Incredible Hindi about realization of awareness By Osho world. उस सचेतना में, जिस आनंद का अनुभव हुआ है, अब मैं चाहता हूं, मैं भी परमात्मा का चोर हो जाऊं। अब आदमियों की संपदा में मुझे भी कोई रस दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि उस सचेतना में मैंने अपने भीतर जो सपंदा देखी है, वह इस संसार में कहीं भी नहीं है...
उस सचेतना में, जिस आनंद का अनुभव हुआ है, अब मैं चाहता हूं, मैं भी परमात्मा का चोर हो जाऊं। अब आदमियों की संपदा में मुझे भी कोई रस दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि उस सचेतना में मैंने अपने भीतर जो सपंदा देखी है, वह इस संसार में कहीं भी नहीं है...
एक बहुत अद्भुत आदमी था। वह चोरों का गुरु था। सच तो यह है कि चोरों के अतिरिक्त और किसी का कोई गुरु होता ही नहीं। चोरी सीखने के लिए गुरु की बड़ी जरूरत है। तो जहां-जहां चोरी, वहां-वहां गुरु। जहां-जहां गुरु, वहां वहां चोरी। वहां चोरों का गुरु था, मास्टर थीफ था। उस जैसा कुशल कोई चोर नहीं था। कुशलता थी। वह तो एक तकनीकि था, एक शिल्प था। जब बूढ़ा हो गया तो उसके लड़के ने कहा कि मुझे भी सिखा दें। उसके गुरु ने कहाः यह बड़ी कठिन बात है।
पिता ने चोरी करनी बंद कर दी थी। उसने कहाः यह बहुत कठिन बात है। फिर मैंने चोरी करनी बंद कर दी, क्योंकि चोरी में कुछ ऐसी घटनाएं? उसने कहाः कुछ ऐसे खतरें आए कि उन खतरों में मैं इतना जाग गया, जागने की वजह से चोरी मुश्किल हो गई। और जागने की वजह से उस संपत्ति का ख्याल आया है जो सोने के कारण दिखाई नहीं पड़ती थी। अब मैं एक दूसरी ही चोरी में लग गया हूं। अब मैं परमात्मा की चोरी कर रहा हूं। पहले आदमियों की चोरी करता रहा।
लेकिन मैं तुम्हें एक कोशिश करूंगा, शायद तुम्हें यह भी हो जाए। चाहता तो यही हूं कि तुम आदमियों के चोर मत बनो, परमात्मा के चोर बनो। लेकिन शुरू आत आदमियों की चोरी से कर देने में भी कोई हर्जा नहीं है।
ऐसे हर आदमी ही, आदमी की ही चोरी से शुरुआत करता है। हर आदमी के हाथ दूसरे आदमी की जेब में पड़े होते हैं। जमीन पर दो ही तरह के चोर हैं-आदमियों से चुराने वाले और परमात्मा से चुरा लेने वाले। परमात्मा से चुरा लेने वाले तो बहुत कम हैं-जिनके हाथ परमात्मा की जेब में चले जाएं। लेकिन आदमियों के तो हाथ में सारे लोग एक-दूसरे की जेब में डाले ही रहते हैं। और खुद के दोनों हाथ दूसरे की जेब में डाल देते हैं, तो दूसरों को उनकी जेब में हाथ डालने की सुविधा हो जाती है। स्वाभाविक है, क्योंकि अपनी जेब की रक्षा करें तो दूसरे की जेब से निकाल नहीं सकते। दूसरे की जेब से निकालें तो अपनी जेब असुरक्षित छूट जाती है, उसमें से दूसरे निकालते हैं। एक म्युचुअल, एक पारस्परिक चोरी सारी दुनिया में चल रही है।
