवा कर उसने अपने गधों पर थैलियाँ लादीं और उन्हें छुपाने के लिए कुछ लकड़ियाँ रखीं और फिर कहा, बंद हो जा समसम। उसके यह कहते ही गुफा का द्वार बंद हो गया। अलीबाबा रोज की भाँति गधे हाँकता हुआ अपने घर आ गया। घर के अंदर गधे ला कर उसने दरवाजा बंद किया और एक ओर लकड़ियाँ रख दीं और दूसरी ओर अशर्फियों की थैलियाँ। आज उसे लकड़ियों की चिंता नहीं थी। जब वह अशर्फियों को अपनी स्त्री के पास ले गया तो वह बहुत घबराई। उसने समझा कि अलीबाबा इन्हें किसी से लूट कर या किसी के यहाँ से चुरा कर लगाया है। उसने अपने पति को बहुत भला-बुरा कहा और कहने लगी, मैं तो मेहनत की थोड़ी कमाई में खुश हूँ। जो माल तुम लूट कर लाए हो उसे मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगी। अलीबाबा ने कहा, तू मूर्ख है। मैंने कोई अपराध करके इन्हें प्राप्त नहीं किया, तुम पूरा हाल सुनोगी तो इस ईश्वरीय देन पर प्रसन्न होगी। यह कह कर उसने सारी कहानी सुना कर अपनी पत्नी को संतुष्ट कर दिया।

अलीबाबा ने उन्हें उसके सामने ढेर कर दिया तो स्त्री की आँखें चौंधिया गईं। फिर वह अशर्फियों को गिनने लगी। अलीबाबा ने कहा, तुम्हें बिल्कुल समझ नहीं है - यह अशर्फियाँ इतनी हैं कि शाम तक गिनती रहोगी। लाओ, मैं गढ़ा खोद कर इन्हें गाड़ देता हूँ कि किसी को इसका पता न चले। उसकी पत्नी ने कहा, अच्छा, मैं इन्हें गिनूँगी नहीं किंतु अंदाजा जरूर करना चाहती हूँ कि यह कितनी हैं। मैं इन्हें तोल लूँगी। यह कह कर वह कासिम के घर गई और उसकी स्त्री से तराजू माँगने लगी। कासिम की स्त्री को ताज्जुब हुआ कि इन रोज बाजार से लाने और खानेवाले लोगों के पास कौन-सा अनाज आ गया जिसे यह तोलना चाहती है। यह जानने के लिए उसने तराजू के पलड़ों में थोड़ी-थोड़ी चरबी लगा दी ताकि तोली जाने वाली वस्तु कुछ उन में चिपक जाए। अलीबाबा की स्त्री ने अशर्फियाँ तोलीं और अलीबाबा ने घर के आँगन में एक गढ़ा खोदा ओर दोनों ने मिल कर सारी अशर्फियाँ उसमें दबा दीं।

अलीबाबा की स्त्री जब कासिम के घर तराजू वापिस करने गई तो उसने जल्दी में यह न देखा कि तराजू के एक पलड़े में एक अशर्फी लगी रह गई है। वह तो तराजू दे कर लौट आई उधर कासिम की स्त्री ने तराजू में अशर्फी चिपकी देखी तो पहले तो उसकी समझ में न आया। फिर जब समझ में आया कि तराजू में अशर्फियाँ तोली गई हैं तो वह ईर्ष्या की आग में जलने लगी। साथ ही वह इस बात पर आश्चर्य भी करने लगी कि अलीबाबा जैसे गरीब लकड़हारे को इतनी अधिक अशर्फियाँ कहाँ से मिलीं कि उन्हें तोलने की जरूरत पड़ गई। शाम को जब कासिम दुकान बंद करके घर आया तो उसकी स्त्री ने ताने के स्वर में कहा, तुम अपने को बड़ा अमीर समझते हो। तुम अलीबाबा के मुकाबले कुछ नहीं हो। तुम अशर्फियाँ गिन कर रखते हो, वह तोल कर रखता है। कासिम ने कहा, यह तू क्या बक रही है? उसकी स्त्री ने दिन में घटी घटना उसे सुना दी। साथ ही तराजू में चिपकी अशर्फी भी दिखाई जिस पर पुराने जमाने के किसी बादशाह के नाम की मोहर लगी हुई थी।

कासिम को भी जलन के मारे रात भर नींद नहीं आई। दूसरे दिन तड़के ही उठ कर वह अलीबाबा के घर गया और बोला, भाई, तुम लोगों से अपनी निर्धनता का बहाना क्यों करते हो जब कि तुम्हारे पास अपार संपत्ति है। तुम्हारे पास इतनी अशर्फियाँ हैं कि उन्हें गिनने की तुम्हें फुरसत नहीं है। अलीबाबा को कुछ खटका तो हुआ लेकिन उसने कहा, भैया, मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा। सभी जानते हैं कि मैं निर्धन लकड़हारा हूँ। कासिम ने कहा, तुम मुझसे झूठ बोलने की कोशिश न करो। वह देखो, इसी प्रकार की अनगिनत अशर्फियाँ कल तुमने तोली थीं या नहीं? उन्हीं को तोलने के लिए तो तुम्हारी स्त्री कल मेरे यहाँ से तराजू माँग लाई थी। यह कह कर उसने अशर्फी अलीबाबा के सामने रख दी।

अब अलीबाबा को मालूम हो गया कि कासिम की स्त्री ने तराजू में कोई चिपकनेवाली चीज लगा कर अशर्फियों का भेद जान लिया है। उसने पिछले दिन की पूरी घटना विस्तारपूर्वक सुनाई। कासिम ने कहा, तुम्हारी बात से मालूम होता है कि डाकू दो चार दिन तक वापस नहीं आएँगे। इसलिए तुम अभी मुझे पूरी तरह बताओ कि वह जगह कहाँ है और उसकी क्या पहचान है। बल्कि तुम आज न जाओ, तुम काफी पैसे ले आए। मुझे यह भी बताओ कि द्वार खोलने का मंत्र क्या है। न बताओगे तो मैं तुम्हें चोरी के इल्जाम में धरवा दूँगा। अलीबाबा ने विवश हो कर उसे सब कुछ बता दिया। कासिम दस खच्चर ले कर उस जंगल की ओर चल पड़ा। उसे जल्दी ही वह जगह मिल गई और उसने खुल जा समसम कहा तो द्वार भी खुल गया।

कासिम खच्चरों को बाहर छोड़ कर गुफा के अंदर गया। उसके अंदर जाते ही दरवाजा बंद हो गया। कासिम ने इतनी दौलत देखी तो आनंद से नाचने लगा। वह हर चीज को अच्छी तरह परख कर देखता रहा। इस चक्कर में उसे न सिर्फ बहुत देर हो गई अपितु वह खुल जा समसम का मंत्र भी भूल गया। आखिर में वह सबसे कीमती सिक्कों और रत्नों के दस भारी बोझ बना कर दरवाजे के पास लाया किंतु चूँकि वह ठीक शब्द भूल गया था इसलिए कभी कहता खुल जा गेहूँ। कभी कहता खुल जा जौ और द्वार बंद का बंद रहता। अब उसकी जान सूखने लगी कि वह इस गुफा में भूखा प्यासा मर जाएगा। संयोग की बात थी कि लुटेरे भी कहीं से लूटपाट करके उसी दोपहर को आ गए। उन्होंने गुफा के बाहर दस खच्चर बँधे देखे तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि इन खच्चरों को यहाँ कौन लाया है। आसपास देखा तो कोई दिखाई नहीं दिया।

