Fabulous hindi story about the religious and faith blindness.
आधुनिक मानव ने अपनी पुरानी सभ्यता एवं रीति रिवाजों को त्याग कर अद्यतन तकनीक एवं प्रौद्योगिकी का चोला भले ही ओढ़ लिया हो लेकिन आज भी यह मानव अपने संकीर्ण विचारों की फसल को वैमनस्यतारूपी खाद से पोषित कर रहा है ।
यह विडंबना ही है कि इस प्रकार के कार्यों को अंजाम देने वाले कोई अनपढ़ या गरीब लोग नहीं बल्कि बहुत ही सुसंस्कृत कहलाने वाले तथा पढ़े-लिखे लोग हैं । एक आम भारतीय बहुत ही भोला एवं सरल होता है यहां आम भारतीय से अभिप्राय उस प्रकार के आदमी या जनता से है जिसने अपने पुरातन संस्कारों जैसे- विश्व बंधुत्व, सर्व धर्म समभाव इत्यादि को अभी तक अपने अंदर शरण दी हुई है । तथा उसके इसी गुण का या भोलेपन का फायदा उठाकर कुछ लोग उसे अनेक प्रकार से भटकाते हैं । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मेरे समक्ष घटी एक घटना है जिसका पात्र मैं स्वयं एवं मेरे पड़ोसी मित्र हैं जिनके ईर्द-गिर्द पूरा घटनाक्रम घूमता है ।
बात उस समय की है जब मैं एक संस्था में काम कर रहा था तथा इस घटना के प्रमुख पात्र श्री रंजय वर्मा जी भी मेरे साथ इसी संस्था में कार्यरत थे । रंजय जी का एक बेटा था जो कि बहुत ही मेधावी एवं चंचल प्रवृत्ति का था । जिसके साथ उनका पूरा परिवार बहुत ही खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था । तभी काल की नियती से वर्मा जी के बेटे को साधारण सा बुखार आया जिसके चलते अचानक ही उसकी बाल सुलभ चंचलता का लोप हो गया एवं अब वह कुशाग्र बुद्धि वाला बालक मंद एवं सुस्त बालक में तब्दील हो गया जिसे देखकर उसके मां-बाप की मानसिक स्थिती भी जवाब देने लगी । और दे भी क्यों न जब कोई अपने इकलौते दीपक को इस तरह तिल-तिल बुझते देखेगा तो कैसा भी कठोर ह्रदय इंसान क्यों ना हो जब उसके स्वयं पर विपत्ति आती है तो सारी निर्दयता एवं समझदारी धरी रह जाती है और वह मात्र बेबसता की मूर्ति नजर आता है । ऐसा ही कुछ वर्मा जी के साथ भी हो रहा था हालांकि वह बहुत ही सरल ह्रदय तथा दूसरों के दु:ख में काम आने वाले व्यक्तियों में से थे । खैर जब चिकित्सकीय उपायों से कोई विशेष लाभ होता नहीं दिखा तो वर्मा जी जिनका मत था कि सब कर्ता-धर्ता एक मात्र ईश्वर ही हैं, के अनुसार वे सुसंस्कारवश अपने बालक को भी अपने साथ नित्य मंदिर ले जाने लगे तथा उसे प्रभु-चरणों का निर्माल्य-प्रसाद इत्यादि इस विश्वास से देने लगे कि प्रभु कृपा से मेरा बालक स्वस्थ हो जाएगा । अब तो यह उनके नित्य के क्रिया-कलाप में शामिल हो गया उनकी इस दिनचर्या से उनके सभी सहकर्मी एवं पड़ोसी भी भली भांति परिचित थे ।
उनके इन्हीं सहकर्मियों में उनके एक परम मित्र विनोद जो दूसरे मत को मानने लगे थे,उन्होंने उनके इस प्रकार के क्रिया-कलाप को देखकर कहा कि यदि आप हमारे प्रभु की शरण में चले आएंगे तो मैं मेरे प्रभु से प्रार्थना कर आपके बालक को ठीक कर दूंगा ऐसा कह कर उन्होंने वर्मा जी को अपने साथ चलने को राजी कर लिया । अब वर्मा जी नित्य नियम से प्रसाद एवं निर्माल्य छोड़कर प्रार्थना के लिए जाने लगे इस तरह जब दो महीने निकल गए तो वर्मा जी से नही रहा गया तथा एक दिन उन्होंने विनोद जी से पूछ ही लिया कि आपने तो कहा था कि एक ही बार की प्रार्थना से आपको फायदा नजर आने लगेगा लेकिन यहां तो अब तीसरा महीना भी गुजरने को है । तब उनके मित्र ने जवाब दिया कि दरअसल बात ऐसी है कि हमारे प्रभु तुम्हारे बेटे के कान से प्रवेश तो करते हैं लेकिन वहां अंदर तुम्हारे भगवान बैठे हुए हैं जिससे कि हमारे प्रभु तुम्हारे बेटे के अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं इसलिए सबसे पहिले तुम्हें अपना धर्म परिवर्तन करना होगा जिससे कि हमारे प्रभु तुम्हारे बेटे के अंदर प्रवेश कर उसे स्वस्थ कर सकें । वर्मा जी भी एक आम भारतीय की तरह ही थे जिसे सभी में अपनापन नजर आता था तथा जो सभी धर्मों