जयद्रथ, घटोत्कच तथा गुरु द्रोण के वध की कथा ~ महाभारत, Death Of Guru Dron Story Mahabharat, Dhristdyumna kills guru Dron, Arjuna Killas Jaydrath story, Karna Kills Ghatotkach story in hindi Death Of Ghatotkach and Jaydrath story Mahabharat
अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ काँपने लगा। द्रोणाचार्य ने उसे आश्वासन दिया कि वे ऐसा व्यूह बनाएँगे कि अर्जुन जयद्रथ को न देख सकेगा। वे स्वयं अर्जुन से लड़ते रहेंगे तथा व्यूह के द्वार पर स्वयं रहेंगे।
अगले दिन युद्ध शुरू हुआ। अर्जुन की आँखें जयद्रथ को ढूँढ रही थीं, किंतु वह कहीं नहीं मिला। दिन बीतने लगा। धीरे-धीरे अर्जुन की निराशा बढ़ती गई। यह देखकर श्रीकृष्ण बोले- "पार्थ! समय बीत रहा है और कौरव सेना ने जयद्रथ को रक्षा कवच में घेर रखा है। अतः तुम शीघ्रता से कौरव सेना का संहार करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो।"
यह सुनकर अर्जुन का उत्साह बढ़ा और वह जोश से लड़ने लगा। लेकिन जयद्रथ तक पहुँचना मुश्किल था। सन्ध्या होने वाली थी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी माया फैला दी। इसके फलस्वरूप सूर्य बादलों में छिप गया और सन्ध्या का भ्रम उत्पन्न हो गया।
महाभारत की सम्पूर्ण कथा पढ़ें :
"सन्ध्या हो गई है और अब अर्जुन को प्रतिज्ञावश आत्मदाह करना होगा।" यह सोचकर जयद्रथ और दुर्योधन प्रसन्नता से उछल पड़े। अर्जुन को आत्मदाह करते देखने के लिए जयद्रथ कौरव सेना के आगे आकर अट्टहास करने लगा।
जयद्रथ को देखकर श्रीकृष्ण बोले- "पार्थ! तुम्हारा शत्रु तुम्हारे सामने खड़ा है। उठाओ अपना गांडीव और वध कर दो इसका। वह देखो अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है।" यह कहकर उन्होंने अपनी माया समेट ली। देखते-ही-देखते सूर्य बादलों से निकल आया। सबकी दृष्टि आसमान की ओर उठ गई। सूर्य अभी भी चमक रहा था। यह देखकर जयद्रथ और दुर्योधन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। जयद्रथ भागने को हुआ, लेकिन तब तक अर्जुन ने अपना गांडीव उठा लिया था।
तभी श्रीकृष्ण चेतावनी देते हुए बोले- "हे अर्जुन! जयद्रथ के पिता ने इसे वरदान दिया था कि जो इसका मस्तक ज़मीन पर गिराएगा, उसका मस्तक भी सौ टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा। इसलिए यदि इसका सिर ज़मीन पर गिरा तो तुम्हारे सिर के भी सौ टुकड़े हो जाएँगे।
हे पार्थ! उत्तर दिशा में यहाँ से सो योजन की दूरी पर जयद्रथ का पिता तप कर रहा है। तुम इसका मस्तक ऐसे काटो कि वह इसके पिता की गोद में जाकर गिरे।" अर्जुन ने श्रीकृष्ण की चेतावनी ध्यान से सुनी और अपने लक्ष्य की ओर ध्यान कर बाण छोड़ दिया। उस बाण ने जयद्रथ का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे लेकर सीधा जयद्रथ के पिता की गोद में जाकर गिरा। जयद्रथ का पिता चौंककर उठा तो उसकी गोद में से सिर ज़मीन पर गिर गया। सिर के ज़मीन पर गिरते ही उनके सिर के भी सौ टुकड़े हो गए। इस प्रकार अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हुई।