अंत में उन्होंने खच्चरों की चिंता छोड़ कर अपनी लाई हुई संपत्ति को गुफा में रखने की सोची। सरदार ने कहा, खुल जा समसम, और यह कहते ही दरवाजा खुल गया। कासिम यह तो समझ ही गया था कि लुटेरे आ गए हैं। वह दरवाजा खुलते ही जान बचाने के लिए बाहर भागा लेकिन डाकुओं ने उसे वहीं दबोच लिया। वे उसे घसीट कर गुफा के अंदर ले गए और उसे मार कर उसके शरीर के चार टुकड़े कर दिए। वे लोग देर तक इस बात पर बहस करते रहे कि इस आदमी को इस गुफा का भेद कैसे मालूम हुआ। और किसने इसे गुप्त द्वार खोलने की तरकीब बताई।

देर तक बहस करने के बाद भी वे किसी नतीजे पर न पहुँचे। उन्होंने तय किया कि लाश को गुफा के अंदर ही सड़ने दिया जाए क्योंकि बाहर फेंकने से यह खतरा था कि औरों की निगाह पड़ेगी। उन्होंने दरवाजे के पास ही इधर-उधर लाश के टुकड़े फेंक दिए और लूट का माल रख कर जल्दी से बाहर आ गए। जल्दी और कासिम के द्वारा की हुई गड़बड़ से उन्हें यह न मालूम हुआ था कि अशर्फियाँ कम हो गई हैं। वे बाहर आ कर कासिम के खच्चर भी हाँक ले गए और आश्वस्त हो गए कि अब इनका भेद कोई नहीं जानता।

इधर रात होने पर भी जब कासिम घर वापस नहीं लौटा तो उसकी स्त्री अलीबाबा के घर आई। उसे यह तो मालूम नहीं था कि अलीबाबा और कासिम में क्या बात हुई थी और अलीबाबा ने उसे क्या बताया था। उसने अलीबाबा से कहा, देवर जी, तुम्हारे भाई साहब दिन में दस खच्चर ले कर न जाने कहाँ चले गए हैं। मुझ से कह गए कि दो तीन घंटों में वापस आ जाऊँगा। देर हुई तो मैंने दुकान में भी पुछवाया। वहाँ नौकरों ने बताया कि आज मालिक आए ही नहीं। अब रात हो गई है। अभी तक वह नहीं आए हैं। समझ में नहीं आता क्या करूँ और किससे पूछूँ, तुम्हीं कुछ पता लगाओ उनका।

अलीबाबा का माथा ठनका कि जंगल में कहीं कुछ गड़बड़ हो गई। प्रकट में उसने कहा, भाभी, घबराओ नहीं। भैया होशियार आदमी हैं, कोई बच्चे नहीं हैं। किसी जरूरी काम से कहीं रह गए होंगे। सुबह तक आ ही जाएँगे। वैसे भी रात को कहाँ तलाश किया जाए। शहर का फाटक भी बंद हो गया होगा इसलिए बाहर भी नहीं जाया जा सकता। कासिम की पत्नी विवश हो कर घर लौट गई। वह रात भर अपने पति के लिए व्याकुल रही और चुपके-चुपके रोती रही। उसे आवाज इसलिए दबानी पड़ी कि उसे पति के गायब हो जाने में किसी रहस्य का आभास हो गया था और वह यह नहीं चाहती थी कि इस बात का पता पड़ोसियों को चले। वह बार-बार स्वयं को धिक्कारती थी कि उसे अलीबाबा के भाग्य से क्यों ईर्ष्या हुई और क्यों उसने अपने पति को उकसाया, अब न जाने वह किस मुसीबत में पड़ा हो।

सुबह वह फिर अलीबाबा के पास गई और उसने कहा, तुम्हारे भाई अब तक नहीं लौटे। कुछ पता लगागो। अलीबाबा ने अपनी भावज को सांत्वना दे कर उसके घर भेजा और खुद अपने तीनों गधे ले कर जंगल में गया और उसी गुफा के पास पहुँचा। उसे वहाँ अंदर की ओर से रिसा हुआ कुछ खून दिखाई दिया बाहर दस खच्चरों में से एक भी न था। उसे विश्वास हो गया कि कासिम के साथ बुरी बीती। उसने इधर-उधर देख कर कहा, खुल जा समसम। दरवाजा खुल गया और उसके अंदर जाते ही बंद हो गया।

अंदर जाते ही अलीबाबा चौंक पड़ा। दरवाजे के पास ही दोनों ओर कासिम की लाश के दो-दो टुकड़े पड़े थे। उसे समझने में देर न लगी कि कासिम के रहते ही डाकू वापस आ गए और उन्होंने उसे मार डाला और खच्चर भी ले गए। उसने वहीं से एक चादर उठा कर कासिम के शरीर के टुकड़ों की गठरी बनाई। ढेर सारी और अशर्फियाँ भी दो बोरियों में भरीं और मंत्र से द्वार खोल कर बाहर आ गया। उसने एक गधे पर कासिम की लाश और बाकी दो पर अशर्फियाँ लादीं और उन्हें लकड़ियों से छिपा कर होशियारी से शहर में होता हुआ अपने घर आया। उसने अशर्फियों की बोरियाँ अपनी पत्नी को दीं किंतु कासिम का कुछ हाल उसे नहीं बताया और तीसरा गधा ले कर वह कासिम के घर पहुँचा। आवाज देने पर कासिम की दासी ने, जिसका नाम मरजीना था और जो बहुत होशियार थी, दरवाजा खोला। अलीबाबा ने गधा अंदर करके दरवाजा बंद कर लिया और मरजीना को कासिम के बारे में बताया और कहा, समझ में नहीं आता इसकी मौत कैसे बताई जाए और इस टुकड़े-टुकड़े शरीर को कैसे दफन किया जाय। मरजीना ने कुछ सोच कर कहा, आप मालकिन को सँभालें। बाकी काम मैं ठीक कर लूँगी।

अलीबाबा अपनी भावज के पास गया तो उसने कहा, क्या खबर लाए? भगवान सब भला करें। तुम्हारे चेहरे पर दुख दिखाई देता है। अलीबाबा ने उसे कासिम की लाश के चार टुकड़ों में मिलने की बात बताई। वह चीख कर रोने लगी तो अलीबाबा ने उसे डाँट कर कहा, क्या करती हो भाभी? भैया तो गए ही, क्या अब रो-पीट कर तुम सारा भेद खोलना चाहती हो? लोगों को अस्लियत मालूम हुई तो हम सब की जानों पर बन आएगी। या तो शहर कोतवाल हमारे धन के लालच में हम पर कासिम की हत्या का आरोप लगा कर फाँसी दे देगा या डाकुओं को पता चला तो वे आ कर हमें मार डालेंगे। कासिम की स्त्री ने कहा, मैं कहाँ जाऊँगी, क्या करूँगी? मेरा तो कोई लड़का भी नहीं जो दुकान सँभाले। अलीबाबा बोला, बाद में सब ठीक हो जाएगा, मैं तुमसे विवाह कर लूँगा। मेरी स्त्री सुशील है, वह तुमसे झगड़ा न करेगी। पहले भैया के दफन का प्रबंध तो कर लें। कासिम की स्त्री चुपचाप आँसू बहाने लगी।

