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व्यक्तित्व परिचय:-
हमारी भावी पीढिय़ों में संस्कारों का संचारण दो ही माध्यम से हो सकता है, या तो उनके कुल के लोग अच्छे हो या फिर उनके हृदय में ऐसी चुंबकीय शक्ति हो, जो कि महान व्यक्तित्व को आदर्श के रूप में अपना कर, अपने कुल व देश के गौरव को बढ़ा सके।
आज हम ऐसे ही व्यक्तित्व की जीवन गाथा पर चर्चा करने जा रहे, जो कि गुलाम भारत व आजाद भारत के मुख्यमंत्री रहते हुये, उन्होंने देश सेवा की, पराकाष्ठा को चार चांद लगा दिये। उनके सज्जन शील व मिलनसार व्यवहार से प्रभावित होकर, तत्कालीन सरकार ने उन्हें, भारत रत्न से सम्मानित किया। जब व्यक्ति के अंत: हृदय में दृढ़ निश्चय, लग्न, आत्मविश्वास, निडरता जन्म लेती है, तो वह व्यक्ति किसी भी विपरीत परिस्थिति को अनुकूल स्थिति में बदलने के काबिल बन जाता है। उक्त सद्गुण से परिपूर्ण व्यक्तित्व का एक मात्र उद्देश्य, संपूर्ण मानव जाति का भला करना होता है। ताकि भावी पीढिय़ों को उन पर मान हो, और वे, उन्हें अपना आदर्श मान कर, संपूर्ण समाज में, संस्कारों की महक बिखेर सके।
जीवन परिचय :-
दृढ़ निश्चय, लग्न, आत्मविश्वास, निडरता की, साक्षात प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले, श्री गोविंद बल्लभ भाई पंत जी का जन्म, 10 सितम्बर, 1887 को, गाँव खूंट, श्यामली पर्वतीय क्षेत्र (अल्मोड़ा /उत्तराखंड ) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। श्री पंत जी के पिता जी का नाम श्री मनोरथ पन्त व माता जी का नाम गोविन्दी बाई था। उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने बड़ी ही सूझबूझ से की। गोविन्द जी की, प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई। श्री पंत जी, का दाखिला सन 1897 में, स्थानीय प्राथमिक पाठशाला में कराया गया। उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन जोरों पर होने के कारण, अल्प आयु में ही उनका विवाह गंगा देवी से करा दिया गया। बचपन से ही मेधावी छात्र होने के नाते उन्होंने लोअर मिडिल की परीक्षा, प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। तत्पश्चात 12 वीं कक्षा तक उनके अध्ययन की स्थिति यथावत बनी रही। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की। स्नातक अध्ययन के दौरान ही उनका संपर्क, देश सेवा को समर्पित, अनेक विभूतियों से हुआ, जिसमें पं0 जवाहरलाल नेहरु, पं0 मोतीलाल नेहरु, सर तेजबहादुर, श्री सतीश चन्द्र बैनर्जी व श्री सुन्दरलाल सरीखों प्राध्यापक जैनिग्स, कॉक्स, रेन्डेल, ए.पी. मुकर्जी सरीखे, आदि शामिल थे। इन महापुरुषों की संगत व विचार धारा से प्रभावित होकर, श्री पंत जी ने अपने जीवन का एक मात्र लक्ष्य, देश सेवा ही सुनिश्चित कर लिया था।
स्वतन्त्रता संघर्ष-
स्नातक की पढ़ाई के बाद, उन्होंने अपने जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव सन 1910 में, अल्मोड़ा से वकालत आरंभ कर किया। श्री पंत जी का सिद्धांत अन्य वकीलों से कुछ खास ही था, अगर कोई व्यक्ति अपने मुकदमे के बारे, सटीक जानकारी उन्हें उपलब्ध नहीं कराता था, तो वो उक्त व्यक्ति के मुकदमे को दरकिनार कर देते थे।
कहा जाता है, कि एक बार श्री पंत जी अंग्रेजी कोर्ट में धोती कुर्ता व टोपी के लिबास में पैरवी करने पहुंचे तो उनके इस पहनावे पर ब्रिटिश न्यायाधीश ने आपत्ति जता दी थी।
1916 में पंत जी को काशीपुर की 'नोटीफाइड क्षेत्रिय कमेटी में नियुक्त किये गया। बाद में वह 'शिक्षा समिति (कमेटी की) के अध्यक्ष बन गयेे। जिसका एक मात्र उद्देश्य लोगों को शिक्षित व जागरूक करना था। श्री पंत जी के लग्न व उत्साह ने उक्त संस्था के प्रभाव को इतना प्रबल बना दिया था कि ब्रिटिश स्कूलों के कर्मचारियों को अपने स्कूलों को बंद करने पड़े।
श्री पंत जी ने कुमायूं में (उत्तराखंड) 'अंहिसा के आधार पर 'राष्ट्रीय आन्दोलन को एक सूत्र में पिरोने के सफल प्रयास किये। कुमाऊं के राजनीतिक आन्दोलन का नेतृत्व पंत जी के हाथों में ही रहा। आन्दोलन के आरम्भ में कुली-बेगार, जंगलात आंदोलन, स्वदेशी प्रचार तथा विदेशी कपड़ों की होली जलाकर व लगान का विरोध करने से हुआ। ऐसे आंदोलन के फलस्वरूफ ही कमाँऊ क्षेत्र में प्रचलित कुली बेगार अपमान जनक प्रथा का अंत हुआ।
