श्री राम रघोबार राणे भी एक ऐसी शख्सियत है, जिन्होंने अपनी कुशल रणनीति के माध्यम से देश के शीश को और ऊंचा कर दिया।Paramvir Chakra Second Lieutenant Raam Raghovar Rane
सैन्य व्यक्तित्व परिचय :
सैनिक के जीवन में शौर्य, बलिदान, शहादत, वीरगति जैसे शब्दों की गरिमा इतनी पवित्र है, कि जिन्हें वो शायद कोई मौका ना हो, जब उनका उच्चारण ना करता हो। क्योंकि देश की पूर्ण सुरक्षा का जिम्मा एक सैनिक ने हमेशा बखूबी से निभा कर, देश की भावी पीढिय़ों को यह संदेश देने का अथक प्रयास किया, ताकि हिन्दोस्तान की सर जमीं, हमेशा वीरों की भूमि जानी जाये।
उत्कृष्ट योद्धा बनने के लिए, व्यक्ति को कठिन परिश्रम के साथ-साथ, उक्त व्यक्ति के पूर्वजों द्वारा प्रदत्त राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति, स्वदेश प्रेम, अपने कर्तव्य पर अडिग रहने की भावना जैसे संस्कारों को भी अपने चरित्र में शोभायमान करना पड़ता है। ताकि भावी पीढिय़ां, उनके चरित्र पर कोई भी संदेह उत्पन्न न करे। जिससे उनके शौर्य बल, स्वाभिमान को कलंकित होने से बचाया जा सके। यह ही एक वीर योद्धा का सर्वोत्तम गहना होता है। जिसे वह सहज कर अपनी अंतिम श्वास तक रखना चाहता हैं।
देश के वीर योद्धाओं ने सदैव ही देश सेवा को सर्वोपरि समझा और मुश्किल हालातों में भी अपने कर्तव्य पर अटल रहते हुए, ऐसे सैनिकों ने सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त कर,यह साबित कर दिया कि यदि आत्मा में पवित्रता, सच्ची देश भक्ति हो, तो कठिन से भी कठिन लक्ष्य को भी आसानी से भेदा जा सकता है। जी हां श्री मान पाठक महोदय, लेखक ऐसे ही सैन्य व्यक्तित्व की जीवन गाथा पर चर्चा करने जा रहा है, जिन्होंने अपने साहस से यह सिद्ध कर दिखाया, यदि हृदय में उत्कृष्ट जज्बा, लग्न शीलता, देश के प्रति समर्पण की भावना, हो तो कठिन परिस्थितियों में भी दुश्मन के दांत खट्टे कियेे जा सकते हैं। श्री राम रघोबार राणे भी एक ऐसी शख्सियत है, जिन्होंने अपनी कुशल रणनीति के माध्यम से देश के शीश को और ऊंचा कर दिया।
प्रारंभिक जीवन परिचय
श्री राणे (सै. क्र.संख्या आईसी-7244) का जन्म 26 जून 1918 को कर्नाटक राज्य के कारवार जिला, गांव हावेरी में हुआ। जिनके पिता का नाम राघोबा पी राणे था। जो कि उक्त राज्य पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे। पिता की नौकरी निश्चित स्थान पर न होने के कारण, श्री राणे की शिक्षा ने एक घुमक्कड़ शिक्षा का रूप ले लिया था।
सन 1930 में गांधी जी द्वारा चलाये जा रहे, असहयोग आन्दोलन से, श्री राणे काफी प्रभावित हुये। जिसके चलते उन्होंने उक्त आंदोलन में अपनी सहभागिता आत्मीयता के साथ अदा की। बेटे ने अपने उत्साह से, पिता को ऐसी चिंता की अग्नि में झोंक दिया, जिन्हें तत्काल ही अपने पैतृक गांव चेंडिया को प्रस्थान करना पड़ा, क्योंकि वो ब्रिटिश मुलाजिम जो ठहरे। 1940 में दूसरा विश्व युद्ध जोरों पर था। देश की प्रति कुछ कर, गुजरने की इच्छा से राम राघोबा ने भारतीय सेना में भर्ती होने का विचार सुदृढ़ बना लिया था। 22 वर्ष की आयु में (10 जुलाई 1940) श्री राणे, ब्रिटिश भारतीय सेना में बॉम्बे इंजीनियर्स रेजीमेंट में भर्ती हो गये।