उधर मरजीना पहले एक अत्तार की दुकान पर गई और उसे मरणासन्न रोगी को दी जानेवाली दवा माँगी। अत्तार ने पूछा कि ऐसा बीमार कौन है तो उसने कहा कि मेरे मालिक की दशा बहुत खराब है। अत्तार ने एक दवा दी और कहा कि इससे ठीक न हो तो फिर आना, मैं और प्रभावकारी औषधि दूँगा। मरजीना दवा ले कर एक बूढ़े मोची के पास, जो दूर के एक मुहल्ले में रहता था, गई। मोची का नाम मुस्तफा था। उसकी दुकान में अँधेरा सा था लेकिन वह डट कर काम कर रहा था। मरजीना बोली, बाबा मुस्तफा, तुम तो बड़े होशियार आदमी मालूम होते हो, इतने अँधेरे में ऐसी नाजुक सिलाई कर रहे हो। मोची हँस कर बोला, लड़की, तू समझती क्या है। मैं तो इससे अधिक अँधेरे में तुझे काट कर दुबारा जोड़ दूँ। मरजीना ने पास आ कर फुसफुसा कर कहा, बाबा, मुझे तुम मत काटो जोड़ो। लेकिन एक ऐसा ही काम है। दाम अच्छे मिलेंगे, लेकिन किसी को पता न चले। एक अशर्फी मिलेगी। अशर्फी के लालच में बूढ़ा तैयार हो गया। मरजीना ने कहा, किंतु उस चौराहे के आगे मैं तुम्हारी आँखों पर पट्टी बाँध दूँगी। बूढ़ा पहले इस पर तैयार नहीं हुआ। किंतु जब उसे मरजीना ने एक अशर्फी और देने का वादा किया तो वह तैयार हो गया।

उस समय तक अँधेरा हो गया था। चौराहे पर आ कर मरजीना ने उसकी आँखों पर पट्टी बाँधी और गलियों-गलियों उसे अपने घर तक लाई। बूढ़ा घाघ था। वह अपने कदम गिनता गया और मोड़ों का ध्यान रखता गया। घर ले जा कर उसने एक कोठरी में रखी कासिम की लाश उसे दिखा कर कहा, इन टुकड़ों को सी कर एक पूरा शरीर बनाना है। मुस्तफा को और भेद जान कर क्या करना था। उसने घंटे दो घंटे में टुकड़े सी कर पूरा शरीर बना दिया। मरजीना ने उसे दो के बजाय तीन अशर्फियाँ दीं और कहा, मैं तुम्हें जिस तरह लाई थी उसी तरह वापस तुम्हारी दुकान के सामनेवाले चौराहे पर पहुँचा दूँगी। यह अतिरिक्त अशर्फी इसलिए है कि तुम इस बात को गुप्त रखो। मुस्तफा ने यह वादा कर लिया।

मरजीना रात ही में मुस्तफा को उसकी दुकान के सामनेवाले चौराहे पर उसकी आँखों में पट्टी बाँध कर छोड़ आई। घर में उसने और अलीबाबा ने मिल कर लाश को नहलाया और कफन में लपेट दिया। दूसरी सुबह मरजीना फिर रोती हुई अत्तार के पास गई और उससे कहा, जो दूसरी दवा तुम कहते थे वह दे दो। मालिक की हालत अब तब हो रही है। मालूम नहीं यह दवा भी वे ले सकेंगे या पहले ही दम तोड़ देंगे।

अत्तार ने दवा दे दी और मरजीना चली गई। अत्तार ने और लोगों को भी कासिम की हालत के बारे में बताया। कासिम मुहल्ले का प्रतिष्ठित व्यक्ति था इसलिए कई आदमी उसके द्वार पर उसका हाल पूछने आ गए। कुछ ही देर में घर के अंदर से रोने-पीटने की आवाजें आने लगीं और दस-पाँच मिनट में अलीबाबा आँसू पोंछते हुए आया। उसने लोगों को बताया कि कल सुबह ही कासिम को जानलेवा रोग हुआ और आज सुबह उसने दम तोड़ दिया।

सब लोगों ने इस पर खेद प्रकट किया। मुहल्ले के और बहुत से लोग आए। मसजिद के इमाम भी आ गए। लाश को मुहल्ले के कब्रिस्तान में ले जा कर दफन कर दिया गया। मसजिद के इमाम ने जनाजे की नमाज पढ़ी और इस तरह कासिम की बीमारी से स्वाभाविक मृत्यु की बात मुहल्ले में मशहूर हो गई। अलीबाबा ने चालीस दिन तक घर में बैठ कर अपने भाई के लिए रस्म के अनुसार शोक किया। चेहल्लुम के बाद वह अपने बड़े भाई के घर में, जो स्वभावतः ही काफी लंबा और चौड़ा था, आ गया और उसकी पत्नी और एकमात्र पुत्र वहीं रहने लगे। मातम की मुद्दत खत्म होने के बाद अलीबाबा ने अपनी विधवा भावज के साथ निकाह कर लिया था। अलीबाबा का पुत्र जो किसी व्यापारी के साथ व्यापार का काम सीख चुका था, कासिम की दुकान को सँभालने लगा और अलीबाबा घर में आराम से रहने लगा।

उधर दो-चार दिन बाद लुटेरे फिर गुफा में आए तो उन्हें यह देख कर घोर आश्चर्य हुआ कि जिस आदमी को मारा गया था उसकी लाश के टुकड़े गायब हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी देखा कि अशर्फियों के ढेर में से चार-पाँच बोरी अशर्फियाँ भी गायब हो गई हैं। डाकुओं ने सोचा कि यह तो बहुत बुरी बात हुई, मृत मनुष्य के अलावा भी कोई आदमी ऐसा है जो गुफा के भेद को और उसे खोलने की तरकीब को जानता है, वह मृतक के शरीर के टुकड़े भी उठा ले गया है और धन को भी। स्पष्ट है कि वह मृतक का कोई संबंधी होगा लेकिन जब मृतक ही का पता नहीं तो संबंधी का पता कैसे चले।

सरदार ने कहा, भाइयो, हाथ पर हाथ धर कर बैठने से काम नहीं चलेगा। जो आदमी हमारा भेद जानता है वह हमारे और हमारे पुरखों के जमा किए धन को लूट ले जाएगा। हम में से कोई यहाँ रह भी नहीं सकता क्योंकि हमने अपने निवास स्थान से दूर संग्रह स्थान बनाया है, यहाँ किसी के रहने से हमारा भेद खुल जाएगा। तुम लोगों में से जो सबसे होशियार हो वह शहर में जा कर मुहल्ले-मुहल्ले घूम-घूम कर पता लगाए और होशियारी से काम करे। अभी सिर्फ यह जानने की जरूरत है कि कौन आदमी टुकड़े-टुकड़े कर के मारा गया है और दफन हुआ है। बाकी काम बाद में देखा जाएगा। जो यह पता लगाएगा वह लूट के माल में अपने हिस्से के अलावा भारी इनाम पाएगा। किंतु यह भी शर्त है कि असफलता की स्थिति में उसे प्राणदंड दिया जाएगा।

एक डाकू ने इस काम का बीड़ा उठाया। वह शहर में आ कर कई मुहल्लों में टोह लेता फिरा किंतु उसे कुछ पता न चला। संयोग से वह मुस्तफा मोची के पास जा निकला। उसने कहा बाबा, तुम इस उम्र में भी अँधेरी जगह में ऐसी होशियारी से काम करते हो। बूढ़ा तारीफ सुन कर फूल गया। प्रतिज्ञा भूल कर बोला, अरे यह काम क्या है? कुछ दिन पहले मैंने इससे भी अँधेरे में एक लाश के चार टुकड़ों को सी कर एक पूरा शरीर बनाया था। डाकू ने बनावटी ताज्जुब से कहा, कटे आदमी को तुमने क्यों सिया? मुस्तफा ने कहा, भाई, मैंने तुम्हें गलती से वह बात बताई है। मैंने उस बात को गुप्त रखने का वादा किया था। अब मैं इस बारे में तुम से कोई बात नहीं करूँगा, बल्कि तुमसे कोई बात भी नहीं करूँगा।

डाकू ने उसके हाथ पर एक अशर्फी रखी और कहा, मैं इस बात को बिल्कुल नहीं पूछूँगा। तुम सिर्फ यह करो कि मुझे वह मकान बता दो जहाँ पर तुमने लाश के टुकड़े सिए थे। मुस्तफा घबराया। उसने कहा, तुम अपनी अशर्फी वापस ले लो। मकान मैं इसलिए नहीं बता सकता कि एक दासी उस चौराहे से मुझे रात के समय आँखों पर पट्टी बाँध कर ले गई थी और उसी तरह वहाँ छोड़ गई थी। डाकू ने उसे एक अशर्फी और दी कहा, बाबा, तुम बहुत होशियार आदमी हो। मैं रात में आऊँगा और तुम्हारी आँखों में पट्टी बाँधूँगा। तुम मुझे वहाँ ले चलो।

