Vastra lajja ke liye na ki dikhave ke liye lekh sant kabir hindi me.वस्त्र लज्जा के लिए न कि दिखावे के लिए: संत कबीर
कहा जाता है कि काशी स्वर्ग का रास्ता है जबकि मगहर में मरने वाला व्यक्ति सीधा नर्क में जाता है। कबीर दास जी ने अपने अंतिम साँस मगहर में लिए और लोगों को सीख दी के स्वर्ग पाने के लिए काशी में मरना जरूरी नहीं और न ही मगहर में मरने वाले नरक में जाते है |
यह तो व्यक्ति के कर्म निर्धारित करते हैं के मरने के
बाद स्वर्ग मिलेगा या नर्क। अच्छे कर्म करने वाला बेशक मगहर में मरे या कहीं और
उसे स्वर्ग ही मिलेगा और पापी इंसान चाहे अंतिम समय में काशी में आ जाये उसे फिर
भी स्वर्ग नहीं मिलेगा।
संत कबीर ने लोगों को तरह तरह की उदाहरण देकर
इंसानियत और धर्म का पाठ पढ़ाया।
संत कबीर जी बेशक जुलाहा थे परन्तु कपड़ों को लेकर
उनकी सोच बिलकुल अलग थी। वो कहते थे के वस्त्र केवल लज्जा एवं शरीर ढकने के लिए
होता है, यह कोई दिखावे की चीज नहीं है।
संत कबीर की चर्चा दूर दूर तक हो गयी थी। कई दूर दराज
के इलाकों से भी लोग कबीर जी के दर्शन करने और प्रवचन सुनने आया करते थे।
वस्त्र सस्ते हो या
महंगे तन ढकने के लिए ही होते हैं
एक बार एक धनी सेठ भी कबीर जी के दर्शन करने आया।
कबीर जी ने बेहद साधारण कुर्ता पहन रखा था जिसे देख के सेठ ने सोचा के इतना बड़ा
संत और इतने साधारण कपड़े पहने हुए है, सेठ ने संत कबीर को एक कीमती मखमल का कुर्ता भेंट
करने का विचार बनाया।
मखमल का कुर्ता एक तरफ से बेहद मुलायम था और दूसरी
तरफ से साधारण था।
अगले दिन जब संत कबीर जी वो कुर्ता पहन कर आये तो
लोगों ने देखा के संत जी ने कुर्ता उल्टा पहना है। प्रवचन खत्म होने पर लोगों ने
और उस सेठ ने पूछा के मैंने आपको इतना कीमती मखमल का कुर्ता भेंट किया और आपने उसे
उल्टा पहन रखा है |
तो संत कबीर जी कहते वस्त्र चाहे कीमती हो या सामान्य, चाहे मखमल का हो या
सूत का, उसका केवल एक ही
काम है हमारे शरीर को ढकना और हमारी लज्जा को बचना।
वस्त्र का दिखावे से क्या काम और कभी भी वस्त्र
दिखावे के लिए नहीं बल्कि इज़्ज़त बचाने के लिए पहनना चाहिए। क्योंकि लोग कीमती
वस्त्र को कुछ समय निहारते हैं लेकिन एक इज़्ज़तदार व्यक्ति को हमेशा निहारा जाता
है।
कबीर जी की ये बात लोगों को अच्छे से समझ आ गयी और
उन्होंने भी कीमती वस्त्र त्याग कर साधारण वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
अहंकार जीवन
रुपी साड़ी के टुकड़े कर देता है
ऐसे ही एक और किस्सा संत कबीर जी के बारे में कहा
जाता है के संत जी को कभी गुस्सा नहीं आता था। कबीर जी बहुत शांत स्वभाव के
व्यक्ति थे और वो लोगों के विकार दूर करने के लिए उन्हें समझाने के लिए प्रेम का
ही इस्तेमाल किया करते थे।
संत कबीर जी कितने शांत स्वभाव के हैं ये सब जानते थे
परन्तु एक बार कुछ अहंकारी युवकों ने फैसला किया के आज कबीर जी को गुस्सा दिलाना
है और वो सब कबीर जी के पास पहुंच गए।
उस समय कबीर जी एक साड़ी बुनाई कर रहे थे। एक लड़के ने
साड़ी उठाई और कबीर जी से कीमत पूछी तो कबीर जी ने उसकी 10 रुपए कीमत बताई।
उस युवक ने साड़ी को आधा फाड़ दिया और बोला के मुझे
पूरी साड़ी नहीं चाहिए आधी चाहिए मुझे आधी की कीमत बताओ।
कबीर जी ने बहुत शांति से उसे आधी साड़ी की कीमत 5 रुपए बताई। युवक
इससे भी नहीं माना और साड़ी के न जाने कितने टुकड़े कर दिए और बोला के ये साड़ी पूरी
तरह फट गयी है तो वो ये नहीं खरीदेगा, इसपे कबीर जी ने युवक को कुछ नहीं
बोला।
युवक ने अहंकार में आकर बोला के मैंने साड़ी फाड़ दी है
अब तुम्हारे किसी काम की नहीं मेरे पास बहुत पैसे हैं बताओ तुम्हें कितने पैसे
चाहिए।
जिसपर कबीर जी बोले के बेशक ये साड़ी मेरे किसी काम की
नहीं, पर मैं इसके पैसे
नहीं ले सकता क्योंकि अब ये किसी के भी काम की नहीं रही और तुम पैसों से इस साड़ी
की कीमत नहीं दे सकते।
कितने ही किसानों की मेहनत लगती है कपास को उगाने में, फिर कितनी ही औरतें
कपास से सूत बनाती है और कितने ही हम जैसे जुलाहे इसे रंग देते हैं और बुनते हैं |
केवल इसीलिए के कोई स्त्री हमारी मेहनत से बनाई ये
साड़ी पहनेगी और जब वो खुश होगी तब हमारी मेहनत का मूल्य हमें मिलेगा।
तुम अपने पैसों से हमारी मेहनत का मूल्य नहीं दे
सकते। ये सुनते ही युवक कबीर जी के पैरों में गिर गया और क्षमा मांगने लगा।
संत कबीर जी ने फिर कहा, यह तुम्हारा अहंकार ही एक कैंची जैसे है जो तुम्हारे जीवन की साड़ी को ऐसे ही फाड़ रहा है और टुकड़े टुकड़े कर रहा है, अगर ये जीवन टुकड़े टुकड़े हो गया तो किसी काम का नहीं रहेगा ।
इसलिए अपने अहंकार को अभी त्याग दो वरना इसे तुम्हारा जीवन बिखेरने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
ये तो केवल कुछ उदाहरणें थी, कबीर जी मनुष्य को हमेशा सादा जीवन जीने और अपने विकारों को त्यागने की शिक्षा देते थे। ये विकार ही हैं जो हमारे कर्मों को निर्धारित करते हैं और कर्म ही हमारे स्वर्ग और नर्क को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता आप काशी में प्राण त्यागें या मगहर में।
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