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दोस्तों हर साल २३-जनवरी को हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती मनाते हैं, उनके दिए गए प्रसिद्द नारे ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ और ‘जय हिन्द’ हमें आज भी देशभक्ति के जज्बे से भर देते हैं। उनके प्रसिद्द कथनों और नारों को हमने पहले ही प्रकाशित किया था जो आप नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं:
NetaJi Subhash Chandra Bose Quotes In Hindi ~ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल विचार ।
बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी नेताजी का सम्पूर्ण जीवन देश के लिए समर्पित था। नेताजी की सम्पुर्ण आत्मकथा हमने पीडीऍफ़ फॉर्मेट में डाउनलोड करने और पढने के लिए उपलब्ध करायी थी, जो आप नीचे दिए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं:
डाउनलोड करें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (हिंदी में )। Download Biography of NetaJi Subhash Chandra Bose In Hindi
इस पोस्ट में नेताजी के जीवन पर आधारित ३ अद्भुत प्रेरक कहानियाँ हम एक साथ प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि इन्हें आप एक जगह पढ़ पाएँ। आईये याद करें उस महामानव आत्मा को जिसने हमारी आजादी में अहम् भूमिका निभाई और अपने उदाहरणों से हमें दशकों से प्रेरित करते आ रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करते रहेंगे।
उनके मानव से महा-मानव बनने की ये यात्रा एक दिन की नहीं थी वरन ये गुण उनमे बचपन से ही विद्यमान थे जिसकी झलक आपको नीचे प्रकाशित प्रेरक प्रसंगों में साफ दिखेगी।
संकल्प से सब कुछ हासिल किया जा सकता है
बात नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बचपन की है जब वे स्कूल में पढ़ा करते थे। बचपन से ही वे बहुत होशियार थे और सारे विषयो में उनके अच्छे अंक आते थे, लेकिन वे बंगाली में कुछ कमजोर थे। बाकि विषयों की अपेक्षा बंगाली मे उनके अंक कम आते थे।
एक दिन अध्यापक ने सभी छात्रों को बंगाली में निबंध लिखने को कहा। सभी छात्रों ने बंगाली में निबंध लिखा। मगर सुभाष के निबंध में बाकि छात्रों की तुलना में अधिक कमियाँ निकली।
अध्यापक ने जब इन कमियों का जिक्र कक्षा में किया तो सभी छात्र उनका मजाक उड़ाने लगे।
उनकी कक्षा का ही एक विद्यार्थी सुभाषचंद्र बोस से बोला- “वैसे तो तुम बड़े देशभक्त बने फिरते हो मगर अपनी ही भाषा पर तुम्हारी पकड़ इतनी कमजोर क्यों है।”
यह बात सुभाषचन्द्र बोस को बहुत बुरी और यह बात उन्हें अन्दर तक चुभ गई। सुभाषचंद्र बोस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह अपनी भाषा बंगाली सही तरीके से जरुर सीखेंगे।
चूँकि उन्होंने संकल्प कर लिया था इसलिये तभी से उन्होंने बंगाली का बारीकी से अध्ययन शुरू कर दिया। उन्होंने बंगाली के व्याकरण को पढ़ना शुरू कर दिया, उन्होंने दृढ निश्चय किया कि वे बंगाली में केवल पास ही नहीं होंगे बल्कि सबसे ज्यादा अंक लायेंगे।
सुभाष ने बंगाली पढ़ने में अपना ध्यान केन्द्रित किया और कुछ ही समय में उसमे महारथ हासिल कर ली। धीरे धीरे वार्षिक परीक्षाये निकट आ गई।
सुभाष की कक्षा के विद्यार्थी सुभाष से कहते – भले ही तुम कक्षा में प्रथम आते हो मगर जब तक बंगाली में तुम्हारे अंक अच्छे नहीं आते, तब तक तुम सर्वप्रथम नहीं कहलाओगे।
वार्षिक परीक्षाएं ख़त्म हो गई। सुभाष सिर्फ कक्षा में ही प्रथम नहीं आये बल्कि बंगाली में भी उन्होंने सबसे अधिक अंक प्राप्त किये। यह देखकर विद्यार्थी और शिक्षक सभी दंग रहे गये।
उन्होंने सुभाष से पूछा – यह कैसे संभव हुआ ?
