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योग एक, ऐसी कठिन व सरल साधना है जिसको धारण करने से हृदय की विकृतियों का शुद्धि करण होना निश्चित है। वर्तमान समय में योग जैसे प्राचीन संस्कृति विलुप्त होने की कगार पर थी। किंतु कुछ महापुरुषों के अथक प्रयासों से, योग जैसे क्रिया को विश्व मंच पर पिछले कई वर्षों में जो ख्याति प्राप्त हुई, वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। वर्तमान में योग के कारण ही विश्व के लोगों ने शायद भारत की आत्मिक शक्ति को अवश्य पहचान लिया होगा। यदि प्रत्येक व्यक्ति योग को, अपने जीवन में गंभीरता से अपना ले, तो विश्व पटल पर, निरोगी काया के साथ-साथ, अध्यात्म की गंगा का, अविरल बहना निश्चित है। किंतु समस्त विश्व में योग क्रिया को धरातल पर उतारना काफी कठिन है। योग जो, कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है, की छाप समस्त विश्व पटल पर पुन: तब पड़ी जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने योग के महत्व पर मंथन कर, 21 जून 2015 को प्रथम बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निर्णय लिया। इस अवसर पर 192 देशों और 47 मुस्लिम देशों ने योग दिवस का आयोजन कर सिद्ध कर दिया कि असंभव कार्य भी संभव हो सकता है। तत्पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ ने भविष्य में भी विश्व में प्रति वर्ष 21 जून को योग दिवस मनाने की भी घोषणा की ।
योग की परिभाषा-
हालांकि योग की परिभाषा भिन्न मतों के अनुसार भिन्न रही है। जिसे कई रूप में परिभाषित किया गया जैसे कि-
संयोग इत्युक्त: जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है। (विष्णुपुराण)
सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते (2/48) अर्थात् दु:ख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है। (भगवद्गीता )
कुशल चितैकग्गता योग: अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
(बौद्ध धर्म के अनुसार)
लेखक के अनुसार
योग वह मोक्ष का मुख्य द्वार है, जिसके माध्यम से अध्यात्मिक सुख व निरोगी काया, के सुख की अनुभूति की जाये, जो कि समस्त विश्व की मानव जाती को उत्तम स्वास्थ्य व भरपूर अध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने की पूर्ण क्षमता रखता है।
योग क्या?
योग एक ऐसी अध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसके प्रयोग मात्र से व्यक्ति के शरीर , मन, आत्मा को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। इस शब्द कि प्रक्रिया, हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान से घनिष्ठ संबंध रखती है। योग शब्द, भारत से बौद्ध धर्म के माध्यम से चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में पूर्व से ही प्रचलित है। वर्तमान में योग शब्द से ऐसा कोई व्यक्ति ही होगा जो इससे परिचित ना हो। योग प्राचीन हिन्दू सभ्यता का वह मार्ग है, जो अनादि काल से मनुष्य को, मन और शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ आध्यात्म की पराकाष्ठा पर पहुंचा सकता है। योग के प्रचार-प्रसार में योग गुरुओं का काफी योगदान है, जिनमें से अयंगार योग के संस्थापक बी के एस अयंगर और योग गुरु रामदेव बाबा रामदेव मुख्य: शामिल हैं,
योग के प्रकार
योग को हम वर्गीकरण के आधार पर आसानी से समझ सकते है। जो कि निम्नवत है।
राज योग
इस योग को आठ भागों में विभाजित किया गया है। जैसे-
यम (शपथ लेना)
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार( इन्द्रियों पर नियंत्रण)
धारण
एकाग्रता
समाधि
कर्म योग
इस योग की श्रेणी में मनुष्य के कर्म, पूर्ण सेवा भावना की प्रवृत्ति व कर्म के परिणाम स्वरूप फल प्राप्त करने का प्रावधान है। यदि हमें अपना भविष्य उज्ज्वल बनाना है, तो हमें वर्तमान में ऐसे कर्म करने होगे जिनका परिणाम भविष्य में सुखदायी हो।
भक्ति योग
भक्ति योग में ईश्वर की परम सत्ता की ओर ध्यान को केन्द्रित कर अपने मन व आत्मा के शुद्धि करण की ओर प्रेरित करता है ताकि व्यक्ति सत कर्मों की ओर अग्रसर हो।
ज्ञान योग
यह योग सबसे कठिन श्रेणी के योग में आता है इसके अंतर्गत मनुष्य की बुद्धि को पूर्ण रूप से विकसित किया जाता है। ज्ञान योग का एक मात्र लक्ष्य व्यक्ति को ग्रंथों का अध्ययन करा कर उसके ज्ञान में वृद्धि करना है।
हठयोग
