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नाम- चक्रवर्ती राज गोपाल चारी
उपनाम- राजा जी
जन्म- 10 दिसम्बर 1878
स्थान-सलेम थोरापल्ली (मद्रास)
पिता- चक्रवर्ती वेंकट आर्यन
माता- सिंगारम्मा
पेशा-वकील, लेखक
उपलब्धि- मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, गर्वनर
सम्मान- भारत रत्न
साहित्य अकादमी पुरस्कार
व्यक्तित्व परिचय
हिंद वतन की, जमीं ही कुछ ऐसी है, कि यह कभी भी ऐसे महापुरुषों की मौजूदगी से अछूती नहीं रही, जिन्होंने अपना सर्वस्व अपने मातृ भूमि -जमीं ए-हिंद पर बलिदान ना किया हो। ओर हो भी क्यों ना, हमारी संस्कृति वर्तमान में कहीं ना कहीं पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से पूर्ण: मुक्त है। इसे आप वतन मिट्टी की गरिमा समझे या फिर या हमारे पूर्वजों के अच्छे संस्कारों का फल। ये क्रम तो हमारे देश में युगों युगों से चला आ रहा है ओर भविष्य में भी जारी रहेगा। आज हम ऐसे ही व्यक्तित्व की जीवन शैली पर चर्चा करने जा रहे है, जिन्होंने काफी संघर्ष के बाद अपनी भावी पीढिय़ों के लिए एक ऐसा आयाम स्थापित किया जिससे हमें सदैव कुछ ना कुछ प्रेरणा मिलती रहेगी। वे वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक होने के साथ-साथ भारत के प्रथम व द्वितीय गवर्नर जनरल भी रहे। जिनकी पहचान राजा जी के नाम से भी होती रही है।
व्यक्तित्व जीवन परिचय
राजा जी का जन्म 10 दिसम्बर 1878 को, सालेम जिले के थोरापल्ली गाँव में (मद्रास) में हुआ था। श्री राजगोपाल चारी जी के पिता जी का नाम चक्रवर्ती वेंकट आर्यन व माता जी का नाम सिंगारम्मा था। श्री चक्रवर्ती जी की आरंभिक शिक्षा थोरापल्ली गांव में ही हुई। किन्हीं कारणों के चलते, उनका परिवार, होसुर में बस गया था, जब उनकी उम्र तकरीबन 5 वर्ष रही होगी। जहाँ उनका दाखिला आर. वी. गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में कराया गया। अपनी लग्न व मेहनत से उन्होंने सन 1891 में मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंको से पास की। तत्पश्चात सन 1894 में उन्होंने बैंगलोर, सेंट्रल कालेज से, कला में स्नातक की। उसके बाद, उन्होंने प्रेसीडेंसी कालेज मद्रास में कानून की पढ़ाई करना प्रारंभ कर दिया। सन 1897 में उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूर्ण कर ली। सन 1897 में, श्री चक्रवर्ती का विवाह अलामेलु मंगम्मा से हुआ। उक्त दम्पति के पांच संतानें हुईं, जिनमें तीन पुत्र और दो पुत्रियां थी। सन 1916 में उनकी पत्नी मंगम्मा, का स्वर्गवास हो गया।
वे गांधीजी के समधी थे। क्योंकि उनकी पुत्री का विवाह (लक्ष्मी) गांधीजी के छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ।
हिंदी, प्रचार प्रसार सेवा
एक लेखक होने के नाते उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार जोर-शोर से किया वह विद्वान होने के साथ साथ, अद्भुत लेखन प्रतिभा के भी धनी थे। गंभीरता और तीखापन उनकी लेखनी में बखूबी से झलकता था। उन्होंने मद्रास प्रांत में हिंदी के विकास के लिए समर्थन किया, तो उग्र विरोध के साथ हिंसा भड़क उठी जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी। उस दौरान वे हिंदी को तय मुकाम नहीं दिला सके, लेकिन दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया था। राजाजी के नाम से प्रसिद्ध, श्री राजगोपालाचारी ने अनेक कहानियां लिखीं। साथ ही, कुछ दिनों तक महात्मा गांधी के अखबार 'यंग इंडिया का संपादन कार्य भी करते रहे। 'गीता और 'उपनिषदों पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध रही हैं। इनके द्वारा रचित चक्रवर्ती तिरुमगन, जो गद्य में रामायण कथा है, के लिये उन्हें सन् 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। उनकी अनेक कहानियाँ काफी उच्च कोटी की थी। 'स्वराज्य नामक पत्र में उनके लेख मुख्य रूप से प्रकाशित होते रहते थे। नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं जैसे की खादी के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान हमेशा सराहनीय रहा।
स्वाधीनता संघर्ष