बूढ़े को लालच आ गया। उसने कहा, अच्छा भाई, तुम रात को आना। काम बड़ा खतरनाक है लेकिन तुम इतना जोर देते हो तो करना ही पड़ेगा। रात में भी मुस्तफा ने दुकान बंद नहीं की पर दुकान में दिया भी नहीं जलाया। डाकू के आने पर वह उसे चौराहे पर ले गया जहाँ डाकू ने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी। मुस्तफा अपने कदमों को गिनता और निश्चित संख्या के बाद दाएँ या बाएँ मुडने को कहता। अंत में वह एक जगह ठहर गया और बोला कि यहीं तक आया था और उस ओर के मकान में मुझे दासी ले गई थी। डाकू ने उसकी आँखें खोल कर कहा, बता सकते हो कि वह कौन सा मकान है और किसका है। आँखें खोल कर मैं अपनी दुकान के चौराहे पर वापस भी नहीं जा सकता, तुम मुझे पट्टी बाँध कर ही वापस ले चलो। यहाँ किसका कौन सा मकान है यह मैं नहीं जानता, मैं दूर के मुहल्ले में रहता हूँ।

डाकू ने उससे बहस न की। मोची ने बंद आँखों से जो मकान बताया था उसके दरवाजे पर उसने खड़िया से एक निशान बना दिया। फिर वह मुस्तफा की आँखों पर पट्टी बाँध कर उसकी दुकान के चौराहे पर छोड़ गया। रात भर वह उसी नगर में अपने निवास स्थान पर रहा। दूसरे दिन सुबह उठ कर वह अपने दल में गया और सारा हाल बताया कि किस तरह फलाँ मुहल्ले के बूढ़े मोची की आँखों में पट्टी बाँध कर वह उस मकान में गया जहाँ मोची ने चार टुकड़ों को सी कर पूरी लाश बनाई थी और स्पष्टतः वह उसी आदमी की लाश थी जिसे हमने मारा था। सरदार ने कहा, ठीक है, आज रात को मेरे साथ चल कर तुम मुझे वह मकान दिखाना।

इधर सुबह मरजीना घर से बाहर निकली तो उसे अपने द्वार पर खड़िया का निशान मिला। उसे खटका हो गया क्योंकि उसे डाकुओं के बारे में मालूम था। उसने हाथ में खड़िया ली और आसपास के दस बारह मकानों पर ठीक वैसा ही निशान बना दिया जैसा उसके मकान पर बना हुआ था। रात को जासूस डाकू अपने सरदार और दो-एक और साथियों के साथ वहाँ आया तो देखा कि कई मकानों पर वैसे ही निशान बने हैं।

जासूस डाकू यह देख कर बहुत परेशान हुआ। वह उस मकान को बिल्कुल न पहचान सका जिस पर उसने निशान लगाया था। उसने कसमें खा कर कहा कि मैंने एक ही दरवाजे पर निशान लगाया था और बिल्कुल नहीं जानता कि अन्य दरवाजों पर निशान कैसे बन गए। सरदार अपने सभी साथियों को ले कर जंगल में आया और पहले घोषित की हुई शर्त के मुताबिक उसे मृत्युदंड दिया गया। याद रखना चाहिए कि डाकू जितने निर्मम और लोगों के लिए होते हैं उतने ही अपने साथियों के लिए भी होते हैं और ऐसे मौकों पर इस बात का खयाल नहीं करते कि उनका कोई साथी उनके प्रति अब तक कितना वफादार रहा है।

खैर, उस जासूस डाकू को मारने और उसकी लाश ठिकाने लगाने के बाद डाकू फिर सोच-विचार करने लगे कि कैसे उस आदमी का पता लगाया जाए जो गुफा का भेद जान गया है। सरदार ने इनाम की रकम बढ़ा दी और उस का कुछ हिस्सा पेशगी देने का वादा किया। कुछ देर के बाद एक और डाकू ने बीड़ा उठाया कि उस आदमी का पता लगाऊँगा जो गुफा में जा कर अशर्फियाँ भी ले गया और मृत व्यक्ति का शव भी। सरदार ने उसे पेशगी इनाम दे कर विदा किया। वह डाकू कुछ दिनों तक इधर-उधर पूछता रहा फिर वह भी मुस्तफा मोची के पास पहुँचा। मुस्तफा को इस तरह भारी इनाम पाने की आदत पड़ गई थी और उसे यह विश्वास हो गया था कि इस सौदे में उसे किसी तरह का खतरा नहीं है इसलिए वह कुछ ही देर में इस बात के लिए तैयार हो गया कि रात को उसे आँखों पर पट्टी बाँध कर इच्छित भवन तक ले जाया जाए। दूसरे जासूस डाकू ने वहाँ पहुँच कर और मकान के बारे में आश्वस्त हो कर उस पर लगे हुए सफेद निशान के बगल में एक लाल निशान लगा दिया है और अच्छी तरह याद रखा कि सफेद निशान के किस ओर लाल निशान लगा है।

मरजीना की तेज निगाहों से दूसरी बार को वह लाल निशान भी नहीं बच सका। अब उसे पूरा विश्वास हो गया कि कोई बुरी नीयत से कासिम के घर को, जिसमें अब अलीबाबा रहता था, चिह्नित करना चाहता है। उसने सुबह ही सुबह पड़ोस के सारे मकानों में सफेद निशानों की बगल में वैसे ही छोटे लाल निशान बना दिए।

इधर दूसरा जासूस डाकू अपने सरदार के पास गया और उससे कहने लगा कि मैंने अबकी ऐसा निशान लगाया है जो आसानी से किसी को दिखाई भी नहीं देगा। सरदार दो साथियों और जासूस डाकू को ले कर रात में वहाँ पहुँचा तो सब ने देखा कि पहले जैसा ही धोखा हुआ है। मुहल्ले के सारे मकानों पर एक ही जैसे निशान बने हुए हैं। दूसरा जासूस डाकू भी बड़ा लज्जित हुआ और जब डाकू अपने अड्डे पर पहुँचे तो वह सरदार से अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। किंतु सरदार किसी प्रकार की ढिलाई दिखा कर दल का अनुशासन कमजोर नहीं करना चाहता था इसलिए उसने उसे भी मरवा दिया।

दो-दो जासूस डाकुओं की असफलता और मौत देख कर अब कौन वांछित व्यक्ति का पता लगाने को तैयार होता। इसलिए सरदार ने स्वयं ही यह काम करना तय किया। वह भी मुस्तफा मोची के यहाँ पहुँचा और उसे अशर्फियाँ दे कर उसकी आँखों में पट्टी बाँध कर अलीबाबा के मकान के सामने पहुँचा। वह देख चुका था कि मकान पर निशान लगाने की विधि दो बार असफल रही थी, इसलिए उसने घूम-फिर कर सारे मकानों की अच्छी तरह पहचान की। अलीबाबा के मकान के विशेष चिह्नों को भी याद रखा। दूसरे दिन दोपहर के समय उस मुहल्ले में जा कर पूछताछ की और अलीबाबा के बारे पता लगाया कि वह शांत और सौम्य स्वभाव का अतिथिप्रेमी व्यक्ति है।

