An insightful article about Namami Gange In Hindi by Ankesh Dhiman
भारत, विश्व पटल पर ऐसा देश है, जहां पर भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता की झलक देखने को मिलती है। जो कि हमें यह अपने पूर्वजों से विरासत में अविरल प्राप्त है। लेकिन वो हमारी इच्छा पर निर्भर करता है कि हम उसे कितनी सहजता से संवार कर रखते है ताकि हम आने वाली पीढिय़ों को स्थानांतरित कर सके। पिछले कई दशकों से हमारे देश की संस्कृति धीरे धीरे पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हो रही है। जिसके चलते वर्तमान पीढि़ में वो संस्कार, मानवता की भावना, जन कल्याण की सोच, परहित के लिए श्रमदान व हित -अनहित विचार करने की शक्ति जीर्ण हो रही है। उक्त विचार के कारण ही तो आज देश में प्रवाहित नदियों की अविरल स्वच्छता को अपना पूर्व रूप प्राप्त करने में अधिक कठिनाई बनी हुई है। चलो बात करते है देश कि जीवन रेखा कहलाने वाली पवित्र नदी विष्णु पदी अर्थात गंगा जिसे पवित्र शब्द की संज्ञा भी दी जाती है। हो भी क्यों ना गंगा युगों-युगों से जन कल्याण व परहित को सर्वोपरी रखते हुये लोगों के पाप धोते-धोते स्वयं के अस्तित्व को बचाना में नाकाम हो रही है। समय रहते गंगा की धारा को पवित्रता व स्वच्छता बरकरार रखने के लिए यदि कोई ठोस कदम धरातल पर नहीं उतारे जाते तो शायद आने वाला कल ऐसा होगा कि हमें अपने आप हिंदुस्तानी कहने पर ग्लानि अनुभव होगी।
गंगा जैसा पवित्र नाम जुबां पर आते ही व्यक्ति के अन्तर्हृदय में पवित्रता का भाव उबरने लगता है। मानो अभी हाल फिलहाल में ही गंगा की पवित्र जल धारा में स्नान किया हो। हो भी क्यों ना गंगा जैसी पवित्र नदी का उल्लेख हमारे हिंदू धर्म के तीनों वेदों में भी मोक्ष प्रदाता नदी बताया गया है। गंगा नदी में असंख्य लोग डुबकी लगाने नहीं वरण अपने पाप धोने के लिए गंगा के घाटों पर चुंबक की तरह खिंचे चले आते हैं और घाटों पर आकर जो गंदगी करते हैं वो विचारणीय है।
इस बारे में एवरेस्ट विजेता देश की प्रथम महिला बछेन्द्री पाल का कहना है कि अधिकांश गंगा नदी आस्था से प्रदूषित हो रही है एक तरफ तो लोग गंगा को मां कहते है दूसरी तरफ वहीं पर गंदगी कर अपनी तुच्छ मानसिकता का परिचय प्रस्तुत कर देते हैं। हिंदु धर्म के ग्रंथ शिव महापुराण में गंगा के विषय पर एक कथा की बखूबी से व्याख्या की गई है। उक्त ग्रंथ के अनुसार जब अयोध्या के राजा सगर ने अश्वमेद्य यज्ञ कराया तो छोड़ा का अश्व कपिल मुनि के आश्रम में किसी ने बांध दिया भूल वश महाराज सगर के पुत्रों व सगे संबंधी कपिल मुनि को पत्थर मारने लगे तत्पश्चात कपिल मुनि ने श्राप के प्रभाव से वे भस्म हो गये। उनके उद्धार हेतु सगर के वंशजों ने कठोर तपस्या से गंगा को उक्त स्थान पर लाने के लिए प्रयास किये लेकिन सभी असफल रहे। लेकिन भगीरथ के अथक प्रयासों ने गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए विवश कर दिया जिसका उद्देश्य मात्र परहित व जनकल्याण से फलीभूत था। उक्त कारण से ही गंगा का दूसरा नाम भगीरथी भी पड़ा।
गंगा का पवित्र प्रवाह युगों-युगों से अविरल जनकल्याण हेतु बह रहा है। अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में लेखक को स्वेच्छा से हरिद्वार के गंगा के विष्णु घाट पर सफाई करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह मौका लेखक के लिए जीवन में प्रथम सौभाग्य था। जो कि मौका गंवाना नहीं चाहता था। दिल में उल्लास के साथ-साथ विचारों की ऊटक-पटक अविरल बह रही थी। दृश्य जो था वह बड़ा ही शोचनीय था, हो भी क्यों ना घाट पर पहुंचते-पहुंचते चारों ओर पड़ी