डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय, Dr Sarvepalli Radhakrishnan biography, DR. Sarvepalli Radhakrishnan Biography History and story in hindi | डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी और जीवन परिचय |
शिक्षा, साक्षरता ऐसे शब्द है जिनका जिक्र होते ही व्यक्ति के अंत हृदय में सकारात्मक व नकारात्मक विचारों की कशम-कश आरंभ हो जाती है। होगी भी क्यों ना, आज की आधुनिक शिक्षा को एक व्यापार रूप जो दे दिया गया है। न तो आज का अध्यापक छात्रों के भावनात्मक अर्थात संस्कारों का सर्वांगीण विकास समक्ष नहीं रहा। इसलिए आज की अधिकांश युवा पीढ़ी, अपने कर्तव्य निष्ठा, उत्तरदायित्व, देश प्रेम, देश भक्ति जैसे संस्कार रूपी बीज शून्य मात्र अंकुरित है। जिसके फलस्वरूप आये दिन स्कूल अथवा कॉलिजों में देश विरोधी भाषण बाजी आरंभ हो जाती है और उनके समर्थन में राजनैतिक रोटियां बखूबी से सेकी जाती है। जिसके चलते वर्तमान में सम्मान जनक अध्यापन कार्य को एक ग्रहण सा लग चुका है।
आज हम ऐसे व्यक्तित्व की जीवन गाथा पर चर्चा करने जा रहे है, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन में, शिक्षा व राजनैतिक क्षेत्र को अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी कारण उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें अन्य क्षेत्रों में सराहनीय कार्यों के लिए अनेक पुरस्कार प्रदान किये गये। जिनके उच्च व्यक्तित्व से शिक्षक व छात्र प्रेरित होकर अपने जीवन को एक आदर्श के रूप में स्थापित कर सकेंगे। लेखक ऐसे महापुरुष के बारे में बात करने जा रहा है। जो कि,स्वामी विवेकानंद व वीर सावरकर के चरित्र जीवन से काफी प्रभावित थे। वे उनको अपना आदर्श मानते थे। जिनका जन्म दिन, एक शिक्षक दिवस के रूप में प्रतिवर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
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डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन जी ऐसे एक मात्र महापुरुष है, जो धर्म संस्कृति से काफी लगाव करने के साथ-साथ संपूर्ण विश्व को एक विद्यालय की संज्ञा देते थे। इसलिए उन्होंने हमेशा अपनी पुस्तकों व लेखों के माध्यम से संपूर्ण जनमानस को, विश्व परिधि से परिचित कराने का सराहनीय प्रयास किया। उन्होंने अपनी पुस्तकों में अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया, जिनमें से उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें जैसे:- भारतीय दर्शन व धर्म, गौतमबुद्धा जीवन और दर्शन,भारत और विश्व है।
उनका प्रयास प्रति-पल कुछ नया करना व सीखने का रहता था। वे ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें ता-उम्र शिक्षा क्षेत्र से स्कॉलरशिप प्राप्त होती रही। डा. सर्वपल्ली राधा कृष्णन जी के पूर्वज तमीलनाडू के सर्वपल्लि ग्राम के निवासी थे, जो कि एक धार्मिक स्थान के नाम से प्रचलित था, उनके पूर्वज चाहते थे, कि उनकी भावी पीढिय़ों के नाम का उच्चारण उनके पैतृक गांव के नाम से आरंभ हो, ताकि सदैव उच्चारित व्यक्ति के हृदय में पवित्रता के भाव जाग्रत हो।
डा. सर्वपल्ली राधाकृषण जन्म तमीलनाडू के गांव तिरूतनी में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में , दिनांक 5 सितम्बर 1888 को, पिता की 6 संतानों में से दूसरी संतान के रूप में हुआ था। डा. सर्वपल्ली राधा कृष्णन जी के पिता जी का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी व माता का नाम सीताम्मा था। डा. सर्वपल्ली राधा कृष्णन जी बचपन से ही तीव्र बुद्धि के परिचायक थे। डा. सर्वपल्ली राधा कृष्णन जी की प्रारंभिक शिक्षा सुचारु रूप से गांव में ही हुई। एक मेधावी छात्र होने के कारण उनका दाखिला क्रिश्चिन मिशनरी संस्था द्वारा संचालित लुर्थन मिशन स्कूल तिरुपति में करा दिया गया, जहां वे 1896 से 1900 तक रहे।