डाकुओं के सरदार ने अपने अड्डे पर वापस जा कर अलीबाबा को मारने की योजना बनाई। वह यह काम चुपचाप करना चाहता था। उसने अपने आदमियों को भेज कर अड़तीस बड़े-बड़े तेल के कुप्पे जिनमें एक आदमी सिकुड़ कर आसानी से बैठ सकता था तथा उन्नीस खच्चर मँगाए। उसे अपने बचे हुए सैंतीस साथियों को एक-एक कुप्पे में बिठाया और संतुलन पूरा करने के लिए एक कुप्पे में ऊपर तक तेल भरवाया। फिर एक-एक खच्चर पर दो-दो कुप्पे इधर-उधर लटका कर शहर को चल दिया। सरदार ने कुप्पों के अलावा सैंतीस आदमियों के लिए भोजन भी उनके पास रखवा दिया।

सब के पास एक-एक तेज छुरी भी थी। सरदार ने योजना सबको समझाई कि हम लोग अलीबाबा के घर में ठहरेंगे और आधी रात को जब कुप्पों पर मेरी फेंकी हुई कंकड़ियाँ लगे तो सभी डाकू छुरियों से अपने-अपने कुप्पों को चीर कर निकल आएँ और अलीबाबा तथा उसके परिवार के सदस्यों की हत्या करके रात ही रात चुपचाप शहर में इधर-उधर छुप जाएँ और सुबह शहर से बाहर निकल कर अपने अड्डे पर वापस आ जाएँ। सभी डाकुओं को यह योजना पसंद आई।

शाम को दिया जलने के बाद सरदार व्यापारी के वेश में अपने उन्नीस खच्चर लिए हुए अलीबाबा के घर पहुँचा। उसने खच्चर बाहर रहने दिए और खुद अंदर गया। अलीबाबा अपनी बैठक में बैठा था। सरदार ने उसे सलाम करके कहा, महाशय, मैं बाहर से आया हुआ तेल का व्यापारी हूँ और यहाँ के व्यापारियों के हाथ बेचने के लिए तेल लाया हूँ। मुझे रास्ते में देर लग गई और इस समय किसी सराय में जगह भी नहीं मिली। यदि आप अनुमति दें तो आपके अहाते में अपने खच्चर बाँध दूँ और तेल के कुप्पे रखवा दूँ। सुबह उन्हें फिर खच्चरों पर लाद कर तेल की मंडी में चला जाऊँगा।

अलीबाबा ने उसको अतिथि बनाना मंजूर कर लिया। उसने अपने आदमी से कुप्पे उतरवाए और खच्चरों के लिए घास की व्यवस्था करने को कहा किंतु डाकू सरदार ने कहा कि मेरे पास खच्चरों का दाना है। अलीबाबा उसके बदले हुए वेश में उसकी आवाज भी नहीं पहचान सका। उसने कहा, आप मेरे साथ भोजन करें और आप के लिए बाहर की ओर एक कमरा खाली कर दिया है, उसमें सोएँ। इसे अपना ही घर समझें। उसने मरजीना से कहा कि मेहमान के लिए अच्छा भोजन पकाओ। साथ ही उसने आज्ञा दी, कल सुबह मैं हम्माम में स्नान करना चाहता हूँ इसलिए मेरे नौकर अब्दुल्ला को मेरे नए कपड़ों का एक जोड़ा निकाल कर दे देना। साथ ही स्नान के पूर्व मैं पौष्टिक यखनी (मांस रस) पीना चाहता हूँ, वह भी रात ही में चढ़ा देना ताकि सुबह तक भली-भाँति तैयार हो जाए। मरजीना ने कहा, यह सारी बातें हो जाएँगी।

डाकू सरदार और अलीबाबा भोजन करके अपने-अपने कमरों में जा कर लेटे और सो गए। डाकू ने सोचा था कि एक नींद ले लूँ क्योंकि आधी रात के बाद तो रात भर जागना ही था। इधर मरजीना ने अलीबाबा के लिए कपड़े निकाल कर अब्दुल्ला को दिए। फिर वह यखनी चढ़ाने की तैयारी करने लगी। संयोग से उसी समय रसोई के दिए का तेल खत्म हो गया। घर में जलाने का तेल भी नहीं था। वह परेशान हुई तो अब्दुल्ला ने कहा, रोती क्यों है। व्यापारी के इतने सारे कुप्पे रखे हैं। जरा-सा तेल उससे ले ले, व्यापारी को क्या पता चलेगा? मरजीना ने कहा, फिर तू ही तेल ले आ। अब्दुल्ला बोला, मुझे तो सुबह जल्दी उठ कर मालिक के साथ हम्माम को जाना होगा। मैं तो सोने के लिए जाता हूँ। तू ही तेल ला। यह कह कर अब्दुल्ला चला गया।

मरजीना एक कटोरा ले कर तेल लेने एक कुप्पे के पास पहुँची तो उसमें छुपे डाकू ने समझा कि सरदार आया है। उसने पूछा, समय हो गया है क्या सरदार? मरजीना चौंक कर खड़ी हो गई। किंतु उसने अपने होश-हवाश दुरुस्त रखे। एक क्षण बाद भारी आवाज करके बोली, अभी नहीं। फिर वह सभी कुप्पों के पास गई जहाँ उससे वही सवाल किया गया और उसने वहीं जवाब दिया। सिर्फ एक कुप्पे में उसे ऊपर तक भरा हुआ तेल मिला। उसने जल्दी से तेल ले कर यखनी चढ़ाई फिर बड़ी भट्टी में आग जला कर उस पर घर की सबसे बड़ी देग रखी। फिर कई बार जा कर उसने कुप्पे का सारा तेल देग में डाल दिया। जब तेल खूब खौल गया तो उसने अंदाजे से डोई में खौलता तेल ले कर एक-एक करके सभी कुप्पों में डाल दिया। वे डाकू साँस घुटने से पहले ही अधमरे थे, खौलता तेल ऊपर गिरा तो तड़प कर मर गए, उनकी चीखें भी तेज न निकलीं। यह सब करके मरजीना यखनी तैयार करने लगी।

आधी रात को डाकू सरदार ने कंकड़ियाँ फेंकनी शुरू की लेकिन किसी कुप्पे में कोई हरकत नहीं हुई। हालाँकि चाँदनी में सब कुछ दिखाई दे रहा था, सरदार ने समझा कि डाकू सो गए हैं। वह झुँझलाता हुआ उठा। खामोशी से दरवाजा खोल कर वह अहाते के अंदर गया और कुप्पे में ठोकर मार कर डाकू को जगाना चाहा। फिर भी कोई हरकत न हुई तो उसने कुप्पे में झाँक कर देखा। उसे तेल और जले हुए मांस की गंध आई। उसने कुप्पे का मुँह खोला तो अंदर जला और मरा हुआ साथी निकला। फिर वह दूसरे कुप्पों के पास गया। सभी में उसने यह हाल देखा कि डाकू जले और मरे पड़े हैं। उसने यह भी देखा कि तेल का कुप्पा खाली पड़ा हे। वह समझ गया कि किसी ने उसी के तेल से उसके साथियों को मार डाला है। वह अपने भाग्य को कोसने लगा। कहाँ तो वह यह सोच कर आया था कि अलीबाबा को मार कर अपना कोष सुरक्षित करे, यहाँ यह हो गया कि उसका पूरा दल ही खत्म हो गया। डाकू सरदार थोड़ी देर के लिए जड़वत हो कर सिर पर हाथ धरे बैठा रहा।

फिर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया। उसके लिए अपनी जान बचाना जरूरी था। दल तो धीरे-धीरे फिर बन जाता, वह दरवाजे को खोल कर नहीं जा सकता था क्योंकि उसमें ताला लगा हुआ था। इसलिए वह दीवार पर चढ़ा और बाहर सड़क पर कूद गया और भागता हुआ दूर जा कर कहीं छुप रहा। मरजीना ने उसे अपने कमरे से निकलते, कुप्पों के पास जाते और फिर दीवार पर चढ़ कर बाहर छलाँग मारते देखा। उसने सोचा कि डाकुओं का दल तो समाप्त हुआ लेकिन उनका सरदार बच रहा है। वह अकेला क्या कर लेगा? अकेला डाका भी नहीं डाल सकता। कम से कम उस रात को तो वह कुछ कर ही नहीं सकता था। इसलिए मरजीना यखनी के नीचे की आँच निकाल कर अपनी कोठरी में जा कर सो गई।

