करम सिंह
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पूरा नाम | लांस नायक करम सिंह |
जन्म | 15 सितम्बर, 1915 |
जन्म भूमि | भालियाँ गाँव, पंजाब |
मृत्यु | 20 जनवरी, 1993 (आयु- 77) |
स्थान | बरनाला, पंजाब |
अभिभावक | सरदार उत्तम सिंह (पिता) |
पति/पत्नी | गुरदयाल कौर |
सेना | भारतीय थल सेना |
रैंक | सूबेदार, कैप्टन |
यूनिट | पहली सिक्ख बटालियन |
सेवा काल | 1941–1969 |
युद्ध | भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947) |
सम्मान | परमवीर चक्र, सेना पदक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | जम्मू कश्मीर का युद्ध ही उनकी बहादुरी की कहानी नहीं कहता बल्कि उसके पहले वे दूसरे विश्व युद्ध में भी अपनी वीरता का परचम लहरा चुके थे, जिसके लिए इन्हें 14 मार्च 1944 को सेना पदक मिला और इस सम्मान के साथ ही इन्हें पदोन्नति देकर लांस नायक भी बनाया गया। |
सैन्य व्यक्तित्व परिचय :
आज हम ऐसे सैन्य व्यक्तित्व की जीवन गाथा पर चर्चा करने जा रहे है, जिनके जीवन से यदि आज की युवा पीढि़ प्रेरणा ले तो, अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि देश भक्ति, देश प्रेम, राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना, संस्कारों व कठिन परिश्रम साधना के माध्यम से जाग्रत की जाती हैं।
साहस व कर्तव्य परायणता के मधुर संयोग से ही उन्हें एक परमवीर चक्र विजेता कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिन्होंने अपने पराक्रम से पाकिस्तानी सैनिकों के हौसलों को पस्त करते हुये, अपने पराक्रम को इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा कर, भारत के गौरव को चार चांद लगा दिये।
प्रारंभिक जीवन परिचय
इस वीर योद्धा का जन्म 15 सितम्बर 1915 को पंजाब प्रांत बरनाला जिले के सेहना गांव के, एक संपन्न सिख जट परिवार में हुआ। बचपन से ही करम सिंह बड़े शरारती किस्म के नौनिहाल थे। करम ङ्क्षसह को शिक्षित करना, उनके पिता, उत्तम ङ्क्षसह जी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था। इसलिए उनके पिता उन्हें एक कुशल किसान बनाना चाहते थे। करम सिंह को बचपन से ही कुश्ती खेलने का शौक था। भविष्य में उन्होंने पॉल्ट नामक खेल में भी अच्छी पकड़ बना ली थी। उक्त गुणों को देखते हुये करम सिंह के चाचा ब्रिटिश भारतीय सेना में जूनियर कमीशंड अधिकारी थे। जो कि करम सिंह को, सेना में एक उत्तम कोटी का सिपाही बनाना चाहते थे।
श्री सिंह भी गांव के सैनिकों की शूरवीरता के किस्सों से काफी प्रभावित थे। बस यह लगाव ही, उन्हें सेना में शामिल होने की प्रेरणा हमेशा देते रहा। श्री सिंह ने नाथूवाला गांव से ही प्राथमिक शिक्षा उत्तीर्ण की, तत्पश्चात दूसरे गांव दरौली से माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण की।
सैन्य व्यक्तित्व, गौरव गाथा:-
वे दिनांक 15 सितम्बर 1941 को 26 वर्ष की आयु में ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हो गये। श्री सिंह को सैन्य प्रशिक्षण के लिए रांची भेजा गया। प्रशिक्षण के उपरांत, उनकी नियुक्ति सिख रेजीमेंट की प्रथम बटालियन में की गई। करम सिंह ने द्वित्तीय विश्व युद्ध (बर्मा अभियान) के दौरान विकट परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता ने, उच्च अधिकारियों के अंत हृदय में अच्छी पकड़ बना ली थी।
१-परिदृश्य स्थिति
स्वतंत्रता से पूर्व, अंग्रेजों ने देश की, सभी रियासतों का विलय करने की योजना बनाई। 3 जून 1947 को अंग्र्रेजों ने बंटवारे की घोषणा की। उस समय देश छोटी-छोटी रियासतों में विभक्त था। उन्होंने प्रस्ताव रखा, कि यदि कोई रियासत चाहे तो, पाकिस्तान में विलय हो जाये या फिर भारत में। यदि कोई भी रियासत पूर्ण स्वतंत्र रहना चाहती है, तो यह विकल्प भी मौजूद था।
