Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi,भारत रत्न डा. भीम राव अंबेडकर ~ संक्षिप्त जीवनी, Bheemrao Ambedkar Jayanti in Hindi
नाम- बचपन का नाम भिवा बाद में भीम राव अम्बेडकर
जन्म -14 अप्रैल 1891
स्थान-मध्य प्रदेश के महू नगर, सैन्य छावनी
पिता -राम जी मालोजी सकपाल
माता -भीमाबाई
पत्नी-रमाबाई/- पुर्न: विवाह शारदा कबिर उर्फ सविता अंबेडकर
मृत्यु -6 दिसंबर 1956
सम्मान - 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न
भाषा ज्ञानी- अंग्रेजी, हिंदी, पालि, संस्कृत, गुजराती, जर्मन, फारसी,फ्रेंच, कन्नड़, बागड़ी
पुस्तक:- जाति प्रथा का विनाश, दि बुद्ध धम्म, हू वर दि शुद्रज,पाकिस्तान पार्टिसन, मूकनायक (समाचार पत्र)
व्यक्तित्व विशेषता:-संविधान के जनक, विधिवेत्ता, अद्र्ध शास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक
धर्म- हिंदु बाद में बौद्धिष्ठ
प्रेरणा दायक, व्यक्तित्व:-
प्राय: लगभग प्रत्येक कालों में यह देखा गया है कि, जब-जब मानवता शर्म सार हुई, तब-तब ईश्वर ने अपने ही, किसी देव दूत को, भिन्न भिन्न क्षेत्र में उक्त समस्याओं के निवारण हेतु अवतरित किया और उन महापुरुषों ने पीडि़त, उपेक्षित, शोषित वर्ग के अधिकारों की रक्षा हेतु, अमुक समस्याओं पर अंकुश लगाकर, सिद्ध कर दिया कि, समाज में कोई भी समस्या कितनी भी विकट क्यों ना हो, यदि हौसला, आत्मविश्वास, लग्न और मानवता की भावना अंत: हृदय में मौजूद है, तो उसका संपूर्ण निदान किया जा सकता है। यदि बात धर्म के अंतर्गत जाति मजहब पर आये, तो समस्या का निवारण करने का आनंद तो कई गुणा बढ़ जाता है। जिसका ज्वलंत उदाहरण, हम ऐसे ही व्यक्तित्व की जीवन शैली से ले सकते हैं। जिन्होंने हमेशा समाज में कदम कदम तिरस्कार पर सहन किया, उन्होंने ऐसी ही छुआछूत की बीमारी का संपूर्ण इलाज कर, यह सिद्ध कर दिया कि, कीचड़ में मलीन किसी भी वस्तु को स्वच्छ व निर्मल बनाने के लिए कीचड़ मय होना अवश्य पड़ता है।
श्री मान पाठक महोदय, आज हम ऐसे ही मानवता के मसीहा का, व्यक्तित्व समझने व उनकी जीवन शैली से प्रेरणा लेने की कोशिश करेंगे। जिन्होंने देश को सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राज्य बनाने में अपनी अहम भूमिका अदा की। जो अछूत होते हुये, भी किसी के, हृदय से अछूते नहीं रहे। जिन्होंने अपनी जातीवाद के दंश का इस कदर खात्मा किया कि अमुक जाति में जन्म लेने वाली पीढिय़ां उनको किसी मसीहा से कम नहीं समझेगी।
व्यक्तित्व का प्रारंभिक जीवन:-
जी श्री मान पाठक महोदय, हम ऐसे ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व, भीम राव अंबेडकर जी की जीवन गाथा पर चर्चा करने जा रहे। जिनके बचपन कर नाम भिवा था, भिवा का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के, महू नगर में हुआ। उनके पिता का नाम, रामजी मालोजी सकपाल, माता का नाम भीमाबाई था। भिवा अपने भाई बहनों में सबसे छोटे अर्थात पिता की 14 वीं संतान थी। जो कि अछूत जाति -महार से संबंध रखते थे। परिवार की जीविका पिता की सेना की नौकरी से चलती थी। अछूत जाति होने के कारण, श्री राव साहब को सामाजिक प्रताडऩा का सामना पग-पग पर सहन करना पड़ता था। समाज में उस दौरान बाल विवाह का प्रचलन होने के कारण, उनकी शादी, अप्रैल 1906 में, रमाबाई से हुई।
श्री राव ने हमेशा अपना जीवन में, तीन गुरुओं (गौतम बुद्ध, संत कबीर, महात्मा ज्योतिराव फुले) का अनुसरण किया। लेखक, दादा केलुस्कर द्वारा रचित, बुद्ध की जीवनी, ने श्री राव साहब के जीवन पर, गहरी छाप छोड़ी।
व्यक्तित्व की शिक्षा:-
श्री भीम राव साहब की शिक्षा सातारा शहर से, 7 नवंबर 1900 को आरंभ हुई। तत्पश्चात 1897 में, उनका परिवार मुंबई चला गया, जहां उन्होंने गवर्न्मेंट स्कूल से मैट्रिक पास किया। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर 1913 में, अम्बेडकर 22 साल की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। वहांं उन्होंने बड़ौदा रियासत के आधीन, एक योजना के मद्देनजर न्यू यॉर्क शहर में कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिक्षा का अवसर प्राप्त किया। इसके लिए उन्हें उक्त रियासत की ओर से 11.50 डॉलर, प्रति माह छात्रवृत्ति के रूप में प्रदान की जाती थी।
जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एमए) परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान व अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए एशियंट इंडियन्स कॉमर्स (प्राचीन भारतीय वाणिज्य) विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया।
1916 में, उन्हें अपना दूसरा शोध कार्य, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया- ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए दूसरी कला स्नातकोत्तर हेतु लंदन जाना पड़ा।
1916 में तीसरे शोध कार्य हेतु उन्होंने इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया के लिए अर्थशास्त्र में, उनका शोध कार्य प्रकाशित होने के बाद 1927 में, उन्हें अधिकृत रूप से पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर अध्ययन कर, उन्होंने अपना आगामी संपूर्ण जीवन एक विद्यार्थी बन कर, व्यतीत किया और उनकी चाहत हमेशा देश व अछूतों के लिए कुछ नया करने की बनी रही, ताकि भावी पीढिय़ां उनका स्मरण करती रहे।
