आधुनिक समय में प्रत्येक
व्यक्ति भ्रष्टाचार से भली-भांति परिचित है चाहे व किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हुआ ही
क्यों न हो भ्रष्टाचार रूपी दीमक ने हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा व अर्थव्यवस्था को
इतना खोखला कर दिया था कि भ्रष्टाचार का नाम आते ही रिश्वत खोरी का गंदा चेहरा आम आदमी
के समक्ष प्रस्तुत हो जाता है। उस आम व्यक्ति को अपने अतीत में गहनता से विचार करने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि
देश का प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार रूपी दानव का सताया हुआ मोहरा है चाहे आप कोई भी
विभाग ले लीजिए प्रत्येक व्यक्ति महसूस करता था कि मानो रुपया पैसा ही परमेश्वर, परमात्मा हो गया है लेकिन किसी महापुरूष ने भी ठीक ही कहा है
कि किसी भी विषय वस्तु, निर्जीव या सजीव की भी
कोई समय सीमा होती है उसका भी एक दिन अंत निश्चित है। जैसे ही 500 रुपये व हजार रुपये के नोट बंद करने का फैसला आया तो मानो कालाधन संग्रह कर्ताओं में तो ऐसा हडक़ंप सा मच गया कि मानो
उन का सब कुछ लुट गया हो। गत दिनों आये अहम फैसले के बाद तो काला धन एकत्रित कर्ता
के घर में खाना तक नहीं बन पाया। और उनके पैरों
से जमीन खिसक गई।
लेखक की रचना की कुछ पंक्तियां निम्रवत है।
हुआ धवस्त किला काले धन का। अब तो विचार विमर्श करो।
उदास, काले धन के संग्रह कर्ता । प्रफुल्लित समस्त दरिद्र हृदय।
नूतन में चली योजना। क्रम बद्धता से।शत-शत नमन हो महानुभाव तुम्हें।
भारत सरकार के अहम फैसले जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो सशक्त
अभियान चलाया वो वास्तव में प्रसंशा करने योग्य है जिसकी चाहूँ ओर ईमानदार उच्चतम वर्ग, मध्यम व निम्र वर्ग के दिल में भूरी-भूरी प्रसंशा हो रही है।
भारत की जनता-जनार्दन को चाहे थोड़ी परेशानियों का सामना क्यों न करना पड़े कोई बात
नहीं पर उनकी आंखों में एक आशा कि किरण चमक गई, उन्हें पूर्ण आत्मविश्वास
है कि अब तो भ्रष्टाचार रूपी दानव का अंत अत्यंत निकट और निश्चित है। उन्हें यह भी विश्वास है कि आने वाली पीढिय़ों
के लिए जो वक्त आयेगा शायद व खुशियों भरा हो। वर्तमान के हालात को देखते हुए ऐसा लगता
है कि मानों अब भ्रष्टाचार को कोई नहीं बचा सकता जिसका उदाहरण गत दिनों जगह जगह रुपये
की बेअदबी, नदियों में तैरते 1000 व पांच सौ के नोट है।
आप स्विटजर लैंड में अपना काला धन क्यों तालशते हो अरे जनाब भारत के अंतर्हृदय में
ही इतना रुपये हंै की आप दोबारा से हिंदोस्तान को सोने कि चिडिय़ा बना सकते है। क्योंकि
लोग काले धन को एकत्रित कर विषधर की मानिंद कुंडली मार के बैठे हैं। जिसका नमूना आप
अपनी आंखों से इर्द-गिर्द देखने को मिल सकता है।
500 व 1000 रुपये के नोटो के बंद होने से हमारे देश को फायदे भी बहुत हो
सकते हंै नियमित बढऩे वाली मंहगाई का संतुलन में आना, देश की अर्थव्यवस्था में
सुधार रिश्वत खोरी में कमी, भ्रष्टाचार का पूर्ण दाह
संस्कार जो हमारे समाज में गरीब और अमीरी की दीवार खड़ी है अब उसकी नीव नेस्तनाबूत
हो चुकी वो दिन दूर नहीं जब हम न गरीब होंगे न ही अमीर बस हम रहेंगे केवल एक, केवल भारतीय इस अभियान में देश की पूर्ण जनता से सहयोग व धैर्य
का होना बहुत जरूरी है कि सर्वविदित हो कि आपसी सहयोग से कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