अलीबाबा अँधेरे में उठ कर अब्दुल्ला को ले कर हम्माम चला गया। दो तीन घंटे के बाद लौटा तो देखा कि अहाते में खच्चर वैसे ही बँधे हैं और तेल के कुप्पे वैसे ही रखे हैं। उसने मरजीना से कहा, क्या वह तेल का व्यापारी अभी सो कर नहीं उठा। उसे तो इस समय तक बाजार में होना चाहिए था। मरजीना ने कहा, मालिक, भगवान आपकी लंबी उम्र करें। वह व्यापारी भाग गया। आप नाश्ता कीजिए, फिर मैं आपको सारा हाल बताऊँगी।

इसीलिए मैंने एकांत कर लिया है। पहले आप उन कुप्पों में झाँक कर देख आइए। अलीबाबा हैरान हो गया। उसने एक कुप्पे में झाँक कर देखा तो मरा आदमी दिखाई दिया। वह भाग कर फिर मरजीना के पास आ कर बोला कि जल्दी बता कि क्या बात है। मरजीना ने कहा कि आप इत्मीनान से बैठिए। मैं आपको पूरा हाल बताऊँगी। आपकी जान को कल रात बड़ा भारी खतरा पैदा हो गया था किंतु ईश्वर की कृपा से वह खतरा टल गया है।

फिर मरजीना बोली, उन अड़तीस कुप्पों में से सिर्फ एक में तेल था और बाकी में डाकू छुपे थे। वह व्यापारी उन का सरदार था। मुझे पिछले चार-पाँच दिनों से शक था कि कोई व्यक्ति आप का अनिष्ट करना चाहता है। मैं सजग भी हो गई और अपनी समझ के अनुसार सावधानी भी बरती जो भगवान की दया से सफल हुई। एक दिन मैंने घर के दरवाजे पर सफेद खड़िया का निशान देखा। मैं समझ गई कि कोई व्यक्ति बुरी नीयत से आप का मकान पहचानना चाहता है। इसलिए मैंने वैसे ही खड़िया के निशान मुहल्ले के सारे दरवाजों पर बना दिए जिससे आपके घर की पहचान खत्म हो जाए। दो-तीन दिन बाद मैंने देखा कि सफेद निशान के पास एक छोटा-सा लाल निशान बना है। मुझे विश्वास हो गया कि आपके किसी दुश्मन की यह कार्रवाई है। आपका शहर में कोई दुश्मन हो ही नहीं सकता। इसलिए मैंने सोचा कि यह गुफावाले डाकू ही हैं जो आपके पीछे पड़े हैं। मैंने मुहल्ले के सारे घरों के दरवाजों पर सफेद निशानों के पास वैसे ही लाल निशान बना दिए इस प्रकार एक बार फिर उन लोगों की योजना असफल हो गई। मैंने आपसे उस समय इसलिए कुछ नहीं कहा कि आप मेरा विश्वास तो करते नहीं, बेकार और लोगों में बात फैलती और यह भी संभव था कि डाकुओं को आपका घर मालूम हो जाता।

किंतु मेरी चुप्पी के बावजूद डाकुओं ने किसी तरह आपके घर का पता लगा लिया और सरदार आपने सैंतीस साथियों को तेल के कुप्पों में बंद कर एक तेल के कुप्पे के साथ यहाँ लाया था। मालूम होता है कि जासूसी असफल होने पर उसने अपने दो साथियों को मार डाला। वरना वह बीस खच्चर लाता और उन पर अपने उनतालीस साथी लाता। मुझे उस व्यापारी की अस्लियत का जिस तरह पता चला वह भी ईश्वर की कृपा ही समझिए। जब आपने यखनी बनाने को कहा तो पहले मैंने आपके संदूक के कपड़ों का जोड़ा आपके लिए निकाल कर अब्दुल्ला को दिया। उसी समय रसोई का दिया तेल की कमी से बुझने लगा। अब्दुल्ला ने सुझाव दिया कि व्यापारी के कुप्पों से थोड़ा तेल ले ले। वह खुद सोने चला गया क्योंकि आज उसे आपके साथ हम्माम जाना था।

मैं कटोरा ले कर तेल लेने गई तो एक कुप्पे में से छुपे हुए डाकू ने पूछा कि क्या समय आ गया है? मैं समझ गई कि यह डाकू आपको मारने आए हैं। मैंने उत्तर दिया कि अभी नहीं आया। इसी तरह मैंने सैतीसों कुप्पों के अंदर से वही प्रश्न सुना और वही उत्तर दिया। आखिरी कुप्पे का तेल मैं धीरे-धीरे रसाई में ले आई और बड़ी देग भट्टी पर चढ़ा कर उसमें वह तेल डाल कर गर्म किया। जब तेल उबलने लगा तो एक डोई में तेल भर-भर कर उन सभी कुप्पों में डाल आई। आधी रात को मैंने देखा कि जिस कमरे में व्यापारी ठहरा है उसमें से कंकड़ियाँ आ-आ कर कुप्पों में लग रही हैं। मैं समझ गई कि यह डाकुओं को बाहर निकल कर हम सभी को मार देने का इशारा है। मैं देखती रही। फिर मैंने देखा कि वह व्यापारी बना हुआ डाकू सरदार नीचे आया और अपने साथियों को मुर्दा पा कर थोड़ी देर तक सिर पकड़े बैठा रहा। उसके बाद बाहरी दीवार पर चढ़ा और सड़क की ओर कूद गया। मैंने सड़क पर उसके भागने की आवाज भी सुनी। इस प्रकार जब मैंने खतरा टला देखा तो जा कर सो गई।

अलीबाबा कुछ देर तो हक्का-बक्का देखता रहा। फिर बोला, मरजीना, तू कहने को दासी है लेकिन काम तूने कुटुंबियों से बढ़ कर किया है। मेरी समझ में नहीं आता कि तुझे क्या इनाम दूँ। मेरी तो अभी यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि इन लाशों, और खच्चरों और कुप्पों का क्या करूँ।

मरजीना ने कहा, मालिक, सरदार या अधिक से अधिक उसके दो साथी बचे होंगे। उनसे अभी कोई तात्कालिक खतरे की संभावना नहीं है। इस समय आप घर के सभी नौकरों को बुला कर अहाते में एक बड़ा भारी गढ़ा खुदवाएँ, फिर नौकरों को बाहर काम पर भेज दें। इसके बाद हम दोनों कुप्पों में से लाशें निकाल निकाल कर उस गढ़े में भर दें और गढ़े के ऊपर से मिट्टी डाल कर दबा दें ताकि गढ़े का निशान भी न दिखाई दे। अलीबाबा को उसकी राय पसंद आई। उसने नौकरों से बड़ा-सा गढ़ा खुदवाया, फिर नौकरों को बाहर भेज कर लाशों को मरजीना की मदद से गढ़े में डाल कर गढ़ा बंद कर दिया। उसने एक-एक दो-दो करके सारे कुप्पे और खच्चर बाजार में बिकवा दिए।

