जल ही जीवन है ~ जल संकट का भावी भारत | Water Scarcity Issue In India - Essay In Hindi,Water Scarcity Quotes in Hindi, Best Quotes on Water Scarcity in hindi
व्यक्ति की सोच इतनी बुलंंद हो चुकी है, कि वह चंद्रमा और मंगल ग्रह पर पानी की खोज के लिए करोड़ों-अरबों रुपये विकसित देश की दौड़ में, धूमिल कर देना चाहता है। महत्वाकांक्षा, प्रत्येक व्यक्ति के अंत: हृदय में होना अच्छी बात है। विपरीत दशा में महत्वाकांक्षा इतनी अधिक भी नहीं होनी चाहिए की, उसकी हालत ऐसी हो जाये कि उसे पानी ना तो मंगल ग्रह पर मिले और ना ही चंद्रमा पर, और तब तक जल का महत्व समझते-समझते , वह अपने ग्रह (पृथ्वी) के जल को भी, ना बचा पाये। हमेशा मनुष्य भविष्य में ऐसे कारनामे करना चाहता है कि वो उसकी महत्वाकांक्षाओं से कहीं अधिक हो। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा, उनके बचाव, उनके संवर्धन जैसे कार्य में उसकी बुद्धि त्वरित कार्य नहीं करती। यदि किसी कारण वश वह उक्त संसाधनों की सुरक्षा के लिए प्रयास करता भी है, वह किन्हीं कारणों के चलते पूर्ण: विफल हो जाते हैं।
जल संकट पर महापुरषों के अनमोल विचार
"हमारी पृथ्वी, मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, लेकिन हमारे लालच को, पूर्ण करने में वह सक्षम नहीं है। हम ऐसे ही तथ्यों, को नजर अंदाज कर देते हैं। बढ़ती आबादी, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक मात्रा में दोहन और प्राकृतिक प्रदत्त संसाधनों के प्रति हमारी उदासीनता ने आज मनुष्य के समक्ष जल संकट खड़ा कर दिया है।" ~ गांधी जी
‘‘हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छाँह,
एक पुरुष भीगे नयन से,
देख रहा था प्रलय प्रवाह।’’ ~ जयशंकर प्रसाद (कामायानी)
"मुड़ो प्रकृति की ओर, बढ़ो मनुष्यता की ओर। भू-मण्डल पर पर्यावरणीय बदलाव दृश्यमान होने लगे हैं।"
~ राहुल सांकृत्यायन, यात्रा वृतांत
"हम, जल से प्रार्थना करते हैं कि, जैसे माँ अपनी संतान को दूध पिलाती है, वैसे ही, जल है, और यह समस्त जीवों के लिये कल्याणत्म रस है। अत: ईश्वर हमें, जल अवश्य प्रदान करें।"
~ (यजुर्वेद, 15वें और 36वें श्लोक)
"रहिमन, पानी राखीयो।
पानी, गये सब सून।।
पानी, गये न उबरे।
मोती, मानुष चून।।"
~ रहिम
"नीर समाप्त हो, विश्व पटल पर तो।
मानव गंधर्व, खग मृग पीड़ा बता नहीं सकता।।"
~ लेखक की, कविता कुछ पंक्तियां
जल व उसका संरक्षण
पृथ्वी पर उपलब्ध, प्राकृतिक संसाधनों में जल हमारे लिये सर्वाधिक मूल्यवान है। यह ऐसा पेय पदार्थ है, जो कि किसी भी देश के लिए, (प्राकृतिक प्रदत्त) धरोहर से कम नहीं। वास्तव में हमारे, ऊपर जो जल संकट के बादल मंडरा रहे हैं, उन्हें जल संरक्षण के माध्यम से, ठोस कदम (कानून के माध्यम से) उठा कर-तीव्र हवा की तरह, हटाया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो, सरकार को अतिशीघ्र ही, जल बैंकों की स्थापना करनी पड़ेगी। अन्यथा ऐसा भी हो सकता है कि हाल ही में, चेन्नई में उत्पन्न जल संकट की विकट स्थिति के चलते, जल, टे्रन की जगह, हवाई जहाज द्वारा जनता के लिए, जल का आयात करना पड़े। ऐसी स्थिति में जल संरक्षण हेतु उपाय नहीं होने पर, हमसे महा मूर्ख व्यक्ति समस्त पृथ्वी पर ओर कोई हो नहीं सकता। जो अपने जीवन के साथ-साथ, अन्य जीवों जंतुओं के जीवन को भी संकट की अग्नि में स्वाह कर देना चाहता हो। इस दौरान, देश की आर्थिक स्थिति इतनी नाजुक हो, जायेगी कि चाहूँ और महंगाई का आलम होगा। दैनिक उपभोग की वस्तुओं के दाम, निर्धारित मूल्य से कई गुणा बढ़ जायेगा। शायद वह दिन हमारे भूमंडल पर उपस्थित, समस्त जीव जंतुओं के लिए, दुखद समय होगा। हमारे राष्ट्र के वैज्ञानिकों ने अपनी कड़ी मेहनत व लग्न से पिछले, कई वर्षों