Sunita Williams Biography In Hindi,सुनिता विलम्यस ~ भारत की बेटी-एक प्रेरणा,Astronaut Biography: Sunita Williams,
Sunita Williams Biography In Hindi
नाम -सुनीता माइकल जे. विलियम
जन्म- 19 सितम्बर 1965, युक्लिड, ओहियो राज्य (अमेरिका)
पिता-डॉ. दीपक एन. पांड्या
माता -बानी जालोकर पांड्या
विवाह-माइकल जे. विलियम से
उपलब्धि-भारतीय मूल की अंतरिक्ष वैज्ञानिक (नासा)
व्यवसाय हुनर- नौसेना पोत चालक, हेलीकॉप्टर पायलट, परीक्षण पायलट, पेशेवर नौसैनिक, गोताखोर, तैराक, मैराथन धाविका।
अंतरिक्ष में व्यतीत समय-321 दिन 17 घंटे 15 मिनट
नियुक्ति- अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’(1998)
निर्धारित लक्ष्य पूर्ण- एसटीएस 116, अभियान 14, अभियान 15, एसटीएस 117, सोयुज टीएमए-05 एम, अभियान 32, अभियान 33
व्यक्तित्व परिचय-
कौन कहता है? कि बेटियों में जिगर और बुलंद हौसला नहीं होता या फिर कहे कि वो अपने वतन, मां-बाप का नाम रोशन नहीं कर सकती। यदि बेटियों को अच्छी शिक्षा व संस्कारों के युग्म के साथ अच्छा हुनर सिखला दिया जाये तो आज भी बेटियां विश्व पटल पर तिरंगा की शान को चार चांद लगाने से नहीं चूकेगी। किंतु हमारे समाज की विडम्बना दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि आज भी कई जगह बेटियों को जो सम्मान समाज में मिलना चाहिए, से अछूती रह जाती हैं। जिसका मुख्य कारण अंधविश्वास या फिर कहें कि लकीर का फकीर होना है। जिस कारण आधुनिक युग में भू्रण हत्या जैसे पाप हमारे समाज के लिए अभिशाप सिद्ध होता जा रहा है। इतिहास गवाह है, कि बेटियों ने हमेशा अपने अस्तित्व को दांव पर लगा कर, परहित के लिए अपनी जान भी न्यौछावर कर दी है। आज हम ऐसे ही व्यक्तित्व के विषय में चर्चा करने जा रहे है, जो अपने आप में उक्त समाज के नुमाइंदों को हमेशा लज्जित करता रहेगा। क्योंकि यदि बेटी चाहे तो वह भी बेटों से ज्यादा नाम रोशन कर सकती हैं।
जीवन परिचय:-
सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर 1965 को अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (स्थित क्लीवलैंड) में हुआ। सुनिता विलियम्स बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की कन्या थी जो कि अपने पंखों को परि की भांति इतना फैलाना चाहती थी कि वह समस्त विश्व का भ्रमण कर, पृथ्वी पर लौट आये। जो कि, अपने परिवार में माता पिता की सबसे छोटी संतान थी। इनके पिता जी का नाम डॉ. दीपक एन. पांड्या व माता का नाम बानी जालोकर पांड्या हैं, इनके पिता जी प्रसिद्ध तंत्रिका विज्ञानी (एम.डी) हैं। जो कि गुजरात राज्य (भारत) के निवासी हैं। सुनिता जी के पिता जी का पेशा अमेरिका में स्थायी होने के कारण वे सन 1958 में अहमदाबाद से बोस्टन (अमेरिका) में बस गए थे। सन 1983 में सुनीता विलियम्स ने मैसाचुसेट्स से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजिकल साइन्स (सन 1987) में बीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने 1995 में फ़् लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर ऑफ साइंस की (एम.एस.) डिग्री हासिल कर, अपने
हौसलों की उड़ान को ओर मजबूती प्रदान कर दी थी। तभी उनकी मुलाकात माइकल जे. विलियम्स से हुई। जो कि इतनी असरदार थी, कि दोनो ने विवाह बंधन में, सदा के लिए एक हो जाना ही उचित समझा।
व्यक्तित्व, कुशल कार्य क्षमता-
सुनिता विलियम्स की लग्न व मेहनत ने अब कुछ रंग दिखलाना आरंभ कर दिया था। धीरे-धीरे भारत की परी का पंख रूपी हौसला आसमान को छूने के लिए फडफ़ड़ा रहा था।
वे मई 1987 में अमरीकी नेवल एकेडमी के माध्यम से नौसेना से जुड़ी और बाद में हेलीकॉप्टर पायलट बन गई। उनकी नियुक्ति 6 महीने के लिए अस्थायी रूप से, नेवल तटवर्ती कमांड में की गई थी। सुनीता विलियम ने अपनी प्रारंभिक ट्रेनिंग की शुरुआत हेलीकॉप्टर से ही की थी। बाद में उनकी कार्य क्षमता को देखते हुये उन्हें ‘बेसिक ड्राइविंग ऑफिसर’ के तौर पर नियुक्ति किया गया था। तत्पश्चात उन्होंने नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड में प्रशिक्षण पूर्ण: प्राप्त कर लिया था जुलाई 1989 में उन्हें नेवल एवियेटर का महत्वपूर्ण पद प्रदान कर दिया गया।
