Pandava-Draupadi Marriage Story Mahabharata, Story of Pandawas and Draupadi marriage in hindi, Marriage Of Pandavas & Draupadi Story From Mahabharata | पाण्डव-द्रौपदी विवाह ~ महाभारत, Panchali-Pandawas marriage story mahabharata hindi, Marriage of Panchali and Pandawas story hindi
अर्जुन द्वारा द्रौपदी को स्वयंवर में विजित कर लिये जाने के पश्चात पाँचों पाण्डव द्रौपदी को साथ लेकर वहाँ पहुँचे, जहाँ वे अपनी माता कुन्ती के साथ निवास कर रहे थे।
द्वार से ही अर्जुन ने पुकार कर अपनी माता से कहा- "माते! आज हम लोग आपके लिये एक अद्भुत् भिक्षा लेकर आये हैं।”
उस पर कुन्ती ने भीतर से ही कहा- "पुत्रों! तुम लोग आपस में मिल-बाँट उसका उपभोग कर लो।” बाद में यह ज्ञात होने पर कि भिक्षा वधू के रूप में हैं, कुन्ती को अत्यन्त पश्चाताप हुआ, किन्तु माता के वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिये द्रौपदी ने पाँचों पाण्डवों को पति के रूप में स्वीकार कर लिया।
पाण्डवों के द्रौपदी को साथ लेकर अपने निवास पर पहुँचने के कुछ काल पश्चात् उनके पीछे-पीछे कृष्ण भी वहाँ पर आ पहुँचे। कृष्ण ने अपनी बुआ कुन्ती के चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त किया और सभी पाण्डवों से गले मिले।
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औपचारिकताएँ पूर्ण होने के पश्चात युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा- "हे द्वारिकाधीश! आपने हमारे इस अज्ञातवास में हमें पहचान कैसे लिया?” कृष्ण ने उत्तर दिया- "भीम और अर्जुन के पराक्रम को देखने के पश्चात भला मैं आप लोगों को कैसे न पहचानता।” सभी से भेंट मुलाकात करके कृष्ण वहाँ से अपनी नगरी द्वारका चले गये।
द्रौपदी के स्वयंवर के समय दुर्योधन के साथ ही साथ द्रुपद, धृष्टद्युम्न एवं अनेक अन्य लोगों को संदेह हो गया था कि वे ब्राह्मण पाण्डव ही हैं।
उनकी परीक्षा करने के लिये द्रुपद ने धृष्टद्युम्न को भेजकर उन्हें अपने राजप्रासाद में बुलवा लिया। राजप्रासाद में द्रुपद एवं धृष्टद्युम्न ने पहले राजकोष को दिखाया, किन्तु पाण्डवों ने वहाँ रखे रत्नाभूषणों तथा रत्न-माणिक्य आदि में किसी प्रकार की रुचि नहीं दिखाई।
किन्तु जब वे शस्त्रागार में गये तो वहाँ रखे अस्त्र-शस्त्रों में उन सभी ने बहुत अधिक रुचि प्रदर्शित की और अपनी पसंद के शस्त्रों को अपने पास रख लिया। उनके क्रिया-कलाप से द्रुपद को विश्वास हो गया कि ये ब्राह्मण के रूप में योद्धा ही हैं।
द्रुपद ने युधिष्ठिर से पूछा- "हे आर्य! आपके पराक्रम को देखकर मुझे विश्वास हो गया है कि आप लोग ब्राह्मण नहीं हैं। कृपा करके आप अपना सही परिचय दीजिये।”
उनके वचनों को सुनकर युधिष्ठिर ने कहा- "राजन्! आपका कथन अक्षरशः सत्य है। हम पाण्डु पुत्र पाण्डव हैं। मैं युधिष्ठिर हूँ और ये मेरे भाई भीम, अर्जुन, नकुल एवं सहदेव हैं। हमारी माता कुन्ती आपकी पुत्री द्रौपदी के साथ आपके महल में हैं।”
युधिष्ठिर की बात सुनकर द्रुपद अत्यन्त प्रसन्न हुये और बोले- "आज भगवान ने मेरी सुन ली। मैं चाहता था कि मेरी पुत्री का विवाह पाण्डु के पराक्रमी पुत्र अर्जुन के साथ ही हो। मैं आज ही अर्जुन और द्रौपदी के विधिवत विवाह का प्रबन्ध करता हूँ।” इस पर युधिष्ठिर ने कहा- "राजन! द्रौपदी का विवाह तो हम पाँचों भाइयों के साथ होना है।” यह सुनकर द्रुपद आश्चर्यचकित हो गये और बोले- "यह कैसे सम्भव है? एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ अवश्य हो सकती हैं, किन्तु एक स्त्री के पाँच पति हों, ऐसा तो न कभी देखा गया है और न सुना ही गया है।”