गंदगी ने हृदय को इतना आहत किया कि लेखक के हृदय में कुछ लिखने का विचार आया ताकि देश की जनता जागरूक होकर जनकल्याण व परहित का संकल्प लेनी वाली विष्णु पदी को स्वच्छता हेतु अपना श्रमदान, गंगा चरणों में अर्पित कर सके। लेखक को नमामि गंगा योजना के निर्धारित बजट (2035 करोड़) का कोई भी सबूत गंगा जी के घाटों पर दृश्यमान नहीं हो रहा था। शायद उक्त विड़म्बना के चलते किसी प्रबुद्ध व्यक्ति ने जो कि मैग्गसे पुरस्कार विजेता थे सन 1975 में उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कि जिसके मद्देनजर तत्कालीन सरकार ने कठोर कदम उठाते हुये 1975 में ही गंगा एक्शन प्लान अभियान का शुभारंभ किया जिसके मद्देनजर गंगा जी के तट पर मौजूद कल-कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित जल के शोधन का कार्य आरंभ कर स्वच्छ जल को गंगा के जल में प्रवाहित किया गया। जिसमें सरकार का 1200 करोड़ रुपये खर्च हुआ। उक्त विषय को गंभीरता से लेते हु ये न जाने कितनी सरकारों द्वारा कितनी योजनाओं को क्रियान्वित किया गया।
लेकिन दुर्भाग्य वश सभी विफल रही। देश की जीवन रेखा कहलाने वाली पवित्र नदी जिसका उद्यम स्थल उत्तराखंड के कुमायुं मंडल-गौमुख से होता है। जो कि समुद्र तल से 3240 की ऊंचाई पर स्थित है। गंगा उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल से होती हुई 2520 किमी लम्बा मार्ग तय कर गंगा सागर स्थित, समुद्र में विलीन हो जाती है। गंगा नदी के कारण देश के 40 करोड़ लोगों की जीविका का निर्वहन हो रहा है। गंगा के उक्त मार्ग मेंं न जाने कितने अपशिष्ट, कल कारखानों गांव-शहरों से निकलने वाला प्रदूषित जल, कचरा-कूड़ा घाटों पर शवों की राख अथवा अद्र्ध जले शव को गंगा के पानी में प्रवाहित किया जा रहा है। जिस कारण गंगा जल में गंदगी का 58 प्रतिशत इजाफा हुआ। उक्त तथ्य को सरकार ने भी एक आरटीआई के उत्तर में स्वीकार किया है कि वर्ष 2014 से अब तक फैकल कोलिफॉर्म में काफी इजाफा हुआ (फैकल कोलिफॉर्म-सीवेज प्रदूषण और नदी के जल प्रवाह में रोग जनित जीवों की उपस्थिति को संकेतिक करता है) जो कि शोचनीय विषय बना हुआ है।
अभी गत वर्ष 2014 में मौजूदा सरकार ने नमामि गंगा नाम से विष्णुपदी के उद्धार हेतु योजना लागू की जिसमें उक्त पठित बजट का निर्धारण किया गया। गंगा को स्वच्छ व निर्मल बनाने की कवायद आरंभ हुई। देश की जनता को भी लगने लगा कि किसी के अच्छे दिन आये या ना आये गंगा के अच्छे दिन निश्चित हो गये। बैठकों का दौर जारी हुआ निर्धारित कार्य को चार चरणों में विभक्त किया गया पहले चरण में गंगोत्री से लेकर हरिद्वार का स्थान रखा गया दूसरा चरण में हरिद्वार से कानपुर तीसरा चरण में कानपुर से इलाहाबाद चौथा चरण इलाहाबाद से बंगाल की खाड़ी का स्थान निर्धारित कर दिया गया।
नमामि गंगा कथन को लेकर भारत सरकार के मंत्रालय द्वारा कविता प्रति योगिताएं रखी जाने लगी पुरस्कार वितरण हुये। लेकिन जो कार्य होना था वह नहीं हुआ। सरकार के मंत्रियों द्वारा समीक्षा का दौर शुरू हुआ कहा गया 2019 तक 80 फीसदी गंगा सफाई का कार्य पूर्ण कर लिया जायेगा। यह योजना भी पूर्व में गंगा की स्वच्छता को लेकर चलाई गई योजनाओं की भांति विफल होने की पगडंडी पर खिसकने की उम्मीद सुनिश्चित करने लगी। अभी हाल ही में हुये गंगा जल पर एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार गत वर्षों की तुलना में इस वर्ष में भी गंगा में प्रदूषण की मात्रा अधिकतम स्तर पर दर्ज की गई। जो कि इस ओर इंगित करता है कि मात्र बजट या मंत्रालयों का गठन करने से नमामि गंगा जैसी योजना को सफल नहीं किया जा सकता। उक्त