तब सुभाष विद्यार्थियों से बोले – यदि मन ,लगन ,उत्साह और एकग्रता हो तो, इन्सान कुछ भी हाँसिल कर सकता है।
सुभाषचन्द्र बोस की सच्ची सेवा भावना
उन दिनों बंगाल में भारी बाढ़ आई हुई थी। गांव के गांव डूब गए थे। समूचा जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस उस समय कॉलेज में पढ़ते थे। वे कुछ स्वयंसेवियों के साथ मिलकर बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत सामग्री इकट्ठा करने में जुट गए। वह दिन-रात इसमें लगे रहते और कभी-कभार आराम करते।
एक दिन उनके पिता बोले, 'बेटा, क्या आज भी बाढ़ पीड़ितों की सेवा के लिए जा रहे हो?' सुभाष बोले, 'जी पिताजी, मेरा जाना आवश्यक है। मुझसे लोगों का दर्द बर्दाश्त नहीं होता। इस बाढ़ ने जबर्दस्त विनाश किया है। तबाही का ऐसा मंजर है कि आंखों से आंसू नहीं सूखते।
ऐसे में इंसान ही तो इंसान की मदद करेगा न। अभी कुछ और करने का कोई अर्थ नहीं है।'
पिताजी बोले, 'बेटा, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूं। तुम मानव सेवा अवश्य करो, लेकिन थोड़ा घर पर भी ध्यान दिया करो। अपने गांव में मां दुर्गा की विशाल पूजा का आयोजन किया जा रहा है। वहां और लोगों के साथ तुम्हारा रहना भी जरूरी है, इसलिए तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।'
पिताजी की बात सुनकर सुभाष बोले, 'क्षमा कीजिए पिताजी, मैं आपके साथ नहीं चल सकता। आप सब गांव जाकर दुर्गा मां की पूजा करें। मैं दीन-दुखियों की पूजा करूंगा।
उनकी पूजा करके मुझे दुर्गा मां की पूजा का पुण्य मिल जाएगा। बेटे की बात सुनकर पिता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। वह सुभाष को गले लगाते हुए बोले, बेटा, सचमुच दुर्गा मां की वास्तविक पूजा तो तुम ही कर रहे हो। इसके बाद वह उन्हें आशीर्वाद देकर अपने गांव के लिए चल पड़े।
देशप्रेम सर्वोपरि है
बात उन दिनों की है, जब सुभाष चन्द्र बोस जो कि नेता जी के नाम प्रसिद्ध थे। भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया और उन्होंने सिविल सर्विस में चौथा स्थान प्राप्त किया।
भारत में बढती राजनैतिक गतिविधियों के कारण उन्होंने सिविल सर्विस से त्याग पत्र दे दिया। बोस के द्वारा आईसीएस का पद ठुकराए जाने के कारण उनके पिता बहुत दुखी हुए और दुःख के कारण बीमार रहने लगे।
जब उनके बड़े भाई शरद चन्द्र ने उनकी ये हालत देखी, तो उन्होंने सुभाष को पत्र लिखा। उसमे सूचित किया-पिताजी तुम्हारे फैसले से बहुत दुखी हैं। आवेश में आकर तुमने यह फैसला करने से पहले पिताजी से सलाह क्यों नहीं की।
पत्र पढ़कर सुभाष को बहुत दुःख हुआ वह असमंजस में पड़ गए। उन्होंने अपने बड़े भाई शरद चन्द्र बोस को पत्र लिखा। पिताजी की नाराज़गी जायज़ है मगर इंग्लैंड के राजा के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेना मेरे लिए संभव नहीं था। मैं खुद को देश की सेवा में समर्पित कर देना चाहता हूँ।
मैं हर तरह की मुश्किलों के लिए तैयार हूँ, चाहे वह निर्धनता, अभाव, माता पिता की अप्रसन्नता हो या कुछ और मैं सब सहने के लिए तैयार हूँ।
इसके जबाब मैं शरद चन्द्र ने सुभाष को पत्र लिखा ; पिताजी रात-रात भर सोते नहीं हैं इस चिंता में कि भारत आते ही तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जायेगा. सरकार तुम्हारी गतिविधियों पर कार्यवाही जरुर करेगी अब तुम्हे स्वतंत्र नहीं रहने देगी।
यह पत्र सुभाष के मित्र दिलीप राय ने भी पढ़ा, वे सुभाष से बोले कि मित्र तुम अब भी चाहो तो अपना त्याग पत्र वापस ले सकते हो। ये सुनकर सुभाष गुस्से में आ गये और बोले-
“मैंने ये निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया है, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो।”
तब दिलीप बोले- “मैं तो सिर्फ ये कह रहा था कि तुम्हारे पिता बीमार हैं।”
मित्र की बात बीच में ही काट कर सुभाष बोले- “मैं जानता हूँ, इस बात का मुझे भी खेद है, लेकिन अगर अपने परिवार की प्रसन्नता के आधार पर हम अपने आदर्श निर्धारित करें, तो क्या यह ठीक होगा।”
यह बात सुनकर राय दंग रह गए। उनके मुँह से अनायास ही निकल गया-सुभाष तुम धन्य हो और वो माता- पिता भी जिन्होंने तुम जैसे पुत्र को जन्म दिया जो देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार है।
दोस्तों ये प्रेरक प्रसंग आपको कैसे लगे हमें जरुर बताएं, नेताजी के जीवन की किन अन्य घटनाओं ने आपको प्रेरित और प्रभावित किया है ये भी हमसे शेयर करें ताकि आन्य पाठक भी उनसे सीख सकें।
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प्रेरणादायक है बचें पड़े तो और ही अच्छा होगा।
जवाब देंहटाएंसुभाष चंद्र बोस को सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंहमें हमारे महान स्वातंत्र सैनिकों की वहज से ही अंग्रेजो से आझादी मिली उसमे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. आझादी के लिए बाकि के क्रांतिकारीओं के जैसे ही उनका बहुत बड़ा योगदान रहा. उन्होनें देश के लिए अपनी जान दे दी, ऐसे महान क्रांतिकारी को सादर प्रणाम.
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