कुछ समय बाद उनकी नियुक्ति ‘हेलीकॉप्टर काम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन’ में की गयी। जिसके बाद सुनीता विलियम को नॉरफॉक, वर्जीनिया में हेलीकॉप्टर कंबाट सपोर्ट स्क्वाड्रन 8 (एचसी -8) की जिम्मेदारी सौंपी दी गई थी। भूमध्यसागर, रेड सी और पर्शियन गल्फ में उन्होंने ‘ऑपरेशन डेजर्ट शील्ड’ और ‘ऑपरेशन प्रोवाइड कम्फ र्ट’ के दौरान बड़ी ही निपुणता से कार्य किया।
व्यक्तित्व, नासा में कार्य निपुणता
वर्ष 1998 में सुनीता विलियम्स की नियुक्ति नासा में हो गई। वास्तव में वह दिन भारत की बेटी के लिए एक सुखद अहसास रहा होगा। उसी दौरान वे यूएसएस सैपान पर ही कार्यरत थी। उनकी एस्ट्रोनॉट कैंडिडेट ट्रेनिंग ‘जॉनसन स्पेस सेेंटर में सन 1998 के अगस्त माह से आरंभ हो चुकी थी। सुनीता के हृदय में बचपन से ही हुनर को समझने व लग्न से उसे अंजाम तक पहुंचाने की क्षमता लबालब भरी थी। इसी गुण का लाभ, उन्होंने अपनी उक्त ट्रेनिंग के दौरान उठाया। सुनिता विलियम्स को 9 दिसम्बर 2006 में अंतरिक्षयान ‘डिस्कवरी’ से ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र’ भेजा गया, जहां उन्होंने एक्सपीडिशन-14 दल में शामिल हो कर तरह-तरह के प्रयोगों में अपना सहयोग दिया। एक्सपीडिशन-14 और 15 के दौरान सुनीता विलियम्स ने तीन स्पेस वॉक किए। 6 अप्रैल 2007 को उन्होंने अंतरिक्ष में ही ‘बोस्टन मैराथन’ में भाग लिया, जिसे उन्होंने महज 4 घंटे 24 मिनट में पूरा किया। इसी के साथ वे अंतरिक्ष में मैराथन में दौडऩे वाली प्रथम व्यक्तित्व (महिला/पुरूष) बन गयीं। 22 जून 2007 को वे पृथ्वी पर वापस आ गयीं। साल 2012 में सुनीता एक्सपीडिशन 32 और 33 से जुड़ीं। उन्हें 15 जुलाई 2012 को बैकोनुर कोस्मोड्रोम से अंतरिक्ष में भेजा गया। उनका अंतरिक्ष यान सोयुज़ ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र’ से जुड़ गया। वे 17 सितम्बर 2012 में एक्सपीडिशन 33 की कमांडर बनायी गयीं। सितम्बर 2012 में ही वे अंतरिक्ष में त्रैथलों करने वाला पहला व्यक्तित्व बनीं। 19 नवम्बर 1012 को सुनीता विलियम्स धरती पर वापस लौट आयीं। इसके अतिरिक्त सुनीता विलियम्स ने पानी के अंदर और एकांतवास परिस्थितियों में भी ट्रेनिंग प्राप्त की। ट्रेनिंग के दौरान सुनीता विलियम्स ने रूसी अंतरिक्ष संस्था में भी काम किया और इस प्रशिक्षण में उन्हें अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बारे, रूसी हिस्से की जानकारी भी दी गयी थी।
यही नहीं अंतरिक्ष स्टेशन के रोबोटिक तंत्र के ऊपर भी विलियम्स को प्रशिक्षित किया गया। उनकी ट्रेनिंग की खास बात ये रही है कि वे मई 2002 में पानी के अंदर एक्वैरियस हैबिटेट में 9 दिन तक रहीं।
व्यक्तित्व सम्मान
- नेवी कमेंडेशन मेडल अवॉर्ड।
- नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल।
- ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल।
- सुनीता विलियम्स की भारत यात्रा के दौरान सरदार बल्लभ भाई पटेल विश्व प्रतिमा अवार्ड सम्मानित
- उन्हें सन 2008 में भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
- सन 2013 में गुजरात विश्वविद्यालय ने डॉ. की मानद उपाधि प्रदान की।
- सन 2013 में स्लोवेनिया द्वारा ‘गोल्डन आर्डर फॉर मेरिट्स’ प्रदान किया गया।
सुनिता विलियम्स ने अपनी बेजोड़ कार्य क्षमता व लग्न से यह सिद्ध कर दिया कि एक बेटी चाहे तो व किसी भी देश क्यों ना ही असंभव कार्य को भी संभव कर अपने देश की छवि विश्व पटल पर सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा सकती है। जो कि भावी पीढिय़ों के लिए एक प्रेरणा स्रोत से कम नहीं है।
इन्हे भी पढ़ें:
COMMENTS