डाकुओं के सरदार को अपने निवास स्थान पर जा कर भी चैन न आया। उसका सारा दल खत्म हो गया था। उसे नए सिरे से छिटपुट लूट-मार करके धीरे-धीरे नया दस्यु दल तैयार करना था। साथ ही अलीबाबा भी अभी जिंदा था जो उसके सारे खजाने पर कब्जा कर सकता था। उसका एक दिन इसी उलझन में बीता। फिर वह यह सोच कर नगर में आया कि अलीबाबा सैंतीस लाशों को छुपा नहीं सकेगा और संभवतः इतने लोगों की हत्या के अपराध में मृत्युदंड भी पा जाए। इसलिए वह एक सराय में ठहरा और भटियारे से शहर के समाचार पूछने लगा। भटियारों को इन बातों के सुनाने में मजा आता है। किंतु जैसा समाचार वह सुनना चाहता था वैसा भटियारा उसे न सुना सका। उसने दो-चार और सरायों में जा कर इसी तरह टोह ली लेकिन कहीं पर यह नहीं सुना कि बादशाह ने अलीबाबा को सैंतीस आदमियों के मारने के अभियोग में गिरफ्तार किया होगा। ऐसा होता तो डाकू सरदार का एकमात्र शत्रु उसके हाथ पाँव हिलाए बगैर ही मारा जाता किंतु ऐसा नहीं होना था।

डाकू सरदार ने यह तो समझ लिया कि अलीबाबा देखने में सीधा-सादा है लेकिन वास्तव में बुद्धिमान है कि न सिर्फ अपने भाई की लाश को ला कर गुप्त रुप से उसके टुकड़े सिलवा कर उसे दफन कर दिया बल्कि उसके सैंतीस साथियों की लाशों को भी अत्यंत चतुरता से घोंट गया। ऐसे आदमी से बदला लेना आसान काम नहीं था। फिर भी डाकू सरदार ने अलीबाबा की हत्या करने का विचार न छोड़ा। उसने सोचा कि इस आदमी को मारने के बाद ही नए दल का संगठन किया जाए।

उसने पता लगा कर मालूम किया कि अलीबाबा कासिम के घर पर ही रहता है किंतु उसका पुत्र अपने पुराने घर में रहता है और अपने दिवंगत चचा की दुकान चलाता है। डाकू सरदार ने उसके पुत्र ही से अपनी बदले की भावना की शुरुआत की। उसने कासिम की दुकान के सामनेवाली दुकान मोल ली और उसमें व्यापार का सामान रख कर बैठने लगा और अपना नाम ख्वाजा हसन मशहूर किया। कुछ ही दिनों में उसने अलीबाबा के पुत्र से जो बड़ा सभ्य और सुशिक्षित था गहरी दोस्ती कर ली। उसने कई दिन तक इधर-उधर की बातें करके जान लिया कि इसे गुफा के खजाने के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है। स्पष्ट था कि उसे यानी अलीबाबा के पुत्र को डाकुओं की भी कोई आशंका नहीं थी और पुत्र के द्वारा पिता से संपर्क स्थापित किया जा सकता था। अलीबाबा खुद भी कभी दुकान पर अपने पुत्र को देखने जाता था। डाकू ने दूर से उसे पहचान लिया। उसने अलीबाबा के पुत्र से इतनी मित्रता की कि रोज उसके साथ घूमने लगा और कई बार उसे अपने घर बुला कर उसकी शानदार दावत कर डाली।

अलीबाबा के पुत्र ने एक दिन अपने पिता से कहा, एक नया व्यापारी ख्वाजा हसन मेरा गहरा मित्र हो गया है। वह कई बार मुझे अपने घर ले जा कर भोजन करा चुका है। मैं भी उसे अपने यहाँ भोजन पर बुलाना चाहता हूँ। लेकिन मेरा घर इतना छोटा है कि उसमें दावत का ठीक प्रबंध नहीं हो सकेगा। इसलिए अगर आप अनुमति दें तो आपके अच्छे घर में उसकी दावत का इंतजाम हो जाए। अलीबाबा ने कहा, कल शुक्रवार है, बाजार बंद रहेगा। तुम घूमते-घूमते उसे शाम को यहाँ ले आना। मैं उसकी दावत का प्रबंध कर रखूँगा। मरजीना अच्छा भोजन तैयार कर देगी।

दूसरे दिन शाम को अलीबाबा का पुत्र और डाकू सरदार टहलते-टहलते अलीबाबा के मकान पर आए। डाकू को पहले ही इसका आभास हो गया था और वह अलीबाबा की हत्या की तैयारी करके आया था। जब अलीबाबा के पुत्र ने कहा कि यह मेरे पिता का मकान है तो दिखाने के लिए डाकू ने कहा, रहने दीजिए। क्यों बुजुर्ग आदमी के आराम में हम लोग दखल दें। मेरे जाने से उन्हें कष्ट होगा। आप ही चले जाएँ। मैं वापस जाता हूँ। अलीबाबा के पुत्र ने कहा, उन्हें कोई कष्ट नहीं होगा, प्रसन्नता ही होगी। मैंने उनसे आपका उल्लेख किया तो उन्होंने कहा था कि कोई अवसर हुआ तो ख्वाजा हसन से मिलूँगा। आप अंदर चलिए। घर में ला कर अलीबाबा के पुत्र ने अपने मित्र को अपने पिता से मिलाया तो अलीबाबा ने कहा, आप से मिल कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। इस बच्चे ने मुझ से आप की बड़ी प्रशंसा की है। मालूम हुआ है कि इसे जितना प्यार मैं करता हूँ उससे अधिक आप करते हैं।

डाकू सरदार ने कहा, यह इतने सभ्य और सुशील हैं कि इन्हें कौन प्यार न करेगा। इनकी नौजवानी ही है लेकिन इनकी बुद्धिमानी, व्यवहारकुशलता और गंभीरता अधिकतर वयस्कों से भी अधिक है। क्यों न हो, यह पुत्र तो आप ही जैसे सज्जन के हैं। इसी प्रकार उन लोगों में बहुत देर तक सौहार्द और शिष्टाचारपूर्ण बातें होती रहीं।

फिर डाकू सरदार ने घर जाने की अनुमति माँगी। अलीबाबा ने कहा, यह आप क्या कह रहे हैं। बगैर भोजन किए आप यहाँ से नहीं जाएँगे, बल्कि आज रात आप मेरी कुटिया में मेहमान रहेंगे। मैं जानता हूँ कि यहाँ आपको अपने घर जैसा आराम न मिलेगा, न हमारे घर का रूखा-सूखा भोजन आपके योग्य होगा। फिर भी मेरी प्रसन्नता के लिए आप मेरा अनुरोध स्वीकार करें। डाकू ने कहा, ऐसी बातें करके आप मुझे लज्जित कर रहे हैं। आपके यहाँ किस चीज की कमी है। लेकिन मेरी कुछ मजबूरी है। मैं अपने घर के अलावा और कहीं नहीं खाता। कारण यह है कि मुझे ऐसा रोग है जिसमें नमक बिल्कुल नहीं खाया जा सकता। अलीबाबा ने कहा, यह क्या मुश्किल है। मैं अभी आपके लिए बगैर नमक के भोजन का प्रबंध कराए देता हँ।

उसने अंदर आ कर मरजीना से कहा, हमारा मेहमान एक रोग के कारण नमक नहीं खाता। उसके लिए जो कुछ बनाओ बगैर नमक का हो। मरजीना अलीबाबा से तो कुछ न बोली किंतु बैठक के परदे के पीछे छुप कर देखने लगी कि यह कौन आदमी है जो नमक नहीं खाता और इतना बड़ा रोग ले कर भी यहाँ पैदल आया है। गौर से देखा तो पहचान गई कि यह वही दुष्ट डाकू सरदार है जो कुछ महीने पहले तेल का व्यापारी बन कर हमारे यहाँ ठहरा था। जब वह खाना परोसने के लिए आई तो उसने देखा कि डाकू अपने कपड़ों में पैनी छुरी छुपाए है। वह समझ गई कि यह नमक इसलिए नहीं खा रहा कि जिसका नमक खाया जाता है उसे अपने हाथ से मारना जघन्य नैतिक अपराध होता है। पिछली बार तो उसके साथी हत्या करते इसीलिए उस बार उसने नमक से परहेज नहीं किया था। मरजीना ने तय कर लिया कि यह अलीबाबा को मारे इससे पहले मैं ही उसे मार दूँ।

