यदुनाथ सिंह जीवनी परमवीर च·्र विजेता यदुनाथ सिंह जीवन परिचय Yadu nath singh Parm veer chakr vijeta Biography Of Yadu Nath Singh Parm Veer Chakr Vijeta In Hindi
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जन्म -21 नवम्बर 1916
अभिभावक -पिता-बीरबल सिंह राठौर
माता- यमुना कंवर
पंसीदा खेल व शौक- कुश्ती,जोखिमों से खेल कर, मनोरंजन करना
स्थान- गांव खजुरी जिला शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)
शाहदत- 6 फरवरी 1948
(उम्र 31 वीर गति)
सेवा/शाखा -ब्रिटिश भारतीय सेना
सेवा काल- 1941से 1948
उपाधि- नायक, (सेवा संख्यांक-27373)
युद्ध/झड़पें-
द्वितीय विश्व युद्ध
अराकन अभियान 1942 से 1943
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947
सम्मान -परमवीर चक्र 1950
यूनिट- राजपूत रेजिमेंट
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सैन्य व्यक्तित्व, परिचय:-
जब देश भक्ति व पूर्वजों द्वारा प्रदत्त संस्कारों का संयोग हो जाये और आने वाली पीढिय़ां तो सोने पर सुहागा जैसी हो जाती है। जितने अच्छे संस्कार होगे, वह पीढि़ उतनी ही उत्तम कोटी, की देश सेवा राष्ट्र भक्ति कर, अपने उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्रत्येक परीक्षा, उच्च व्यक्तित्व की कसौटी पर प्रमाणित करेगी। ऐसे ही सैन्य व्यक्तित्व को, हम जितना भी सम्मान दे, शायद वो उनके लिए कम ही पड़े, क्योंकि एक ऐसा सैन्य व्यक्तित्व ही, तो ऐसा व्यक्तित्व है, जो कि अपनी जान, हथेली पर रखकर, जिये तो देश के लिए, मरे तो वतन तेरे लिये, जैसे अरमान दिल में लिये प्रतिक्षण देश पर कुर्बान होने की, अंतिम इच्छा रखता है। ताकि भावी पीढिय़ों की नजरों में उसके प्रति सम्मान की भावना बढ़ती ही रहे और भावी पीढिय़ां उनके जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर देश का गौरव बढ़ाने का विजय पथ स्वयं निर्माण कर सके। आज हम ऐसे ही सैन्य व्यक्तित्व के विषय में बात करने जा रहे हंै। जिसने अपने अदम्य साहस से देश को परिचित कराते हुये, वीर गति जैसे शब्द को और अधिक पवित्र बना दिया। जिन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया।
संस्कारी व्यक्तित्व का आरंभिक जीवन:- जब माता पिता के संस्कार और उनके कर्म अच्छे होते हंै, तो उन्हें ऐसी संतानें स्व: ही प्राप्त हो जाती है। जो कि अपने अभिभावकों का नाम रोशन करने के साथ-साथ, अपने देश का गौरव संपूर्ण विश्व के आभा मंडल पर रोशन कर देती हैं। धन्य है, ऐसे माता पिता जिन्होंने भारत मां की रक्षा, हेतु ऐसे लालो को जन्म देकर उन्हें राष्ट्र की रक्षा हेतु तैयार किया और कर रहे हैं। ऐसे ही व्यक्तित्व, यदु नाथ सिंह जी का जन्म 21 नवंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के शांहजहापुर जिले में, एक छोटे से गांव- खजुरी के किसान परिवार में हुआ। श्री यदु नाथ सिंह अपने परिवार में 8 भाई बहनों में, पिता की तीसरे नंबर की संतान थे। इनके पिता का नाम बीरबल सिंह राठौर व माता का नाम यमुना कंवर था। उन्हें, बचपन से ही हनुमान जी की आराधना करना, कसरत करना व कुश्ती करना, उनकी दिनचर्या में शामिल था। ऐसा लगता था मानों खतरों से खेलना उनका जनून सा बन गया हो, जहां गांव में किसी व्यक्ति पर कोई भी विपत्ति आन पड़ी, तुरंत ही यदुनाथ ङ्क्षसह जी पीडि़त की समस्या को अपनी समस्या समझ कर, उसके निवारण करने के लिए जुट जाते। पिता की बेचैनी बेटे की शादी को लेकर दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही थी। लेकिन यदुनाथ सिंह ने अजीवन ब्रह्मचारी व्रत, का हवाले देते हुये, अपनी शादी से साफ इंकार कर दिया। आये दिन यदु नाथ सिंह जी को, घर में मौजूद सभी सदस्यों के तरह-तरह के ताने सहने पड़ते थे।