वर्तमान समय मेें स्थिति ऐसी है कि हमारे देश के बैंक कर्मचारियों को पूर्ण रूप से
ईमानदारी व देश भक्ति का सबूत देना होगा जो कि देशहित में है। हमारे देश के माननीय
मंत्री महोदय को चाहिए कि बंैक कर्मचारियों पर भी एक निष्ठावान व ईमानदार समीति गठित
की जानी चाहिए जिससे कालेधन संग्रह कर्ताओं पर नकेल पूर्ण रूप से लग सके।
कुछ लोग इतने ढीठ हंै
कि उन्हें अपने देश की छवि का बिल्कुल भी ख्याल नहीं बस उन्हें तो अपनी राजनीतिज्ञ
क्षेत्र में बढोतरी करनी होती चाहे वो किसी
सैनिक के आत्मदाह पर बड़ी-बड़ी डींग हांकनी हो या फिर 500 या 1000 के नोट बंद होने पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देनी हो या किसी व्यक्ति
पर आरोप प्रत्यारोप लगाने हो अरे भाई लानत है ऐसी राजनीति पर ओर ऐसे नेताओं पर जो देश
हित से बढ़ कर घटिया सोच को सर्वोपरी समझते हैं। क्योंकि वे स्वार्थी बन गये हैं इस
लिए वो महापुरूष ऐसा करते हैं।
जबकि हम सभी व्यक्तियों
को ऊंच-नीच का भेद-भाव समाप्त करते हुए सर्व
प्रथम राष्ट्रहित व मानव धर्म को सर्वोपरि समझना चाहिए इसी में हमारी व हमारे देश की
भलाई संभव होनी स्वाभाविक हंै।
लेखक की पंक्तियां निम्र वत है जो अमुख वाक्य पर सटीक साबित
होती है।
अडिग रहें सर्वत्र पटल, भूधर मानिंद हम।हमें कोई मानव धर्म से हिला नहीं सकता।।अमुख अंकुरित हो अन्त: हृदय सर्वत्र सभी।विकासशील से विकसित हो भारत देश हमारा।कोई भी मां का कपूत, डिगा नहीं सकता।।
दूसरी तरफ हम चर्चा करे
सभी वर्गो की तो हमारे हिसाब से तीन श्रेणी के व्यक्ति मौजूद है। धनाढ्य, मध्यम वर्ग निम्र वर्ग, यदि बात करें धनाढ्य व्यक्ति
की तो धनाढ्य व्यक्ति दिन-प्रतिदिन धनाढ्य होता जा रहा क्योंकि उन को किसी भी वस्तु
की आवश्यक्ता नहीं, ओर न ही वो किसी भी निम्र
वर्ग के व्यक्ति के उत्थान को आगे आना चाहते, किसी संपन्न व्यक्ति का
कहना है कि:
दामन में दाग ना लगा बुलबुलहुस्न ने मुझसे कहा, पिक्चर देखने का समय नहीं मिलतामै तो संतरे छीलने में ही मशगूल रह गया।ओर यही वास्तिवकता है उनको अपने नित्य कर्मो से फुरसत ही नहीं होती है
मध्यम वर्ग के लोग इतने
व्यस्त होते हंै कि उन्हें अपने कार्यो से ही फुरसत नहीं होती वो बेचारा किसी के हितों
के बारे में सोच भी कैसे सकता है। रही बात निम्र वर्ग के व्यक्ति की वह तो बेचारा इस
कलयुगी बाजार में अपने आप को ठगा सा, असहाय सा महसूस करता है।
इसलिए तो आत्महत्या करने का आंकड़ा निम्र वर्ग या कर्ज में डूबे किसान का ही होता है।
इस विषय को आगे बढ़ाने से पहले संस्था व काले धन पर चर्चा करना
स्वाभाविक सा हो गया है जो कि इस विषय से ही गूढ़
संबंध रखते है यदि बात करंे संस्था की, संस्था दो प्रकार की होती
हैं गैर सरकारी व सरकारी संस्था , यदि गैर सरकारी संस्था पर चर्चा करें तो गैर सराकरी संस्था का
अर्थ समझना आवश्यक हो जाता है गैर सरकारी संस्था, वह इकाई हैं जब दो या
दो से अधिक व्यक्ति द्वारा परहित व सामाजिक
सेवा के लिए खोली जाती हैं, गैर सरकारी संस्था कहलती है।
कालाधन वह धन होता है जो किसी व्यक्ति द्वारा अनुचित ढंग से
या अवैध तरीके से अर्जित किया जाता है, जिस धन का ब्यौरा सरकार
से छिपाया गया हो, अर्जित धन का आयकर, विक्रय पर लगा ब्रिकी कर न चुकाया हो, काला धन या हवाले का पैसा कहलाता है।.