उसने कहा कि लेकिन चाहता हैं कि कभी तुम परमात्मा के चोर बन सको। तुम्हें मैं ले चलूंगा। दूसरे दिन वह अपने युवा लड़के को लेकर राजमहल में चोरी के लिए गया। उसने जाकर आहिस्ता से दीवाल की ईंटें सरकाई, लड़का थर-थर कांप रहा है खड़ा हुआ। आधी रात है, राजमहल है, संतरी द्वारों पर खड़े हैं, और वह इतनी शांति से ईंटे निकाल कर रख रहा है कि जैसे अपना घर हो। लड़का थर-थर कांप रहा है। लेकिन बूढ़े बाप के बूढ़े हाथ बड़े कुशल हैं। उसने आहिस्ता से ईंटें निकाल कर रख दीं। उसने लड़के से कहाः कंपो मत। साहूकारों को कंपना शोभा देता है, चोरों को नहीं। यह काम नहीं चल सकेगा। अगर कंपोगे तो क्या चोरी करोगे? कंपन बंद करो। देखो, मेरे बूढ़े हाथ भी कंपते नहीं।
सेंध लगा कर बूढ़ा बाप भीतर हुआ। उसके पीछे उसने अपने लड़के को भी बुलाया। वे महल के अंदर पहुंच गए। उसने कई ताले खोले और महल के बीच के कक्ष में वे पहुंच गए। कक्ष में एक बहुत बड़ी बहुमूल्य कपड़ों की अलमारी थी। अलमारी को बूढ़े ने खोला। और लड़के से कहाः भीतर घुस जाओ और जो भी कीमती कपड़े हों, बाहर निकाल लो। लड़का भीतर गया, बूढ़े बाप ने दरवाजा बंद करके ताला बंद कर दिया। जोर से सामान पटका और चिल्लाया-चोर। और सेंध से निकल कर घर के बाहर हो गया।
सारा महल जग गया। और लड़के के प्राण आप सोच सकते हैं, किस स्थिति में नहीं पहुंच गए होंगे। यह कल्पना भी न की थी कि यह बाप ऐसा दुष्ट हो सकता है। लेकिन सिखाते समय सभी मां-बाप को दुष्ट होना पड़ता है। लेकिन एक बात हो गई -ताला बंद कर दिया गया बाप, कोई उपाय नहीं छोड़ गया बचने का। चिल्ला गया है-महल के संतरी जाग गये, नौकर-चाकर जाग गए हैं, प्रकाश जल गए हैं, लालटेनें घूमने लगी हैं, चोर की खोज हो रही है। चोर जरूर मकान के भीतर है। दरवाजे खुले पड़े हैं, दीवाल में छेद है।
फिर एक नौकरानी मोमबत्ती लिए हुए उस कमरे में भी आ गई है, जहां वह बंद है। अगर वे लोग न भी देख पाएं तो भी फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह बंद है और निकल नहीं सकता, दरवाजे पर ताला है बाहर। लेकिन कुछ हुआ। अगर आप उस जगह होते तो क्या होता?
आज रात सोते वक्त जरा ख्याल करना कि उस जगह अगर मैं होता उस लड़के की जगह तो क्या होता? क्या उस वक्त आप विचार कर सकते थे? विचार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। उस वक्त आप क्या सोचेते? सोचने का कोई मौका नहीं था। उस वक्त आप क्या करते? कुछ भी करने का उपाय नहीं था। द्वार बंद, बाहर ताला लगा हुआ है, संतरी अंदर घुस आए हैं, नौकर भीतर खड़े हैं, घर भर में खोज-बीज की जा रही है-आप क्या करते?
