महाभारत युद्ध का आरम्भ, Beginning of Mahabharat Battle, Battle of Mahabharat Begins story in hindi
महाभारत युद्ध में दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्या बल अठ्ठारह अक्षौहिणी था। युधिष्ठिर सात अक्षौहिणी सेना के, जबकि दुर्योधन ग्यारह अक्षौहिणी सेना का स्वामी था। पाण्डव तथा कौरव दोनों ही ओर की सेनाएँ युद्ध के लिए तैयार हुईं।
पहले भगवान श्रीकृष्ण परम क्रोधी दुर्योधन के पास दूत बनकर गये। उन्होंने ग्यारह अक्षौहिणी सेना के स्वामी राजा दुर्योधन से कहा- "राजन! तुम युधिष्ठिर को आधा राज्य दे दो या उन्हें पाँच ही गाँव अर्पित कर दो; नहीं तो उनके साथ युद्ध करो।"
श्रीकृष्ण की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा- "मैं उन्हें सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूँगा; हाँ, उनसे युद्ध अवश्य करूँगा।" ऐसा कहकर वह भगवान श्रीकृष्ण को बंदी बनाने के लिये उद्यत हो गया। उस समय राजसभा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम दुर्धर्ष विश्वरूप का दर्शन कराकर दुर्योधन को भयभीत कर दिया। फिर विदुर ने अपने घर ले जाकर भगवान का पूजन और सत्कार किया। तदनन्तर वे युधिष्ठिर के पास लौट गये और बोले- "महाराज! आप दुर्योधन के साथ युद्ध कीजिये।"
दोनों सेनाओं के महारथी
युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समंत्र पंचक तीर्थ के पास हिरण्यवती नदी के तट पर डाला। कौरवों ने कुरुक्षेत्र के पूर्वी भाग में वहाँ से कुछ योजन की दूरी पर एक समतल मैदान में अपना पड़ाव डाला।
दोनों ओर के शिविरों में सैनिकों के भोजन और घायलों के उपचार की उत्तम व्यवस्था थी। हाथी, घोड़े और रथों की अलग व्यवस्था थी। हज़ारों शिविरों में से प्रत्येक शिविर में प्रचुर मात्रा में खाद्य सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, यंत्र और कई वैद्य और शिल्पी वेतन देकर रखे गए थे।
दोनों सेनाओं के बीच में युद्ध के लिए 5 योजन = 40 कि.मी. का घेरा छोड़ दिया गया था।
कौरवों की ओर से युद्ध करने वाले महारथी थे- भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्रवा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, जयद्रथ, विंद-अनुविंद, काम्बोजराज सुदक्षिण, बृहद्बल, दुर्योधन व उसके 99 भाई।
जबकि पाण्डवों की ओर से भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, युधिष्ठिर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज, घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, शैब्य, अनूपराज नील आदि प्रमुख महारथी थे।
युद्ध के नियम
पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए। उनके बनाये हुए नियम थे-
- प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही होगा। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा।
- युद्ध समाप्ति के पश्चात छल-कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे।
- रथी रथी से, हाथी पर सवार योद्धा हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा।
- एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा।
- भय से भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा।
- जो वीर निहत्था हो जाएगा, उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा।
- युद्ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अस्त्र नहीं उठाएगा।
युधिष्ठिर और दुर्योधन की सेनाएँ कुरुक्षेत्र के मैदान में जा डटीं। अपने विपक्ष में पितामह भीष्म तथा आचार्य द्रोण आदि गुरुजनों तथा सगे-सम्बन्धियों को देखकर अर्जुन युद्ध से विरत हो गये।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया उनसे कहा- "पार्थ! भीष्म आदि गुरुजन शोक के योग्य नहीं हैं। मनुष्य का शरीर विनाशशील है, किंतु आत्मा का कभी नाश नहीं होता। यह आत्मा ही परब्रह्म है। 'मैं ब्रह्म हूँ', इस प्रकार तुम उस आत्मा को समझो। कार्य की सिद्धि और असिद्धि में समान भाव से रहकर कर्मयोग का आश्रय लेकर क्षात्रधर्म का पालन करो।”
सम्पूर्ण भगवत गीता भी पढ़ें इस लिंक पर :
Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi ~ सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन रथारूढ़ होकर युद्ध में प्रवृत्त हुए। श्रीकृष्ण तथा अर्जुन सहित सभी ने शंखध्वनि की और युद्ध का आरम्भ हो गया। दुर्योधन की सेना में सबसे पहले पितामह भीष्म सेनापति हुए। पाण्डवों के सेनापति शिखण्डी थे। इन दोनों में भारी युद्ध छिड़ गया। भीष्म सहित कौरव पक्ष के योद्धा उस युद्ध में पाण्डव पक्ष के सैनिकों पर प्रहार करने लगे और शिखण्डी आदि पाण्डव पक्ष के वीर कौरव सैनिकों को अपने बाणों का निशाना बनाने लगे। कौरव और पाण्डव सेना का वह युद्ध, देवासुर-संग्राम के समान जान पड़ता था। आकाश में खड़े होकर देखने वाले देवताओं को वह युद्ध बड़ा आनन्ददायक प्रतीत हो रहा था। भीष्म ने दस दिनों तक युद्ध करके पाण्डवों की अधिकांश सेना को अपने बाणों से मार गिराया।
Other Famous Complete Series In Hindi:
- पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ ~ Complete Panchatantra Stories In Hindi
- सम्पूर्ण बैताल पचीसी हिंदी में | Complete Baital Pachchisi Stories In Hindi
- सम्पूर्ण मानसरोवर ~ मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ | Complete Mansarovar Stories By Premchand
- सम्पूर्ण सिंहासन बत्तीसी | Complete Singhasan Battisi In Hindi
- सम्पूर्ण महाभारत ~ संक्षिप्त कथा ! Complete Mahabharata In Brief
nice sir thanks
जवाब देंहटाएं