कौरवों में गहरा शोक छा गया तथा पाण्डवों में हर्ष। अब पाण्डवों में अगले दिन के युद्ध का विचार होने लगा। श्रीकृष्ण ने कहा कि कल हो सकता है कर्ण अर्जुन पर इन्द्र से मिली अमोघ शक्ति का प्रयोग करे।
श्रीकृष्ण ने प्रस्ताव रखा कि भीम का पुत्र घटोत्कच राक्षसी स्वभाव का है। वह अँधेरे में भी भयंकर युद्ध कर सकता है। यदि वह कल रात के समय कौरवों पर आक्रमण करे तो कर्ण को उस पर अमोघ शक्ति चलानी होगी।
घटोत्कच ने रात के अँधेरे में ही कौरवों पर हमला कर दिया। धूल से आकाश ढँक गया। वर्षा होने लगी, कंकड़-पत्थर आकाश से गिरने लगे। दुर्योधन घबराकर कर्ण के पास गया। कर्ण पहले तो टालते रहा, पर दुर्योधन को अत्यंत व्याकुल देखकर अमोघ शक्ति लेकर निकला तथा उसने घटोत्कच पर अमोघ शक्ति का प्रयोग कर दिया।
घटोत्कच मारा गया, पर कर्ण को यह चिंता हुई कि अब उसके पास अर्जुन के वध के लिए कोई शक्ति नहीं रही।
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य वध
रात के आक्रमण से कौरव बहुत क्रोधित थे। युद्ध के चौदहवें दिन द्रोणाचार्य भी बहुत क्रोधित थे। उन्होंने हज़ारों पाण्डव-सैनिकों को मार डाला तथा युधिष्ठिर की रक्षा में खड़े द्रुपद तथा विराट दोनों को मार दिया।
द्रोणाचार्य के इस रूप को देखकर श्रीकृष्ण भी चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने अर्जुन से कहा कि "आचार्य को यह समाचार देना कि अश्वत्थामा का निधन हो गया है।" अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।
श्रीकृष्ण ने कहा कि "अवंतिराज के हाथी का नाम भी अश्वत्थामा है, जिसे भीम ने अभी मारा डाला है।" श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पास रथ ले जाकर कहा- "यदि द्रोणाचार्य अश्वत्थामा के मरने के बारे में पूछें तो आप हाँ कह दीजिएगा।" तभी चारों ओर से शोर मच गया कि अश्वत्थामा मारा गया।
द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से सत्य पूछा, क्योंकि वे जानते थे कि युधिष्ठिर असत्य नहीं कहते। युधिष्ठिर ने कहा- "हाँ आचार्य, अश्वत्थामा मारा गया, किन्तु नर नहीं, कुंजर।" युधिष्ठिर द्वारा नर कहते ही श्रीकृष्ण ने इतने जोर से शंख बजाया कि द्रोणाचार्य आगे के शब्द न सुन सके।
उन्होंने अस्त्र-शस्त्र फेंक दिए तथा रथ पर ही ध्यान-मग्न होकर बैठ गए। तभी द्रुपद-पुत्र धृष्टद्युम्न ने खड्ग से द्रोणाचार्य का सिर काट दिया। द्रोणाचार्य के निधन से कौरवों में हाहाकार मच गया तथा अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर भीषण युद्ध किया, जिसके सामने अर्जुन के अतिरिक्त और कोई न टिक सका। संध्या हो गई थी, अतः युद्ध थम गया।
Other Famous Complete Series In Hindi:
- पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ ~ Complete Panchatantra Stories In Hindi
- सम्पूर्ण बैताल पचीसी हिंदी में | Complete Baital Pachchisi Stories In Hindi
- सम्पूर्ण मानसरोवर ~ मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ | Complete Mansarovar Stories By Premchand
- सम्पूर्ण सिंहासन बत्तीसी | Complete Singhasan Battisi In Hindi
- सम्पूर्ण महाभारत ~ संक्षिप्त कथा ! Complete Mahabharata In Brief
अति सराहनीय प्रयास व हमारी परंपरा को दर्शाती हुई अलौकिक कथा
जवाब देंहटाएं