जब अलीबाबा, उसका पुत्र और डाकू सरदार भोजन कर चुके तो अब्दुल्ला और मरजीना ने वहाँ के बर्तन उठा कर एक तिपाई रखी जिस पर सुगंधित मदिरा की सुराही और तीन प्याले रखे थे।

उन दोनों ने ऐसा प्रकट किया कि अब वे खाना खाएँगे। डाकू सरदार इसी बात की प्रतीक्षा कर रहा था कि नौकर खाना खाने जाए तो अलीबाबा का काम तमाम कर दूँ और उसे छुरी के एक ही वार से खत्म करके बाग की दीवार फाँद कर निकल जाऊँ और यदि अलीबाबा का कोमल-सा पुत्र प्रतिरोध करे तो उसे भी मार दूँ। मरजीना की निगाहें बड़ी तेज थीं। वह डाकू के आँखों के भाव से समझ गई कि उसका इरादा क्या है। उसने अब्दुल्ला से कहा कि तुम दफ अच्छा बजाते हो, मालिक के मेहमान के आगे भी अपना कमाल दिखाओ। खाना तो हम लोग बाद में भी खा लेंगे। अब्दुल्ला इस बात पर राजी हो गया।

दो-चार मिनट ही में वे दोनों मुख्य कक्ष में आ गए। अब्दुल्ला वाद्य वादकों के कपड़े पहने था और उसके हाथ में दफ था। मरजीना ने नृत्यांगना की पोशाक पहनी, सिर पर रेशमी पगड़ी रखी और कमर में सुनहरा पटका बाँधा जिसमें छुरी खोंसी हुई थी। मुख्य कक्ष में आ कर उसने अलीबाबा से अनुमति माँगी कि मेहमान का नृत्य से मनोरंजन उसे करने दिया जाए। अलीबाबा ने खुशी से अनुमति दे दी। डाकू सरदार ने भी मजबूरी में सहमति प्रकट की क्योंकि इनकार करके वह अपने भेद के खुलने का खतरा मोल लेता।

मरजीना ने तरह-तरह के नाच दिखाए। अब्दुल्ला भी कलाकार था। उसने मस्त हो कर दफ बजाया। नृत्य वाद्य वादन से खुश हो कर अलीबाबा और उसके पुत्र ने दोनों को एक एक अशर्फी इनाम में दी। डाकू सरदार ने भी दोनों को एक-एक अशर्फी का इनाम दिया। मरजीना डाकू की नजरों से समझ गई कि अब वह नाच गाना बंद करने का आदेश देने ही वाला है उसने तय किया कि इसी समय यदि डाकू की हत्या न की गई तो वह मालिक और उसके पुत्र की हत्या कर देगा और अभी तक मरजीना ने जो कुछ किया था सब मिट्टी में मिल जाएगा।

मरजीना ने कहा - सरकार, अब मैं आप लोगों को अपना सर्वश्रेष्ठ और अंतिम नृत्य दिखाऊँगी। यह छुरी का नाच कहलाता है और इस देश में मेरे अलावा और कोई इसे नहीं जानता। आप लोग इसे देख कर अति प्रसन्न होंगे। यह कह कर मरजीना ने कमर से छुरी खींच ली। यह छुरी अत्यंत पैनी थी और मोमबत्तियों के प्रकाश में खूब चमचमा रही थी। फिर उसने तेज नाच शुरू कर दिया। छुरी को उसने बड़ी तेजी से घुमाते हुए ऐसा दिखाया कि वह अपने हृदय में छुरी घुसेड़ना चाहती है। फिर यही उसने अब्दुल्ला के साथ किया फिर पाँच-छह बार नाचते-नाचते यह किया कि कभी अपने हृदय तक छुरी की नोक ले जाती कभी अब्दुल्ला के हृदय तक। इस नाच से मेजबान और मेहमान सभी आनंदित हुए। फिर मरजीना नाचते-नाचते अलीबाबा के पास गई और उसके हृदय के ऊपर उसने छुरी की नोक छुआई। दो बार अलीबाबा के साथ यह खेल दिखाने के बाद उसने दो बार यही उसके पुत्र के साथ किया। फिर वह नाचते-नाचते डाकू के पास गई। वह निश्चल बैठा रहा जैसा अलीबाबा और उसके पुत्र ने किया था। लेकिन इस बार मरजीना ने पूरी ताकत से वार किया और पूरी छुरी उसके हृदय में उतार दी। डाकू सरदार एक क्षण तक तड़पने के बाद ठंडा हो गया।

अलीबाबा सदमे से बाहर हुआ तो चीखा, अभागिनी तूने मेरे अतिथि को मार डाला और मेरे सिर पर मित्रघात का कलंक लगा दिया। तुझे इसका दंड दिया जाएगा। मरजीना ने कहा, जो दंड का भागी था उसे दंड मिल गया। आपकी भगवान ने रक्षा की। यह आप का मित्र नहीं परम शत्रु है। आप दो-दो बार देख कर इस डाकू सरदार को नहीं पहचान सके और आज इसके हाथ से मारे जाते। मुझे इसके नमक न खाने से संदेह हुआ और मैंने देख लिया कि यह अपने कपड़ों में क्या छुपाए हैं। यह देखिए। यह कह कर उसने डाकू का वस्त्र हटा कर छुपी हुई छुरी को दिखाया। उसने कहा कि जो काम यह तेल का व्यापारी बन कर न कर सका था वह ख्वाजा हसन बन कर करना चाहता था, आज यह आपकी हत्या किए बगैर न जाता।

अलीबाबा ने उठ कर मरजीना को गले लगा लिया और बोला, तूने कई बार मेरी जान बचाई। मैं तुझे इस अहसान का पूरा बदला तो नहीं दे सकूँगा, फिर भी जो कर सकता हूँ वह करूँगा। मैं तुझे इसी क्षण दासत्व से मुक्त करता हूँ। मैं तुझे अपनी पुत्रवधू बनाना चाहता हूँ। यह कह कर उसने अपने पुत्र से पूछा कि तुम्हें यह प्रस्ताव स्वीकार है या नहीं। उसने तुरंत ही यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और दो-चार दिन में मरजीना से उसका विवाह हो गया।

फिर चारों ने मिल कर डाकू सरदार की लाश को होशियारी से मकान के अंदर इस तरह गाड़ा कि उसका पता किसी को न चले। अब्दुल्ला को भी भारी इनाम मिला। मरजीना के साथ अलीबाबा के पुत्र का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ और कई दिनों तक नाच रंग होते रहे। कुछ दिनों बाद अलीबाबा ने अपने पुत्र को डाकुओं के छुपे हुए खजाने का हाल विस्तारपूर्वक बताया। वह उसे वहाँ ले भी गया और गुफा के द्वार खोल कर भी दिखाया। कई दिनों तक वे दोनों पता लगाते रहे कि कोई डाकू बचा है या नहीं। जब कई दिन तक किसी घोड़े की टापों के निशान न देखे और खजाने में भी कोई घटत-बढ़त न देखी तो दोनों कई दिनों में थोड़ा-थोड़ा खजाना छुपा कर अपने घर में लाते रहे और गुफा को खाली कर दिया। फिर उन दोनों ही ने नहीं उनकी कई पीढ़ियों ने सुख से जीवन व्यतीत किया।

शहरजाद ने यह कहानी खत्म की तो दुनियाजाद ने उसे और कहानी सुनाने के लिए कहा। उस दिन सवेरा हो गया था इसलिए अगले दिन शहरजाद ने नई कहानी शुरू की।
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