उनकी परीक्षा करने के लिये द्रुपद ने धृष्टद्युम्न को भेजकर उन्हें अपने राजप्रासाद में बुलवा लिया। राजप्रासाद में द्रुपद एवं धृष्टद्युम्न ने पहले राजकोष को दिखाया, किन्तु पाण्डवों ने वहाँ रखे रत्नाभूषणों तथा रत्न-माणिक्य आदि में किसी प्रकार की रुचि नहीं दिखाई।
किन्तु जब वे शस्त्रागार में गये तो वहाँ रखे अस्त्र-शस्त्रों में उन सभी ने बहुत अधिक रुचि प्रदर्शित की और अपनी पसंद के शस्त्रों को अपने पास रख लिया। उनके क्रिया-कलाप से द्रुपद को विश्वास हो गया कि ये ब्राह्मण के रूप में योद्धा ही हैं।
द्रुपद ने युधिष्ठिर से पूछा- "हे आर्य! आपके पराक्रम को देखकर मुझे विश्वास हो गया है कि आप लोग ब्राह्मण नहीं हैं। कृपा करके आप अपना सही परिचय दीजिये।”
उनके वचनों को सुनकर युधिष्ठिर ने कहा- "राजन्! आपका कथन अक्षरशः सत्य है। हम पाण्डु पुत्र पाण्डव हैं। मैं युधिष्ठिर हूँ और ये मेरे भाई भीम, अर्जुन, नकुल एवं सहदेव हैं। हमारी माता कुन्ती आपकी पुत्री द्रौपदी के साथ आपके महल में हैं।”
युधिष्ठिर की बात सुनकर द्रुपद अत्यन्त प्रसन्न हुये और बोले- "आज भगवान ने मेरी सुन ली। मैं चाहता था कि मेरी पुत्री का विवाह पाण्डु के पराक्रमी पुत्र अर्जुन के साथ ही हो। मैं आज ही अर्जुन और द्रौपदी के विधिवत विवाह का प्रबन्ध करता हूँ।” इस पर युधिष्ठिर ने कहा- "राजन! द्रौपदी का विवाह तो हम पाँचों भाइयों के साथ होना है।” यह सुनकर द्रुपद आश्चर्यचकित हो गये और बोले- "यह कैसे सम्भव है? एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ अवश्य हो सकती हैं, किन्तु एक स्त्री के पाँच पति हों, ऐसा तो न कभी देखा गया है और न सुना ही गया है।”
युधिष्ठिर ने कहा- "राजन! न तो मैं कभी मिथ्या भाषण करता हूँ और न ही कोई कार्य धर्म या शास्त्र के विरुद्ध करता हूँ। हमारी माता ने हम सभी भाइयों को द्रौपदी का उपभोग करने का आदेश दिया है और मैं माता की आज्ञा की अवहेलना कदापि नहीं कर सकता।”
इसी समय वहाँ पर वेदव्यास पधारे और उन्होंने द्रुपद को द्रौपदी के पूर्वजन्म में तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर भगवान के द्वारा पाँच पराक्रमी पति प्राप्त करने के वर देने की बात बताई। वेदव्यास के वचनों को सुनकर द्रुपद का सन्देह समाप्त हो गया और उन्होंने अपनी पुत्री द्रौपदी का पाणिग्रहण संस्कार पाँचों पाण्डवों के साथ बड़े धूमधाम के साथ कर दिया।
इस विवाह में विशेष बात यह हुई कि देवर्षि नारद ने स्वयं पधार कर द्रौपदी को प्रतिदिन कन्यारूप हो जाने का आशीर्वाद दिया। पाण्डवों के जीवित होने तथा द्रौपदी के साथ विवाह होने की बात तेजी से सभी ओर फैल गई। हस्तिनापुर में इस समाचार के मिलने पर दुर्योधन और उसके सहयोगियों के दुःख का पारावार न रहा।
इसी समय वहाँ पर वेदव्यास पधारे और उन्होंने द्रुपद को द्रौपदी के पूर्वजन्म में तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर भगवान के द्वारा पाँच पराक्रमी पति प्राप्त करने के वर देने की बात बताई। वेदव्यास के वचनों को सुनकर द्रुपद का सन्देह समाप्त हो गया और उन्होंने अपनी पुत्री द्रौपदी का पाणिग्रहण संस्कार पाँचों पाण्डवों के साथ बड़े धूमधाम के साथ कर दिया।
इस विवाह में विशेष बात यह हुई कि देवर्षि नारद ने स्वयं पधार कर द्रौपदी को प्रतिदिन कन्यारूप हो जाने का आशीर्वाद दिया। पाण्डवों के जीवित होने तथा द्रौपदी के साथ विवाह होने की बात तेजी से सभी ओर फैल गई। हस्तिनापुर में इस समाचार के मिलने पर दुर्योधन और उसके सहयोगियों के दुःख का पारावार न रहा।
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