एवं उनके अनुयायियों को बहुत श्रद्धा की दृष्टि से देखा करते थे लेकिन इस घटना ने उनके अंदर प्रतिकार के बदले विवेकपूर्ण तर्क शक्ति को जन्म दिया तथा प्रतिक्रिया स्वरुप वह विनोद जी से पूछने लगे कि जब तुम्हारा प्रभु मेरे अंदर के भगवान को नहीं हटा सकता तो वो मेरे बेटे की बिमारी को कैसे हटाएगा । इसका अर्थ तो यही हुआ कि जो मेरे अंदर है उसका अस्तित्व और प्रभाव तुम्हारे तथाकथित से अधिक है तो फिर मैं ऐसे तथाकथित की शरण में क्यों जाऊं? ऐसा कहकर वर्मा जी पुन: अपनी पूर्व दिन:चर्या में लग गए । अब उन्हें सारी वास्तविकता समझ में आ गई थी तथा मित्रता के पीछे की धर्मांधता भी उन्होंने देख ली थी ।
उनके इन्हीं सहकर्मियों में उनके एक परम मित्र विनोद जो दूसरे मत को मानने लगे थे,उन्होंने उनके इस प्रकार के क्रिया-कलाप को देखकर कहा कि यदि आप हमारे प्रभु की शरण में चले आएंगे तो मैं मेरे प्रभु से प्रार्थना कर आपके बालक को ठीक कर दूंगा ऐसा कह कर उन्होंने वर्मा जी को अपने साथ चलने को राजी कर लिया । अब वर्मा जी नित्य नियम से प्रसाद एवं निर्माल्य छोड़कर प्रार्थना के लिए जाने लगे इस तरह जब दो महीने निकल गए तो वर्मा जी से नही रहा गया तथा एक दिन उन्होंने विनोद जी से पूछ ही लिया कि आपने तो कहा था कि एक ही बार की प्रार्थना से आपको फायदा नजर आने लगेगा लेकिन यहां तो अब तीसरा महीना भी गुजरने को है । तब उनके मित्र ने जवाब दिया कि दरअसल बात ऐसी है कि हमारे प्रभु तुम्हारे बेटे के कान से प्रवेश तो करते हैं लेकिन वहां अंदर तुम्हारे भगवान बैठे हुए हैं जिससे कि हमारे प्रभु तुम्हारे बेटे के अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं इसलिए सबसे पहिले तुम्हें अपना धर्म परिवर्तन करना होगा जिससे कि हमारे प्रभु तुम्हारे बेटे के अंदर प्रवेश कर उसे स्वस्थ कर सकें । वर्मा जी भी एक आम भारतीय की तरह ही थे जिसे सभी में अपनापन नजर आता था तथा जो सभी धर्मों एवं उनके अनुयायियों को बहुत श्रद्धा की दृष्टि से देखा करते थे लेकिन इस घटना ने उनके अंदर प्रतिकार के बदले विवेकपूर्ण तर्क शक्ति को जन्म दिया तथा प्रतिक्रिया स्वरुप वह विनोद जी से पूछने लगे कि जब तुम्हारा प्रभु मेरे अंदर के भगवान को नहीं हटा सकता तो वो मेरे बेटे की बिमारी को कैसे हटाएगा । इसका अर्थ तो यही हुआ कि जो मेरे अंदर है उसका अस्तित्व और प्रभाव तुम्हारे तथाकथित से अधिक है तो फिर मैं ऐसे तथाकथित की शरण में क्यों जाऊं? ऐसा कहकर वर्मा जी पुन: अपनी पूर्व दिन:चर्या में लग गए । अब उन्हें सारी वास्तविकता समझ में आ गई थी तथा मित्रता के पीछे की धर्मांधता भी उन्होंने देख ली थी ।
निष्कर्ष यही है कि सच्चा धर्म वही है जो दूसरे धर्म का भी आदर करना सिखाए न कि किसी अन्य मतावलम्बी को पथभ्रष्ट कर अथवा लालच देकर मत या धर्म परिवर्तन कराए । यदि आपके मत में कुछ अच्छी बातें है तो उन्हें बिना किसी का मत परिवर्तन कराए भी बताया जा सकता है ।
गीता में भगवान कृष्ण ने इसी को कुछ इस तरह से कहा है कि -
॥श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥
अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए परधर्म से, गुणरहित स्वधर्म श्रेष्ठ है । स्वधर्म में मरना भी कल्याणकारक है, पर परधर्म तो भय उपजाने वाला है ।
नोट: उपरोक्त घटना में प्रयुक्त सभी पात्र एवं उनके नाम काल्पनिक है यदि किसी का नाम अथवा घटना की कोई वस्तु किसी के वास्तविक जीवन से किसी प्रकार से समरुपता रखती है तो यह संयोग मात्र होगा तथा लेखक का इससे कोई संबंध नहीं होगा।
This fabulous article has been written and shared with us by Mr. Rajesh Kumar Singh. Stays tuned for other fabulous articles by him.
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Good and nice story which reveals the truth behind mass religion conversion.
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