Inter national freedom day press day 3 may प्रेस की स्वतंत्रता व अधिकार प्रेस दिवस 3 मई पर विशेष प्रेस दिवस पर चर्चा
प्रेस का स्थापना, दिवस
मानव के मौलिक अधिकारों का आधार, स्वतंत्रता का अधिकार अर्थात अभिव्यक्ति का अधिकार है, जो मानव के अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए पूर्ण: वचनबद्ध है। उक्त बातों को ध्यान में रखते हुये भारत सरकार ने 2005 में, सूचना के अधिकार की स्थापना की। ताकि किसी व्यक्ति के अंत हृदय में सरकार से संबंधित, कोई भ्रम की स्थिति पैदा ना हो और संबंधित जानकारी उक्त व्यक्ति को आरटीआई के माध्यम से उपलब्ध कराई जा सके। लेखक सर्व प्रथम, अंत हृदय से, समस्त प्रिय पाठकों व समस्त लेखकों को, विश्व अंतरराष्ट्रीय प्रेस दिवस की बहुत शुभकामनाएं देना चाहता है, ताकि वे ऐसे ही निष्पक्ष, समाज हित, देश हित व मानव हित में, अपना सराहनीय योग दान अपनी कलम के माध्यम से देते रहे, जो कि वर्तमान की आवश्यकता को देखते हुये, नितांत आवश्यक हो गया है। अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस की स्थापना का निर्र्णय 3 मई वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग ने मिलकर किया था। इससे पूर्व नामीबिया में विन्डंहॉक में हुए सम्मेलन में भी उक्त चर्चा पर बल दिया गया था, ताकि प्रेस की आजादी को सदैव, जन संचार की आजादी के रूप में स्थापित किया जा सके। प्रेस एक मात्र ऐसा माध्यम है, जिसके कारण व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति को, आसानी से व्यक्त कर सकता है।
अभिव्यक्ति की आजादी या परतंत्र की भाषा
प्रेस अथवा न्यूज चैनलों के कंधों पर जातिवाद और सम्प्रदायिकता जैसे विचारों, गरीबी तथा अन्याय सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, क्योंकि देश में जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा होने के साथ-साथ जागरूक नहीं है। उक्त समस्या को देखते हुये जरूरी हो गया है, कि समस्त जानकारी उक्त लोगों के संज्ञान में लाई जाये। ताकि वे न्यू इंंडिया के सपने में, अपनी भागी दारी अदा कर सके। किंतु शोचनीय विषय तो तब बन जाता हैं, जब कुछ प्रबुद्ध लोग, कलम को ही कलंकित करने में जुट जाते है। जिसका फायदा मुख्य: पूंजीपतियों या फिर सुदृढ़ राजनैतिक पार्टियों को दे दिया जाता है। या फिर ऐसे महापुरुष ही प्रेस की गरिमा को धूमिल करने से भी, बाज नहीं आते। प्रेस की स्थापना करना या प्रेस से संबंध स्थापित करना, जिनके उद्देश्य समाज हित ना होकर मात्र स्वार्थ सिद्धि से फलीभूत होता है। जिसका मुख्य कारण या तो वो समाज में अपनी धाक स्थापित करना चाहते हैं या फिर अपने काले कारनामों को प्रेस जैसी सफेद चादर से ढांपना और जब प्रेस के साथ ऐसा अन्याय होता तो उस दौरान प्रेस की स्वतंत्रता पर, प्रश्न चिन्ह अंकित होना स्वाभाविक है। उक्त कारणों के चलते ही आधुनिक प्रेसों अथवा चैनलों की मानसिकता का दायरा दिन-प्रतिदिन संकुचित होता जा रहा है। जो वास्तव में होता है, वह दिखाया नहीं जाता है, जो होता नहीं उसे इतना बढ़ा चढ़ा कर दिखाया दिया जाता है, कि जनता के हृदय में आक्रोश की भावना भड़क उठती है। जिसका खामियाजा, हमें भारी कीमत चुका कर अदा करना पड़ता है। कभी-कभी तो चैनल- एंकर युद्ध की स्थिति में राष्ट्रीय सुरक्षा को भी अनदेखा कर बॉर्डर पर पहुंच जाते, जो कि लेखक के नजरिये से सरासर राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध है। जिसका मुख्य कारण अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था को, दुश्मन को सूचित कर, कहीं हद तक, रणनीति को कमजोर बनाना है। जब देश में चुनाव आते है, तो खबरों को ,(प्रकाशन अथवा प्रसारण) के माध्यम से पक्ष पात कि नीति का प्रयोग कर, पैड न्यूज को प्रकाशित अथवा प्रसारित कर दिया जाता है। उस दौरान ऐसे व्यक्तियों की नजरों में ना तो देश हित, ना ही समाज हित सर्वोपरि होता मात्र बस स्वार्थ सिद्धि की बू झलकती है। जब तक देश की प्रेस या मीडिया कर्मी उन्मुक्त सिद्धांत, अपना कर अपने कर्तव्य को पूर्ण अंजाम नहीं देंगे, शायद तब तक हमारा देश पूर्ण जागरूक नहीं होगा और ना ही विकसित दिशा में बढ़ सकेगा। प्रेस का मुख्य कार्य अपने आस-पास, समाज में घटित होने वाली समस्त समस्याओं को उच्च शिखर तक पहुंचाना, उनका निदान कराना मुख्य है
प्रेस का इतिहास
प्रेस का इतिहास काफी प्राचीन है, जब तक प्रेस नहीं थी, जब सूचनाओं या संवादों को आदान प्रदान, दूतों के माध्यम से , शिलालेख, पत्तों पर लिखावट कर या फिर कहे कि छालों पर, हाथ से खुदाई कर किया जाता था। जैसे ही आवश्यकता बढ़ती रही, वैसे ही कागज निर्माण और फिर छापेे खानों का विस्तार बढऩे लगा। सन् 105 ई. में, एक चीनी नागरिक ने कागज का आविष्कार किया। सन् 712 ई. में चीन में सीमाबद्ध एवं स्पष्ट ब्लॉक प्रिंटिंग प्रेस की शुरूआत की।
चीन में ही सन् 650 ई. में हीरक सूत्र नामक संसार की पहली मुद्रित पुस्तक प्रकाशित की गयी। सन् 1041 ई. में चीन के पाई शेंग नामक व्यक्ति ने चीनी मिट्टी की मदद से अक्षरों को तैयार किया। अक्षरों को आधुनिक टाईपों का रूप माना जा सकता है। चीन में ही दुनिया का पहला मुद्रण स्थापित हुआ, जिसमें लकड़ी के टाईपों का प्रयोग किया गया था। टाईपों के ऊपर स्याही जैसे पदार्थ को पोतकर कागज पर, दबाकर छपाई का कार्य किया जाता था। वास्तव में छापे खाने की खोज का श्रेय चीन को ही जाता है।
छापे खाने का आविष्कार
जर्मनी के जॉन गुटेनबर्ग ने सन् 1440 ई. में ऐसे टाइपों का आविष्कार किया, जो बदल-बदलकर विभिन्न सामग्री को अधिक मात्रा में मुद्रित कर सकता था। इसके फल स्वरूप जनता तक बिना रुकावट के समाचार पत्रों को पहुंचाने की सुविधा को प्रबल किया गया। ऐसी सुविधा को कायम रखने के लिए समस्त उत्तरदायित्व लेखकों और पत्रकारों पर आन पड़ा। जॉन गुटेनबर्ग ने ही सन् 1454-55 ई. में छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) लगाया तथा सन् 1456 ई. में बाइबिल की 300 प्रतियों को प्रकाशित कर पेरिस भेजा। इस पुस्तक की मुद्रण तिथि 14 अगस्त 1456 निर्धारित की गई है। जॉन गुटेनबर्ग के छापे खाने से एक बार में 600 प्रतियां तैयार की थी। इस प्रकार, मुद्रण कला जर्मनी से आरंभ होकर यूरोपीय देशों में फैल गयी। सन् 1475 ई. में सर विलियम केकस्टन के प्रयासों के चलते ब्रिटेन का पहला प्रेस स्थापित हुआ। ब्रिटेन में राजनैतिक और धार्मिक अशांति के कारण छापे खाने की सुविधा सरकार के नियंत्रण में थी। इस प्रकार के छापे खाने स्वतंत्र रूप से स्थापित करने के लिए सरकार से विधिवत आज्ञा लेना बड़ा ही ढ़ेडी खीर था।