योजनाओं को सफल बनाने के लिए दिल से अथक प्रयासों को अमली जामा पहनाना होगा और पूर्व में जारी हुई संबंधित योजनाओं से सीख लेनी होगी। ताकि हम वो गलती पुन: ना करें जिससे अहम योजना विफलता की कगार पर खड़ी हो जाये। यदि हमें गंगा को पूर्ण स्वच्छ व निर्मल बनाना है तो हमें जनता के सहयोग को अहमियत देनी होगी। जनता के अपेक्षित सहयोग हेतु सरकार को ऐसी योजनाओं को क्रियान्वित करना होगा जो कि आस्था, प्रोत्साहन, प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षा, कानूनी भय, जन जागरूकता से संबंधित हो।
आस्था को जनता के विचारों और भावनाओं को ऐसे जोडऩा होगा कि देश में प्रचलित समस्त ट्रस्ट व संस्थाएं जिनको भारत सरकार की और से अलग से एक पंजीकृत नंबर उपलब्ध कराया जाता है जिसके माध्यम से उक्त संस्थान या ट्रस्टों को आयकर विभाग द्वारा कर में छूट प्रदान की जाती है। सरकार को किसी तरह सुनिश्चित कराना होगा कि उक्त संस्था के समस्त कार सेवक यदि महीने में एक बार गंगा सफाई लिए वचनबद्ध है तो ही उनका पंजीकरण मान्य होगा, अन्यथा उक्त संस्था को रद्द कर दिया जायेगा। आस्था एक ऐसा शब्द है, जो कि दैवीय शक्ति की ओर, आकर्षण को इंगित करता है। जिसका ज्वलंत उदाहरण 2 नम्बर 2011 में हरिद्वार में डेरा सच्चा सौदा के संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी द्वारा चलाया गया, गंगा सफाई अभियान है। जिसके चलते लाखों लोगों ने स्वेच्छा से श्रमदान कर गंगा को निर्मल व स्वच्छ बनाने का उदाहरण प्रस्तुत किया जो कि एक प्रत्यक्ष प्रमाण था।
यदि हम बात करे प्रोत्साहन, प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षा कैसी होना चाहिए तो मौजूदा सरकार को चाहिए कि देश में हाल-फिलहाल में चलने वाले शहर और गांवों के लिए स्वच्छ सर्वेक्षण अभियान को नमामि गंगा अभियान से जोडऩा होगा और उक्त अभियान के तहत अपने गांव व शहरों में सफाई करने के साथ-साथ गंगा की सफाई करने वाले गांवों व शहरों के लिए अतिरिक्त अंकों का प्रावधान व प्रोत्साहन राशी का निर्धारण करना होगा ताकि एक नई प्रतिस्पर्धा व महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व की भावनाओं को क्रियान्वित कर गंगा सफाई में जनता का सराहनीय सहयोग प्राप्त किया जा सके। हमारी सरकार को चाहिए कि जनता में गंगा की निर्मलता को लेकर कानूनी भय की उत्पत्ति करनी होगी, गंगा में अथवा गंगा के घाटो पर गंदगी करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कड़े कानून बना कर चलान की व्यवस्था को लागू किया जाना चाहिए, घाटो पर सीसी टीवी कैमरों की व्यवस्था व लाउड़ स्पीकर द्वारा गंदगी ना करने की घोषणा ताकि लोगों को दंड का भय सदा बना रहे। गंगा तट पर स्थापित समस्त कल-कारखानों को तुरंत विस्थापित करने का प्रावधान करना होगा। ताकि प्रदूषित जल के प्रवाह को रोका जा सके। जन जागरूकता के चलते जनता को, वॉल पेंटिंग, होल्डिंग व चेतावनी से भरपूर विज्ञापन दृश्यमान करने होंगे, ताकि लोगों को गंदगी करने पर स्वयं पर ग्लानि अनुभव हो। यदि उक्त कथनानुसार गंगा की पवित्रता व निर्मलता को कदम उठा लिये जाते हैं, तो वह दिन दूर नहीं रह जायेगा जब गंगा गंगोत्री से गंगासागर तक स्वच्छ व निर्मल होगी। जिस कारण हम अपनी धरोहर जो हमें विरासत में प्राप्त है को अपनी आगामी पीढि़ में संचरित कर सकेंगे।
लेखक परिचय
अंकेश धीमान
समग्र अभिकर्ता:-एल.आई.सी, न्यू इंडिया एंश्योरेंस स्टार हैल्थ इंश्योरेंस
बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर उत्तर प्रदेश
संपर्क सूत्र:-962758707
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