सन 1900 में डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन ने वेल्लूर कॉलिज से शिक्षा ग्रहण कर, 1906 में दर्शन शास्त्र में एम.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने 1909 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलिज में दर्शन शास्त्र विषय में अध्यापन कार्य आरंभ कर दिया। सन 1916 में डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन उक्त कॉलिज में ही दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक बन गये। 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी के द्वारा उन्हें दर्शन शास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त कर लिया गया। तत्पश्चात वे इंग्लैंड के ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में भारतीय दर्शन शास्त्र के शिक्षक बने।
जिस कॉलिज से उन्होंने एम.ए पास किया था, सौभाग्य से उन्हें उसी कॉलिज का उपकुलपति भी चुन लिया गया। परंतु एक वर्ष उपरांत उन्होंने उक्त सेवा छोड़, बनारस विश्वविद्यालय में उपकुलपति का पद संभाल लिया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहर लाल नेहरू ने डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन से आग्रह किया, कि वे विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनायिक कार्यों की पूर्ति हेतु, अपनी सेवा देश को समर्पित करें। तो उन्होंने उक्त कार्य को उत्सुकता से स्वीकार करते हुये, देश सेवा को सर्वोच्च स्थान दिया। डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन ने सन 1947 से 1949 तक संविधान निर्माण सभा में अपनी अहम भूमिका अदा की।
शिक्षा और राजनीतिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु सन 1954 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने एक सफल अकादमी जीवन के पश्चात अपना राजनैतिक जीवन प्रारंभ कर दिया था। उन्हें दिनांक 13 मई 1952 से 13 मई 1962 तक उपराष्ट्रपति के रूप में देश सेवा की। संसद का प्रत्येक सदस्य डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन जी के व्यवहार व उनकी कार्य शैली से काफी प्रभावित थे। इसलिए सन मई 1962 में उन्हें सर्वसम्मति से देश का राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिया गया।
डा. राजेन्द्र प्रसाद जी की अपेक्षा उनका राष्ट्रपति कार्यकाल काफी चुनौती पूर्ण साबित हुआ। क्योंकि उसी दौरान भारत को पाकिस्तान व चीन के युद्धों से दो-चार होना पड़ा। जहां चीन के समक्ष देश को हार का मुंह देखना पड़ा। साथ ही देश के दो प्रधानमंत्रियों का देहांत भी इसी दौरान हुआ।
सन 1962 को डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन जी के जन्म दिन (5 सितम्बर) को सर्व सर्वसम्मति से शिक्षक दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाने का फैसला लिया गया। उसी दौरान इन्हें ब्रिटिश एकेडमी का सदस्य बनाया गया, तथा इंग्लैंड सरकार द्वारा डा. सर्वपल्ली राधाकृषणन जी को ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान से नवाजा गया। सन 1967 में गणतंत्र दिवस पर डा. राधा कृषणन जी ने देश को संबोधित करते हुये कहा, कि आज मैं ,अपना आखिरी भाषण दे रहा हूँ, शायद यह मेरा राष्ट्रपति के रूप में अंतिम भाषण होगा।
17 अप्रैल 1975 में डा. सर्वपल्ली राधा कृषणन महापुरुष का निधन एक लम्बी बीमारी के कारण हो गया। जो कि वास्तव में देश के लिए अपूर्णनीय क्षति थी। वो सदा देश की जनता के अंत हृदय में, यादों के रूप में, एक विभूति बनकर जीवित हो गये। सन 1975 में मरणोपरांत उन्हें अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जो कि धर्म क्षेत्र में प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले वो, शायद प्रथम ऐसे महापुरुष थे, जो कि गैर ईसाई थे। जबकि उक्त पुरस्कार सभी ईसाई व्यक्तियों को ही दिया गया था।
बहुत ही उम्दा और प्रेरक आलेख के लिए शुभकामनाए
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