सैन्य व्यक्तित्व, गौरव गाथा:-
१- प्रथम परिदृश्य स्थिति
श्री राणे को 26 वीं इन्फैंट्री डिवीजन की इंजीनियरिंग यूनिट के 28वीं फील्ड कंपनी में तैनात किया गया। जो उस दौरान बर्मा बार्डर पर जापानियों से अपना लोहा मनवा रही थी। उस समय श्री राणे को अपने रण कौशल दिखाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
बार्डर पर जापानी सेना द्वारा लगातार हवाई हमले किये जा रहे थे। श्री राणे ने अपने रण कौशल क्षमता व अदम्य साहस को, जापानियों का एक प्लेन व एक डम्पर को नेस्तानाबूत करके, सिद्ध कर दिया।
२- सैन्य व्यक्तित्व, पदोन्नत व संर्घष
श्री राणे की कुशल रणनीति व सटीक निर्णय क्षमता से अंग्र्रेजी अफसर इतने प्रभावित हुये कि, श्री राणे को उच्च ओहदे पर आसीन करने के लिए , अपने उच्च ऑफिसरों को उनकी जेसीओ ट्रेनिंग के लिए सिफारिश करने लगे। फिर क्या था, अथक प्रयासों के बाद उन्हें जूनियर कमीशन ऑफिसर बना दिया गया। कमीशन पाकर वे पुन: अपनी ड्यूटी पर लौटे। क्योंकि वह एक सिपाही के ओहदे से जेसीओ की पोस्ट पर पहुंचे थे।
तो कुछ सीनियर अफसरों का उनके व्यक्तित्व से घृणा करना स्वाभाविक था। जिसकी वजह से उन्हें गहरा दुख हुआ। जिस कारण उन्होंने अतिरिक्त पाठ्यक्रम अध्ययन हेतु, उच्च अधिकारियों से अर्जी लगा दी। उनकी अर्जी को, शीघ्र ही कबूल कर लिया गया। उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान एडवांस्ड इंजीनियरिंग के द्वारा माइंस क्षेत्र में भी असीम सफलता हासिल की।
श्री राणे पुन: अपनी कंपनी में एक बार, फिर वापस लौट आए।
३- द्वित्तीय परिदृश्य स्थिति
अगस्त 1947 बंटवारे का दर्द हिंदोस्तान अभी तक पूर्ण: भूला नहीं पाया था, कि 18 मार्च 1948 को हमारी सेना ने फिर से झंगर पर अपना कब्जा तो पा लिया। लेकिन इसी दौरान पाकिस्तानी सेना ने अपने चरित्र हीनता को, पीछे हटते हुए राजौरी और पूँछ के बीच के नेशनल हाइवे को नष्ट कर, सिद्ध कर दिया। रास्ता ना होने के कारण मेजर आत्म सिंह की सैन्य टुकड़ी ने नौशहरा से होकर राजौरी पहुंचने की कोशिश की लेकिन रास्ता ध्वस्त होने के कारण सफलता नहीं मिली।
डोगरा रेजिमेंट की टुकड़ी ने 8 अप्रैल 1948 को राजौरी में बरवाली रिज पर हमला कर और दुश्मनों को और पीछे हटा दिया। यह जगह नौशहरा से 11 किलो मीटर के फासले पर स्थित थी। परन्तु बरवाली से आगे खराब रोड़ का फायदा उठाते हुये पाकिस्तानी सेना ने बारूदी सुरंग रास्ते में ही बिछा दी थी, ताकि भारतीय सेना के वाहन आगेे बढऩे में सफल ना हो।
४- व्यक्तित्व का रण कौशल