सैन्य व्यक्तित्व, आरंभिक जीवन:-
पारिवारिक सदस्यों के तानों से तंग आये यदुनाथ सिंह, एक दिन अपने मित्र भगवान दास के कहने पर, 21 नवंबर 1941 को फतेहगढ़ रेजिमेंटल सेंटर में, ब्रिटिश भारतीय सेना की 7 वें राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गये। श्री सिंह की मिल्ट्री प्रशिक्षण के बाद, उनकी नियुक्ति राजपूत रेजिमेंट के प्रथम बटालियन में हुई। सेना में सिपाहियों को ताकत का हवाला देते हुये, उन्हें मांसाहारी भोजन के लिए, बाध्य किया जाता था। लेकिन एक भक्त पुरुष होने के नाते, श्री सिंह शाकाहारी भोजन ही हमेशा ग्रहण करते। अचानक इस बात का पता सेना के अंग्रेजी अफसर को चल गया, भोजन को लेकर, यदुनाथ सिंह की अपने, उच्च अधिकारी से काफी नोक झोक हो हुई। बात बढ़ते हुये यहां तक पहुंच गई कि, यदुनाथ सिंह जी ने कहा साहब.... मैं मांसाहारी भोजन अवश्य करूंगा... यदि कोई भी जवान मुझे.. कुश्ती में हरा दे...., अन्यथा मेरा दुध दही, दो गुणा.. हो जाना चाहिए.. उच्च अधिकारी ने उनकी इस चुनौती को स्वीकार कर लिया, फिर क्या था? कुश्ती का दिन मुकरर कर दिया गया। श्री सिंह ने साहब से, कुश्ती के दौरान, दो जवानों से भिडऩे का आग्रह किया। उसके बाद श्री सिंह ने अपनी ताकत को साबित करते हुये, दोनों जवानों को ही, चारों खाने चित कर कर दिया।
सैन्य व्यक्तित्व के रण कौशल
परिदृश्य स्थिति-१
कुछ समय के बाद, श्री यदुनाथ जी की बटालियन की तैनाती बर्मा, अभियान के दौरान अराकन प्रांत में अराकन मिशन के तहत, 1942 से 1943 के लिए , तैनात की गई, जहां उन्होंने जापान के खिलाफ लड़ाई में बढ़-चढ़ कर,अपने रण कौशल का परिचय दिया।
श्री सिंह की बहादुरी को ध्यान में रखते हुये, अंग्रेजी अफसरों ने, इन्हें जुलाई 1947 में लांस नायक के रूप में पदोन्नत कर दिया ।
परिदृश्य स्थिति-2
अक्टूबर 1947 में जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला कर दिया था। हमले का प्रति उत्तर देने के लिए, भारतीय रक्षा समिति ने, सेना मुख्यालय को आदेश दिया कि, दुश्मन को उनकी भाषा में उत्तर दिया जाये। संबंधित ऑपरेशन में राजपूत रेजिमेंट भी शामिल थी। जिसे नौशेरा सेक्टर को सुरक्षित रखने के लिए उक्त मिशन में तैनाती दी गई थी तथा बटालियन के लिए झांगर में आधार बनाया गया था। 24 दिसंबर 1947 को झांगर पर पाकिस्तानियों द्वारा कब्जा कर लिया गया था, जो कि रणनीतिक रूप से नौशेरा सेक्टर पर कब्जा करने के लिए उपयोगी था, जिससे दुश्मन को, मीरपुर और पुंछ के बीच संचार लाइनों पर नियंत्रण मिल गया था, जहां, उन्हें भारतीय सेना पर हमला करने में आसानी हो गई थी। अगले महीने भारतीय सेना ने नौशेरा के उत्तर-पश्चिम में कई अभियान चलाए, जिससे पाकिस्तानी सेना को, आगे बढऩे से रोक दिया गया। कमांडिंग ऑफिसर, ब्रिगेडियर-मोहम्मद उस्मान ने अपेक्षित हमले का मुकाबला करने के लिए, आवश्यक व्यवस्था की थी। संभावित दुश्मन के दृष्टिकोण पर, छोटे-छोटे समूहों में सैनिकों को तैनात किया गया था। नौशेरा के उत्तर में स्थित टेंढर, एक ऐसा स्थान था, जिसकी सुरक्षा के लिए श्री यदुनाथ सिंह की बटालियन को पूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वह टेंढर में अपनी सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व, इस मंशा से कर रहे थे कि, वह किसी भी हालातों में दुश्मन को नौशेरा सैक्टर पर, कब्जा नहीं देंगे। उस दिन श्री यदुनाथ सिंह की टुकड़ी में, मोर्चे पर मात्र 9 सिपाही थे। जो कि बुलंद हौसले से, श्री सिंह के साथ एक दूसरे का मनोबल बढ़ा रहे थे। अचानक दुश्मन ने धावा बोला दिया, लेकिन श्री सिंह ने अपने रण कौशल, क्षमता का परिचय देते हुये, हमलावरों के नापाक मंसूबों को दो बार विफल कर दिया।