उस लड़के के पास करने को कुछ भी नहीं था। न करने के कारण वह बिल्कुल शांत हो गया। उस लड़के के पास सोचने को कुछ नहीं था। सोचने की कोई जगह नहीं थी, गुंजाइश नहीं थी। सो जाने का मौका नहीं था, क्योंकि खतरा बहुत बड़ा था। जिंदगी मुश्किल में थी। सो जाने का मौका नहीं था, क्योंकि खतरा बहुत बड़ा था। जिंदगी मुश्किल में थी। वह एकदम अलर्ट हो गया। ऐसी अलर्टनेस, ऐसी सचेतता, ऐसी सावधानी उसने जीवन में देखी नही थी। ऐसे खतरे को ही नहीं देखा था। और उस सावधानी में कुछ होना शुरू हुआ। उस सचेतना के कारण कुछ होना शुरू हुआ-जो वह नहीं कर रहा था, लेकिन हुआ। उसने कुछ, अपने नाखून से दरवाजा खरोंचा। नौकरानी पास से निकलती थी। उसने सोचा शायद चूहा या बिल्ली कपड़ों की अलमारी में अंदर है। उसने ताला खोला, मोमबत्ती बुझा दी। बुझाई, यह कहना केवल भाषा की बात है। मोमबत्ती बुझा दी गयी, क्योंकि युवक ने सोचा नहीं था कि मैं मोमबत्ती बुझा दूं। मोमबत्ती दिखाई पड़ी, युवक शांत खड़ा था, सचेत, मोमबत्ती बुझा दी, नौकरानी को धक्का दिया; अंधेरा था, भागा।
नौकर उसके पीछे भागे। दीवाल से बाहर निकला। जितनी ताकत से भाग सकता था, भाग रहा था। भाग रहा था कहना गलत हैं, क्योंकि भागने का कोई उपक्रम, कोई चेष्टा, कोई एफर्ट वह नहीं कर रहा था। बस, पा रहा था कि मैं भाग रहा हूं। और फिर पीछे लोग लगे थे। वह एक कुंए के पास पहुंचा, उसने एक पत्थर को उठा कर कुएं में पटका। नौकरों ने कुएं को घेर लिया। वे समझे कि चोर कुएं में कूद गया है। वह एक दरख्त के पीछे पड़ा था, फिर आहिस्ता से अपने घर पहुंचा।
जाकर देखा, उसका पिता कंबल ओढे सो रहा था। उसने कंबल झटके से खोला और कहा कि आप यहां सो रहे हैं, मुझे मुश्किल में फंसा कर? उसने कहाः अब बात मत करो। तुम आ गये, बात खत्म हो गयी। कैसे आए-तुम खुद ही सोच लेना। कैसे आए तुम वापस? उसने कहाः मुझे पता नहीं कि मैं कैसे आया हूं। लेकिन कुछ बातें घटीं। मैंने जिंदगी में ऐसी अलर्टनेस, ऐसी ताजगी, ऐसा होश कभी देखा नहीं था। और आउट ऑफ दैट अलर्टनेस, उस सचेतता के भीतर से फिर कुछ होना शुरू हुआ, जिसको मैं नहीं कह सकता कि मैंने किया। मैं बाहर आ गया हूं।
उस बूढे ने कहाः अब दुबारा भीतर जाने का इरादा है? उस युवक ने कहाः उस सेचतना में, उस अवेयरनेस में जिस आनंद का अनुभव हुआ है, अब मैं चाहता हूं, मैं भी परमात्मा का चोर हो जाऊं। अब आदमियों की संपदा में मुझे भी कोई रस दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि उस सचेतना में मैंने अपने भीतर जो सपंदा देखी है, वह इस संसार में कहीं भी नहीं है।
तो मैं परमात्मा के चोर होना आपको सिखाना चाहता हूं। लेकिन उसके पहले इन तीन सूत्रों पर...इन तीन दिनों में अगर आप सहयोग देंगे, तो इसमें कोई बहुत आश्चर्य नहीं है कि जाते वक्त आप अपने सामान में परमात्मा की भी थोड़ी सी संपदा ले जाते हुए अपने आप को अनुभव करें। वह संपत्ति सब जगह मौजूद है। लेकिन कोई हिम्मतवर चोर आता ही नहीं कि उस संपत्ति को चुराए और अपने घर ले जाए।
परमात्मा करे, आप भी एक मास्टर थीफ हो सकें, एक कुशल चोर हो सकें उस बड़ी संपदा को चुराने में। उस चोरी के सिखाने का ही यहां राज तीन दिनों में आपसे मैं कहूंगा। और आपका सहयोग रहा तो यह बात हो सकती है।
-ओशो
पुस्तकः असंभव क्रांति
प्रवचन नं. 1 से संकलित
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सुन्दर व रोचक प्रेरक कथा
जवाब देंहटाएंAapne is kahani me , Tin sutra aur parmatna ki chori ka raaz batane ka likha hai uske bare me bataye ,ye story me kush dino se roj hi pad raha hu,Ise apni life me changes lana chahata hu,OSHO ki aur kahaniya bhi hongi to please shayari kijiye.
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