में, जो कार्य किये हैं, वाकये वो काबिल ए तारीफ है। ङ्क्षकतु देश के समस्त बुद्धि जीवियों का, यह भी दायित्व बनता है, कि वे पूर्ण रूप से एक जुट होकर प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु कोई, निश्चित समाधान अवश्य निकाले। क्योंकि ऐसे संसाधन देश की आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक विकास एवं देश की प्रगति के लिए अर्थात निर्माणाधीन विकसित राष्ट्र रूपी इमारत की नींव है। यदि भविष्य में दैनिक उपभोग वाले संसाधन ही अपना अस्तित्व खो देंगे, तो महाप्रलय का आना सुनिश्चित हो ही जायेगा। जिसका मुख्य कारण आधुनिक मानव के क्रिया कलाप होंगे। जो कि समस्त जीवों को एक साथ भुगतना होगा। सभी शास्त्र भी यही कहते हंै, कि बुद्धिमान व्यक्ति वह है, जो परिस्थितियों के अनुकूल अपनी छवि को बदलने की पूर्ण क्षमता रखता हो।
जल की उपस्थिति
पृथ्वी पर जल की उपलब्धता 97.5 प्रतिशत है, जो कि समुद्रों में खारे जल के रूप में विद्यमान है। अन्य 2.5 प्रतिशत मीठा जल पृथ्वी पर उपलब्ध है। जिसका दो तिहाई हिमनद और धु्रवीय क्षेत्रों में हिम चादरों के रूप में एकत्रित है। बाकी पीने योग्य जल के रूप में विद्यमान है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग ही भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में, वायुमण्डलीय जल के रूप में मौजूद है।
किन्तु इसका 24 लाख कि.मी. हिस्सा 600 मीटर गहराई में, भूमिगत जल के रूप में विद्यमान है तथा लगभग 5 लाख किलोमीटर जल गंदा व प्रदूषित होने कगार पर पहुंच चुका है। इस प्रकार पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल का, 1 प्रतिशत भाग ही उपयोग हेतु उपलब्ध है। जो कि हमारे लिए भावी खतरे से खाली नहीं है।
जल संकट की संभानाएं
उक्त विषय पर गंभीरता जाहिर करते हुये, संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अनुमान लगाया है, कि वर्ष 2030 तक 70 करोड़ लोगों को जल न मिलने के कारण, अपने स्थानीय क्षेत्रों से विस्थापित होना पड़ सकता है। क्या ऐसी स्थिति में दो वक्त की रोटी कमाने वाला व्यक्ति जीवित रह पायेगा-? क्या एक अमीर व्यक्ति जल उत्पन्न करने वाले संसाधनों से अपना स्वामित्व, को गरीब व्यक्ति के लिए मुक्त करेगा? क्या ऐसी स्थिति में मानवता जीवित रह पायेगी? क्या सरकार ऐसी स्थिति में जल से वंचित लोगों की प्यास पूर्णरूप से बुझा पायेगी।
ऐसे ही कई सवालों के निस्तारण हेतु सुप्रीम कोर्ट ने, संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत भारतीयों को, संविधान द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकारों में से ‘पेयजल प्राप्त करना’ एक मौलिक अधिकार का दर्जा दिया है। साथ ही केंद्र सरकार को यह निर्देश भी जारी किये, कि यह उसका पूर्ण कत्र्वय है कि वह देश के समस्त नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा करें। मनुष्य की स्वार्थ सिद्धि के चलते, जल संकट की विडम्बना दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जिसका मुख्य कारण जल का अनियंत्रित दोहन, जनसंख्या विस्फोट और आधुनिक औद्योगीकरण का जल के प्रति अ संवेदन शील रवैया, जल संरक्षण हेतु, जल प्रबंधन में कमी का होना अथवा कहीं ना कहीं हमारी लापरवाही का होना भी शामिल है।
जल संरक्षण के उपाय
जल संरक्षण हेतु, हमें अतिशीघ्र ही, प्रभावी उपायों को, देश के प्रत्येक गांव, शहर में लागू कर, अपना ही होगा। ताकि भावी पीढिय़ों को जल संकट जैसी कठिन परिस्थितियों से दो चार ना होना पड़े। जल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्य में सामाजिक संस्थाओं का श्रमदान, ग्रामीण पंचायतों कस्बों व शहरों की नगर पंचायत, नगर पालिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। क्योंकि इनके सहयोग से ही, चिह्नित जगह पर नये तालाबों का निर्माण, पुराने तालाबों की मरम्मत, नल अथवा हैंडपम्पों के आस पास भूमिगत टैंकोंं का निर्माण। जिसमें वर्षा के जल को संरक्षित किया जा सके, जैसे कुछ सटीक उपाय धरातल पर उतारने होंगे। ताकि भावी जल संकट के खतरे को कुछ हद तक कम किया जा सके।