सैन्य व्यक्तित्व का अंतिम पत्र
अंतिम बार यदु नाथ सिंह ने अपनी मां बाबू जी को, खत में लिखा था -
बाबू जी...., हम.. छुट्टी लेकर, नहीं आ सकत, अम्मा .... को समझा दिजो , दुखी ना होत, कश्मीर के इलाके मेें, जब हम दुश्मनों के हाथों, अपनी मां, बहनों की इज्जत लुटते देखत हैं, तो हमारा खून खोल उठत, जब तक हम अपनी मां बहनों को इस समस्या से छुटकारा नहीं दिला देत, तब तक हम घर नहीं आ सकत।
आपका यदुनाथ सिंह
वीर गति, परिदृश्य स्थिति-3
6 फरवरी 1948 का वह दिन था, जिस दिन इतिहास के पन्नों में, एक वीर की शौर्य गाथा, स्वर्णिम अक्षरों में लिखी जानी थी। अचानक...दुश्मन की ओर से तीसरा बड़ा हमला तीव्र गति से हुआ। इस बार दुश्मनों की तादाद कई अधिक थी।
तब ही उनके द्वारा अपने हैड ऑफिसर को, एक उत्साह पूर्ण, संदेश प्रेषित किया गया,
कि सर....हमारे पास, गोला बारूद की मात्रा कम है..., दुश्मनों की तादाद हमसे कई गुणा है, प्रति उत्तर में जवाब मिला ...चाहे... कैसे भी हालात क्यों ना बन जाये? आपने अपनी चौकी पर अडिग रहना है।
तदोंपरांत उन्होंने, अपने सिपाहियों का हौसला बढ़ाते हुये कहा कि........
आज हम सब कि, इम्तिहान की घड़ी आ गई है।
हुंकार भरते हुये......., यदुनाथ सिंह जी ने कहा
हम राजपूत हंै......... हमारी रेजीमेंट के, होते हुये....... दुश्मन, हमारे देश का.... बाल भी, बांका नहीं कर सकता.....
श्री यदुनाथ ङ्क्षसह जी, के 4 साथी पहले से ही हमलों में घायल हो चुके थे, और कुछ वीर गति को.....। तब सहायक सिपाही ने यदुनाथ सिंह जी से कहा........ साहब .... साहब ......वे वीर गति को प्राप्त हो चुके हैं।
यदु नाथ सिंह .........वो देश के प्रति अपना फर्ज अदा कर गये ..... तैयार हो जाओ....... अब हमारी बारी आ चुकी हंै।
ऐसे में यदुनाथ ने अपने घायल सिपाही की स्टेन गन उठाई.... और लगातार गोलियों की बौछार.... करते हुये, बंकर से बहार आ गये... दुश्मन घबरा गया और पाक सेना को पीछे हटना पड़ा, अपनी सहायता तक यदुनाथ सिंह को, अपनी स्थिति पर डटे रहना था। वे बड़ी ही बहादुरी से 250 दुश्मनों से लड़ रहे थे। तब एक गोली सपाक स...सस स..... सी आवाज करती हुई .. ....उनके सिर में लगी, जो उनके सिर के, पार हो गई। गोली लगने से, श्री यदुनाथ सिंह जी, एक कभी ना खुलने वाली नींद में, हमेशा के लिए सो गये। इसी परिदृश्य के दौरान सैन्य सहायता टुकड़ी भी मौके पर पहुंच गई। जिस कारण दुश्मन नौशेरा सेक्टर पर कब्जा करने में नाकाम रहा।
वास्तव में हमने उस दिन, एक ऐसे वीर योद्धा को सदा के लिए, खो दिया था, जो वीर गति को प्राप्त होते हुये आज भी भावी पीढिय़ों के लिए संस्कार, भक्ति, राष्ट्रप्रेम की प्रतिमूर्ति का उदाहरण है।
सैन्य व्यक्तित्व, सम्मान
इस अभूत पूर्व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत 1950 में, सेना के सर्वोच्च सम्मान, परम वीर चक्र, से नवाजा गया। उनकी याद मेें प्रत्येक 6 फरवरी को नौशेरा सेक्टर में, एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
यदुनाथ सिंह जी को, सम्मान देने के लिए, उनके पैतृक गांव में, उनकी एक मूर्ति स्थापित की गई, तथा उनकी याद में हथौड़ा बुर्जग, में एक स्टेडियम का निर्माण भी कराया गया।
अंकेश धीमान
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