ऐसे मुश्किल हालात में लेफ्टिनेंट रमा राघोबा राणे और उनकी 37 असॉल्ट फील्ड कंपनी व डोगरा रेजिमेंट की सैन्य टुकड़ी ने 8 अप्रैल को माइन फील्डस (बारूदी सुरंग) को हटाने का कार्य युद्ध स्तर पर आरंभ कर दिया। क्योंकि सेना के समक्ष, नदी पार करना व माइंस को खत्म करना, एक बड़ी चुनौती थी।
सैन्य इंजीनियर्स टुकड़ी का मुख्य कार्य है, कि व सेना के लिए रास्ते को सुगम बनाये। श्री राणे भी अपने कर्तव्य को अंजाम देते हुये सेना को लगातार आगेे बढ़ा रहे थे।
अचानक ही रास्ते में, दुश्मन ने भारतीय सेना पर भारी बमबारी करना शुरू कर दी। किंतु श्री राणे ने अपने सुदृढ़ धैर्य को सिद्ध कर, साथियों का साहस बढ़ाते हुए, नदी का पुल बनाने में सफलता हासिल कर ली थी। कंपनी कमांडर भी, श्री राणे की सराहना करते हुये, अपने दस्ते को लेकर आगेे बढ़े। लेकिन लक्ष्य अभी भी अभेद व कठिन था, जितना सरल कंपनी कमांडर ने सोचा था उससे कहीं ज्यादा... आगेे के समस्त रास्ते पर दुश्मन ने माइंस बिछा रखी थी और पूरे क्षेत्र को अपनी मशीन गन से कवर कर लिया था। माइंस फील्ड क्लियर किए बिना, टैंकों का आगे जाना नामुमकिन था। अगर कोई सिपाही माइंस क्लियर कर आगेे जाता तो, दुश्मन की गोलियों का शिकार हो जाता।
५- कुशल नेतृत्व व अभियंता :
सैनिकों को भाग्य की उक्त विडम्बना ने दोहरे मोड़ पर खड़ा कर दिया, जिसका हल मात्र श्री राणे जी, के पास था। उधर कंपनी कमांडर को आगे बढऩे की चिंता प्रतिक्षण सताने लगी। श्री राणे ने कमांडर साहब को एक युक्ति सुझाई, जो कारगर होने के साथ-साथ जोखिम भरी भी थी। लेकिन श्री राणे का उत्साह हमेशा बुलंद रहता था, कि मानो जोखिम भरी चुनौतियां से उन्हें मित्रता सी हो गई हो। हालतो को देखते हुये, उन्होंने श्री मान कमांडर को अपने लीडिंग टैंक से कवर फायर देने की गुजारिश की, और स्वयं टैंक के नीचे लेट कर माइंस को क्लियर करने का सुझाव दिया। कंपनी कमांडर असमंजस में थे, कि, आखिर श्री राणे टैंक ड्राइवर के साथ अपना समन्वय कैसे स्थापित करेंगे?।
कमांडर की उक्त समस्या निवारण हेतु, श्री राणे ने कंपनी कमांडर से कहा कि, वह दो रस्सियों के सहारे ड्राइवर को लगातार सूचित करते रहेंगेे। उन्होंने कहा जब वह दायीं रस्सी खींचेंगे, तो ड्राइवर चलेगा लेकिन जब वह बायीं रस्सी खींचेंगे तो ड्राइवर टैंक को रोक देगा। कंपनी कमांडर ने श्री राणे से कहा,.. अगर तुम्हारा उत्साह बुलंदियों पर है, तो मैं पूर्ण: रूप से तुम्हारे साथ दूंगा। क्योंकि उक्त कार्य बड़े ही जोखिमों से लबरेज था। किसी भी व्यक्ति की जरा सी भूल, श्री राणे को शहादत प्रदान कर सकती थी। कंपनी कमांडर ने टैंक ड्राइवर को पूरी तरह से सावधानी बरतने की हिदायत दी, और श्री राणे को ऐसे साहसिक सोच को, लक्ष्य तक पहुंचाने की अनुमति प्रदान कर दी। फिर क्या था? श्री राणे टैंक के नीचे घुस गए, ओर टैंक ड्राइवर के साथ लग्न से तालमेल बैठाते हुए माइंस फील्ड को क्लियर करने में लग गए। उक्त कार्य