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World Pupulation Day Essay In Hindi
वर्तमान में मानव ने प्रत्येक क्षेत्र में हमेशा सफलता के नये आयाम स्थापित कर यह सिद्ध कर दिया कि यदि मनुष्य चाहे तो वह असंभव को भी संभव कर सकता है। किंतु जब प्राकृतिक के क्रियाकलापों की चर्चा होती है। तो इस विषय पर वह मौन अवस्था में विलुप्त हो जाना चाहता है। प्राकृतिक के कायदे कानून में उसका हस्तक्षेप कब उसे मंहगा पड़ जाये, इस विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा कर, उसके क्रोध को चरम पर पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यदि समय रहते प्राकृतिक के क्रोध शांत हेतु कोई सटीक उपाय नहीं किये गये तो, भावी परिणाम , समस्त विश्व के लिए घातक सिद्ध अवश्य होंगे। पता नहीं किस स्थान पर, किस अवस्था में, किस व्यक्ति विशेष को प्राकृतिक की मार झेलनी पड़े?
बढ़ती जनसंख्या की विकरालता का सीधा प्रभाव प्रकृति पर पडऩा निश्चित है। जब जनसंख्या की मात्रा किसी स्थान अथवा धरा पर बढ़ जाती है तो प्राकृतिक अपना संतुलन स्थापित करना आरंभ कर देती है। आधिक्य से अपना संतुलन बैठाती है। इस प्रक्रिया में प्रकृति का तांडव होना आरंभ हो जाता है जिससे समस्त जैव मण्डल अछूता नहीं रह सकता। यह बात ( चेतावनी) आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व माल्थस नामक अर्थशास्त्री ने अपने ही एक लेख में लिखी कि यदि आत्मसंयम और कृत्रिम साधनों के द्वारा बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो प्रकृति अपना विकराल रूप दिखा कर उसे नियंत्रित करने का भरसक प्रयास अवश्य करेगी।
यदि ऐसा वर्तमान समय में हुआ तो कौन जाने फिर कैसी-कैसी भयानक समस्याएं जैसे कि अकाल, महामारी, भूख मरी, भूकम्प, अतिवृष्टि, स्त्री के प्रति दुराचार को लेकर समस्त धरा पर त्राहिमाम त्राहिमाम जैसे शब्द गूंजना स्व भाविक है।
जनसंख्या से प्रभावित वातावरण
बढ़ती जनसंख्या जनित प्रदूषण के चलते यदि हम वातावरण पर विचार करे तो हमें ज्ञात होगा कि प्रकृति ने शनै: शनै: अपना आवेश प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है। वर्तमान में अधिक संकट ग्रीन हाउस प्रभाव से पैदा हो चुका है। वातावरण में मौजूद प्रदूषण के कारण पृथ्वी का ताप बढऩे और समुद्र जल स्तर ऊपर उठने की भयानक स्थिति उत्पन्न होने की कगार पर है। ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) आदि गैसों की मात्रा अधिक होने के कारण होता है। उक्त गैसे पृथ्वी द्वारा अव शोषित सूर्य ऊष्मा के पुन: विकरण के समय ऊष्मा का बहुत बड़ा भाग स्वयं शोषित करके पुन: भूभाग को वापस कर देती है जिससे पृथ्वी के निचले वायुमण्डल में अतिरिक्त ऊष्मा के जमाव के कारण पृथ्वी का तापक्रम बढ़ जाता है। तापक्रम के लगातार बढ़ते जाने के कारण आंर्कटिक समुद्र और अंटार्कटिका महाद्वीप के विशाल हिमखण्डों के पिघलने के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है जिससे समुद्र तटों से घिरे कई राष्ट्रों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है।
जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन
उक्त पठित समस्त समस्याएं भविष्य में ना बने, को ध्यान में रखते हुये 11 जुलाई 1989 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनसंख्या नियंत्रण दिवस मनाने की घोषण की। जिसका एक मात्र उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रभाव से हानि के बारे जागरूकता फैलाना व प्रत्येक नागरिक को सीमित परिवार के लिए प्रेरित करना था। विश्व की जन संख्या गत वर्षों में, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की जनसंख्या 7.6 अरब थी। वर्ष 2030 तक भविष्य में जिसका का अनुमान 8.6 बिलियन होने का है। प्रतिवर्ष विश्व की जनसंख्या में लगभग 83 मिलियन वृद्धि हो रही है। हालांकि प्राचीन काल में भी जनसंख्या वृद्धि की समस्या को, अनेक महापुरुषों (अरस्तु, प्लेटो) ने गंभीरता से लेते हुये कहा कि, किसी भी देश में असंतुलित जनसंख्या का होना, उस देश के लिए तमाम समस्याओं का जनक है।
आज के युग में जनसंख्या वृद्धि की समस्या ने समस्त विश्व को एक ऐसे संकट के द्वार पर खड़ा कर दिया है। जहां मात्र जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगा कर ही काबू पाया जा सकता है। अन्यथा उक्त समस्या के निवारण का कोई अन्य उपाय हो ही नहीं सकता।
असंतुलन जनसंख्या से आशय (सिद्धांत) है- जब किसी स्थान पर प्राकृतिक द्वारा प्रदत्त संसाधन, वहां उपस्थित जनसंख्या की तुलना में अधिक हो अथवा कम हो जाये, को असंतुलित जनसंख्या के नाम से पहचाना जा सकता है। जनसंख्या की स्थिति कभी भी किसी भी स्थान पर स्थिर नहीं रह सकती। एक सफल देश वह ही हो सकता है, जहां पर उपलब्ध संसाधन, वहां पर मौजूद जनसंख्या के अनुकूल हो। हम चाहे कितनी भी सफलताएं दूसरे के समक्ष गिनाते रहे, किंतु वास्तविकता को हम झुठला नहीं सकते। वास्तविकता यह है, कि हम विकसित देश की मजबूत दीवारों को खुद ही खोखला करने के लिए विवश है। हमें सर्वप्रथम जनसंख्या वृद्धि जैसे महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान सर्वसम्मति से समय रहते निकालना होगा, अन्यथा कभी ऐसा ना हो कि जब हम जनसंख्या नियंत्रण के लिए, कोई कदम उठाये, तब काफी देर हो चुकी हो। जिसके परिणाम स्वरूप, हमारे विकसित देश की इमारत पूर्ण होने से, पूर्व ही धारा शाही हो जाये।
जनसंख्या, विश्व गुरू भारत
आज हम विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो हम अतिशीघ्र ही प्रथम स्थान पर होगे। वैसे तो हम चाहे विश्व गुरू बने या ना बने किंतु जनसंख्या के मामले में हम विश्व गुरू जरूर बन जायेंगे। जो कि देश के प्रत्येक नागरिक के लिए दुर्भाग्य के अलावा कुछ ओर हो नहीं सकता। वास्तव में कायदा तो यह, कहता है कि हम अपने देश की तमाम आंतरिक समस्याओं जैसे कि बेरोजगारी, गरीबी, भिक्षा वृति, भ्रष्टाचार, पर्यावरण हृास शिक्षा का अभाव, आपराधिक गतिविधियां, बेटियां से दिन प्रतिदिन होने वाले र्दु व्यवहार काफी ऐसी समस्याएं है, जो कि जनसंख्या वृद्धि से जनित है का निश्चित समाधान खोज कर, कड़े कानून के साथ लागू करे। उक्त समस्याएं ही देश के विकसित ढांचे को दीमक की तरह दिन प्रतिदिन जर्जर बनाने में लगी है। यदा कदा कोई बुद्धि जीवी व्यक्ति (संजीव बालियान जैसे-सांसद मुजफ्फरनगर) जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों से देश को बचाने के लिए, अपनी आवाज बुलंद भी करते हैं, तो उनके उक्त महत्वपूर्ण प्रस्ताव जो कि विकासशील देश से विकसित देश बनाने की कुंजी है, को संसद में भी एक भरम भूलेखा समझ कर टाल दिया जाता है। जिसके मुख्य रूप से दो ही