हठ का शाब्दिक अर्थ हठ पूर्वक किसी कार्य के करने से लिया जाता है। मनुष्य के शरीर में न जाने कितनी नाडय़िां है, जिनमें से तीन प्रमुख नाडय़िों का उल्लेख है कि सूर्य नाड़ी अर्थात पिंगला जो दाहिने स्वर का प्रतीक है। चन्द्रनाड़ी अर्थात इड़ा जो बायें स्वर का प्रतीक है। इन दोनों के बीच तीसरी नाड़ी सुषुम्ना है। इस प्रकार हठयोग वह क्रिया है जिसमें पिंगला और इड़ा नाड़ी के सहारे प्राण को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कराकर ब्रहमरन्ध्र में समाधिस्थ किया जाता है।
कुंडलिनी योग
चित्त का अपने स्वरूप विलीन होना है। साधक के चित्त् में चलते, बैठते, सोते और भोजन करते समय हर समय ब्रह्म का ध्यान रहे, इसी को लय योग की संज्ञा दी जाती है।
मंत्रयोग
मंत्रों के अभ्यास से मन को काबू में करने की प्रक्रिया को मंत्र योग कहा जाता है। मनन इति मन:। जो मनन, चिन्तन करता है वही मन की चंचलता पर काबू निश्चित पा सकता है।
योग लाभ
१- योग मनुष्य को मानसिक व आध्यात्मिक शांति की अनुभूति कराने की प्रक्रिया है।
२- योग के माध्यम से शरीर का व्यायाम स्वयं हो जाता है, जिससे व्यक्ति हमेशा स्वस्थ बना रहता है।
३- समस्त मानसिक विकृतियां जैसे कि चिंता, तनाव व नकारात्मक सभी विचारों को योग के माध्यम से काबू किया जा सकता है।
४- योग शरीर को ऐसी असीम ऊर्जा प्रदान करता है जिसके लगातार प्रयोग से मनुष्य की बुद्धि में वृद्धि होना निश्चित है।
५- नियमित योग मनुष्य को, रोगों से लडऩे की शक्ति प्रदान करता है।
६- योग करने वाला व्यक्ति बुरी आदतों से दूर रहता है, और वह प्रतिक्षण आध्यात्म के मार्ग पर कदम द कदम बढ़ता हुआ अपने भविष्य को सुनहरा बना सकता है।
७- प्राणायाम भी योग का ही अंग है जिसके द्वारा शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को प्रचुर मात्रा में ऑक्सिजन मिलती है, जिससे उनकी लम्बे समय तक स्वस्थ बने रहने की संभावना बढ़ जाती है।
योग में सावधानियां
किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके बारे में भली भांति परिचित होना बहुत ही आवश्यक होता है,योग करते समय हमें निम्र बातों को ध्यान में रखना होगा, ताकि हमारा स्वास्थ्य ठीक बना रहे।
- योग आसन करने से पूर्व साधक को चाहिए वह थोड़ी थोड़ी चहल कदमी करे, (हल्का व्यायाम) अथवा अपने शरीर को थोड़ा गर्म कर ले।
- योग करते समय साधक को चाहिए कि वह भोजन के बाद कभी भी योगासन ना करे। यदि योग करने की इच्छा है तो तीन घंटे के बाद कर सकते हैं।
- व्यक्ति को चाहिए कि हमेशा योगासन का आरंभ हल्के आसन के द्वारा ही करे, चाहे आप योग अभ्यास में कितने भी निपुण ही क्यों ना हो।
- व्यक्ति को चाहिए कि योग हमेशा सूर्योदय से पूर्व या फिर सूर्य अस्त के उपरांत किसी भी समय कर सकते हैं।
- योग अभ्यास के दौरान ठंडा पानी पीने से बचे, ऐसी स्थिति में आप को सर्दी जुकाम, कफ और एलर्जी होने की संभावना शत प्रतिशत बढ़ सकती है।
- अगर आपको कोई भी गंभीर समस्या जैसे कि जोड़ों का दर्द, कमर दर्द है , तो योग करने से पूर्व डॉक्टर से विचार अवश्य सांझा कर ले।
- योग शिक्षक द्वारा बताए नियमों का अनुसरण करें। गलत आसन करने से कमर दर्द, घुटनों में तकलीफ के साथ साथ शरीर के मसल्स में खिंचाव होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
- योगासन करने के तुरंत बाद न नहाएं बल्कि कुछ समय बाद ही स्नान करें। अन्यथा आपको सर्दी-जुकाम, बदन दर्द जैसी शिकायत हो सकती है।
- योगासन एक चित करके करना चाहिए इधर उधर ध्यान घुमाने से, योग के दौरान आप से कोई भी स्टेप गलत हो सकता है।
योग आवश्यक वातावरण-
- योगासन खुली और ताजी हवा में करना सबसे अच्छा माना गया है।
- योग करते समय संवेदनशील अंग जैसे कमजोर घुटने, कमर, रीढ़ की हड्डी और गर्दन का खास ख्याल रखें। योग करते समय हमेशा ढीले और आरामदायक कपड़े ही पहनें।
- जब भी आप योगासन करने की तैयारी करें तो ज्वैलरी, गले की चैन, घड़ी, कड़े आदि उतार दें।
- 3 साल से कम उम्र के बच्चे योगासन न करें। 3-7 साल तक के बच्चे हल्के योगासन कर सकते हैं।
- 7 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे हर तरह के योगासन कर सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान मुश्किल आसनऔर कपाल भाती बिल्कुल भी न करें।
(धीमान इंश्योरेंस)
बड़ौत रोड़ बुढ़ाना जिला मु.नगर
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