व्यक्तित्व का मसीहा रूप:-
श्री राव साहब 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। जहां पर अन्य प्रोफेसरों की मानसिकता के चलते अछूत दंश से रूबरू होना पड़ा। उसी दौरान भारत सरकार, अधिनियम 1919, तैयार कर रही थी साउथ बरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया था। इस सुनवाई के दौरान, अम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत जोर दार तरीके से की। उनकी अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते, उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर, गांधी जी से तीखी बहस इसलिए हुई कि गांधी जी को डर था कि अछूतों को दी गयी, पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी जी को लगता था की, सवर्णों के हृदय परिवर्तन के लिए, कुछ अवधि और बढ़ा देनी चाहिए, किन्तु यह तर्क भविष्य में गलत सिद्ध हुआ।
देश में बढ़ते दबाव के चलते अम्बेडकर जी 24 सितम्बर 1932 को शाम पांच बजे, येरवडा जेल पहुंचे। जहां गांधी और अम्बेडकर के बीच समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस समझौते मे अम्बेडकर ने दलितों को पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोडऩे की घोषणा की। लेकिन इसके साथ हीं कम्युनल अवार्ड से मिली 78 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करा दी गई। इसके साथ ही अछूत लोगों के लिए प्रत्येक प्रांत मे शिक्षा अनुदान में पर्याप्त राशि, नियत कार्रवाई और सरकारी नौकरियों में, बिना किसी भेदभाव के दलित वर्ग के लोगों को, समान अधिकार दिये जाने लगे।
व्यक्तित्व का कुशल नेतृत्व:-
गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अम्बेडकर की प्रतिष्ठा, समाज में अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता के रूप में बन गई थी। जिसके कारण जब, 15 अगस्त स्वतंत्रता के बाद, नई सरकार अस्तित्व में आई, तो उसने अम्बेडकर को, देश के प्रथम कानून एवं न्याय मंत्री के रूप में सेवा ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया। जिसे उन्होंने अपना सौभाग्य समझ कर स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए, मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस कार्य में अम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया। संविधान निर्माण के समय अम्बेडकर ने भारत के संविधान की अनुच्छेद 370 का विरोध किया, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था, संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया। उन्होंने इस दौरान कहा था।
मैं महसूस करता हूं ..कि , संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है, पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है, कि देश को ..शांति और युद्ध दोनों के समय, जोड़ कर रख सकता है, वास्तव में, मैं ....कह सकता हूँ कि, अगर कभी कुछ गलत हुआ, तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान अच्छा नहीं था। बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।
व्यक्तित्व का धर्म परिर्वतन:-
श्री राव ने जाति के अछूत दंश की पीड़ा को महसूस करते हुये, कहा कि, मैं.... हिंदु तो पैदा हुआ हूं., लेकिन हिंदु धर्म से संबंध रख कर नहीं मरूंगा।
13 अक्टूबर 1935, को येवला नासिक में धर्म परिवर्तन की घोषणा करते हुए अम्बेडकर ने कहा कि 10-12 साल हिन्दू धर्म रहा, उन्होंने हिन्दु समाज को सुधारने, उसमें समानता का अधिकार पाने, के हर संभव प्रयत्न किये, परन्तु सवर्ण हिन्दुओं का हृदय परिवर्तन नहीं हुआ। उन्होंने हिंदु धर्म त्यागते हुये, घोषणा की, वे उक्त धर्म को स्वयं के मौलिक सिद्धांतों के चलते छोड़ रहे हैं।
व्यक्तित्व सम्मान
श्री भीम राव अम्बेडक़र जी के सम्मान में, भावी पीढिय़ों को, प्रेरणा उपलब्ध कराने हेतु, उनकी मूर्ति भारत के प्रत्येक, कस्बे, गाँव, शहर, चौराहे, रेलवे स्टेशन व पार्कों में लगाई गई है।
अम्बेडकर जी का जन्म दिवस अम्बेडकर जयंती के रूप में प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को, बड़े उत्सव के रूप में समस्त राष्ट्र में मनाया जाता हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने श्री भीम राव साहब को सम्मान देने के लिए, प्रत्येक 7 नंबर को, राज्य भर में, विद्यार्थी दिवस घोषित किया हुआ है। क्योंकि इस दिन से ही , वे प्रकांड विद्वान होते हुए भी, श्री अम्बेडकर साहब उम्र भर विद्यार्थी बने रहे।
भारत सरकार के निर्देशानुसार अम्बेडकर के, 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहला औपचारिक संविधान दिवस मनाया गया 1990 को मरणोपरांत डा. भीम राव अम्बेडकर जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
कड़ी मेहनत व शुगर की, बीमारी के कारण , श्री भीमराव अम्बेडक़र जी की कार्य क्षमता दिन प्रति दिन कमजोर पडऩे लगी। अचानक दिनांक 6 दिसबंर 1956 को, ज्ञान का यह प्रकांड पंडित, समस्त देश को जागरूक कर, हमेशा ऐसी नींद सो गया। जहां से उसका वापिस लौट आना असंभव हो। जो कि देश के लिए बड़ा ही दुखद समाचार था।
अंकेश धीमान
COMMENTS