कारण हो सकते है। जो लोग जनसंख्या वृद्धि के पक्षधर है, या तो वो प्राचीन काल में रोम साम्राज्य नीति के सिद्धांत पर अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहते हैं, या फिर वो राष्ट्र हित में कोई कदम बढ़ाना नहीं चाहते ताकि देश विश्व गुरू के अभेद लक्ष्य को पुन: प्राप्त कर सके।
जनसंख्या नियंत्रण के उपाय
१- जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाने हेतु सर्व प्रथम सरकार को चाहिए वे परिवार नियोजन कार्यक्रम को, कानून से जोड़े अर्थात अनिवार्यता का सिद्धांत अथवा परिवार नियोजन धारण न करने पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान लागू हो।
२- भारत सरकार को चाहिए कि देश में मौजूद तमाम संस्थाओं व गांव शहर में बेरोजगार युवक युवतियों को (आंशीक मानदेय पर), देश में बढ़ती जनसंख्या के बारे जैसे कि उसके प्रभाव से उत्पन्न दुष्परिणाम सीमित परिवार के लाभ की चर्चा घर घर जाकर एक परिवार के सदस्य की मानिंद करे ताकि लोगों में जागरूकता का संचार हो ओर वे अपने परिवार को सीमित सीमा में स्थापित कर सके।
३- देश में एक ऐसा माहौल बनाना होगा ताकि व्यक्ति बेटा व बेटी में भेदभाव ना करे। बेटे की चाह में जनसंख्या बढऩा स्वाभाविक सी बात है।
अर्थात जब बेटी किसी के घर दुल्हन के रूप में जा सकती है। तो क्यों नहीं वह दूल्हे को अपने घर रख सकती। ऐसी स्थिति में सरकार को चाहिए कि उक्त दम्पति को कुछ लुभावनी सुविधा उपलब्ध कराये, ताकि अन्य लोग भी प्रेरित हो, बेटे की चाह में जनसंख्या नियंत्रण में अपनी सहभागिता दर्ज करे।
४- यहां की उष्ण जलवायु होना उच्च जन्म दर का मुख्य कारक माना जाता रहा है। ऐसी जलवायु में मात्र 14 वर्ष की बच्ची भी मां बनने के लिए परिपक्व हो जाती है, किंतु सरकार को ऐसे कड़े प्रावधान लाने होगे कि मां बाप अपनी कन्या की शादी 21 वर्ष से कम उम्र में ना कर सके।
५- कुछ लोगों का मानना है, कि व्यक्ति की तीसरी संतान से वोट का अधिकार छीन लेना चाहिए ऐसे नियम व कानून बनाना शायद बुद्धि मत्ता का प्रमाण नहीं हो सकता। कुछ ऐसे कानून बनाने होगे जो कि अलग हो, जैसे कि यदि दंपति के तीसरी संतान हुई, तो समस्त परिवार को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं रद्द कर दी जाऐगी अन्यथा समस्त परिवार को एक ऐसी श्रेणी में चिह्नित किया जायेगा जहां उसे पल पल तीसरी संतान उत्पन्न करने का दंश झेलना पड़े।
६- यौन शिक्षाओं को प्रत्येक स्तर पर बढ़ावा देना, जागरूकता के माध्यम से भी कुछ हद तक, जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाया जा सकता है।
७- महिलाओं का शिक्षित करना अनिवार्यता को महत्व देना होगा। एक सशक्त नारी ही सशक्त भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
८- हम दो हमारे दो के नारों को, दीवारों से धरातल पर उतारना होगा व दो संतान प्राप्त होने के बाद, दंपति का नसबंदी कराना अनिवार्य होना चाहिए तथा उक्त विषय (नशबंदी) से संबंधित समाज में फैली समस्त भ्रांतियों को जागरूकता टीम के माध्यम से दूर कराना होगा।
९- सरकार को चाहिए कि जनसंख्या नियंत्रण हेतु एक ऐसी व्यवस्था को जन्म दे जो कि प्रोत्साहन से संबंधित हो। प्रोत्साहन के माध्यम से हम काफी हद तक जनसंख्या नियंत्रण कानून को सफल बनाने में भी कामयाब हो सकते हैं।
लेखक - अंकेश धीमान
बुढ़ाना
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