बहुत कठिन था, मगर श्री राणे के बुलंद हौसले के आगे बहुत ही छोटा। उन्होंने ना केवल माइंस फील्ड क्लियर की, बल्कि दुश्मनों के द्वारा कई ब्लॉक रोड़स को भी बम से उड़ा दिया। जब वह एक ब्लॉक रोड़ को उड़ा रहे थे, तभी दुश्मन की एक गोली उनके पैरों में आ लगी और वह बुरी तरह से घायल हो गए। बुरी तरह से जख्मी होने के बावजूद भी वह अपने सैन्य फर्ज को अंजाम देते रहे, और लगातार 72 घंटे बिना सोए व खाए, अपने फौजी भाइयों के लिए विजय पथ का निर्माण करते रहे। उन्हें, 25 जून 1968 को, उन्हें स सम्मान सेवानिवृत्त कर दिया गया।
तत्पश्चात, श्री राणे को भारतीय सेना के नागरिक कर्मचारी सदस्य के रूप में, रोजगार विभाग में नियुक्त किया गया। जहां उन्होंने अपनी सेवा 7 अप्रैल 1971 तक पूर्ण कर सैन्य सेवा से, मुक्ती पा ली।
व्यक्तित्व सम्मान:-ं
- जब उन्होंने बेस्ट रिक्रूट को पास किया, तब श्री राणे को कमांडेंट, गन्न से सम्मानित किया गया।
- 21 अप्रैल 1948, को श्री राणे को सैन्य निपुर्णता के चलते, उन्हें परमवीर चक्र पुरस्कार हेतु, राजपत्रित किया गया। तदोपरांत, श्री राणे को 15 दिसंबर 1949 को लेफ्टिनेंट पद पर पदोन्नत कर दिया गया।
- देश के इस वीर योद्धा को उच्च सम्मान देने के लिए, श्री राणा की प्रतिमा परम योद्धा स्टाल, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक , नई दिल्ली में जहाजरानी मंत्रालय के तत्वावधान में भारत सरकार के उपक्रम शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने परमवीर चक्र प्राप्त कर्ताओं के सम्मान में कच्चे तेल टैंकरों को उनका भी नाम दिया।
- 7 नवंबर 2006 को एक समारोह के दौरान, उनकी मूर्ति का अनावरण, उनके गृह जिला करवार में, आईएनएस चैपाल युद्धपोत संग्र्रहालय में, किया गया।
सूझबूझ के धनी, श्री राणे ने दिनांक 11 जुलाई 1994 को पुणे के सैन्य अस्पताल में अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण कर , अपना नाम भारत के सैन्य इतिहास में, स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करा दिया। जो कि हमेशा, वास्तव में देश की भावी युवा पीढिय़ों के लिए, एक अहम प्रेरणा स्रोत बन गये।
~लेखक अंकेश धीमान
पूरा नाम: सेकिंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे
जन्म: 26 जून 1918
जन्म भूमि: चेंडिया
मृत्यु: 11 जुलाई 1994 (आयु- 76)
स्थान: कारवर कर्नाटक
अभिभावक: राघोबा राणे (पिता)
पति/पत्नी: लीला राणे
सेना: भारतीय थल सेना
रैंक: सेकिंड लेफ्टिनेंट, बाद में मेजर
यूनिट: कोर ऑफ इंजीनियर की रेजीमेंट बाम्बे सैपर्स
सेवा काल: 1947 से 1968
युद्ध: भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947)
सम्मान: परमवीर चक्र
नागरिकता: भारतीय
वीर सैनिक को सलाम। जय हिंदी। धन्यवाद यह जानकारी साझा करने के लिए।
जवाब देंहटाएंvery nice article sir
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