सन् 1638 ई. में ग्लोभरले ने एक छापाखाना जहाज में लादकर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए भेजा, लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उनके सहयोगी म्याश्यु और रिटेफेन डे ने उक्त छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) को स्थापित किया। सन् 1798 ई. में लोहे के प्रेस का आविष्कार हुआ, जिसमें एक लिवर के द्वारा अधिक संख्या में प्रतियां प्रकाशित करने की सुविधा थी। सन् 1811 ई. के आस-पास गोल घूमने वाले सिलेण्डर चलाने के लिए भाप की शक्ति का इस्तेमाल होने लगा, जिसे आजकल रोटरी प्रेस कहा जाता है। हालांकि इसका पूरी तरह से विकास सन् 1848 ई. के आस-पास हुआ। 19वीं सदी के अंत तक बिजली संचालित प्रेस का उपयोग होने लगा, जिसके चलते न्यूयार्क टाइम्स के 12 पेजों की 96 हजार प्रतियों का प्रकाशन एक घंटे में संभव होना सुनिश्चित हो सका।
सन् 1890 ई. में लिनोटाइप का आविष्कार हुआ, जिसमें टाइपराइटर मशीन की तरह से अक्षरों के सेट करने की सुविधा थी। सन् 1890 ई. तक अमेरिका समेत कई देशों में रंग-बिरंगे ब्लॉक अखबार छपने लगे। सन् 1900 ई. तक बिजली संचालित रोटरी प्रेस, लिनोटाइप की सुविधा और रंग-बिरंगे चित्रों को छापने की सुविधा, फोटोग्राफी को छापने की व्यवस्था होने से सचित्र समाचार पत्र पाठकों तक आसानी से पहुंचने लगे।
प्रेस की आजादी, संघर्ष
परतंत्र की जंजीरों में जकड़े देश की जनता स्वयं को घुटन तो महसूस कर रही थी लेकिन बुद्धिजीवी लोगों ने प्रेस की आजादी को गंभीरता से लेते हुये, संघर्ष को 19वी शदी के आरंभ में ही, तीव्र गति दे दी। ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर दबाव बनाने के लिए, काफी प्रयत्न किये लेकिन वो सफल ना हो सके। ऐसी स्थिति को देखते हुये ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर अंकुश लगाने हेतु सन 1824 ई. में एक कानून बनाया जिसके खिलाफ, राजा राममोहन राय ने सुप्रीम कोर्ट में ज्ञापन के माध्यम से कहा हर अच्छे शासक को यह फिक्र होना चाहिए की वह जनता को, ऐसे साधन उपलब्ध अवश्य करवाएं, जिसके माध्यम से उनकी समस्याओं और मामलों की सूचना ,शासन को अतिशीघ्र मिले। ताकि समाज में सदैव शांत वातावरण बना रहे।
प्रेस, उत्तरदायित्व
- सार्वजनिक मुद्दों पर, सार्वजनिक रूप से बहस, चर्चा, परिचर्चा।
- किसी भी विचार या वैचारिक मत का मुद्रण और प्रकाशन।
- किसी भी श्रोत से जनहित की सूचनाएं एवं तथ्य एकत्रित करना।
- सरकारी विभागों,सरकारी उप क्रमों सरकारी प्राधिकरणों और लोक सेवकों कार्यों एवं कार्यशैली की समीक्षा करना,उनकी आलोचना करना।
- प्रकाशन सामग्री का अधिकार अर्थात कौन सी खबर प्रकाशित या प्रसारित करनी है।
प्रेस पर प्रतिबंध की स्थिति
- राष्ट्र की प्रभुता और अखंडता के हित में
- राज्य की सुरक्षा के हित में
- विदेशी राज्यों के साथ संबंध मैत्री पूर्ण उनके संबंध के विषय में
- लोक व्यवस्था के हित में
- शिष्टाचार/सदाचार के हित में
- न्यायालय की अवमानना
- मानहानि के संबंध में
- अपराध को उकसाना, से संबंधित
उक्त पठित वाक्य वह है जो कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) में दर्ज है जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि प्रेस को उक्त तथ्यों के आधार पर प्रकाशन के समय विशेष ध्यान रखना होगा और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर, केवल युक्तियुक्त प्रतिबन्ध ही लगाए जा सकते है और सर्वोच्च न्यायालय ने
ऐसे मामलों में मीडिया पर, युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाना उचित माना है। ताकि प्रेस या चैनलों के दायरे को किसी हद तक सीमित किया जा सके। लेखक: अंकेश धीमान
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जवाब देंहटाएंnimbu ke fayde