जल संरक्षण, संवर्धन हेतु कुछ कारगर उपाय सफल सिद्ध हो सकते है जैसे कि:-
१- सभी को चाहिए कि, हम अपने आस-पास के समाज में, जल संरक्षण हेतु एक ऐसी जन जागरूक आंदोलन का आगाज करे, कि वह एक जनूून बन जाये। जिसके द्वारा दिन प्रतिदिन गिरते भू जल स्तर को ऊपर उठाया जा सके।
२- हमें चाहिए कि, हम एक ऐसी संस्कृति अर्थात ऐसे संस्कार का आगाज करें, जो जल संरक्षण से संबंधित हो और बच्चों में अभी से, जल बचाने की आदत बन जाये। उक्त संस्कारों की अग्नि, प्रज्वलित करने में हमारे स्कूल, महाविद्यालय, विद्यालयों की भूमिका मुख्य हो सकती है।
३- वृक्ष ही जीवन है, जीवन ही जल है, वाक्य सिद्ध करने के लिए, (वन ऐसी धरोहर है, जो कि पर्यावरण को शुद्ध रखने के साथ-साथ, हमें वर्षा और भूमिगत जल के स्तर को ऊपर उठाने में पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं) एक ऐसी व्यवस्था हमें करनी ही होगी, कि देश के प्रत्येक समाज में, वृक्षों की भरमार हो जाये।
४- देश की सरकारों को चाहिए कि, देश के समस्त किसानों को, उन्नत खेती के बारे में, संवाद गोष्ठि द्वारा परिचित कराये, और खेती में सिंचाई हेतु वैज्ञानिक तकनीक जैसे कि फव्वारे से सिंचाई करना, जिससे कम पानी का दोहन हो, और सिंचाई भी भरपूर हो जाये।
५- वर्षा ऋतु में जल का मात्र 15 प्रतिशत भाग ही भूमिगत हो पाता है, हमें ऐसी तकनीक को विकसित करना होगा, जो समस्त जल को भूमिगत कर दे, ताकि जल स्तर ऊपर आ जाये।
६- नदी नालों या नहरों की समय-समय पर सफाई होना नितांत आवश्यक है, क्योंकि उक्त माध्यम से जल का प्रवाह बाधित हो जाता है। जल स्तर ऊपर लाने के लिए नदियों अथवा नहरों का बहना आवश्यक है।
७- नदी नहरों में से निश्चित दूरी पर बांधों का निर्माण जल संरक्षण के लिए, शायद फायदे मंद हो, क्योंकि ऐसा करने से भूमिगत जल का स्तर, जल प्रवाहित स्थानों पर, ऊपर उठना स्वाभाविक सी बात है।
८- जल संरक्षण हेतु हमारी मौजूदा सरकार को कठोर कानून बनाना होगा, क्योंकि दंडात्मक कार्यवाही से लोगों में भय व्याप्त होगा ओर वे जल की एक एक बूंद की अहमियत को आसानी समझ सकेंगे।
९- देश के वैज्ञानिकों को कुछ ऐसी रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से, खारे जल को मीठे जल में परिवर्तित करने के लिए कुछ समाधान तलाशने होगे ताकि आने वाले जल संकट की घड़ी से बचा जा सके।
१०-इजाराइल जैसे देश की, जल प्रबंधन प्रणाली से हमें कुछ ना कुछ सीख अवश्य ही लेनी होगी, क्योंकि गुर कहीं से भी मिले तो ग्रहण करने कोई बुराई नहीं होती।
वास्तव में यदि हम जल संरक्षण के प्रबंधन में सफल हो जाते हैं, तो वो दिन दूर नहीं होगा, जब हमारा देश विकसित देशों की होड़ में एक कदम ओर आगे बढ़ जायेगा, जो कि प्रत्येक भारतीयों के लिए गर्व व सुखद समाचार से कम नहीं होगा।
लेखक अंकेश धीमान
बुढ़ाना (मु.नगर)
अंकेश जी बहुत बढिया निबंध लिखा है आपने जल ही जीवन है
जवाब देंहटाएंश्री मान, प्रिय पाठक महोदय,
जवाब देंहटाएंआप की प्रतिक्रिया ने हमारे, हौसलों को एक नया आयाम देने की, सराहनीय कोशिश की, अधिक संबंधित जानकारी ग्रहण के लिए अपना प्यार सदा ऐसे ही लुटाते रहेगा, हम आप के सदा, आभारी रहेंगे। धन्यवाद सहित
अंकेश धीमान
आपने बहुत अच्छा निबंध लिखा है, जिसको हर स्टूडेंट को पढना चाहिए और हमारे लोगो इस विषय में बात करनी चाहिए.
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