गांधी जी की विचार धारा से प्रेरित श्री पंत जी ने, राष्ट्र समर्पण भावना को, इतना उच्च कोटी का बना लिया था कि, वे, सन 1921 में रोलेक्ट एक्ट के विरुद्ध, असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। ताकि राष्ट्र स्वतंत्रता के महा यज्ञ में अपनी कर्मों की, पूर्ण आहुति दे सके।
उसी, दौरान श्री गोविंद बल्लभ पंत जी ने काकोरी काण्ड- दोषियों के मुकदमों में, अन्य वकीलोंं के साथ बढ़-चढ़ कर भाग लिया। श्री पंत जी चाहते थे किसी भी क्रांतिकारी को कोई सजा ना मिले यदि मिले तो नाममात्र ही हो। इसी विचार को लक्ष्य बना कर, उन्होंने सन 1927 में, राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य क्रांतिकारियों को फाँसी से बचाने के लिये, पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के सहयोग से, मौजूदा वाय सराय को एक अर्जी दी। किन्तु गांधी जी का पूर्ण सहयोग प्राप्त ना होने कारण वे अपने इस प्रयास में असफल रहे। श्री पंत जी का स्वभाव हमेशा मिलनसार ही रहा चाहे वह किसी नर्म दल से हो या फिर गर्म दल से। इसी अद्भुत गुण के चलते, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान श्री पंत जी ने महात्मा गांधी व सुभाष चंद्र बोस के गुटों के मध्य, एकता बनाये रखने का कार्य किया। गांधी जी की विचार धारा, अपने युद्ध के प्रयास में, ब्रिटिश क्राउन का समर्थन करने की थी जबकि श्री बोस का लक्ष्य, किसी भी तरह से अंग्रेजी हुकूमत को, देश से बाहर निकालना था ।
साइमन कमीशन (1928) , नमक सत्याग्रह (1930) जैसे आंदोलनों में भी, श्री पंत जी अपने राष्ट्र सेवा लक्ष्य पर अडिग रहे। उक्त आंदोलनों में अग्रदूत होने के कारण उन्हें मई 1930 को जेल भी जाना पड़ा। वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जो कि गुलाम , स्वतंत्र भारत, उत्तर प्रदेश राज्य के दो बार मुख्य मंत्री रहे। जब संयुक्त प्रान्त का नाम, उत्तर प्रदेश रखा गया तो पुन: इन्हें तीसरी बार, सर्व सम्मति से, उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना लिया गया। वे उक्त पद पर 1954 तक बने रहे। 1955 में सरदार बल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के उपरांत इन्हें निर्विरोध गृहमंत्री चुन लिया गया। इन्होंने गृहमंत्री पद पर अपनी सेवा, सन 1961 बखूबी से निभाई।
श्री पंत द्वारा, निर्मित नाटक
श्री गोविंद वल्लभ पंत जी हमेशा एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। उनकी मंशा हमेशा अपने जीवन में कुछ नया करने की बनी रहती थी। ताकि समस्त मानव जाती को उनके द्वारा किये गये कार्य से कुछ नई सीख मिले । ऐसी ही विचार धारा के चलते, शायद उन्हें एक अच्छे नाटककार होने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अनेक नाटको की रचना की जिसमें
मार्कण्डेय पुराण की एक कथा पर आधारित
-वर माला नाटक
रास्थान, मेवाड की पन्ना धाय कथा पर आधारित -राजमुकुट नाटक
अंगूर की बेटी नाटक मुख्य: प्रचलित है।
महान व्यक्तित्व की मृत्यु
जैसा कि सर्वविदित है कि मृत्यु को कभी झुठलाया नहीं जा सकता, वह अभागा दिन 9 मई 1961 को आ ही गया, जिस दिन, हृदय घात के कारण श्री पंत जी को इस मिट्टी की देह को त्यागना पड़ा। वास्तव में हमने उस दिन ऐसे हिमालय पुत्र को खो दिया था, जिसने अपनी धैर्य शक्ति के माध्यम से, देश की भावी युवा पीढिय़ों को एक सबक देने का प्रयास किया कि मुश्किल हालातों में समस्याओं से हारना नहीं, अपितु उन पर विजय पताका फहरना है।
व्यक्तित्व सम्मान-
- श्री पंत जी ने सन 1909 में, कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों से उत्तीर्ण की थी, इसलिए उन्हें कॉलेज की ओर से, लैम्सडेन अवार्ड दिया गया।
- सन 1957 में श्री पंत जी को भारतरत्न से सम्मानित किया गया। श्री पंत जी उत्तराखंड के एक मात्र ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्हें ये सम्मान मिला उन्हें हिमालय पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।
- उत्तराखंड राज्य में श्री गोविन्द बल्लभ पंत जी के सम्मान में गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्व विद्यालय, पंतनगर, गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी गढ़वाल की स्थापना की गई। लेखक-अंकेश धीमान (धीमान इंश्योरेंस) बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर उत्तर प्रदेश
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