जम्मू कश्मीर, रियासत, राजा हरीसिंह के आधीन थी। जिन्होंने अभी तक उक्त विषय पर कोई सटीक निर्णय नहीं लिया। पाकिस्तान चाहता था कि, उक्त क्षेत्र घनी मुस्लिम आबादी क्षेत्र है, इसलिए वह क्षेत्र उसके कब्जे में होना चाहिए। 20 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के टिथवाल पर हमला कर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया। यह क्षेत्र कुपवाड़ा सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर स्थित था जो कि रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। ऐसी स्थिति में राजा हरि सिंह ने भारत सरकार को, अपनी सहायता हेतु, एक सहमति पत्र लिखा कि वह अपनी रियासत को, भारत में पूर्ण: विलय करना चाहता हैं। तत्पश्चात हमारे सैनिकों ने उक्त रियासत की सहायता के लिए कूच किया। हमारे सैनिकों की वीरता के समक्ष दुश्मनों ने अपने घुटने टेक दिये। 23 मई 1948 को यह क्षेत्र पाकिस्तान से मुक्त करा लिया गया। उक्त क्षेत्र, महत्वपूर्ण होने के कारण पाकिस्तान पुन: टिथवाल क्षेत्र पर अपना कब्जा करना चाहता था। इसीलिए पाक सैनिकों ने पुन: सेना पर त्वरित हमले आरंभ कर दिये। जिनका एक मात्र उद्देश्य दक्षिण टिथवाल स्थित रीछमार गली व पूर्व टिथवाल में नस्तचूर दर्रे पर, अपना पूर्ण कब्जा प्राप्त करना था।
२-व्यक्तित्व की रण कौशल, नेतृत्व क्षमता:
युद्ध काफी दिनों तक चलता रहा, लेकिन पाकिस्तानी सेना अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रही। इस विवशता के चलते ही, उन्होंने 13 अक्तूबर 1948 की रात, रीछमार गली पर भयानक हमला आरंभ कर दिया। इस दौरान लांस नायक करम सिंह एक अग्रिम सिख टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे।
पाकिस्तान की ओर से, हो रही गोली बारी के चलते वो घायल अवस्था में भी, अपने कर्तव्य पर भूधर के भांति अडिग रहे। जिस हौसले से वो, अपने आप को संभाले हुये थे, उसी हौसले से उन्होंने अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाये रखा। घायल अवस्था में भी, वह कभी एक मोर्चे का नेतृत्व करते, तो कभी दूसरे मोर्चे का जायजा लेते हुये, दुश्मनों पर ग्र्रेनेड से दर प्रति दर प्रहार करते रहे। पांचवें हमले के दौरान दुश्मन के, दो सैनिक, करम सिंह की टुकड़ी के नजदीक पहुंच गये। मौका देखते ही, श्री सिंह ने खाई, फांदकर उनका बैटन से वध कर दिया। भारत के इस वीर योद्धा की सूज-बूझ व नेतृत्व क्षमता ने दुश्मनों के अन्य, तीन हमलों को भी नाकाम सिद्ध कर दिया। भारतीय सैनिकों के हौसले इतने बुलंदियों पर थे, कि, समक्ष, प्रतिद्वंदी को उलटे पैर दौडऩा पड़ा।
व्यक्तित्व सम्मान:-
- 14 मार्च सन 1944 को, उन्हें सैन्य पदक से सम्मानित किया गया।
- करम सिंह को, उनकी बटालियन सम्मान देने के लिए, सुसज्जित सिपाही के नाम से उच्चारित करती थी।
- श्री सिंह, ऐसे सिपाही थे, जिन्हें स्वयं , जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्रता की प्रथम रात्रि को तिरंग उठाने के लिए चुना, जो कि एक सम्मान से कम नहीं था।
- लांस नायक करम सिंह (सैन्य क्र.सं. 22356), को 26 जनवरी 1950 को, सर्वोच्च सैन्य पदक, परमवीर चक्र से नवाजा गया ।
- पंजाब सरकार ने, करम सिंह जी को सम्मान देते हुये, अपने संगरूर जिला परिसर में एक भव्य स्मारक का निर्माण कराया।
- करम ङ्क्षसह 1969 में सेवा निवृत्त हो गये। उन्हें, उसी दौरान मानंद कैंप्टन की उपाधि से नवाजा गया।
20 जनवरी सन 1993 को लांस नायक कर्म सिंह जी की मृत्यु हो गई। जो पूर्ण: देश के लिए दुखद समाचार था, वो ऐसे सैन्य व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवित रहते हुये, परमवीर चक्र प्राप्त किया।
वास्तव में लांस नायक करम सिंह, शिखर हौसलों से मुश्किल हालातों को भी साधारण स्थिति में परिवर्तित करने की सुदृढ़ क्षमता रखते थे। यदि हमारी युवा पीढि़ उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा ले तो, वो अपने चरित्र जीवन को उज्ज्वल बना कर, नव भारत निर्माण को समर्पित कर सकेंगे।
VERY VERY GOOD STORY. MANY MANY THANKS.
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