हमारे देश में अनेक संस्थाए
है, संस्था बना कर पर हित करना अच्छी बात है पर कुछ लोगों द्वारा
अपने स्वार्थ सिद्धी के लिए संस्था चलाना एक प्रकार से अनुचित व कुकृत्य सा साबित होता
है। कुछ ऐसा ही हमारे देश मेंं हो रहा है। यदि हम इन कुछ संस्थाओं के काला धन को सफेद
धन में तब्दील करने वाली कार्यशाला कहें तो कुछ भी गलत नहीं होगा। संस्था के काले धन
को सफेद धन में परिवर्तित करने के लिए कुछ महानुभवों, शातिर दिमाग की अहम भूमिका
होती है, जिसकों हम माह लेखाकार अथवा चार्टड अकांउटेंट के नाम से जानते
है। प्रत्येक व्यक्ति अपना भला चाहता है देश में रूढ़ीवादी परंपरा के तहत चाहे उसे
अपना धन मोक्ष प्राप्ति के लिए किसी परहित में लगाना हो, दान देने वाला व्यक्ति
सोचता है कि हमारे एक तीर से दो निशाने हो जायेंगे किसी भी संस्था को रकम अदा कर सामाजिक
सेवा हो जायेगी दूसरा हमें आयकर में छूट मिल जायेगी। जबकि कुछ संस्था के लोग किसी भी
हद को पार करने से भी विमुख नहीं होते उनका एक मात्र उद्देश्य किसी भी ढंग से अपार
धन अर्जित करना होता है।
आप को याद होगा यदि हम किसी संस्था को दान करते है तो 80 सी के तहत हमें 50 प्रतिशत की आयकर में छूट
मिलती है। इन संस्थाओं को सरकार का पूर्ण संरक्षण प्राप्त होता है।
संस्थाएं कहती हंै कि
हम परहित व सामाजिक सेवाएं बहुत करते हंै परंतु कुछ संस्थाओं में तो होता कुछ ओर ही है। कुछ नाम मात्र
धन परहित व सामाजिक कार्यो पर व्यय किया जाता
है बाकी सब अपना तिजोरयों में बड़े ही प्यार से लगा दिया जाता है। हमारे विचार से सरकार द्वारा या आयकर विभाग द्वारा
इन संस्थाओं की गहनता से जांच नहीं की जाती होगी यदि होती तो बहुत सारा काला धन तो
अपने देश में ही मिल जाता।
उक्त वाक्य पर दीये तले अंधेरा वाला मुहावरा काफी सटीक सिद्ध
होता है।
गत दिनों टीवी चैनलों
पर आई खबर में ऑसो ट्रस्ट द्वारा कई कंपनियों को अवैध तरीके से धन स्थानान्तरण का मुद्दा
सामने आया जो उक्त कथनों का सटीक प्रमाण साबित
होता है।
यदि आप बारीकी से गत वर्षों
का अध्ययन करें तो ऐसे ही संस्थाओं के अनेक उदाहरण आपको देखने को मिलेंगे। ओर आप एक
क्षण के लिए सोचने का मजबूर हो जायेंगे कि
आप के कड़े परिश्रम का धन किस परोपकार पर खर्च करना चाहिए। ताकि किसी दरिद्र व असहाय
की अंतर्आत्मा हमें ढेरों दुआयें दे और हमारा ये जीवन सफल हो सके।
अभी हाल ही में भारत सरकार
की योजना रंग लाई जिसकी वजह से करोड़ो की धन राशि निकल कर सामने आई जो एक बड़ी उपलब्धि
कही जा सकती है और इसमें शक नहीं।
हम देश के माननीय मंत्री
महोदय से कहना चाहेंगे एक काले धन जैसा ही अभियान देश के विरोधी तत्वों के अनूरूप भी
चलाया जाना चाहिए ताकि दूध का दूध पानी का पानी हो सके।
यदि हमारे विचार से भारत सरकार द्वारा देश में ऐसा कोई कानून पारित
किया जाये जो निम्र वर्ग के उत्थान में जो भी महान पुरूष अपना सहयोग करें अर्थात निम्र
वर्ग को अपना आर्थिक सहयोग दे, जिससे व्यक्ति स्वयं का
रोजगार आरंभ कर सके तो सहयोग कर्ता व्यक्ति को 80 सी के तहत कर में छूट
व अलग से सरकार द्वारा पारितोषिक भेंट किये जायें तो हो सकता है कि देश के निम्र वर्ग
के लोगों के लिए उम्मीद की किरण नजर आने लगे। उक्त कानून यदि पारित होता है तो हमारा
देश विकसित देश बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
लेखक परिचय
अंकेश धीमान, पुत्र: श्री जयभगवान
बुढ़ाना, मुजफ्फरगनर उत्तर प्रदेश
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एक अच्छी साइट है ऐसे किताबें पड़ने के लिए. बहुत बहुत धन्यवाद आपके इस अथक प्रयास के लिए. जय श्रीमन्नारायण.
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