सन 1900 में उन्होंने वकालत प्रारंभ की। वकालत के दौरान उनके संपर्क में बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट और सी. विजय राघव्चारियर जैसे राष्ट्रवादी नेता आये जिनसे वो काफी प्रभावित हुये। जब महात्मा गाँधी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय थे तब श्री राज गोपाल चारी उनके अनुगामी बन चुके थे। सन 1917 में उन्होंने स्वाधीनता कार्यकर्ता पी. वदारज़जुलू नायडू के पक्ष में वकालत की। वदारज़जुलू पर विद्रोह का मुकदमा लगाया गया था। तत्पश्चात उन्होंने असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर अपनी भूमिका अदा की। जिस कारण उन्होंने वकालत भी छोड़ दी थी। उनकी क्रियाशीलता को देखते हुये कांग्रेस के पदाधिकारियों ने उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य सर्व सम्मति से चुन लिया ओर वे कांग्रेस के महामंत्री बन गये। सन 1922 में कांग्रेस अधिवेशन में, उन्हें एक नयी पहचान मिली। उन्होंने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919 के तहत अंग्रेजी सरकार के साथ किसी भी तरह के सहयोग का विरोध किया और इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिलज् के साथ-साथ राज्यों के विधान परिषद में प्रवेश का भी विरोध कर नो चेन्जर्सज् समूह के नेता बन गए। अपनी इन्हीं गतिविधियों के चलते वे धीरे-धीरे तमिल नाडु कांग्रेस के प्रमुख नेता बन गए और बाद में तमिलनाडु कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी चुने गए। जब 1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह दंड़ी मार्च किया।
तब राज गोपाल चारी ने भी नागपट्टनम के पास वेदरनयम में नमक कानून तोड़ा, जिस कारण उन्हें जेल भेजा गया। सन 1937 में संपन्न हुए, चुनावों में चक्रवर्ती के नेतृत्व में कांग्रेस ने मद्रास प्रांत में, विजय प्राप्त की जिस कारण उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1939 में ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच मतभेद हो जाने के कारण मौजूदा सरकार ने कांग्रेस की सभी सरकारें भंग कर दी थी। उसी दौरान श्री चक्रवर्ती जी ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। द्वित्तिय विश्व युद्ध के समय गाँधी जी का मत था, कि ब्रिटिश सरकार को, युद्ध में मात्र नैतिक समर्थन दिया जाना चाहिए, किंतु श्री चक्रवर्ती जी का विचार गांधी जी के मत के विपरीत था। वे चाहते थे, कि भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की, शर्त पर ब्रिटिश सरकार को हर प्रकार का सहयोग दिया जाना चाहिए। बस इतने से, विचारों के मतभेद कुछ ज्यादा ही बढ़ गये, जिस कारण श्री चक्रवर्ती नेे कांग्रेस की कार्यकारिणी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
सन 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन का पूर्ण आगाज हो चुका था, ऐसा नहीं था, कि वे देश के स्वतंत्रता संग्राम या कांग्रेस से विमुख हो गये थे। किंतु वे अपने सिद्धांतों और कार्यशैली के अनुसार निरंतर, देश सेवा से जुड़े रहे। अपने ही तौर तरीकों व सटीक सिद्धांतों के चलते उनकी राजनीति में गहरी छाप पड़ चुकी थी। सन 1942, इलाहाबाद में हुये, कांग्रेस अधिवेशन में, उन्होंने देश, विभाजन, के लिए अपनी सहमति स्पष्ट कर दी थी। यद्पि उक्त निर्णय के कारण उन्हें जनता और कांग्रेस का बहुत बड़ा विरोध सहना पड़ा। सन 1947 में वही हुआ, जो श्री चक्रवर्ती जी गत 5 वर्ष पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था। यही कारण था कि कांग्रेस के अन्य सभी नेता उनकी दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का लोहा मानते थे। कांग्रेस से अलग होने के बावजूद पार्टी के किसी भी व्यक्ति को, यह महसूस नहीं होता था कि वे उनसे अलग हैं।
महत्वपूर्ण नियुक्ती
1947 में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। तत्पश्चात उन्हें आगामी वर्ष में स्वतंत्र भारत के प्रथम 'गवर्नर जनरल जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया गया। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु होने के कारण, उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया ओर उन्हें केन्द्रीय गृह मंत्री बनाया गया।
श्री चक्रवर्ती जी की देश सेवा के प्रति समर्पण की भावना को देखते हुये सर्वसम्मति से, सन 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। भारत रत्न पाने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे। दिनांक 28 दिसंबर 1972 चैन्नई में 92 वर्ष की उम्र में, श्री राजगोपाल चारी चक्रवर्ती जी उस अविनाशी ईश्वर की ज्योति में सदा के लिए समा गये।
लेखक -अंकेश धीमान
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